मैं पिछले १५ वर्षों से वेस्पा स्कूटर चला रहा हूँ। आखें बंद करके चला सकता हूँ। कभी चलाया तो नहीं पर ऐसा विश्वास है। अभी कुछ दिनों पहले होंडा का एक्टिवा स्कूटर चलाने का मौका मिला। मैंने पहले कभी इस तरह का स्कूटर नहीं चलाया था। मेरे लिए ये एकदम नया अनुभव रहा। शुरू में तो बड़ा अजीब सा लगा। कई गियर नहीं, पैरों पर ब्रेक नहीं, किक मारने की जरुरत नहीं। स्कूटर पर बैठो , बटन दबाओ, रेस दो और आपका स्कूटर चल दिया। कितना आराम , कितनी सुविधा।
वेस्पा में क्या होता था? सबसे पहले किक मारो। किक भी ढंग से मारो, वर्ना बैक किक लगी तो लंगड़े हो जाओगे। न्यूटल पर स्टार्ट करके पहले गियर में स्पीड शुन्य से पंद्रह की फिर दुसरे गियर में स्पीड पंद्रह से तीस और फिर तीसरे चौथे गियर जाकर फुल स्पीड। और इसके बाद रफ़्तार कम करनी हो तो फिर से वही कसरत। वैसे इतने वर्षो एक गियर से दुसरे गियर बदलते हुए आदत हो गयी थी और पता नहीं चलता था की कब हमारा शारीर थक कर चूर हो गया। अब इस नयी तकनीक ने तो सब कितना आसान कर दिया है। गियर मुक्त स्कूटर हमें भी थकानसे मुक्त कर देता है।
देखो इन्सान अपने शरीर को आराम देने के लिए, सुख पहुचने के लिए, कितना कुछ करता रहता है। नयी तकनीक लाता है की चीजे आसान हो जाएँ, मुश्किलें मिटें। पर यह सब कुछ शरीर के लिए आत्मा के लिए कुछ भी नहीं। आत्मा को सुख पहुचने के लिए हमने ये जो धर्म बनाये है ( मेरा मत है की धर्मो को इन्सान ने अपनी सुविधा के लिए ही गढ़ा है , इन्हें भगवान ने नहीं बनाया) वो इतने जटिल हैं की बेचारी आत्मा थक जाती है और उसे पता ही नहीं चलता की वो सपनों की दुनिया में क्यों जाना चाहती है।
आत्मा को परमात्मा से मिलाने के लिए ये जो धर्म रूपी स्कूटर हैं ये सभी बहुत पुराने मॉडल के हो चुके हैं। इस स्कूटर के कई ब्रांड है... वैदिक , इस्लामिक , यहूदी, ... अरे बहुत है, पर हैं सभी पुराने मॉडल के। और जो नए ब्रांड बाज़ार में आये हैं उनके इंजन तो पुराने ही है। सबसे पहले तो स्कूटर स्टार्ट करना ही मुश्किल होता है . धर्म अपनाने के लिए कहीं जनेऊ के वक्त कान छिद्वाये जाते हैं, कही खतना करवाया जाता है, कहीं कुछ और। अगर आप जनेऊ नहीं पहनेगे तो आप हिन्दू नहीं। धागे का एक टुकड़ा ही धर्म है और उसी धागे से बने कपडे पहनने वाले का कोई धर्म नहीं। अगर जनेऊ प्रतीकात्मक है तो ऐसे प्रतीकों को अपनाओ जिनका हमें ज्ञान हो और एहसास हो की ये किस लिए है वर्ना इनका कोई उपयोग नहीं। मुस्लमान भाई मुझे माफ़ करें इस्लाम में भी एसा ही है। खतना क्यों जरुरी है ? क्या सिर्फ खाल के एक टुकडे पर ही हमारा धर्म टिका है। अगर ये सिर्फ साफ सफाई के लिए है तो नाख़ून कटवा के काम नहीं चलेगा क्या ?
देखा इन पुराने मॉडल के स्कूटरों को भी स्टार्ट करना मुश्किल है । एक और समानता है। अगर आपकी किक ठीक ढंग से नहीं लगी तो लंगड़े हो जाओगे मतलब धार्मिक कर्मकांडो को सही ढंग से नहीं करोगे तो आपकी गत नहीं। मन्त्रों का सही उच्चारण करो वर्ना फायदे की जगह नुकसान हो जायेगा। बेचारे हकले और तोतले लोग तो हिन्दू धर्म में मुक्ति पा ही नहीं सकते। नमाज तो उत्तर की ओर मुह करके पढो वर्ना अल्लाह मियां सुन नहीं पाएंगे कोई और ही सुन लेगा। ( अल्लाह जी मुझे माफ़ करें मैं आपसे बड़ा डरता हूँ। कोई गलती हो तो पड़ोस वाले विष्णु जी का बच्चा समझ कर माफ़ कर देना बाकि हिन्दू देवी देवताओं से मैं नहीं डरता वो तो अपने ही है।)
चलिए अपने स्कूटर स्टार्ट कर लिया पर फिर आपको बार बार गियर बदलने पड़ेंगे। कभी व्रत लो कभी रोजा रखो। कभी गंगा जी में डूबकी लगाओ कभी मक्का मदीना जाओ, सिर्फ घर पर रहने से धर्म नहीं निभेगा। कठिन मन्त्रों का जाप करो , संध्या पूजा करो, तप करो व्रत करो , अष्टांग योग नियमों का पालन करो, ये करो, वो मत करो, बस इसी तरह से गियर बदलते रहो मंजिल पर पहुच जाओगे।
मंजिल पर पहुचो न पहुचो पर थक जरुर जाओगे इस बात की गारंटी है।
अच्छा कुछ नए धर्म भी आये जिनमे ये कहा गया की ये आसान है, इनमे ज्यादा कर्म कांड नहीं हैं पर कालांतर में उनका हश्र भी कुछ अच्छा नहीं हुआ । मानव स्वभाव को तो देखो जिन धर्मों को सरलता की नीव पर खड़ा किया गया, उनमे भी लोगों ने पुराने कर्म कंडों की ईटों से नए कमरे बनवा लिए ताकि पुराने घर का सा अहसास बना रहे। वैदिक धर्म को अपनाने वाले संतानी भाइयों ने अपने कर्म कांड वैदिक धर्म में भी जोड़ लिए।
अगर आप ध्यान से देखें तो पाएंगे की सभी धर्म शुरू तो होते हैं छोटे छोटे सरल सिद्धांतों से पर धीरे धीरे जटिल होते चले जाते हैं। एसा क्यों होता है ? शरीर के लिए तो मुश्किलों को हम आसान बनाते है पर आत्मा के लिए सरल से सरल सूत्र को भी घुमा फिर कर इतना जटिल कर देते हैं की बेचारी आत्मा मुक्त होने की जगह और ही इन बन्धनों में जकड़ी जाती है।
क्या कोई धर्म एसा नहीं हो सकता जिसमें नियम कानून , तंत्र मन्त्र, पूजा पाठ आदि चीजो से आजादी हो और जीवन का सफ़र आनंद के साथ कटे।
मानव धर्म ऐसा ही तो है.......लगता है आपने नाम नहीं सुना......
जवाब देंहटाएंमित्र, कभी सोचा है जीवन इतना विविधताओं, आडम्बरों से भरा न हो तो कैसा हो? एक आदर्श जीवन की परिकल्पना भी करोगे तो उसमे कुछ बेतुकी-सी लगने वाली बातों, परम्पराओं को शामिल करोगे। तभी वह एक अवधि को पार पायेगा। अच्छा एक सहज समझ में आने वाली बात को लें -- शिक्षा, यदि बिना वर्गों के हो, कोई क्लासिफिकेशन ना हो, तो बोरियत भरी होगी ना! पहली, दूसरी, तीसरी... दसवीं, बारहवीं, बीए, एम ऐ , डॉक्टर आदि, प्रथमा... शाष्त्री, आचार्य आदि वर्गीकरण शिक्षा को रोचक और सहज बनाए रखता है। शिक्षा का यही वर्गीकरण एक पैमाना बन जाता है कि किसी ने कितनी विशेषज्ञता प्राप्त की हुई है। आपने गियरों के माध्यम से जीवन में शामिल रीति-रिवाजों को परिभाषित किया, पसंद आया। आप बहुत अच्छी बिम्ब-प्रतीकों को गढ़ने लगे है। आपने मेरे सृजन को अपनी चिंतन सरणी में मोड़ लिया है। आपकी कलम में वह ताकत आती जा रही है जो कुछ भी रेखाएं खींचती है -कुछ-न-कुछ अर्थ होता है।
जवाब देंहटाएंआनंद की चाहना रखने वाली मित्र केवल आनंद भी परेशानी देगा
पीड़ा में आनंद खोजो तो पीडक समस्याएं भी हल होने लगेंगी.