मेरी बिटिया तीन वर्ष की है और पुत्र उससे लगभग छह वर्ष बड़ा. जब भी बेटा अपने मित्रों के साथ खेलने जाता है तो बेटी अपने खेल खिलोने और सहेलियों को छोड़ उसके साथ हो लेती है. बड़ा भाई अपने दोस्तों के साथ कोई भी खेल खेले छोटी बहिन उसमे भागीदारी करना चाहती है जिससे बड़े भाई को बहुत खीज होती है.
जितना सहज छोटी बहना का अपने बड़े भाई के साथ खेलने की जिद करना है उतना ही सहज बड़े भाई का छोटी बहना की उपस्थिति से खेल में पड़ने वाले व्यवधान पर खीजना भी है अतः मुझे दोनों के बीच में आना पड़ता है. बड़े बच्चों के भागा-दौड़ी वाले खेलों के बीच पुत्री की सुरक्षा की चिंता रहती है इसलिए मैं अक्सर उसे वापस घर ले अत हूँ जिसका मेरी नन्ही बिटिया प्रचंड विरोध करती है.
मुझे लगता है की अगर मेरी बिटिया में जरा भी समझ विकसित हुई होती और उसे पता होता की वो एक लड़की है और उसका भाई एक लड़का तो निश्चय ही उसने मेरे ऊपर नारी विरोधी होने का आरोप जड़ देना था और मुझ से पूछना था की पापा why should boys have all the fun.......
जरा याद करें प्रियंका चोपड़ा का वो विज्ञापन जिसमें वो स्कूटी चलती मासूम शरारतें करते हुए सभी युवा लड़कियों को ये मंत्र दे जाती हैं की केवल लड़के ही मजे क्यों करें......
मैंने महसूस किया है की आज की युवा लड़कियों ने प्रियंका चोपड़ा के इस मंत्र को कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ग्रहण किया है. बहुत बार मैंने युवतियों को ये कहते हुए सुना है की अगर लडके ये काम कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं. हमें भी आजादी चाहिए, बराबरी चाहिए या लड़कियाँ लड़कों से कम नहीं हैं . इस तरह के तर्क मुझे कभी भी हज़म नहीं होते.
समाज के पढ़े लिखे वर्ग में बहुतायत से मिलाने वाले नारीवादियों के विचारों को पढ़ने और सुनाने के बाद मुझे लगता है की स्त्री के सम्बन्ध में आजादी,मुक्ति, समानता, बराबरी जैसे शब्दों को गलत अर्थों में समझा जा रहा है.
शौचालय का प्रयोग न करके सड़क के किनारे मूत्र विसर्जन कर रहे एक आदमी से जब पूछा गया की वो ऐसा क्यों कर रहा है तो उसका जवाब था की देश आजाद है अब हम जो चाहे, जहाँ चाहे कर सकते हैं. आजादी का कुछ ऐसा ही अर्थ ये नारीवादी लगते दीखते हैं. हमें विवाह के बंधन से मुक्त कर लिव इन रिलेशन की आजादी दो. शरीर पर कम से कम वस्त्र धारण करने की आजादी दो. पार्कों में खुल कर प्रेम करने की आजादी दो. बहुत से परुष मित्र बनाने की आजादी दो. एक बार एक महिला को आपत्ति थी की लोगों ने उनके द्वारा किसी उम्रदार पुरुष को गले लगाने की बात को याद रखा. तब मुझे लगा था की उन्हें भी इस बात की आजादी चाहिए थी की वो जब चाहें किसी को भी गले लगा लें.
स्त्री पुरुष के बीच जब भी समानता की बात होती है तो कहा जाता है की आज की आधुनिक नारी पुरुषों का हर क्षेत्र में मुकाबला कर रही है. वो पुरुषों की तरह छोटे बाल कटा पेंट शर्ट पहन रही है. वो बच्चे घर में छोड़ काम पर जा रही है. वो रेल चला रही है, वो हवाई जहाज उड़ा रही है, वो ट्रक चला रही है इत्यादि इत्यादि. मुझे समझ नहीं आता ये कैसी बराबरी है. कभी ऐसा न हो की बराबरी की इस होड़ में कोई दिन ऐसा भी आए जब कोई महिला सार्वजनिक रूप से ये कहे की आज से उसने दाढ़ी बनाना शुरू कर इस क्षेत्र में भी पुरुषों का एकाधिकार ख़त्म कर दिया है.
जाने क्यों मुझे नारी स्वतंत्रता और समानता की हर बात में नारीवादियों की सोच micro से हटकर macro की तरफ झुकती नज़र आती है.
इस विषय पर कितना विचार करू और कहाँ तक करूँ समझ ही नहीं आता अतः लगता है की यहाँ मुझे भी दीपक चोपड़ा के सात अध्यात्मिक नियमों में से एक अनिर्णय की स्थिति में रहने के नियम का पालन करना पड़ेगा. चलो इस विषय को यूँ ही छोड़ देते हैं. जो होगा जब होगा देखा जायेगा
जब से मैं एक बिटिया का पिता बना हूँ तो मैं बहुत गहराई से इस विषय में विचार करता रहता हूँ की एक एक लडके और लड़की में किन किन बातों की समानता होनी चाहिए और दोनों को कितनी स्वतंत्रता दी जानी चाहिए. मेरा ये मानना है की जो स्वतंत्रता एक लडके को दी जा सकती है ठीक उसी स्तर की स्वतंत्रता और समानता एक बेटी को नहीं दी जा सकती. उदहारण के लिए मैं दिल्ली की सडकों पर रात में अपने बेटे को तो अकेले भेजने की इजाजत दे सकता हूँ पर अपनी बेटी को कभी भी अकेले नहीं जाने देना चाहूँगा. मैं सेना की लड़ाकू टुकड़ी में तैनाती के लिए अपने बेटे को तो भेज सकता हूँ पर अपनी बेटी या देश की किसी भी बेटी को नहीं भेजना चाहूँगा.
इस विषय पर कितना विचार करू और कहाँ तक करूँ समझ ही नहीं आता अतः लगता है की यहाँ मुझे भी दीपक चोपड़ा के सात अध्यात्मिक नियमों में से एक अनिर्णय की स्थिति में रहने के नियम का पालन करना पड़ेगा. चलो इस विषय को यूँ ही छोड़ देते हैं. जो होगा जब होगा देखा जायेगा
वैसे पाण्डेय जी ... बिटिया अगर सेना में जाना चाहे तो यह तो मेरी समझ से आपके लिए बेहद गर्व की बात होगी ... वैसे आपके बाकी लेख से मैं सहमत हूँ !
जवाब देंहटाएंजो 'नारी' सृजन का आधार है... उस आधार के साथ कोई भावनात्मक छल न करे, अपनी विकृति का बीज वपन न करे. इस कारण ही सनातन समय से नारी घोर आपत्तिकाल में ही पौरुषेय कर्म करने को विवश हुई है.
जवाब देंहटाएंसमानता के अधिकार के प्रश्न यदि साधारण उदाहरणों से नहीं सुलझते तो ऐतिहासिक दृष्टान्तों से सुलझ जाते हैं :
— कलिंग युद्ध में अशोक ने जब पुरुष-सेना को समाप्तप्रायः कर दिया तो स्त्री-सेना ने मोर्चा सम्भाला.
— कैकई ने भी दशरथ का युद्ध में सहयोग किया न कि स्वयं शस्त्र उठाकर युद्ध लड़ने को आमादा हुई.
— विदेश में या अन्तरिक्ष में यदि किसी युवा महिला को जाने का अवसर दिया जाता भी है तो माता-पिता द्वारा बेटी का विवाह करना पहली प्राथमिकता होती है.
— राजपूताने में शत्रुओं के जीतने की सूचना पाते ही महत्वपूर्ण स्त्रियाँ 'जौहर' किया करती थीं. ... इसके पार्श्व में भी जो बात निहित है वह है ... भावी व्यभिचार से उपजी संतानों की 'राष्ट्रीयता' किस पक्ष में विकसित होगी? .. जैसे प्रश्नों की.
और भी कई ऐसे कारण हैं जो सार्वजनिक तौर पर नहीं कहे जा सकते ... केवल नारियों पर बंदिशें ही जड़ सकते हैं... वो चाहे आह करें या फिर कराह करें... जो संस्कृति को शुद्ध और पवित्र रखना चाहते हैं और विरासत में अपनी भावी पीढ़ी को 'वैदिक संस्कृति' सौंपना चाहते हैं.... उनपर चाहे जितने आक्षेप लगें वे अपने पथ पर शान्तमना होकर बढ़ते चलेंगे... अपने प्रयास जारी रखेंगे.
@नारी स्वतंत्रता और समानता की हर बात में नारीवादियों की सोच micro से हटकर macro की तरफ झुकती नज़र आती है
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा , मुझे भी यही लगता है , मैंने अक्सर महसूस किया की कुछ युवा मित्र भी इस कथित आजादी पूर्ण समर्थन करते हैं ......मैं अक्सर उन सभी लोगों से एक ही बात कहता हूँ .. "एक पिता की नजर से देखो"
फिलहाल प्रतुल जी की टिप्पणी मुझे इस पोस्ट की उपलब्धि लग रही है
जवाब देंहटाएंनर नारी समान हैं मगर उनके समाज में रोल निश्चय ही अलग अलग हैं और वहां जैवीयता आज भी हावी है -जो इस सत्य से संगति बिठा लेते है मौज करते हैं नहीं तो दुसह दुःख झेलते हैं या फिर कितने ही समझौते करते जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंरिवर्सड रोल में सफलता की सीढियां अक्सर समझौतों की टेकों पर रुकी होती हैं !
@मैं दिल्ली की सडकों पर रात में अपने बेटे को तो अकेले भेजने की इजाजत दे सकता हूँ पर अपनी बेटी को कभी भी अकेले नहीं जाने देना चाहूँगा. मैं सेना की लड़ाकू टुकड़ी में तैनाती के लिए अपने बेटे को तो भेज सकता हूँ पर अपनी बेटी या देश की किसी भी बेटी को नहीं भेजना चाहूँगा.
जवाब देंहटाएंआपकी भावनाओं का पूरा आदर करते हुए जोडना चाहूंगा कि
1. अमेरिका में लडकियों को आधी रात में भी अकेले घूमते देखता हूँ तो दिमाग में पहली बात यही आती है कि हमारा भारत कब इतना सुरक्षित हो पायेगा कि लडकियाँ इतनी बेफिक्री से दिन में भरी बस में सफर कर पायेंगी?
2. इसरायल शायद इसीलिये दुश्मनों से घिरा होने के बाद भी हमसे ज़्यादा सुरक्षित है कि वहाँ की सेना में रानी लक्ष्मी बाई, झलकारी बाई और रानी चेन्नम्मा जैसी अनेकों वीरांगनायें हैं।
@ "रिवर्सड रोल में सफलता की सीढियां अक्सर समझौतों की टेकों पर रुकी होती हैं !"
जवाब देंहटाएंबिलकुल सर, मैंने भी बहुत बार यही महसूस किया है बस इस तरह का सूत्र वाक्य गढ़ना मेरी काबिलियत के परे था.
@ अनुराग सर, सेना की लड़ाकू टुकड़ियों ( combat units) से मेरा आशय अग्रिम मोर्चे पर तैनात होने वाली लड़ाकू टुकड़ियों से है. (माफ़ करें ज्यादा विस्तार से लिखना चाहिए था). अगर हम अग्रिम मोर्चे पर महिलाओं को तैनात करें और हमारे शत्रु उनके साथ वैसा व्यय्हर करें जैसा बांग्लादेशियों ने सीमा सुरक्षा बल के पञ्च जवानों के साथ किया था या फिर कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानियों ने शुरू में पेट्रोलिंग के वक्त पकडे हमारे जवानों के साथ किया था तो फिर हमारी प्रतिकिर्या क्या होगी. महारानी लक्ष्मी बाई और वीरांगना चेनम्मा ने तो युद्ध का नेतृत्व किया था. आमने सामने की लडाई तो शायद अंतिम वक्त पर ही की थी. वैसे क्या इस्रायल में महिला सैनिकों को अग्रिम मोर्चे पर भी भेजा जाता है ?...मुझे मालूम नहीं पर जानना चाहूँगा ... अगर सच है तो बड़े हिम्मती हैं वो लोग...खैर वो लोग हिम्मती तो हैं ही..इसमें कोई शक नहीं.
जवाब देंहटाएंOnly Israel and the former Soviet Union have deployed women as combat troops in modern history, though Israel hasn't sent women into front line fighting since 1948.
जवाब देंहटाएं@ फिलहाल प्रतुल जी की टिप्पणी मुझे इस पोस्ट की उपलब्धि लग रही है
जवाब देंहटाएंgaurav ji purn sahmati.
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जवाब देंहटाएंविचार शुन्य जी
जवाब देंहटाएंसमानता का अर्थ एक ही हैं सब के लिये यानि "समान अवसर "
आप की पसंद आप के बच्चो के लिये क्या हैं ये एक बात हुई
आप की पसंद से आप के बच्चे अपना जीवन जियेगे या नहीं ये दूसरी बात हुई
आप अपनी पसंद केवल अपनी बेटी पर "लादेगे " या उसको समान अवसर देगे यानि अगर आप के बेटे को आप की पसंद को निरस्त्र करने का अधिकार हैं तो क्या वो अधिकार आप अपनी बेटी को भी देगे अगर हां तो आप ने अपने बच्चो में लिंग आधारित विभेद नहीं किया हैं
सड़क को शौचालय पुरुष यानी बेटा बनाता हैं { इसको व्यक्तिगत नहीं समझा जाये } लेकिन उसकी बदबू और उस घिनोने नजारे को एक बेटी भी देखती हैं
तो क्या इसके लिये बेटी को घर में ही रहना चाहिये या हमको उस बेटे पर बंदिश लगानी चाहिये जो सार्वजनिक स्थल को शौचालय बनाता हैं
समानता का अर्थ हैं ऐसा सुरक्षित समाज जहां लडकियां अपने जीवन को काट नहीं जी सके
मनाई , बंदिश और नियम
जहाँ भी मनाई हों
लड़कियों के जाने की
लड़को के जाने पर
बंदिश लगा दो वहाँ
फिर ना होगा कोई
रेड लाइट एरिया
ना होगी कोई
कॉल गर्ल
ना होगा रेप
ना होगी कोई
नाजायज़ औलाद
होगा एक
साफ सुथरा समाज
जहाँ बराबर होगे
हमारे नियम
हमारे पुत्र , पुत्री
के लिये
"रिवर्सड रोल में सफलता की सीढियां अक्सर समझौतों की टेकों पर रुकी होती हैं !"
जवाब देंहटाएंall those who say such things about woman who are successful should rethink because if they have a daughter / daughter - in - law and she is a "successful woman " someone is bound to say the same for her
if man is successful its because of merit and if woman is successful its because she made a compromise { mr a mishra and mr deep pandey you should have defined समझौतों की टेकों } is too rustic and no one says such things any more
top IAS ranks have gone to woman and mamata baenarji has broken the myth that "mentor" is needed
tommorrow Deep your daughter may be a IAS officer then such things are going to be said about her , what will be your reaction
and as regards ROlE REVERSAL
if the roles were wrongly defined then where is the reversal its getting the rightful due
ROlE = ROLE
जवाब देंहटाएंआपके विचारों से अक्षरशः सहमत. नारी स्वातंत्र्य का अर्थ शायद कुछ तोड़-मरोड़ के पेश किया जा रहा है, उपेक्षित और दबी कुचली अबला नारी से स्त्री को निकलकर सम्पूर्ण नारी बनने को मैं स्त्री स्वतंत्रता मानत हूँ. प्रकृति ने स्त्री और पुरुष को अपना अपना role दिया है.
जवाब देंहटाएंछोटे कपड़े पहन लेना या फिर किसी को भी गले लगा लेना मेरे विचार से पश्चिम की मानसिकता का अंधा अनुसरण भर है. हमें wesernisation और modernisation में फर्क समझना होगा. मोडर्न होने का तात्पर्य स्त्री को समुचित अवसर उपलब्ध करवाना होगा न कि अपने संस्कारों को गाली देकर उनका विरोध कर वह सब करना जो मोडर्न होने की बुनियादी सोच से इतर हो.
आभार
मनोज
दीप जी,
जवाब देंहटाएंआपके नारी स्वतंत्रता और नारीवाद के विषय में कथ्य और जो अकथ्य है,समझ सकते है। मैं सहमत हूँ।
आप पुत्री को भयस्थानों पर जाने से रोक सकते है् और रोकना भी चाहिए। क्योंकि आप पूरी दुनिया को आपकी पुत्री के निर्भय विचरण योग्य बना नहीं सकते। और जब भी ऐसी निर्भय विचरण योग्य दुनिया बन जाय तब उस पर हमारी बात मनवाने का आग्रह भी अयोग्य है।
रचना जी,
सन्दर्भ यही है। यदि पुत्र इस तरह के स्वतंत्र विचरण की अतिरिक्त सुविधा भोग रहा है तो दोनो ही निदान असंगत हो जाते है। एक, पुत्र की अतिरिक्त सुविधाएं वापस खिंच लेनी चाहिए कि पुत्री उसे भोगने में असमर्थ है। और दो, पुत्र आज्ञा मानने से इन्कार कर दे तो पुत्री को भी उस स्वच्छंद मार्ग पर जाने के समान अवसर रूप छूट दी जानी चाहिए। क्योंकि पुत्र आज्ञा में नहीं है। दोनो ही सुविधा जनक निराकरण नहीं है।
इस पोस्ट में उठाये मुद्दे भी ज्वलंत हैं, लेकिन कुछ ज्यादा ही एकपक्षीय हो गये दिखे। हम सभी ऐसे हैं कि पुराण हों या कानून, अपनी सुविधानुसार उसमें से चीजें छांट लेते हैं। आजादी के नाम पर हर चीज तो स्वीकार्य नहीं। स्वतंत्रता अपने साथ जिम्मेदारी भी लेकर आती है। सेना वाले मुद्दे पर अनुराग शर्मा जी की बात विचारणीय है।
जवाब देंहटाएं@ अनुराग शर्मा जी:
मुझे इन दिनों बहुधा रात में ट्रैवल करने का मौका मिल रहा है और मेरा अनुभव है कि रात की अंतरराज्यीय बस सेवाओं में अकेली लड़कियों का दिखना कोई बड़ी बात नहीं है। बेशक उनकी सुरक्षा के मामले में मैं खुद भी बहुत आशान्वित नहीं, लेकिन समय बदल रहा है।
ऐसा कौन होगा जो सही मायनों में 'स्त्री पुरुष समानता' के खिलाफ हो ??, वैसे अभी चल रही कथित समानता की इस रास्ते का का डेड एन्ड क्या है ....सब जानते हैं .. और नहीं जानते हैं तो जल्दी ही जान जायेंगे :)
जवाब देंहटाएंये लेख और चर्चा शायद किसी काम आये इसलिए लिंक दे रहा हूँ
यहाँ :
http://my2010ideas.blogspot.com/2011/04/blog-post_22.html
Ek pita kaa apnee bitiyaa ke liye jo pyaar is aalekh me chhalkta hai,wo mujhe sab se adhik achha laga,madhur laga!
जवाब देंहटाएंबहुत सारी बाते आ गयी। व्यक्ति जब पिता या माँ हो तब उसका दर्द अलग होता है और जब व्यक्ति केवल भाषण देता है तब वह अलग होता है। मैं समानता का अर्थ यह कदापि नहीं मानती कि स्त्री को पुरूष बना दिया जाए। पुरुष और स्त्री इस दुनिया के दो स्तम्भ हैं और दोनों ही स्तम्भों को समान रूप से सम्मान मिले बस इसी समानता की बात समझ आती है। यदि महिला घर में रहकर भोजन बनाती है तो उसका कार्य भी किसी बड़े अधिकारी पुरुष के समान ही सम्माननीय होना चाहिए। उसे दोयम दर्जे का नहीं मानना चाहिए। सेना की बात आपने जिस संदर्भ और मानसिकता में कहीं है, मुझे उसमें कुछ विरोध नजर नहीं आता।
जवाब देंहटाएंमै हमेसा से इस बात का विरोध करती आई हूँ आज भी करुँगी की माता पिता क्यों अपने लडके और लड़की के बीच किसी प्रकार का अंतर करते है ये गलत बात है एक बार उनके नजरिये से सोचिये तो आप को पता चलेगा | बड़े आराम से कह दिया की बेटी को रात में सड़क पर नहीं भेजूंगा और बेटे को भेज दूंगा , क्यों आखिर क्यों बेटी और बेटे के साथ इतना भेद भाव है क्यों किसी एक को इतना प्यार और दुसरे के प्रति इतनी लापरवाही बेटी से इतना प्यार की उसकी सुरक्श की चिंता में उसे घर से ही बहार नहीं भेजेंगे और बेटे की बिल्कुल चिंता नहीं है आप को क्या उसके सुरक्षा के लिए कोई ख्याल नहीं है | अरे आज के ज़माने में तो लोग दिन में अपने घर में सुरक्षित नहीं है और आप रात को वो भी दिल्ली की सड़को पर बेटे को छोड़ देंगे जहा दिन में बच्चे अगवा हो जाते है, निठारी ज्यादा दूर नहीं है दिल्ली से | उठिए और जागिये बेटी के साथ बेटो की भी चिंता कीजिये जरा उन पर भी दयां दीजिये उनकी सुरक्षा का भी उतना ही ख्याल रखिये जितना की अपनी बेटी की करते है बेटे के साथ इतना भेदभाव नहीं करिये | उसका दर्द जानने के लिए मेरी ये पोस्ट पढाये लिंक बिखेरे जा रही हूँ |
जवाब देंहटाएंhttp://mangopeople-anshu.blogspot.com/2010/05/blog-post_28.html
बेटे (पुरुष) को भी कुछ महसूस होता है
जवाब देंहटाएंअगले जनम मोहे ....
http://udantashtari.blogspot.com/2008/08/blog-post_08.html
और
एक लघु कथा
http://my2010ideas.blogspot.com/2010/06/blog-post.html
ajit जी की टिपण्णी पढनी चाहिए सभी को ...
जवाब देंहटाएं@व्यक्ति जब पिता या माँ हो तब उसका दर्द अलग होता है और जब व्यक्ति केवल भाषण देता है तब वह अलग होता है।
और हाँ .....
जवाब देंहटाएंदोहरा देता हूँ .....
प्रतुल जी की टिप्पणी ध्यान से पढी और समझी जाए तो उस एक टिप्पणी में काफी कुछ कहा गया है
main abhi pita nahin hun par han aapka nazariya kaafi spasht hai kum se kum pita hone k naate..
जवाब देंहटाएं