शनिवार, 4 मई 2013

समलैंगिकता की चीड़फाड़


लगभग डेढ़ वर्ष से मैं भारत भ्रमण पर हूँ। पूर्व से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण लगभग पूरा भारत नाप चूका हूँ। अपने इस भ्रमण के दौरान पुरे भारत में मुझे जो दो चीजें लगभग सभी जगहे दिखाई पड़ी वो हैं खाने में दक्षिण भारतीय सांभर डोसा और इंसानों में समलैंगिक जोड़े। डोसे का स्वाद मैंने सभी जगहों पर लिया और समलैंगिक जोड़ो को अभी तक सिर्फ निहारा। 

अभी पिछले हफ्ते चंडीगड़ में था। इस बार एक समलैंगिक से मुलाकात/बातचीत हो ही गयी जो अपने पार्टनर के साथ संयोग से गेस्ट हॉउस में मेरे बगल के कमरे में ठहरा हुआ था। समलैंगिकता को लेकर कुछ प्रश्न मेरे मन में हमेशा रहे हैं जो मैंने उस जीव के सामने रखे पर अफ़सोस वो "कच्चा खिलाडी" था। वो इस खेल के क्रियात्मक पक्ष से ही जुड़ा था। सिद्धांत रूप में उसने कभी भी इस "कला" की चीड़फाड़ नहीं की थी।

जब भी मैं स्त्री पुरुष के शारीरिक संबंधों पर विचार करता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है की इन संबंधो में भी एक पक्ष घनात्मक होता है और दूसरा ऋणात्मक। एक यिन होता है तो दूसरा येंग, एक ठंडा होता है तो दूसरा गरम, एक तलवार होता है तो दूसरा उसकी म्यान। ऐसा शारीरिक रूप से हो या मानसिक रूप से पर ऐसा होता जरुर है तभी आनंद की बत्ती जलती है वर्ना नहीं।  ऐसा इसलिए क्योंकि अगर दोनों ही घनात्मक होंगे तो प्यार की बत्ती नहीं जलेगी बल्कि शार्ट सर्किट हो जायेगा । आप ही सोचिये ना अगर दोनों ही तलवार वाले होंगे तो आनंद नहीं होगा सिर्फ युद्ध ही होगा। 

अपनी इसी सोच के साथ जब मैं किसी समलैंगिक जोड़े पर विचार करता हूँ तो मुझे जोड़े के उस व्यक्ति की मानसिकता समझ नहीं आती जो अपने सामान लिंग वाले पार्टनर में विपरीत लिंगी गुण खोज रहा होता है।  

मैं इस बात में पूरी तरह विश्वास रखता हूँ की कभी कभी कुछ मामलों में प्रकृति से भी गलती हो जाती है और वो एक पुरुष के शरीर में स्त्री को और स्त्री के शरीर में पुरुष को भूल से बांध देती है। ऐसे  पुरुष शरीर में फंसी स्त्री तो तो पुरुष की तरफ ही आकर्षित होगी और स्त्री शरीर में फंसा पुरुष स्त्री की ओर ही आकर्षित होगा। 

इसमें मुझे कोई लोच नज़र नहीं आता। मुझे समलैंगिकों के दुसरे वाले साथी की मानसिकता समझने में कठिनाई होती है।जो स्त्री पुरुष शरीर में फंसी है उसे पुरुष साथी पसंद आएंगे पर उसका साथी क्यों एक अधूरी अपूर्ण स्त्री को पसंद कर रहा है ये बात मुझे समझ नहीं आती। ऐसे  ही लेस्बियन जोड़े भी स्त्री शरीर में फंसा पुरुष तो स्त्री की और आकर्षित होगा पर जो मानसिक और शारीरिक रूप से स्त्री ही है वो एक अधूरे अपूर्ण पुरुष की और क्यों आकर्षित हो जाती है ये समझ नहीं आता।

अब अपने मन के इस प्रश्न को हिन्दीब्लोग जगत में इस आशा के साथ उछाल रहा हूँ की शायद कोई "पक्का खिलाडी" इधर भी हो जो इसे सुलझा दे ...........