एक कल्पना कीजिये की किसी आदमी ने हवाई जहाज उड़ना सीखा । आपको पता ही है की विमान चालक बनाने का प्रशिक्षण पाने के लिए कितना पैसा खर्च करना पढता है।
कल्पना की उड़ानको थोडा और आगे ले जाएँ ।
विमान चालक का प्रशिक्षण लेने के बाद अगर उस व्यक्ति को कहीं नौकरी नहीं मिले और वो रिक्शा चलने लगे तो उस बेचारे का क्या हाल होगा।
कोई बात नहीं काम कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता। हमें सबके लिए समानता का भाव मन में रखना चाहिए।
पर अगर वो व्यक्ति खुद को दुसरे रिक्शा ठेलने वालों से बेहतर या ऊँचा समझे सिर्फ इसलिए की उसने विमान उड़ने का प्रशिक्षण लिया है तो........
अगर वो खुद को रिक्शे का पायलेट कहलवाना पसंद करे तो......
अगर वो दुसरे रिक्शे वालों को खुद से घटिया समझे और सिर्फ उन रिक्शे वालों से संपर्क रखे जो उसकी तरह से ही पायलेट की डिग्री लिए हुए हैं तो ............
तो मैं उस पायलेट को पगलेट से ज्यादा कुछ नहीं समझूंगा।
कल शाम मैं संजय अनेजा जी से बात कर रहा था। उन्होंने कहा की जो यहाँ के पुराने स्थापित ब्लोग्गेर्स हैं वो दुसरे ब्लोग्गेर्स के लेख नहीं पढ़ते या पढ़ते हों भी तो भी टिपण्णी नहीं करते। कुछ ब्लोग्गेर्स खुद को श्रेष्ठ या ब्लू ब्लड का समझते हैं। मुझे भी कभी कभी एसा ही लगा पर मैं ब्लॉग्गिंग में किसी को छोटा या बड़ा नहीं मानता। मेरी नज़र में सब के sab रिक्शा खीचने वाले ही हैं । सब बराबर हैं चाहे वो किसी पृष्ठभूमि से ही क्यों ना ए हों।
नए ब्लोग्गेर्स से मेरी यही प्रार्थना है की वो किसी भी व्यक्ति को बेवजह महान ना बनायें। और ना ही किसी की जी हजुरी करें। हाँ अगर आपको कोई बहुत अच्छ ही लगता है तो उसकी प्रसंशा करें पर उसको पुदीने के झाड़ पर ना चढ़ाएं । मुह के सामने की गयी प्रशंसा भी कभी कभी व्यक्ति के पतन का कारन बन जाती है। जनाब गोरव मेरी बात समझ रहे है।
अपनी पोस्ट हिट ही करवानी है तो भाइयो मेरी तरह से तिगडमी बनो।
ब्लॉग्गिंग में कौन अच्छा लिखता है या कौन बुरा लिखता है इस बात की कोई परवाह नहीं करता । लोग ये देखते हैं इस इस रिक्शे वाले की डिग्री क्या है। रिक्शा खीचने से पहले इसने पायलेट की डिग्री ली है या फिर ये अनपढ़ है।
अच्छे और बुरे में प्रतियोगिता होती तो "मो सम कौन " की हर पोस्ट हिट होती और मेरी बकवास कोई नहीं पढता।
पर भैया कलजुग है कलजुग।
हंस चुगेगा दाना तिनका और कौवा मोती खायेगा।
सहमत हूँ आपसे ।
जवाब देंहटाएंहे सिये , राम चन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आयेगा.......
जवाब देंहटाएंमैं तो भगवान् से बस यही विनम्र आग्रह करूंगा कि हे भगवान् ! उस रिक्शा पायलट के बोईंग 737 में कभी कोई सवारी न बैठे ! :) :)
पुदीने ...,,,..
जवाब देंहटाएंlazwaw.
mauj lene k liye topic achhaa.....
Shayad bahut-si posts mai padh nahi paa rahi hun,isliye charcha ka vishay samajh ke pare ja raha hai!
जवाब देंहटाएंAapka andaze bayan mazedar laga!
)))
जवाब देंहटाएंkaha hai moti....
kunwar ji,
प्रासंगिक पोस्ट...
जवाब देंहटाएंजब हमने ब्लोगिंग शुरू की थी, उस वक़्त माहौल बहुत अच्छा था...
लेकिन, अफ़सोस है कि 'कुछ लोगों' ने ब्लॉग जगत रूपी पावन गंगा में 'गंदगी' घोल दी है...और यह दिनोदिन बढ़ रही है...
लोग ज़बरदस्ती अपने 'मज़हब' को दूसरों पर थोप देना चाहते हैं...
गाली-गलौच करते हैं... असभ्य और अश्लील भाषा का इस्तेमाल करते हैं...
किसी विशेष ब्लोगर कि निशाना बनाकर पोस्टें लिखी जाती हैं...
फ़र्ज़ी कमेंट्स किए जाते हैं...
दरअसल, 'इन लोगों' का लेखन से दूर-दूर तक का कोई रिश्ता नहीं है... जब ब्लॉग लेखन का पता चला तो सीख लिया और फिर उतर आए अपनी 'नीचता' पर... और करने लगे व्यक्तिगत 'छींटाकशी'...
'इन लोगों' की तरह हम 'असभ्य' लेखन नहीं कर सकते... क्योंकि यह हमारी फ़ितरत में शामिल नहीं है और हमारे संस्कार भी इसकी इजाज़त नहीं देते... एक बार समीर लाल जी ने कहा था... अगर सड़क पर गंदगी पड़ी हो तो उससे बचकर निकलना ही बेहतर होता है...
आज ब्लॉग जगत में जो हो रहा है, हमने सिर्फ़ वही कहा है...
Aapki baat se kafi had tak sahmat huN.
जवाब देंहटाएंआपने जैसा महसूस किया उसे ठीक ठीक वैसा ही पटका ..यही ब्लोग्गिंग है खालिस ब्लोग्गिंग ,बांकी सब होने दीजीए , होता रहता है
जवाब देंहटाएंएक बात और आपने लिखा हुआ "शुन्य "....उसे मेरा ख्याल है कि "शून्य" होना चाहिए
सहमत
जवाब देंहटाएंसही कहा जी
जवाब देंहटाएंप्रणाम
लगे रहो भैया ........ अभी बहुत दूर जाना है !!
जवाब देंहटाएंsehmat hun aapse...ham yahan rajneeti karne ke liye to ikattha nahi hue...mujhe abhi 3 mahine hi hue hai blogs se jude dheere dheere man uchatne laga...hindi aur desh ki seva ki bajaye tippani aur chatko ka khel ho gaya hai sab....agar aapki post jyaada hot hai uparwaale ki rachna me napasand ka chatka laga do ye kya baat hui...aisa likho ki khud ko santushti ho....
जवाब देंहटाएंसच्ची मन की बात कहती सार्थक पोस्ट / आज हर अच्छा सोचने वाला अपने-अपने क्षेत्र में रिक्शा चालक ही है ,इससे ऊपर के लिए तो तिकरम और शातिर की डिग्री चाहिए /
जवाब देंहटाएंपोस्ट तो आपकी बेहद मजेदार लगी...लेकिन भाई अपनी तुलना रिक्शा चालक से कुछ अटपटी सी लग रही है...आटो चालक ही कह देते, कम से कम थोडी बहुत तो इज्जत बढ ही जाती :-)
जवाब देंहटाएंविचार शून्य लेखनी चलती है अद्भुत नये ब्लोगरो के लिये आपके द्वारा किया जाने वाला काम माना जायेगा आपका पुण्य बढिया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदीप महाशय,
जवाब देंहटाएंअब मेरी बारी है क्या(तुम्हारी तारीफ़ करने की।?
पार्टी कहां और कैसी चाहिये?
बख्श दो यार। गज़ब हो तुम भी।
हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
जवाब देंहटाएं"अनूप जी और ज्ञानदत्त जी दबे हुए संस्कार ऐसे ही बाहर निकल आते हैं" वाली पोस्ट के बाद ब्लॉगवाणी तिलमिलाई!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
जिसने धर्म के नाम पर आने वाली संवेदनशील ब्लोगों को नहीं निकाला उसने इस अनोखे ब्लोग को घबड़ाकर ब्लोगवाणि से निकाल दिया!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
आज की पोस्ट देखनी है तो आगे पढ़ें
देख लिया। घोर कलजुग है। जाने क्या क्या देखना पड़ेगा इन बूढ़ी आँखों को !
जवाब देंहटाएं..कल अपनी डिग्री ढूढ़ कर पोंछ पाँछ कर स्कैन कर अपने ब्लॉग पर लगा देता हूँ और सबसे ऐसाइच करने की अपील करता हूँ।
ई बताव कि पुदीने का झाड़ मजबूत होता है कि चने का ?
..झा जी के खयाल पर भी ध्यान दिया जाय सरकार ! वाकई 'शून्य' होता है।
इस बार आपकी पोस्ट पढ़ने मे थोड़ा सा लेट हो गया .
जवाब देंहटाएंपोस्ट में अपना नाम पढ़ कर और उस इतने विद्वानों की सहमति मेरे लिये किसी बुरे सपने से कम नही लग रही है , काश आप सबने मेरे सभी ब्लॉग्स पर किए कमेंट पढ़ कर सहमति जताई होती , तो मुझे खुशी होती , ..... क्योंकि तब आपकी राय अलग ही होती . आदरणीय पांडे ज़ी मैं हमेशा क़ि तरह आपकी बात से सहमत होने का पूरा प्रयास करूँगा और अपनी ब्लॉग को बंद करने का भी क्योंकि चापलूस लोग किसी भी संस्था या संगठन के लिए अच्छे नही होते . और किसी ने कहा भी है अपयश मृत्यु के समान है , मुझे जानने वाले लोग चापलूसी की कला मे माहिर ना होने क़ि वजह से ही मुझसे परेशान नज़र आते है .
उनके लिए भे ये पोस्ट किसी आश्चर्य से कम ना होगी
हिन्दी की ओर ख़ासा झुकाव होने से किसी लेख मे किया गया भाव रसों का मिश्रण ( हास्य, व्यंग्य ) आदि सार रूप मे देखने पर मेरे मन में "महान" शब्द अपने आप ही पैदा होने लगता है , .....लेकिन यदि मुझे तनिक भी अंदाज़ा होता की इस शब्द की वजह से मुझे इस तरह एक बुरा सपना देखना पड़ सकता है तो मैं ब्लॉग लिखना ही शुरू ना करता
मैं आपको उन नेगेटिव टिप्पणियों के लिंक भी देता पर ये तो आप सब की सहमति का विरोध करना होगा , और इससे अच्छाई का नही बुराई का ही फैलाव होगा . इसलिए अंत में आप सब से क्षमा चाहता हूँ , समय मिला तो अपने ब्लॉग पर भी एक क्षमा पोस्ट
डालने का प्रयत्न करूँगा
माना आप २४ घंटे में से २० घंटे जागा करते हैं. २० में से १२ घंटे ऊर्जावान रहते हैं. १२ में से ८ घंटे ऑफिस में देते हैं या फिर ऑफिस के ८ घंटे समेत बारहों घंटे इधर-उधर ब्लोगों पर टिपण्णी देते घूमते हैं, या यूँ कहें कि आप अपनी दुकान की अधिक बिक्री के लिए पहले दिल खोलकर गैर-विवादित ब्लोगों पर जाकर टिप्पणियाँ न्योछावर करते हैं. तब कहीं जाकर आपकी दुकान रंग में दिखती है. अरे भाई, "हिट लिस्ट" देखकर क्यों दुखी होते हैं. लेखों से होने वाली "हित लिस्ट" देखिये.
जवाब देंहटाएंफल-सब्जियाँ फुटपाथ पर बिकने से महत्वहीन नहीं हो जातीं, और ना ही अंडर-वियर, जूते आदि ए.सी. शोरूम में बिकने से महत्व पा जाते हैं.
बहरहाल, आपकी पोस्ट के क्या कहने. लाजवाब, लेकिन जवाब ढूँढना हमें भी आता है. सहपाठी होने का लाभ शुरू से जो मिलता रहा है.
सही कहा भाई।
जवाब देंहटाएंअपन ब्लाग पर हैं, पर ब्लागर नहीं
इसलिए मस्त रहते हैं:)
जवाब देंहटाएंपाइलट से पगलेट तक की यात्रा मज़ेदार और शिक्षाप्रद है ।
... बात में दम है !!!
जवाब देंहटाएं@पांडेय जी
जवाब देंहटाएंइसमें ग़लती आपकी या मेरी नही है मैं तो इसे तर तीव्र प्रारब्ध ही कहूँगा की ....
सारी दुनिया " ग्रेट पोस्ट " और " नाइस पोस्ट " जैसी प्रचलित शब्दावली का इस्तेमाल करती है अपने कमेंट में, और आपने मेरे " महान लेख" लिखने मात्र से आपने एक पेराग्राफ मुझे समर्पित कर दिया ......
पर फिर भी आपकी इस बात में भी एक सकारात्मक पहलू है
दुर्जन की करुणा बुरी, भलो सांई को त्रास ।
(सांई = सज्जन जैसे आप पांडे जी )
अब इसे जीहजूरी ना समझिएगा
मैं कोई सस्ती विचारधारा वाला ब्लॉंगर नही जो इस तरह की बात सुनने के बाद भी मज़े से पोस्ट चिपकाता रहूं संडे के संडे लाइफ के फंडे .. मैं बड़ी ही कोशिश करके ब्लॉग जगत से पूरी तरह या आंशिक रूप से अलग होने के बारे में सोच रहा हूँ
बहुत बढ़िया भाई जी
जवाब देंहटाएंठीक तरह से समझाया आपने
अगर कोई अब भी न समझे तो ये उनकी गलती हैं
आभार .
@ PANDEY JI , SANJEEV RANA JI
जवाब देंहटाएंचलिए छोड़िए , अब इतने लोग मान रहें है तो मैं भी मानने पर मजबूर हो रहा हूँ . मैं खुद भी शायद ये जानता हूँ की इस ब्लॉग परिवार में रहकर ही मैं कुछ सीख सकता हूँ. शायद " संतुलित विचारों का असंतुलित प्रदर्शन" को "जी हुजूरी" कहा जाता हो .. अगर मैं भविष्य में कमेंट करूँगा तो ध्यान रखूँगा , आप लोग बताते रहें तो मुझे अच्छा लगेगा... मैं आँखें बंद कर यकीन कर रहा हूँ क्योंकि आप सभी अनुभवी लोगों की बातों में श्रद्दा रखता हूँ यूँ ही नही कर देता कमेंट किसी की पोस्ट पर और वैसे भी जैसे जैसे आप मुझे जानने लगेंगे .. आप ही कहेंगे
"सीधा साधा बच्चा है, बस बातचीत में थोड़ा कच्चा है "
आँखें खोलने के लिए शुक्रिया
अजी साहब पांडे जी , ओ काईं हल्लो मचवा मेल्या छो, बिलाग-जगत क माय. मै तीन-चार दिना सूं अन्डीने झाँक कोन पायो अर थे अस्यी राड मचवा डाली. मने भी तो समझावो क असल बात काई हुई छ:. पण बात तो सारी की सारी लाख टका की ख्या छो थे. सारा का सारा भलामानूस तीन-चार मोत्यारा क पाछे ही डोलता फिर छ, अर जो कोयी नयो-न्यारो लिखह छ बिकी भाप्डा की कोई सुनबालो ही कोई कोण.
जवाब देंहटाएंमेरे दोस्त तुम्हारा एक एक शब्द सोचनीय है ...पर बिना सोचे भी कह सकता हूँ की तुमने सोलह आने सच ही कहा है .....अब ज्यादा बकवास तो मैं करूंगा नहीं ...बाकी सारी टिप्पणी मैंने पढ़ ली तो यही कहूँगा ...ऐसा जरूर हो रहा है ..पर ये अधिक नुकसान दायक नहीं .....शुरू में टिपण्णी ना मिले रचना पर तो थोड़ा दुःख होता है ..पर धीरे -धीरे ..सब ठीक हो जाता है ......लिखना मन को सुकून देने लगता है ....और यही सबसे सुखद स्थति है ..पर जो भी हो तुमने मेरे मन की बात छीन ली .....बहुत सही लिखा है ,,,मान गया ...तुम्हे हाथ जोड़कर प्रणाम
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