मेरे साथ एक शर्मा जी काम करते है। उत्तरप्रदेश के मुज्जफर नगर के मूल निवासी हैं अतः उनकी भाषा में एक हरियाणवी अक्खडपन हैं। बात करते वक्त गालीयों का बड़ी सहजता और निर्दोष भावना के साथ प्रयोग करते हैं। इसके साथ साथ उनका स्वर भी हमेशा तार सप्तम से शुरू होता है। जब बोलना शुरू करते हैं तो आप उनकी आवाज एक मील दूर से सुन सकते हैं।
मुझसे बड़ा स्नेह करते हैं और मेरी ब्रांच में मुझसे मिलाने आते रहते हैं। मेरी ऑफिसर एक महिला हैं अतः उनके आने और खुल कर बोलने से मुझे थोडा झिझक महसूस होती थी पर मेरी ऑफिसर ने कभी कोई विरोध नहीं किया । अतः शर्मा जी का मेरी ब्रांच में आना जाना निर्बाध रूप से जारी रहा । एक बार वो आये अपने साथ बस में घटी एक घटना सुनाने लगे जिसमे उन्होंने एक लड़के की पिटाई कर दी थी। उन्होंने अपनी विशेष अदा से कहा," पाण्डेय आज मैंने साले के मार मार के चू*ड़ लाल कर दिए। मैंने नोटिस किया की मेरी बॉस जो रोज ही उनकी माँ बहन की गाली को बड़ी ही सहजता के साथ सुनती थी अचानक इस शब्द पर असहज हो गयी। एक सच्चे मातहत की तरह मैं अपनी बॉस की नाराजगी ताड़ गया ।
पर मुझे बड़ा अजीब लगा। जब शर्मा जी अपने हर वाक्य को माँ या बहन की गाली से कीलित करके बोलते हैं तो हमारी मालकिन इसे बड़ी सहजता से लेती हैं पर अचानक एक नया शब्द , जो की हमारे शरीर के ही एक अंग का भद्दा सा नाम है, को सुनकर उनकी त्योरियां क्यों चढ़ गयीं। क्या कोई गलत चीज भी बार बार उपयोग में लाये जाने पर अपना असर छोड़ देती है और वहीँ एक भरी भरकम सा शब्द केवल अपने उच्चारण से ही लोगों की भावनाओं को भड़का सकता है।
मैंने इस दिशा में एक प्रयोग किया।
मैं एक पहाड़ी हूँ। हमारे यहाँ कुमाउनी भाषा बोली जाती है। हमारी भाषा में "चु* ड़" के लिए "भेल" शब्द का उपयोग होता है। अब जरा दोनों ही शब्दों को मन ही मन दोहराएँ।
शर्मायें नहीं कोशिश करें........ अरे कोई नहीं सुन रहा...... और कोई देख भी नहीं रहा.... पढ़ते रहें....
ध्यान दें॥ दोनों ही शब्दों में कितना अंतर है। दोनों ही शब्दों का अर्थ एक ही है हमारा पिछवाडा या हमारी तशरीफ़ पर भेल शब्द कितना मासूम है और वहीँ दूसरा शब्द कितना फूहड़।
मुझे मेरे घर में हमेशा से भेल शब्द का उपयोग प्रचुर मात्र में करने के लिए अम्मा पिताजी से डांट पड़ती रही पर जाने क्यों ये शब्द मुझे इसके ही दुसरे पर्यायवाची शब्दों के मुकाबले बड़ा सीधा- साधा सा लगता रहा। अब मैं अपने ऑफिस में अन्य नॉन कुमाउनी लोगों के समक्ष इस भेल शब्द का खुले रूप में प्रयोग करता हूँ। उन्हें इस मतलब भी बताता हूँ। मेरे सभी दोस्तों ने इसे पसंद किया है सिवाय शर्मा जी के । शर्मा जी कहते हैं की भेल शब्द में वो वजन नहीं है।
अगर आप को भेल शब्द पसंद आया हो तो आज से आप भी अपने पिछवाड़े को भेल कह कर पुकारा करें।
और अगर ना आय हो तो ..................... वही कहें जिसमे आप सहजता महसूस करते हों बिलकुल हमारे शर्मा जी की तरह से।
आईडिया तो बढ़िया है पाण्डेय जी, पर इस्तमाल में लाने में थोडा टाइम तो लगेगा ही !!
जवाब देंहटाएंजानना ही काफी है..इस्तेमाल क्या करना. :)
जवाब देंहटाएंमित्र दीप जी,
जवाब देंहटाएं'भेल' शब्द मैथिल में अलग अर्थ देता है. तो बिहारी भाई तो नितम्ब के लिए इसका प्रयोग करने से रहे.
बहरहाल, आप विद्यापति के गीतों का थोड़ा स्वाद लें ....
[1]
अभिनव पल्लव बइसंक देल।
धवल कमल फुल पुरहर भेल।। ....
[2]
संपुन सुधानिधि दधि भल भेल।
भगि-भगि भंगर हंकराय गेल।।
[3]
कुच-जुग अंकुर उतपत् भेल।
चरन-चपल गति लोचन लेल।।
[4]
तोहर बदन सम चाँद होअथि नहिं, जइयो जतन विहिं देल.
कए धेरि काटि बनाओल नव काय, तइयो तुलित नहिं भेल.
[5]
सैसव जौवन दरसन भेल. दुहु दलबले धनि दंद पडि गेल.
कबहूँ बाँधए कच कबहू विथारि. कबहू झाँपय अंग कबहू उघारि....
ऑल इज़ भेल।
जवाब देंहटाएंभेल डन अब्बा।
अरे उस्ताद, ये नया ’शब्दों का सफ़र’ भी गज़ब है।
हमारा एक नेपाली मित्र था। हमने उससे बातों बातों में बेस्ट फ़्रेंड का नेपाली तर्जुमा पूछा। उसने शायद खुश्की लेते हुये कुछ और ही शब्द बता दिया। उसके जन्म दिन पर ग्रीटिग कार्ड पर उसके नाम के साथ वही शब्द लिख कर भेज दिया हमारे एक मित्र ने। अगली बार जब वो हमारा नेपाली कांछा मिलने आया तो गुस्से के कारण उसके चेहरे का रंग बंदर के भेल के रंग से मिलता जुलता था।
वाक्य प्रयोग ठीक है न?
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जवाब देंहटाएंवैसे शब्दों में वजन तो होना ही चाहिए........!
जवाब देंहटाएंहा हा हा...
हरियाणे का हूँ ना शायद इसीलिए ये कह रहा हूँ!
कुंवर जी,
क्या सीखा रहे हो यार
जवाब देंहटाएंकुंवर जी से सहमत की शब्दों में वजन तो होना ही चाहिए........!