शुक्रवार, 5 मार्च 2010

सेक्स पर प्रतिबन्ध क्यों.

भारतीय संस्कृति में सेक्स एक वर्जित विषय है। हम इसे मानव संतति को आगे बढाने का साधन भर मानते हैं, भोग विलास का नहीं। इसलिए इसे परदे में रखे जाने की जरुरत समझी गई होगी क्योंकि इस विषय पर कोई भी खुलापन या आजादी हमें काम वासना में ही रत रहने को प्रेरित कर सकती है। काम या सेक्स का नशा अन्य सभी इंद्रिय नशों से बढकर है। अगर कोई इसमें बिना किसी प्रतिबन्ध के रत रहे तो वो इससे कभी बहार नहीं आ पायेगा। इन्सान के लिए तो प्रतिबन्ध और भी जरुरी है क्योंकि हम लोगों में सेक्स के लिए कोई नियत समय नहीं है जैसा की आमतौर पर सभी स्तनपायी जानवरों में होता है ( अब चाहे अजीब लगे पर हैं तो हम भी स्तनपायी जानवर ही) ।

शायद ईश्वर ने सोचा होगा की इन्सान को दिमाग दिया गया है अतः वह सेक्स के लिए उचित उम्र, स्थान, और समय आदि का निर्णय खुद ही कर लेगा। और हमने किया भी। हमारे पूर्वजो ने कुछ नियम बनाये। कुछ इंद्रिय सुखों को भोगने की खुली आजादी दी गई और कुछ पर बंधन लगाये गए। आप जितना चाहे खा सकते हैं, कुछ भी देख सकते हैं, कुछ भी सुन सकते हैं और अपने आराम के लिए कुछ भी कर सकते हैं पर सेक्स तो नियंत्रित ढंग से ही करना होगा। इसमें कोई छुट नहीं। इसमें कोई खुलापन नहीं। यह तो ढका छिपा ही ठीक है।

पर हमारे कुछ समझदार लोगों को सेक्स में खुलापन चाहिए। वे चाहते हैं की इस विषय पर हम पश्चिमी सभ्यता व् संस्कृति का अनुकरण करें। जाने क्यों इन्हें लगता है की अगर भारत में लोग नंगे घूमेंगे तो देश ज्यादा तरक्की करेगा। अगर यहाँ की लड़कियाँ भी शादी से पहले ही गर्भवती होंगी तो यहाँ की उत्पादन दर बढ़ जाएगी। पार्कों में अगर खुल्ले आम चुम्मा चा टी होगी तो बच्चे ज्यादा शिक्षित होंगे।

क्या अमेरिका या अन्य पश्चिमी देशों में बलात्कार नहीं होते ? क्या वहां पर यौन अपराधों में कोई कमी है। अगर ऐसा नहीं है तो फिर क्यों हम अपनी संस्कृति के विरुद्ध जाएँ । बताइए।
अब हमारे प्रगतिवादी कहेंगे की अगर सेक्स ढका छिपा रहेगा तो मन कुंठित हो जायेगा। अरे भाई इसका भी इलाज हमारे पास है। हमारी संस्कृति बहुत गहरी व् समृद्ध है। यहाँ हर भावना का ख्याल रखा गया है। सेक्स पर इस बात का प्रतिबन्ध नहीं है की सेक्स किया ही न जाये। अगर एसा होता तो फिर खुजराहो के मंदिर नहीं होते। भारत में वसंतौत्सव नहीं मनाया जाता। प्रतिबन्ध है तो सिर्फ उचित स्थान, उम्र व् समय का।

काश हमें भी भगवन ने दुसरे जानवरों की ही तरह से बनाया होता तो अच्छा होता। हममे सही गलत में फर्क करने वाली बुद्धि नहीं होती । हम भी अन्य जानवरों की तरह से होते, कोई बंधन नहीं, कोई रिश्ता नहीं बस अनुकूल अवसर मिला, दाव लगा, जिससे चाहा सेक्स कर लिया। आजादी ही आजादी।

भाइयो समझो ! हमारी संस्कृति बहुत गहरी व समृद्ध है। यहाँ कुछ भी अप्राकृतिक व अवैज्ञानिक नहीं है। जहाँ छुट मिलनी चाहिए वहां छुट है और जहाँ नियंत्रण होना चाहिए वहां नियंत्रण है। इससे ज्यादा क्या कहा जाये आप लोग खुद समझदार हैं स्वयं निर्णय लें।

2 टिप्‍पणियां:

  1. विचार शून्यता के चिंतन शून्य बढते ही जा रहे हैं।
    वैसे तो कभी मिलकर इतना गहरापन नहीं जाना, अब जाना। यह सच है - आपका चिंतन किसी समाज को दिशानिर्देश करने के लिए उपयुक्त है। इसी तरह अपने चिंतन शून्य मेरे विचारों में लगाते चलें। इन शून्यों से मुझे कहीं और जाने की जरूरत ख़त्म होगी। इन शून्यों से मुझे अपने लेखन के लिए भी सामग्री मिलती है। धन्यवाद।

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  2. भारतीय संस्कृति में सेक्स पर पाबन्दियों के बावजूद जनसंख्या बढाने के मामले में हमारा देश विश्व के अन्य सभी देशों में अग्रणी बना हुआ है।सेक्स के बारे में लडके-लडकियों को ज्यादा जानकारी होगी तो उपलब्ध साधनों और तरीकों का इस्तेमाल कर जनसंख्या नियंत्रण में सहयोगी होंगे और एड्स जैसी भयावह बीमारी से भी बचे रहेंगे। वैसे भी हम कितना ही विरोध क्यों न करते रहें पाश्चात्य संस्कृति अपनी वैग्यानिक पृष्ठभूमि के चलते विश्व भर में लोकप्रय होती जा रही है।

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