लीजिये मैं फिर आ गया हूँ आपको अपनी बकवास सुनाने एक भड़कीले शीर्षक के साथ।
बात सन २००० की है । यही २४ मई का दिन था। मैं और कृष्णा जोशी, दिल्ली के बंगाली मार्केट के नत्थू हलवाई की दुकान पर इसी दिन पहली बार अपने परिवार वालों की सहमती से बंगाली मार्केट के भीड़ भरे एकांत में मिले थे।
देखिये मानव प्रकृति भी कैसी अजीब है। जब मैं अपने बड़े भाई साहब के साथ कृष्णा जी से मिलने उनके घर गया था तो हम दोनों को एकांत में मिलाने का मौका दिया गया ताकि हम निसंकोच बात कर सकें। मैं तो खैर लड़की देखने में तब तक मझा हुआ खिलाडी बन चूका था अतः मुझे कोई हिचक नहीं थी पर ये कृष्णा जी का पहला अनुभव था अतः वो अपने ही घर में डरी सहमी सी बैठी रहीं और बकवास करने का सारा जिम्मा मेरा ही रहा। उनकी हिचक को देखकर मैंने सुझाव दिया की हम दोनों किसी दूसरी जगह पर मिलते हैं। मेरा सुझाव मान लिया गया और हम बंगाली मार्केट के भीड़ भरे एकांत में मिले। ये मानव मन का विरोधाभास है। कभी कभी हमारे अपनों के द्वारा दी गयी एकांत की सुविधा हमें रास नहीं आती और अपरिचितों की भीड़ में हम लोग एकांत ढूंढते हैं।
तो जनाब हम दोनों ११.०० बजे नत्थू हलवाई की दुकान में मिले। वहां पर थोड़ी देर बैठे पर जैसा की स्वाभाविक हैं हमें वहा का माहोल रास नहीं आया और हमने निर्णय लिया की चलो कहीं और चलते है। बाहर आये और यूँ ही उस मई की दोपहर की कड़ी धुप में अपनी यात्रा शुरू की । धीरे धीरे टहलते हुए हम दोनों आई टीओ से होते हुए राजघाट तक पैदल ही पैदल आ गए। पता नहीं क्यों उस दिन जरा भी गर्मी नहीं महसूस हुयी। बंगाली मार्केट से राजघाट तक का पैदल सफ़र वो भी मई में दिन के बारह बजे..... मेरी समझ से बाहर था... और जो बात मेरी समझ से बाहर होती है मैं उसे जल्दी से स्वीकार लेता हूँ। अतः मैंने तभी निर्णय ले लिया की मैं इन्हीं कृष्णा जोशी जी के साथ अपनी जिंदगी का सफ़र जारी रखूँगा।
ये बात थी २४ मई सन २००० की । अब मैं शीर्षक पर वापस आता हूँ। जिस वक्त हम दोनों ने एक दुसरे को पसंद किया था उस वक्त भाइयो कृष्णा जी का वजन ८० किलो (एकदम ठोस) था और मैं ठीक ४८ किलो(मैं भी एकदम ठोस) का था। आज १० वर्षों के बाद मैं सिर्फ ५६ किलो का हूँ पर उन्होंने खुद को ६५ किलो पर स्थिर कर लिया है।
आपको वो चूहा याद आ रहा होगा जो हथिनी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखता है। तो भाइयों अब आपको मेरे आत्म विश्वास की प्रशंसा भी करनी चाहिए। इसके साथ ही आपको कृष्णा जी के विश्वास को भी सराहना चाहिए की वो मुझ से विवाह के लिए तैयार हो गयीं।
मैं कृष्णा जी का तहेदिल से आभारी हूँ की उन्होंने मुझ जैसे दुबले पतले आदमी को सहारा दिया। इन दस वर्षो में हमने मिलकर भारत की जनसँख्या में दो बच्चे जोड़े।
आज इस एतिहासिक दिवस पर मैं जब पीछे मुड़कर देखता हूँ तो ...........आज भी मुझे खुद के वो सूखे हुए भेल दिखाई पड़ते हैं जो दस वर्ष पहले थे।
दुनिया बदल गयी पर मैं नहीं बदला।
पहली मिलन की दसवीं सालगिरह पर बधाई।
जवाब देंहटाएंबधाई तो ले ही लो!!
जवाब देंहटाएंbadhaii hamaari bhi
जवाब देंहटाएंअलग सी रुचिकर शैली। वाह !
जवाब देंहटाएं@ और जो बात मेरी समझ से बाहर होती है मैं उसे जल्दी से स्वीकार लेता हूँ।
तो आज कल मेरे ब्लॉग पर इसीलिए आप आने लगे हैं ;)
बधाई ।
दोनों लोगों का एक ताज़ा फोटो भी लगा देते तो तसदीक हो जाती।
शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजो कुछ बदला है वो बाहरी रूप है अच्छा होत २००० और २०१० की दोनो की फोटो यहा चिपका देते.
कुछ लाइन याद आ रही है सो ठेल देता हू.
बदलने को तो इन आन्खो के मन्जर कम नही बदले
तुम्हारे याद के मौसम हमारे गम नही बदले
तुम अगले जन्म मे मुझसे मिलोगी तब तो मानोगी
जमाने और सदी की इस बदल मे हम नही बदले.
(डा. कुमार विश्वास)
are waah kya rochakta se bayan kita sab kuch...badhaiyan..
जवाब देंहटाएंक्या खूब थी वो प्रथम मिलान कि बेला
जवाब देंहटाएंखिल उठे थे मन बगिया में चंपा अरु बेला
देखा मैंने तुमको मन अभिराम हुआ था
द्वारे द्वारे खोजी संगनी अब विराम हुआ था
एहो सखी! मम ह्रदय कुञ्ज विलासिनी प्रिये
रखी नहीं कुछ चाह कभी,सुख सारे तुमने दिए
बस चाह यही है साथ मिले तुम्हारा हर जनम
तुम मेरी सजनी बनो बनूँ मै तुम्हारा सनम
पहली मिलन की दसवीं सालगिरह पर बधाई।
जवाब देंहटाएंहा-हा, वैसे आपका वजन ६३ कीलो होगा, ढंग से चेक कर लेना ! आप ही ने कहा कि भाभीजी ने १५ कीलो लूज किया था !
जवाब देंहटाएंपहली मिलन की दसवीं सालगिरह पर बधाई।
जवाब देंहटाएंबधाई, भाई साहब! एक्स पोस्ट फेक्टो अप्रूवल दे दीजियेगा इस बधाई सन्देश को। जैसा कि हम दो दिन ब्लोग मे ध्यान नही दे पाये।
जवाब देंहटाएंबदलना भी मत
जवाब देंहटाएंसच में आप नहीं बदले...
जवाब देंहटाएंदीप प्रज्वलित हुआ परन्तु किरणों पर प्रतिबन्ध लगे हैं.
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कनक-लता यदि विचार-वृक्ष का सहारा बने तो क्या आश्चर्य!
मैं कृष्णा जी का तहेदिल से आभारी हूँ की उन्होंने मुझ जैसे दुबले पतले आदमी को सहारा दिया।'
जवाब देंहटाएंअगर आप यह बात व्यंग्य में लिख रहे हैं तो गलतफहमी दूर कर लें, वाकई उन्होनें आपको सहारा दिया है.
आप दोनों को बधाई कि आपने राष्ट्रीय जनसंख्या वृद्धि कार्यक्रम को साकार करते हुए दो बच्चे जोड़े.
बधाई हो! अभी तो शतक हुआ है, भगवान् करे सेंचुरी भी हो!
जवाब देंहटाएंउम्मीद है कि अगली पोस्ट में (जोड़े में) देखेंगे फोटो तबका और फोटो अबका!
पहली मिलन की दसवीं सालगिरह पर बधाई
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