महोदय ,
आपके कई लेख पड़े। आप प्रयास कर रहे हैं हिन्दू धर्म में विद्यमान बुराइयों को सामने लाने का।
बहुत बढ़िया, बहुत अच्छा व नेक कार्य है।
गन्दगी जहाँ भी हो हटानी ही चाहिए। मेरे हिसाब से पढ़े लिखे होने का यही मतलब है। और आप तो ज्यादा पढ़े लिखे है। मैं तो सिर्फ हाई स्कूल पास हूँ और आपके समक्ष अपने को तुच्छ मानता हूँ। पर मैंने जब पहली बार आपका लेख पढ़ा तो इतना ही समझ पाया की आप नहा धोकर इस धर्म (वैदिक/सनातन ) के पीछे पड़े हैं।
जितनी भी मेरी समझ है, उससे लगा की आपकी भावनाए दयानंद जी के लेखो को पढ़कर भड़की हैं। उन्होंने इस्लामिक धर्म की गलत बातों को अपनी पुस्तक में उजागर किया । जहाँ तक मुझे लगा आपकी यही पीड़ा है। ठीक है हम जिस धर्म का अनुसरण करते हैं उसकी कोई बुराई करे तो जाहिर है किसी भी पढ़े लिखे व्यक्ति को पीड़ा होगी ही।
इस पीड़ा को दूर करने के दो तरीके हैं। पहला तरीका जिसे आमतौर पर सभी साधारण मानसिकता वाले जन अपनाते है, यह है की अगर आपको दर्द हुआ है या किसी ने कोई चोट मारी है तो आप हाथ में लठ्ठ ले और बाज़ार में जाकर धुमाने लगें और इसका ख्याल बिलकुल भी ना करें की किसको चोट लग रही है। आपका लठ्ठा चाहे जिस को लगे , उसने आपका भला किया हो या बुरा, वह चाहे तटस्थ हो या नहीं, आपको इससे क्या लेना आपको तो अपने मन की भडास निकालनी है। हाँ आप इस तरह से किसी अनजान को आप अपना दर्द ट्रांसफर कर देंगे और शायद तभी आपके मन की पीड़ा भी कम होगी। गर्दन के बदले गर्दन, हाथ के बदले हाथ, और अपमान के बदले अपमान। बिलकुल अरब देशो के कानून की तरह से। यह पाशविक तरीका है। जानवर ही इस तरीके को अपनाते हैं । सड़क के बीचों बीच बैठी गाय को हटायें वो तो वो गौ माता भी, अपनी जानवरों वाली प्रवृति का पालन करते हुए, आपको सींग मारकर घायल कर सकती है।।
दूसरा तरीका है तर्क का। आप अपनी बात को तार्किक रूप से साबित करें । आपकी बात में दम होगा तो बेशक अभी नहीं बाद में ही सही सामने वाला आपका समर्थन करेगा ही। अब भला अपना नुकसान कौन चाहता है। आपकी बात अगर किसी को फायदा देती है तो वह इसका पालन अवश्य करेगा चाहे छुप कर करे। ठीक है न।
पर आपका मकसद नेक होना चाहिए । अगर आपका मकसद इतना सा है की मुझे तो सामने वाले के मुह पर कीचड़ सिर्फ इसलिए मलना है क्योकि उसने मेरे मुह पर गुलाल लगाया था तो फिर आप अपनी बात को तर्क के बजाये लठ्ठ से मनवाने का विकल्प चुनेगे।
देखिये दयानंद जी ने जो भी बातें इस्लाम के विरुद्ध लिखी वो अगर सत्य नहीं थी तो उनका विरोध न करें क्योकि झूट तो झूट ही होता है। वह अपनी मौत खुद ही मर जायेगा । अपने अपने किसी लेख में अल्लोहोप्निषद का उल्लेख किया है जो की इस्लाम का समर्थन करता है और जिसको वैदिक ग्रन्थ कह कर प्रचारित किया गया।। बहुत समय हो गया है इसकी रचना हुए क्या हिन्दू धर्म पर इसका कुछ असर हुआ । जो गलत है , झूट है उसका पालन कोई नहीं करता।
आप अपने धर्म को हमसे बेहतर तरीके से जानते हैं । किसी के झूट से आपका धर्मं ख़त्म नहीं होने वाला बल्कि आपके धर्मावलम्बी ज्यादा शक्ति से अपने धर्म से जुड़ जायेंगे जैसे की आपके लेखों को पढ़कर मेरा अपने धर्म पर ज्यादा विश्वास बढ़ा है। मैंने सही और गलत का दुबारा से अवलोकन किया है।
मैंने आपकी बातों को ध्यान से पढ़ा और पाया की आपका उद्देश्य केवल विरोध करना है इसलिए आप केवल उन बातों को सामने ला रहे हैं जो गलत है। भाई सौ प्रतिशत कोई सही नहीं होता । कुछ न कुछ गलतियाँ तो सभी में होती ही हैं। देखना यह चाहिए की औसत क्या है । फिर मानवीय व्यव्हार से सम्बंधित किसी भी विज्ञानं में आप दो और दो चार वाला गणितीय सूत्र नहीं अपना सकते । जो कल गलत था आज सही है और जो आज सही है हो सकता है कल गलत हो। हमारी धार्मिक मान्यताओं में भी यही बात समझनी चाहिए । हो सकता है की वैदिक धर्म की कुछ पुरानी मान्यताएं आज के सन्दर्भ में आपको विचित्र लगें । हमें भी लगाती हैं इसलिए ही तो वे आज प्रचलन में नहीं हैं। आप हमारे धर्मं की कुछ पुरानी मान्यताओं का मजाक उड़ाने की जगह वर्तमान की बात करें । और देखे की आज हमारे धर्म में क्या गलत है। उसका विरोध करें । उसे उजागर करने का प्रयास करें । अपने धर्म के लिए भी यही रवैया रखें। इसके अतिरिक्त यह भी ध्यान रखे की कुछ सामाजिक समस्ये होती हैं और उनका धर्म से कुछ लेना देना नहीं होता है। एक जगह आपने लिखा है की हिन्दू धर्म में दहेज़ के लिए औरतों को जलाया जाता हैं। यह एक सामाजिक समस्या है । इसका किसी धर्म से कुछ लेना देना नहीं है। मेरे कुछ मुस्लिम दोस्तों की शादियों में मेने देखा है दहेज़ लिया व दिया जाता है। यह कुरीति हमारे भारतीय समाज में व्याप्त है और कोई अंग्रेज भी अगर यंहा रहेगा तो वो भी दहेज़ लेना शुरू कर देगा। संतान की चाह में वीर्य बैंक में जाने वाली बात का भी धर्म से कुछ लेना देना नहीं है। यह सिर्फ आपके मन की खीज है।
मुझे लगता तो नहीं की मैं आपको कोई राय देने के लायक हूँ पर ध्रष्टता करने का मन कर रहा है। मैंने आपके लेखों में एक अजीब सा बिखराव देखा है । आप एक बात पर नहीं टिकते , भटकते रहते हैं । इसके साथ ही आपके लेख हमेशा किसी न किसी की कही हुई बात का उत्तर होते हैं । कोई कुछ कहता है आप उस बात का अपने ब्लॉग में उत्तर देते हैं। दुसरे ने क्या कहा था पता ही नहीं चलता । देखिये मेरे हिसाब से आप सच्चे दिल से हिन्दू धर्म की बुराई करना ही चाहते हैं तो फिर इस धर्म का एक वो विचार या मान्यता जो आपको गलत लगाती है लें और अपनी राय /विचार उस पर लिखे । दूसरा क्या कहता है इस का उत्तर अपने ब्लॉग पर न देकर उसके ब्लॉग पर ही दे। इससे मेरे जैसे कम बुध्धि के लोगों को आपकी बात समझने में आसानी होगी।
अंत में एक और बात कहना चाहता हूँ। दयानंद जी ने खुले रूप में हिन्दू धर्म में प्रचलित गलत मान्यताओं का पहले विरोध किया फिर उन्होंने इस्लाम की बात की। यह दिखता है की उनका उद्देश्य मात्र बुराई को दूर करना था न की किसी का मजाक उड़ना। अगर निंदा करना ही उनका उद्देश्य होता तो वे सिर्फ इस्लाम पर ही लिखते। आप भी एसा करने का प्रयास करे। आखें खोल कर अपने धर्म की बुराइयों को देखें और उनका विरोध करें। अगर पहले से ही कर रहे हैं तो ज्यादा मुखरित हों । खुल कर बोलें। मुझे एसा नहीं दिखाई पड़ा। मुझे लगा की आप अपनी बुराइयों को भूल कर दुसरे की कमियों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं।
आप बड़े अच्छे हैं । सभी जगह अपनी अच्छाई फैलाएं। कोशिश करें की जिस तरह से खनिक सेकड़ो टन मिट्ठी हटाकर एक ग्राम सोने का एक टुकड़ा पाकर खुश होता और हटाई गयी मिटटी को भूल जाता है उसी तरह की मानसिकता रख कर आप भी हिन्दू धर्म की लाख बुराइयों में से (जो सिर्फ आपको दिखती है, हमें नहीं) एक अच्छाई खोजे और उसे अपने जीवन में अपनाये। मैं भी अपने जीवन में यही करने का प्रयास करता रहता हूँ।
"यह लेख लिखकर आपने अपने लेखन-धर्म का पालन किया है..."
जवाब देंहटाएंamitraghat.blogspot.com
भाई अच्छा नाम लिखा उनका जमील, वेसे वह डाक्टर अनवर जमाल (जमील नहीं)है लेकिन यह जच रहा है
जवाब देंहटाएंउनके ब्लाग vedquran.blogspot.com का तो क्या जिकर करें बकवास ही बकवास
@ Mere hum khayal saathi
जवाब देंहटाएंapne mere man ki thah lene ki koshish ki .
main apka shukraguzar hun.
mera maqsad hindu dharm ki buraiyyan samne lana nahin hai.
Agar aisa hota to main Gayatri mantra ki mahima kyun gata.
kal ki post men bhi maine vedic adhyatm ko labhkari bataya hai.
Quran ki vyakhya karne walo ki nadani ki wajah se musalmanon men bhi kuchh kharabiyan aa gayi hain.
inhen bidat kaha jata hai.
sawal karne wale zara chayn lene dete to kuchh nasihat muslims ko bhi zurur karta.
aur bhavishya men karunga bhi.
meri wajah se apka apne Dharm par vishwas badha hai to aur logon ko bhi zurur fayda hua hoga.
main apka vishvas badhane men aage bhi madad karta rahunga. Bus aap to mujh se jitna ho sake fayda utha len.
Mere lekh ke sambhodhit kewal wo log hain jo mujh par ya islam par ya shri ram par aarop lagate hain.
jan sadharan khud ko mere lekh me sambodhit na samjhe.
is aitraz karne walon ko jawab bhi mil jayega aur kisi ki bhawnayen bhi aahat na hongi.
main jiska jawab deta hun uske naam ka zikr zuroor karta hun.
ya phir unke lakshanon ka ullekh kar deta hun.
achha waqt bhi aayega .
Tab tak ke liye main aap se aur aap jaise sabhi bhaiyyon se asuvidha ke liye karbadhh chhama chahata hun.
mistake in the name is regretable. I am really sorry for that. I never try to hurt anyone by making fun of his/her name, colour of skin or any such outward appearance. I only make fun of the people who have a holier than thou attitude.
जवाब देंहटाएंZamal Sahab sorry again, I have corrected the mistake. Hope you don't mind.
suman sir...
जवाब देंहटाएंyahan bhi nice............
Suman ji aap ye NICE ka picha kab tak karte rahenge. dilli bloger meet par is bat ke liye kafi virodh hua tha, kuch aage bhi to bola kare.
जवाब देंहटाएंBaki ek bahut hi acchi aur salike wali post hai, maja aa gaya.
आपका लेख बहुत अच्छा है. लेकिन भैंस के आगे बीन बजाने से कोई फायदा नहीं होता, शायद आपको यह महसूस हो रहा होगा.
जवाब देंहटाएंANWER JAMAL पहले अपने गिरेबान तो झांक लें.. फिर किसी के बारे में कुछ कहें तो जचेगा | पर ANWER JAMAL की मानशिकता ही गन्दी है इसलिए उन्हें हिन्दुओं की सब कुछ गन्दी नजर आती है | ऐसे लोग बड़े गफलत में रहते हैं की दुसरे धर्म की बुराई कर वो अल्लाह के नजदीक पहुँच जायेंगे | क्या कुरान यही कहता है की बस दुसरे धर्म की बुराई से ही स्वर्ग पक्का है ? यदि ऐसा है तो मुझे हंसी आती है |
जवाब देंहटाएंभारतीय नागरिक ने बिलकुल ठीक कहा है .... भैंस के आगे बीन बजाने से कोई फायदा नहीं होता,
Bhaiya Namaste,
जवाब देंहटाएंJamal uncle pahle toh mujhe aise lage the ki chalo sagar manthan se kuch amrit niklega, par yahn toh jahar hi jahar nikal raha h.Ab meri ummed to aapse hi BHAGWAN NEELKANTH banne ki h,Jamaal ji ke vishvaman se hone waali taklif se kaise bachun aap hi batayiye.
Jamal uncle aap ko-Mere hum khayal saathi- kah rahe the, aap kaise unke hum khyali hai mujhe samjhaye. nahi toh woh kal ko mere bachon ko thok thok ke kahenge ki dekho tumhare pita VICHAAR SHOONYA ji ke vicharo se sahmat tha or VICHAAR SHOONYA ji Mere hum khayal saathi thye, isliye meri baat mano ur ISLAAM QUBUL karo.
ha ha ha
जवाब देंहटाएंअमित जी सच्चाई को इतनी सच्चाई से बयान ना करें तो बेहतर होगा!
भाई किसी की भावनाओं को ठेस लग सकती है!दुनिया में घायल पहले ही बहुत है...
कुंवर जी,
मेरी व्यक्तिगत इच्छा है कि अनवर जमाल जी इस्लाम के बारे में कुछ अच्छा-बुरा विश्लेषण करते तो हम हिंदुओं का कुछ ज्ञान बर्धन होता..मेरे कुछ अच्छे -बुरे विचार बनते या बदलते...किछ धारणाएं भी टूटती...
जवाब देंहटाएंलड्डू बोलता है...इंजीनियर के दिल से...
http://laddoospeaks.blogspot.com
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अरे! यह क्या दो, दिन आपका ब्लॉग न देखा। आपके विचारोत्तेजक लेख ने तो घमासान मचा दिया। आपकी विचारशून्यता ने चिंतन की उस ऊँचाइयों को छू लिया है जो एक सामाजिक संत या समाज को आचार सहिंता में बाँधने वाला आचार्य करता है।
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