मंगलवार, 17 मई 2011

खुद को पहचानो.

Gabriella Pasqualotto
इन्डियन प्रीमियर लीग की प्रोत्साहन बाला बहन कुमारी गेब्रिएला को भारतीय आकाओं ने आइ पी एल के कुछ सत्यों को समाज के सामने लाने की वजह  से निष्कासित कर दिया है. जब उनके ब्लॉग में लिखी बातों का मुझे पहली बार पता चला मैंने तभी ये अनुमान लगा लिया था की इसकी भैस तो गयी पानी में. 

सत्यवादी हरीशचन्द्र  की इस धरा में सत्य उद्घाटित करने वालों के साथ क्या होता है ये किसी से छिपा नहीं हैं.उस बेचारी ने जो कुछ कहा उसमे कितना सत्य था और कितना झूट इस बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. लोगों को चिंता थी तो बस उन स्थापित लोगों के कुकर्मों पर किसी तरह से पर्दा डालने की और ये तभी हो सकता था जब की उसकी आवाज को दबा दिया जाय जो उन्होंने बखूबी कर ही दिया. इस घटना के प्रकाश में आने के तीन दिन के भीतर बहन कुमारी गेब्रिएला का  कोई नाम लेवा नहीं है. हमारे संवेदनशील, भावुक मीडिया जन आइ पी एल में मगन हैं.

मेरे लिए तो इस घटना के बहुत मायने हैं. इस घटना ने मेरे सामने एक बार फिर से ये बात साफ़ कर दी की हम  लोग इस दुनिया के सबसे सच्चे  snobs हैं. हम लोगों के लिए ईमानदारी, सत्चरित्र, सच्चाई  सब आदर्शवादी बातें हैं जो हम बस किताबों में लिखे जाने  के लिए ही करते हैं वास्तविक जीवन में अपनाने के लिए कभी नहीं. भीतर से हम लोग वही हैं जो हम हैं.

हम लोग कहते हैं की देश में भ्रष्टाचार की जड़ ये राजनेता और बड़े नौकर शाह या व्यापारी लोग है. जी नहीं .. मेरी नज़र में तो हमारे देश की सभी समस्याओं का मूल कारण हमारा यही sweep everything under the carpet वाला नजरिया है जिसमे  हम समर्थ की हर  गलत बात को सीधे सीधे नज़र अंदाज कर देते हैं और अगर कोई गेब्रिएला की तरह से कभी कहीं एक छोटा सा प्रयास करता भी है तो उसका समर्थन करते हुए कहीं न शर्मा जाते हैं, हिचक जाते हैं.

आप डुगडुगी बजाकर तमाशा करें, मसखरी करें  बहुत से लोग इक्कट्ठे हो जायेंगे पर कहीं कोई छोटी सी गंभीर बात करें जहाँ पर सत्य को स्वीकारना जरा भी मुश्किल हो तो जनाब आपको आपके साथ हमेशा खड़े रहने वाले लोग भी दूर दूर तक दिखाई नहीं देंगे.

मैं तो इस विषय पर यही विचार रखता हूँ और दूसरों के क्या है जानना चाहता हूँ. वैसे कुछ लोग इस बार भी कुछ कहते हुए हिचक या शर्मा  ही जायेंगे और सिर्फ शुभकामनायें देते हुए ही निकल लेंगे. ... क्यों जी मैं की झुट बोलियाँ ...  
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ये भद्र महिला हम लोगों की ही तरह एक ब्लॉगर हैं .वैसे शायद इनका ब्लॉग हटा दिया गया है पर इनके विषय में थोडा बहुत ज्ञान आप निम्न लिंक पर प्राप्त कर सकते हैं.



यहाँ पर मैं डाक्टर साहब को भी धन्यवाद दूंगा की उन्होंने इस बार फिर से मेरी इज्ज़त बचाई. अब आप मेरे लिए डाक्टर कृष्ण कुमार हैं :-))   





11 टिप्‍पणियां:

  1. "बुद्ध के अंतिम वचन हैं अप्प दीपो भव। अपने दीए खुद बनना। और तुम्हारी रोशनी में तुम्हें जो दिखायी पड़ेगा, फिर तुम करोगे भी क्या, आस्था न करोगे तो करोगे क्या? आस्था सहज होगी। उसकी बात ही उठानी व्यर्थ है। बुद्ध का धर्म विश्लेषण का धर्म है। लेकिन विश्लेषण से शुरू होता है, समाप्त नहीं होता वहां। समाप्त तो परम संश्लेषण पर होता है। बुद्ध का धर्म संदेह का धर्म है। लेकिन संदेह से यात्रा शुरू होती है, समाप्त नहीं होती। समाप्त तो परम श्रद्धा पर होती है। इसलिए बुद्ध को समझने में बड़ी भूल हुई। क्योंकि बुद्ध संदेह की भाषा बोलते हैं। तो लोगों ने समझा, यह संदेहवादी है। हिंदू तक न समझ पाए, जो जमीन पर सबसे ज्यादा पुरानी कौम है।
    बुद्ध निश्चित ही बड़े अनूठे रहे होंगे, तभी तो सभी उन्हें समझने से चूक गए। अन्य धर्मावलंबियों को यह आदमी खतरनाक लगा, घबड़ाने वाला लगा। उन्हें लगने लगा कि यह तो सारे आधार गिरा देगा धर्म के। पर यही वह आदमी है, जिसने धर्म के आधार पहली दफा ढंग से रखे।"



    मित्र गौरव की पोस्ट पर लिखी ये बातें बहुत अच्छी लगी.

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  2. प्रोत्साहन बाला shabd ko pehli baar padhaa haen is kae liyae aap ko pranaam

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  3. जी नहीं मै कभी नहीं कहती की देश में भ्रष्टाचार नेता या अफसर चला रहे है मेरे ब्लॉग पर पर साफ लिखा है की आम आदमी खुद गले तक भ्रष्टाचार में डूबा है वो दूसरो को क्या कहेगा | दूसरी बात ये की ये बात भी गलत है की हम हर किसी से ये उम्मीद करे की वो आप का साथ आप की लड़ाई में दे या हर सामाजिक मुद्दे पर आंदोलित हो जाये कुछ कर जाये | आखिर आम आदमी आम आदमी ही होता है वो अपने खिलाफ हो रहे जुल्म के खिलाफ कुछ नहीं कर सकता तो वो दूसरो का साथ क्या खाक दे पायेगा | उसे अपनी रोजी रोटी से भी कहा फुरसत है | फिर उस जगह तो कोई भी नहीं बोलता जहा लोगो का खुद का अपना सीधा सम्बन्ध न हो, हा सिर्फ कहने के लिए भले ही लोग हा सही या ये गलत है कह दे | वैसे पूरी पोस्ट में ये तो पता चला ही नहीं की आप की बहन कुमारी गेब्रिएला ने पोल क्या खोली है लिंक तो दे देते ,हम जैसे खबर कम रखने वालो को आसानी हो जाती |

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  4. क्यों हिलाते हो कब्र आम आदमी की।
    बेचारा अभी भी दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में है।

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  5. कुछ शर्मा के चले जायेंगे तो हम जैसे कुछ बेशर्मा तो हैं ही, फ़िकिर नोट।
    पोस्ट के बारे में यह कहना है कि किसी भी खेल के प्रति पूरा सम्मान रखते हुये भी इन व्यावसायिक तमाशों से अपने को परले दर्जे की चिढ़ है इसलिये न देखते हैं, न इससे जुड़ी खबरें पढ़ते हैं और न सुनते हैं, इसलिये गैब्रियेला के सच झूठ के बारे में जानकारी नहीं है। कुछ खुलासा करते तो हम जैसों के लिये अच्छा रहता।

    वैसे ’स्थापित लोगों’ से कुछ याद आया?

    ये ब्लाग और ’मैंगोपीपल ब्लाग’ हिन्दी की अशुद्ध वर्तनी के बावजूद इसीलिये पसंद है कि यहाँ किसी समस्या का जिम्मेदार सिर्फ़ दूसरों को न मानकर खुद को भी बराबर का और कई बार ज्यादा जिम्मेदार माना जाता है। अपने को खुद पर की गई चीरफ़ाड़ असीम सुख देती है। हमारा समाज ’हिप्पोक्रेट्स’ का समाज है,हम लोगों की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर है। किसी काम को करने वाला कौन है, यह प्रतिक्रिया का सबसे ज्यादा प्रचलित पैमाना है। यहीं पर स्थापित, पुराने, घिसे हुये, मंझे हुये, जुगाड़ू होना आदि आदि विशेषतायें काम आती हैं।

    झूठ तां खैर बोल्या ही है, पर अपना पुराना साथी है, चलेगा:)

    वन्दे मातरम।

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  6. यहाँ प्रत्‍येक व्‍यक्ति अपने सुख छिन जाने के डर से डरा रहता है, उसमें सत्‍य बोलने का साहस ही नहीं है। इस विषय पर बहुत रंग देखें हैं, बेचारा एक ईमानदार व्‍यक्ति बेईमानों की भीड़ में अकेला पड़ जाता है। कभी दूसरे देशों की क्रान्ति को देखते हैं तो लगता है कि क्‍या हमारे देश में भी लोग अपना सुख छोड़कर सड़क पर आ सकते हैं? हमने केवल राजनेताओं को निशाना बना रखा है और उन्‍हें ही बेईमान कहकर अपना कर्तव्‍य पूर्ण कर लेते हैं लेकिन स्‍वयं की तरफ कोई नहीं देखता कि हम क्‍या-क्‍या कर रहे हैं? गंगा पूर्ण रूप से प्रदूषित हो चुकी है। अच्‍छा विषय उठाया है, शुभकामनाएं।

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  7. मुला चीयर बाला ने कहा क्या ? कौनो लिंक विंक भी नहीं नहीं दिए !

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  8. उनकी व्यथा इस पैराग्राफ़ में स्पष्ट है, कि....
    "To the citizens, we are practically like walking porn! All eyes are on you all the time; it is complete voyeurism. The women double take, see you and then pretend you do not exist. The men see your face, then your boobs, your butt, and then your boobs again! As we walk, all you hear is “IPL, IPL!” with a little head jingle!
    http://www.thealternativecricketalmanack.com/2011/04/the-secret-diary-of-an-ipl-cheerleader-part-ii/#ixzz1McFOrwMB/
    अतीत की हिस्टीरिया में जीना अलग बात हैं, पर आज हम दोहरी मानसिकता वाले खुदग़र्ज़, गैरजिम्मेदार और मौकापरस्त क़ौम हैं ।

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  9. ajit जी का कमेन्ट मेरा भी मान लीजिये

    अगर आम आदमी की आवाज + गंभीरता की बात की जाए तो मुझे 'विचार शून्य' ब्लॉग और http://www.rashmiravija.blogspot.com/ http://blog.sureshchiplunkar.com/ http://sarathi.info/

    के अलावा किसी ब्लॉग पर यकीन नहीं , क्योंकि मौक़ा मिलते ही सब नेता बनते पाए गए हैं कभी ना कभी

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  10. आवाजों के बाजारों में खामोशी पहचाने कौन
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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