मैं प्रेम विवाहों का घोषित विरोधी हूँ. अपने आस पास जब भी कहीं कोई प्रेम विवाह होता है जिसमे कोई अड़चन आ रही हो तो ऐसी जगह पर एक पत्थर मैं भी अपनी और से अड़ा आता हूँ.
अपने ३८ वर्षीय जीवन काल में मैंने सिर्फ एक बार प्रेम विवाह की चाह रखने वाले जोड़े का समर्थन किया है. सिख धर्म को मानाने वाले मेरे दो सहकर्मी विवाह करना चाहते थे. . दोनों बच्चे २५ वर्ष की आयु पार कर चुके थे. सिख लड़का लड़की से ज्यादा संपन्न था. लड़की रूप सौंदर्य में लडके के सामने बिलकुल भी नहीं ठहरती थी. दोनों एक ही धर्म के अनुयायी थे. इस तरह मेरी नज़र में ये प्रेम विवाह के लिए एक आदर्श केस था. इसके अलावा मुझे कभी भी किसी प्रेम विवाह का समर्थन करने का मौका नहीं मिला. जितने भी मामले मेरी नज़र में आए उन सभी में, मैं अपनी तरफ से एक रोड़ा अटका के ही आया.
मैं प्रेम विवाहों का उन मामलों में सख्त विरोध करता रहा हूँ जहाँ लड़की की उम्र १७-२० के आस पास की रही हो और वो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न हो. अधिकतर प्रेम विवाहों में अड़चन प्रेमियों के अलग अलग समाजों और धर्मों से जुड़े होने के कारण होती है. एक अलग जातीय और सामाजिक पृष्ठभूमि में पली बढ़ी युवती अपने ससुराल वालों के रीती रिवाजों और परम्पराओं से जुड़ नहीं पाती और इस वजह से उसे अपने वैवाहिक जीवन में ज्यादा संघर्षों का सामना करना पड़ता है. मेरे परिवार की एक लड़की ने यु पी के स्थानीय ब्राह्मण परिवार के लडके से प्रेम विवाह किया. शुरू के जाने पहचाने विरोध के बाद लडके और लड़की के माता पिता विवाह के लिए मज़बूरी में रजामंद हो गए. अब लड़की अपने ससुराल पक्ष में प्रचलित बहु के कठिन "बहु- धर्म" निबाहते निबाहते तरह तरह के मानसिक और शारीरिक विकारों की शिकार हो चुकी है. सपष्ट है लड़की ने आवेश में आकार प्रेम विवाह तो कर लिया पर विवाह के उपरांत अपने ससुराल पक्ष की अपेक्षाकृत बड़ी हुई उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई और विवाह के १२ वर्षों के उपरांत भी अपनी ससुराल में एक अवांछनीय बाहरी सदस्य बनकर बेकार की मुसीबतों को झेल रही है. तो वो प्रेम जिसके लिए उसने अपने माता पिता और सास ससुर की इच्छाओं के विरुद्ध जाकर विवाह किया आज उसके जीवन में सुख नहीं बल्कि दुःख का घोल रहा है.
कुछ लोग ऑंखें बंद करके प्रेमी जोड़ों को विवाह करने की आजादी देने की वकालत करते हैं. मैं सोचता हूँ की प्रेम का क्या है प्रेम तो एक शाश्वत भावना है जो हर इन्सान के अन्दर पैदायशी होती है. हम हर उस चीज से प्रेम कर बैठते हैं जिसे अपने जीवन में एक दो बार देख लेते हैं. इन्सान का जन्म ही प्रेम करने के लिए हुआ है इसलिए प्रेम करने की गलती को तो माफ़ किया जा सकता है पर विवाह उन्ही जोड़ों का होना चाहिए जो इसे सही ढंग से निबाहने की काबिलियत रखते हों.
विवाह बंधन में बंधना उन प्रेमी जोड़ों के लिए ठीक है जो अपने घर परिवार और समाज से दूर रहते हैं या जिनका अपने परिवार से संपर्क थोडा बहुत ही रहता है. यहाँ पर भी लड़की का आर्थिक रूप से आत्म निर्भर होना बहुत जरुरी है ताकि किन्ही परिस्थियों में यदि उनके बीच कोई दरार आती है तो कम से कम लड़की का भविष्य तो सुरक्षित रहे. शायद इसी वजह से उन प्रेम जोड़ों के मध्य का विवाह बंधन जो अपने परिवारों से दूर किसी महानगर में जीवन यापन कर रहे हैं,धीरे धीरे समाज में मान्यता प्राप्त करता जा रहा है और मेरे जैसे प्रेम विवाह के घोर विरोधियों को भी अपनी जबान पर ताला लगाने को मजबूर करता है.
सामान्य परिस्थितियों में , मैं अरेंज्ड मेरिज का समर्थक हूँ क्योंकि विवाह उपरांत जब प्रेम का भूत उतर जाता है और जमीनी सच्चाई सामने आती है तो सभी को अपने घर परिवार के लोग याद आते हैं. परम्परागत रूप से होने वाली अरेंज्ड मेरिज में भी पति पत्नी को एक दुसरे से सामंजस्य बैठने में दिक्कते आती है पर वो परिवार और समाज के सहयोग से सुलझ जाती है परन्तु जिस सम्बन्ध के लिए परिवार और समाज ही तैयार न रहा हो उसमे आई किसी दिक्कत को दूर करने के लिए प्रेमी जोड़े के पास कोई सहायता नहीं होती और इसलिए प्रेम विवाह आसानी से टूट जाते हैं.
विवाह तो अपने आप में ही एक सामाजिक समझोता है जिसे समाज और परिवार के सहयोग से कायम रखा जाता रहा है इसलिए अपने प्रेम विवाह पर परिवार और समाज की अनुमति और सहमती की मुहर जरुर लगवाएं और अपने सुखी विवाहित जीवन की संभावनाओं में बढोतरी करें .
'प्रेम' विवाह ससुराल पक्ष की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए नहीं किया जाता |
जवाब देंहटाएंअब मैं क्या कहूँ? मैने तो दो अलग धर्म मानने वालों का विवाह पुरोहित बनकर करवाया है और उन्हें पति-पत्नी घोषित किया है।
जवाब देंहटाएंबस ऐसे ही
जवाब देंहटाएंसमझोते की चारपाई तुमने बिछाई वो सोई
तुम भी अधूरे उठे वो भी अधूरी उठी
http://rachnapoemsjustlikethat.blogspot.com/2008/02/blog-post.html
ताज्जुब है कई बार उस विषय की आप पहल कर देते हैं जिस पर मैं भी शिद्दत से विचार कर रहा होता हूँ -अपनी जगह आप दुरुस्त हैं मगर प्यार का क्या कीजे -यह वह शै है जो लगाने न लगे और बुझाये न बुझे -मगर हर प्यार शादी में ही तव्दील हो यह कोई जरुरी तो नहीं !
जवाब देंहटाएंप्यार सहज और नैसर्गिक है और शादी मनुष्य की बनायी सामाजिकता ....
प्यार की प्रक्रिया रिवर्सबुल नहीं है -एक बार शुरू हो जाय तो थम भले जाय लेकिन पुनरावर्तित हो वापस प्रस्थान बिंदु पर नहीं आती ....और जहाँ पहुंच थमी रहती है वहीं से फिर शुरू होती है -अगर आपने किसी से यह वाला मौलिक प्रेम कर के शिखर बिंदु पर नहीं पहुँच पाए तो फिर आप को वही साथी मिलेगा जो खुद भी मौलिक नहीं रह सका है -प्योर लव आपके हाथ से खिसका समझो ...प्रेम की प्रक्रिया का हर पड़ाव प्वाईंट आफ नो रिटर्न होवे भाई सा! मेरा तो कभी परवान ही नहीं चढ़ा !
इसे कभी विस्तार से एक्सप्लेन करेगें -आप प्रेमी प्राणी हैं इसलिए याद दिला दीजियेगा!मैं इधर भूने बहुत लगा हूँ !
विवाह में प्रेम तो होता ही है, चाहे वह पैरेंट्स अरेंज्ड हो या सेल्फ अरेंज्ड .
जवाब देंहटाएं@भूने =भूलने
जवाब देंहटाएंये भारत भी कैसा देश है
जवाब देंहटाएंएक ही चारपाई पर दो लोग
पूरी जिंदगी बिता देते हैं
विदेशों में लोग
हर थोड़े दिन में नयी
चारपाई बिछा लेते हैं
कहा है किसी ने
सुख है अलग और
चैन अलग है .
पर यह जो देखे
वो नैन अलग है .
चैन तो अपना सुख है पराये
इसीलिए भारतीय संतुष्टि के सर्वे में
अब तक टॉप कर पाए
हम तो विवाह के ही घोषित विरोधी होना चाह रहे हैं:)
जवाब देंहटाएंहम तो इतना जानते हैं बन्धु कि ये एक जुआ है। कामयाब हुये तो gambling वाला जुआ और नाकामयाब हुआ तो बैल के कंधों पर रखा जुआ।
अब एक और बात, कल रात देर से लौटा था और एक पोस्ट लिखी थी। बाई चांस पब्लिश करने से पहले तुम्हारी यह पोस्ट देख ली तो उसे दफ़न कर दिया है। उस पोस्ट का बेस क्या था, मेल में भेज रहा हूँ। कल के ही एक अखबार की खबर है, चैक कर लेना।
इस उलटी सीधी कविता के बाद विचार इस प्रकार हैं :
जवाब देंहटाएंसही है ...... आँखे बंद करके वकालत नहीं करनी चाहिए ..ना तो प्रेम विवाह की और ना परम्परा की
आपकी बात से सहमत। मेरा तो यह मानना है कि प्रेम शाश्वत है ही नहीं, प्रेम क्षणिक है। शाश्वत प्रेम तो हमारे अन्दर है जो आपने भी लिखा है कि वह मानव मात्र के लिए होता है। जिससे हम प्यार होने का दावा करते हैं और जनम-मरण की बात करते हैं, उसी की कोई बात सामने आने पर जीवन भर उसका मुँह नहीं देखने की कसम भी खा लेते हैं। वास्तव में कोई भी विवाह प्रेम-विवाह होता नहीं है। पूर्व में परिवार विवाह कराता था और अब स्वयं लड़का-लड़की कर लेते हैं, अपनी सुविधा और अपनी रुचि के अनुसार। सारे ही अरेंज हैं। दैहिक और युवावस्था के आकर्षण को हम प्रेम का नाम दे देते हैं जो नोन तैल लकड़ी के भाव के साथ ही विदा ले लेता हे।
जवाब देंहटाएंआज कल आप की पोस्ट एक पोस्ट लिखने का पूरा विचार मन में भर देती है कुछ यही उलट दे रही हूँ |
जवाब देंहटाएंये तो सही बात है की प्यार तो आप किसी से भी कभी कर लो किन्तु जब बात विवाह की आती है तो उसके लिए दोनों में कुछ खास योग्यता का होना जरुरी है यदि वो नहीं है तो परिवार बनाना सही नहीं है बन गई तो फिर उस गृहस्थी की गाड़ी खीचतान के बमुश्किल चलेगी या बीच में ही टूट जाएगी | प्यार यदि गहरा नहीं है या सिर्फ आकर्षण को प्यार समझ लिया गया है या प्यार प्यार न हो कर बस उम्र की नादानी है और फिर विवाह कर लिया गया है तो मुश्किलें हजार आनी ही है | इस हिसाब से मै भी प्रेम विवाह विरोधी हूँ |
पर ये तो दिमाग वाली बात हुई न पर प्रेम तो दिल से किया जाता है जब आप प्रेम करते है तो उस समय आप बाद प्यार को ही ध्यान में रखते है दुनियादारी को नहीं | कम उम्र आदि आदि में किये प्रेम को हम भले नादानी कह झुठला दे किन्तु ये तो हर उम्र में होता है पर सोच सभी प्रेमियों की एक ही होती है | उन भावनाओ को तो वही समझेगा जो प्रेम करे बाकि इस लगन को समझ ही नहीं सकते है |
ये बात एक बार पहले भी आप की पोस्ट में कही है आज फिर कहती हूँ परिवार द्वारा किये गये विवाह के बाद पति पत्नी में जी प्रेम हो जाता है उसकी तुलना आप उस प्रेम से नहीं कर सकते है | यदि आप मानते है की उस प्रेम में ज्यादातर नादानी है सिर्फ उम्र का असर है जो जमीन पर पैर पड़ते ही खो जाता है तो पति पत्नी के बीच भी ज्यादातर लगाव ही होता है उसे आप प्रेम नहीं कह सकते है | जिस तरह किसी किसी के बीच ही गहरा, मन से प्रेम होता है उसी तरह किसी किसी पारम्परिक विवाह वाले पति पत्नी के बीच ही उस तरह का प्रेम होता है |
मतलब ये की दिमाग वालो की बाते न दिल वालो को समझ आयेगी न दिल वालो की बात दिमाग वालो को दोनों ही अपनी जगह सही है |
वैसे जहा तक बात लड़की के ससुराल वालो को खुश करने की बात है तो वो काम तो कभी भी कोई भी बहु नहीं कर सकती है चाहे परिवार की मर्जी से विवाह करे या अपनी मर्जी से और मै इस बात को भी ख़ारिज करती हूँ की विवाह करने के लिए व्यक्ति की जाती धर्म संस्कृति जैसी कोई चीज मायने रखती है | क्योकि एक ही जाती धर्म आदि आदि में विवाह करने के बाद भी लोगो के घरो में अलग अलग परम्पराए होती है जो लड़की वहा जाने के बाद धीरे धीरे सिख ही जाती है |
दीप जी,
जवाब देंहटाएंआपने सहजता से वास्तविकताएँ उजागर कर दी है। यही सच्चाई है।
'प्रेम विवाह' शब्द को पुनः अर्थ-बोध शब्द से परिवर्तित करना जरूरी है। अन्यथा यह प्रेम शब्द का नाजायज फायदा उठाना होगा।
जैसे राहुल जी ने शब्द दिया 'सेल्फ अरेंज्ड' सार्थक है।
अजित जी नें सद्प्रेम को सटीक परिभाषित किया, और उससे भिन्न क्षणिक और दैहिक युव आकर्षण को भी वर्गीकृत कर दिया। जिसे प्राकृतिक आवेग के गुण-धर्म रूप स्वीकार कर लेना चाहिए।
अब बात करते है विवाह की तो सेल्फ अरेंज्ड विवाह भी सफ़ल हो सकते है यदि उन्हे पर्याप्त सोच-विचार और विवेक के साथ सुनिश्चित किया जाय। उक्त प्रेम आकर्षण अपरिपक्व हुआ तो असफलता निश्चित है। भले यह प्रकृतिक आवेग हो। किन्तु समाजों की रचना अब प्राकृतिक नहीं रही। भिन्न भिन्न समाजों ने अब अपनी परस्पर विपरित प्राथमिकताएं और विधान विकसित कर लिए है। उस भिन्नता की दुस्साहस से उपेक्षा करना स्वयं के भविष्य की अकाल हत्या के समान है। बस धर्म या समाज प्रेम के दुश्मन है, उन्हें प्रेम के खिलाफ दो गाली दो, रास्ता आसान हो जायेगा। पर ऐसी सतही अवधारणा से कई जीवन बादमें घुटन में जीनें को अभिशप्त हो जाते है।
अब इन सब के अलावा एक और कोण है इस विषय में आप उसे नारी वादी भी कह सकते है | वो ये की एक नारी के लिए चाहे वो परिवार की मर्जी से विवाह करे या प्रेम विवाह करे उसका हाल दोनों जगह लगभग वही होता है | प्रेम विवाह में भी जब तक आप प्रेमिका है आप की सभी इच्छाये सर आँखों पर रखा जाता है किन्तु विवाह के बाद आप बस पत्नी हो जाती है और आप के साथ वही व्यवहार होता है जो एक टिपिकल मिडिल क्लास ( उच्च और निम्न वर्ग भी ) भारतीय पत्नी के साथ होता है उसमे कोई परिवर्तन नहीं होता है | यदि लड़किया किसी खास व्यवहार की उम्मीद में या पारम्परिक विवाह से डर के प्रेम विवाह करने की सोच रही है तो मेरी माने तो दोनों ही गलफहमी में है उन्हें ऐसा कुछ भी नहीं मिलने वाला है | इस हिसाब से मै तो विवाह के ही विरोधी हूँ :)
जवाब देंहटाएंअंशुमाला जी,
जवाब देंहटाएंयह क्षणिक दैहिक आकृषण वाले नादान प्रेमियों नें मिथ खडा किया है कि यह 'दिल का प्रेम' है। जबकि सारी भावनात्मक बातें भी दिमाग में ही प्रोसेस होती है, मात्र आवेगों से दिल की धडकनें बढ जाती है अत: बडी चालाकी से इसे प्रेम(भावनाएं) भी कहकर हृदय से जोड लिया। क्योंकि इसे दिमाग की उपज स्वीकार करने पर विवेक का उपयोग जरूरी हो जाता।
इसीलिये 'प्यार अंधा होता है' या 'प्रेम थोडे ही सोच-समझ कर किया जा सकता?' यह 'यह दिल का मामला है'। मगजमारी से बचनें का बड़ा आसान उपाय है।
किसी भी तरीके के सम्बंध में प्रेम की उपस्थिति या स्थायित्व आवश्यक नियम नहीं है। अतः कथित 'प्रेम विवाह' में भी प्रेम को रेखांकित करना निर्थक है।
आपकी बात से सहमत
जवाब देंहटाएंविवाह संस्था मनुष्य के स्वेच्छाचार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से बनाई गई एक सामाजिक संरचना है। और इस उद्देश्य को स्थायित्व प्रदान करने के लिये दोनों पक्षों के अधिकार व कर्तव्य सुनिश्चित किए गये।
जवाब देंहटाएंनये परिवार में स्थापित होने के कुछ संघर्ष तो सब जगह होंगे, पर जानबुझ कर विपरित संस्कार वाला परिवार अपनाना अधिक असहनीय समस्याएं खड़ी करता है। वह अनावश्यक और अतिरिक्त संघर्ष ही नहीं लड़ाई बन जाता है। यह बहुत ही बड़ी भिन्नता है।
कुछ कहना बेकार है शोर्ट में समझाता हूँ
जवाब देंहटाएं@विवाह संस्था मनुष्य के स्वेच्छाचार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से बनाई गई एक सामाजिक संरचना है।
सुज्ञ जी ,
दरअसल आजकल स्वेच्छाचार ही "प्रेम" या और "स्वतंत्रता" या और "समानता" या सभी का प्रतीक है अब इस वाक्य को सुधार कर (या कहें बिगाड़ कर ) पढ़ते हैं ,
"विवाह संस्था मनुष्य के प्रेम को नियंत्रित करने के उद्देश्य से बनाई गई एक सामाजिक संरचना है। "
Since marriage constitutes slavery for women, it is clear that the women's movement must concentrate on attacking this institution. Freedom for women cannot be won without the abolition of marriage
जवाब देंहटाएं(feminist leader Sheila Cronan).
http://www.searchquotes.com/quotation/We_can%27t_destroy_the_inequities_between_men_and_women_until_we_destroy_marriage./150250/
जवाब देंहटाएंसमझदार को इशारा काफी होता है..... भविष्य की यही तस्वीर है ....... गुलामी को ही आजादी कहा जायेगा
जवाब देंहटाएंऔर हाँ .....भारतीय युवाओं की तार्किकता[?] को प्रणाम करता हूँ
जवाब देंहटाएंऔर फिर से वसीम बरेलवी जी की कही वही बात जो मुझे समझ आती है
गुलामी जिस्म की रहती है जंजीर कटने तक गुलामी जेहन की बड़ी मुश्किल से जाती है |
@यह क्षणिक दैहिक आकृषण वाले नादान प्रेमियों नें मिथ खडा किया है कि यह 'दिल का प्रेम' है।
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी यहाँ पर इन प्रेमियों की बात हो ही नहीं रही है या उनकी बात हो रही है जो प्रेम को विवाह की मंजिल तक ले जाना चाह रहे है यानि कही न कही गंभीर है अपने प्रेम को ले कर |
@ जबकि सारी भावनात्मक बातें भी दिमाग में ही प्रोसेस होती है |
इन्सान के पास जितना दिमाग है वो उसका बस ५% ही प्रयोग करता है सभी के पास एक ही दिमाग है किन्तु उनके अन्दर की नसे कुछ इस तरह की सक्रीय होती है की कोई रॉकेट वैज्ञानिक बन जाता है तो कोई गायक,पेंटर साहित्यकार, कोई घर को सजाने का काम करता है तो कोई उसे बनाने का, कोई खाना बनता है तो कोई उसे बेचता है ,कोई अति भावुक होता है तो कोई पाषाण सा, कोई हसमुख तो कोई गुस्सा करने वाला | जिस तरह सभी एक दिमाग पा कर भी अलग अलग व्यवहार करते है | उसी तरह कोई प्रेम करता है और कोई नहीं जो नहीं करता वो उस चीज को कभी नहीं समझ सकता |
@क्योंकि इसे दिमाग की उपज स्वीकार करने पर विवेक का उपयोग जरूरी हो जाता।
इसीलिये 'प्यार अंधा होता है' या 'प्रेम थोडे ही सोच-समझ कर किया जा सकता?' यह 'यह दिल का मामला है'। मगजमारी से बचनें का बड़ा आसान उपाय है।
कुछ दिमाग दारो का प्रेम जो अभी याद आ रहा है | मुकेश और अनिल अम्बानी दोनों ने ही प्रेम विवाह किया है दोनों की पत्निया हैसियत में उनसे कम थी और अनिल ने तो परिवार के इंकार के बाद भी विवाह किया है, प्रियंका गाँधी के आस पास भी राबर्ट नहीं ठहरते है, तो राजीव के आगे भी सोनिया कुछ नहीं थी , फिर उनकी माँ इंदिरा जी को क्यों भुला जाये, बेचारे रतन टाटा एक दो बार नहीं कुल चार बार ( यदि मुझे संख्या ठीक से याद है तो यही है ) प्रेम किया पर उसे विवाह में नहीं बदल सके शायद उसी की टीस है जो उसके बाद विवाह ही नहीं किया दिमाग लगाते तो लड़कियों की कमी तो नहीं थी उन्हें | ये दिमागदार लोग है जिन्होंने उससे हट कर प्रेम किया और इस बात की परवाह नहीं की कि इससे समाज परिवार लोग क्या कहेंगे सोचेंगे बिलकुल सामान्य प्रेमियों सा व्यवहार |
रही बात स्थायित्व की तो दुनिया में कुछ भी हमेशा के लिए नहीं होता है किसी का भी प्रेम स्थाई नहीं होता माँ बाप भाई बहन यहाँ तक की भगवन से किया गया प्रेम भी | तो यहाँ इसकी मांग क्यों की जाये हम वर्तमान सोच को सामने रख कर किसी के साथ व्यवहार करते है भविष्य में क्या होगा सोच कर नहीं टूटने के लिए तो राम और सीता कृष्ण और राधा का सम्बन्ध और साथ अनेक कारणों से छुट गया था |
सुज्ञ जी दीप जी
जवाब देंहटाएंटिप बड़ी लम्बी हो गई अब पूरी संभावना है की इसके जवाब में कई टिप्पणिया आप करे पर मै शायद इस बात को और आगे न बढ़ा पाऊ और कोई जवाब न दे सकू,थोडा समय की कमी है इसलिए पहले से ही उसकी माफ़ी मांग ले रही हूँ |
सुज्ञ जी,
जवाब देंहटाएंलग ही रहा था किसी दिव्य वेराइटी के प्रेम की बात हो रही है :)) हम तो आम आदमी पर अटके रह गए
~~~~हमका पीनी है .. पीनी है .. हमका पीनी है~~~~
कुछ लोग शराब पीने के लिए भी इतनी मशहूर हस्तियों के नाम बताते हैं , की सोच कर लगता है , गली आता जाता हर आदमी अगर इस तरह से चुनिन्दा सीखे लेने लगे तब तो हो गया कल्याण :)
~~~~~~मनोविज्ञान की दृष्टि से ~~~~
कुछ मानसिक रोगों में (जो अब बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं) विचार बार बार आने लगते हैं ख़ास तौर से जब आप ना चाहें , लोग इसे भी कईं बार प्यार समझ बैठते हैं , इन मनोरोगों , प्यार , विकारी भावनाओं में और सिरोटोनिन में कनेक्शन पाया गया है, दिमागदार लोग मेरी बात जरूर समझेंगे
जो लोग हिन्दुओं के विवाह को समझौता कहने नहीं अघाते उनके ज्ञानचक्षु खोलना चाहता हूं. हिन्दुओं का विवाह समझौता नहीं है संस्कार है. हिन्दुओं में विवाह तब सम्पन्न होता है जब उससे सम्बन्धित कुछ संस्कार पूरे किये जाते हैं. समझौते का सबसे अच्छा उदाहरण मुसलमानों का विवाह है.
जवाब देंहटाएंab mushkil yah hai ki sarkar,NGOs,Media,Corporate world,Judiciary etc. agar love marriage ko badhawa nahi degi to 1.condom kaise bikega?
जवाब देंहटाएं2.abortion kaise badhega,
3.vakil aur police kya bhukho marega,
4.corporate world ko 12-16 Hrs single working women kaise milegi
5.baki ke dukandar bhi ghas khane lagenge na!
swami ramdev k shabdo me desh ka GDP badhna jyada jaruri hai