शनिवार, 27 मार्च 2010

कविता....... मैं तुमसे डरता हूँ भई!

जब मैं छोटा था मुझे मेरी अम्मा एक कविता सुनाती थी:

चंदा मामा दूर के, पुए पकाए पूर के।

अम्मा की इस कविता को सुन कर मैं सो जाया करता था। अब बड़ा हो गया हूँ। अम्मा मेरे साथ नहीं है पर उस वक्त की मेरी आदत आज भी नहीं बदली है। आज भी जब मैं कोई कविता सुनता हूँ तो सो जाता हूँ।


कभी कभी लगता है मेरे लिए तो कविता सुन कर सो जाना ही ठीक है क्योंकि अगर मैं सो नहीं पाता और कविता सुनते हुए जागता रहता हूँ तो मेरे दिमाग मैं उटपटांग से प्रश्न उगने शुरू हो जाते हैं। अब मेरी पहली कविता का उदहारण ही लें। एक बार जब यही कविता मैंने अपनी माँ के मुख से नहीं सुनी तो मैं और मेरा दिमाग दोनों ही जागते रहे। मेरे इस जागे हुए दिमाग में प्रश्न उठा की अगर पहली पंक्ति है चंदा मामा दूर के तो दूसरी पंक्ति में इस बात को आगे बढाया जाना चाहिए था जैसे की


चंदा मामा दूर के पास जाऊ हजूर के।

या

चंदा मामा दूर के मुझे बुला लो टूर पे ।


या ऐसी ही कोई और तुकांत बात पर ये कवि महोदय अचानक पुए कहाँ से तलने लगे? मेरे जागे हुए दिमाग में उठे इस प्रश्न का उत्तर मैं खुद नहीं खोज पाया। इसी तरह से मैं ज्यादातर कविता को समझ नहीं पाता। और भी कई घटनाये सुनाता हूँ।


मैं आठवी या नवी कक्षा में था तब मेरे लिए सबसे कठिन पुस्तक हिंदी पद्य की थी। मुझे समझ ही नहीं आता था की कवि आखिर क्या कहना चाहता है । हमारे कोर्स में कविवर बच्चन की एक कविता थी :

मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़ ।

मैंने इसका सीधा साधा अर्थ निकला की कवि स्त्री रूप में कह रहा है को वो सीधी रीढ़ रखने वालों के साथ खड़ी है। जब हमारी रीढ़ सीधी होती है तो छाती चौड़ी लगती है और चौड़ी छाती वाले पुरुषों के साथ स्त्रियाँ रहना पसंद करती हैं। अब आप अनुमान लगा सकते हैं की इस व्याख्या के मुझे कितने नंबर मिले होंगे।

कविता की व्याख्या करना मुश्किल जरुर हो सकता है पर कविता लिखना मुझे आसन दीखता है। कविता लिखने के लिए बस कवि को मूड में आना होता है। किस तरह से? सुनिए.......

अब किसी ने कवि को थप्पड़ मारा , कवि तुरंत ही एक भय भरी कविता कर देगा।

किसी कवि को उसकी पत्नी ने सताया तो उसे सारे ज़माने में दुःख ही दुःख नजर आयेगा।

किसी कवि के हाथ अगर झंडू का चाव्न्यप्राश लग लाया तो उसकी कविताओं में वीर रस की अभिव्यक्ति होने लगेगी क्योंकि झंडू का चावान्यप्रास रग रग में ताकत जो भर देता है।

इसी तरह से भाव प्रवण कविताओं की रचना हुआ करती है। अच्छा कविता लिखने के बाद की राह भी बड़ी आसन है। कवि को बस कविता लिखनी होती है उसका अर्थ या अनर्थ करने का जिम्मा तो मेरे जैसे पाठकों के हाथ ही होता है। आप किसी कवि से पूछ लीजिये भाई आपकी फलां पंक्ति का क्या अर्थ हुआ तो आप पाएंगे की अर्थ तो उस बेचारे को भी नहीं मालूम । उसका मकसद तो सिर्फ तुक भिड़ना था सो उसने भिड़ा दिया । आगे आपका काम है। अपने काम का मतलब खुद निकल लो और अगर कुछ भी समझ ना आये तो जोर जोर से वाह वाह चिल्लाकर अपने ज्ञानी होने का परिचय दे दो। अतः कवि के तो दोनों हाथों में लड्डू हैं।

मेरे एक कविवर मित्र हैं जो कहते हैं की कविता करना आसान कार्य नहीं है। आम व्यक्ति कविता नहीं लिख सकता। इसके लिए आपके भीतर भावनाओं का तूफान सा उमड़ रहा होना चाहिए। आपके भीतर थोडा पागलपन होना चाहिए। थोडा जनून होना चाहिए। फिर दम लगाओ तब निकलती है कविता।

मैंने भी दम लगाया पर शायद थोडा ज्यादा जोर से लग गया और आगे क्या हुआ नहीं बताऊंगा।

लोग कहते हैं की भावुक व्यक्ति ही कविता कह पता है। मैं भी भावुक हूँ पर कविता नहीं लिख पता । पता नहीं शायद इसलिए खीज में कवियों की टांग खिचता रहता हूँ। भावुक ह्रदय कविगण ,मुझे छिमा करें।


3 टिप्‍पणियां:

  1. dam lagaane se to aur kuchh nikal jaayega bhaaya.
    kavita is very easy, try 1 lakh times.

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  2. मित्र दीप

    हास विनोद करना अच्छा है. लेकिन अर्थ का अनर्थ करके समझना वैसे ही है जैसे जमाल मियाँ जी कर रहे है. बाल बुद्धि प्रयास आज भी होंगे तो किससे उम्मीद रखेंगे तत्व ग्रहण करने की. ये व्यकिगत समस्या हो सकती है कि किसी को कविता विधा उतनी रास ना आये. बेतुकापन हर किसी को खटकता है. उस पर अपनी बेबाक राय देनी भी चाहिए जिस तरह कभी आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी किया करते थे.

    साहित्य में कचरे की भरमार ना हो इसके लिए आप जैसे तार्किक समीक्षक होने की अपनी अहमियत है. इसे बरकरार रखियेगा.

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  3. इस ब्लॉग (दर्शन प्राशन) में २७ मार्च की तारीख में जो कविता प्रकाशित की है उसे विराम चिह्न एवं अर्द्ध विराम चिह्न देखकर अर्थ को समझिएगा तो कविवर बच्चन साहब की भी कविता को समझना सहज होगा.

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