यादव कुल के तीन चश्मों चिराग महिलाओं को संसद में आरक्षण देने के विरुध हैं। ऐसा क्यों? भला इन यदुकुल वंशियों को स्त्रियों से क्या दुश्मनी है? क्या इन्हें डर है की स्त्रियों को आरक्षण दे दिया तो सत्ता इनके हाथों से फिसल जाएगी। इनमे से लालू यादव तो अपनी पत्नी को खुद सत्ता की बागडोर दे कर परोक्ष रूप से सत्ता का सुख भोग चुके हैं। फिर कम से कम लालू यादव को तो महिला आरक्षण का विरोध नहीं करना चाहिए था।
असल में ये तीनों भारत के उन हिस्सों का प्रतिनिधित्व करते हैं जहाँ औरतों को सिर्फ चूल्हा चौका करने के लायक ही समझा जाता है। इससे ज्यादा महिलाओं का इन लोगो के जीवन में कोई महत्व नहीं। मुलायम सिह यादव तो रामपुर तिराहा कांड के दोषियों को बक्श कर अपनी इस मानसिकता का परिचय पहले ही दे चके हैं। शरद यादव तो महिला आरक्षण बिल के पास होने पर जहर खा लेने की धमकी देकर अपनी हताशा जाहिर का चुके हैं। और लालू जी को पता है की जिस तरीके से उन्होंने खुद अपनी पत्नी को आगे रख कर बिहार पर शासन किया वैसा कोई और न कर पाए अतः इस बिल का विरोध आवश्यक है।
में भी आरक्षण के बिलकुल विरोध में हूँ। मुझे लगता है की जिस प्रकार हमारे सविधान में जॉब्स में अनुसूचित जाती व् जनजातियों को आरक्षण देने का कोई फायदा नहीं हुआ है उसी प्रकार से इस आरक्षण का भी उचित लाभ नहीं मिल पायेगा। आरक्षण तो एक बैसाखी है जो अच्छे भले आदमी को लंगड़ाने पर मजबूर कर देती है। हमें कमजोर को मजबूत बनाने की कोशिश करनी चाहिए न की उसे बैशाखी पकड़ा कर हमेशा के लिए पंगु बनाना चाहिए।
मुझे पूरा विश्वास है की महिलाओं की स्थिति इस तरह से नहीं सुधरने वाली क्योकि उनकी बागडोर तो उनके पतियों के हाथ में ही रहेगी । लालू जी और राजस्थान के एक नेता जिन का नाम मुझे याद नहीं अपनी अंगूठा छाप पत्नियों को सत्ता देकर यह सिद्ध कर चुके हैं।
इस लिए हमें प्रयास यह करना चाहिए की स्त्रियाँ स्वावलंबी बने। उनमे आत्मविश्वास आये। ताकि कोई पुरुष उन्हें कठपुतली की तरह से इस्तेमाल न कर पाए। इसके बिना तो यह आरक्षण देना न देना एक बराबर है.
मैं भी इस महिला आरक्षण बिल को स्वीकार नहीं कर पा रहा था वजह आपके विचारों ने सामने ला दी।
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