बचपन में कहावत सुनी थी नालायक का बस्ता भारी.....इसका मतलब हुआ की कम काबिलियत वाले दुसरे तामझाम से अपनी कमी को छिपाते हैं जैसे की आपको अक्सर डरपोक आदमी ही अपनी बहादुरी के किस्से बढ़ा चढ़ा कर सुनाता मिलेगा..... एक भ्रष्ट अधिकारी ज्यादा सख्त होगा....एक हिजड़ा कुछ ज्यादा ही मटक मटक के चलेगा इत्यादी इत्यादि.
अब बचपन की ये कहावत क्यों याद आ रही है. असल में मेरे एक मित्र चाहते थे की मैं अपने ब्लॉग पर कुछ सुधार करूँ ताकि ये सुन्दर दिखे. उन्होंने सुझाव दिया की मैं ब्लॉग पर कुछ सजावट करूँ... कुछ नए गैजट लगाऊ, एक आद घड़ी टांग दूँ, कुछ लिंक डाल दूँ और कुछ इसका थोबड़ा सुधार दूँ ताकि ब्लॉग पर आने वाले पाठक की रूचि में इजाफा हो.
मैंने इस विषय विचार किया. मुझे लगा की मित्र का सुझाव ठीक है पर तभी मुझे एक ब्लॉग दिखा जिसने मेरे मन से ब्लॉग को सजाने सवारने की मेरी इच्छा को बिलकुल ख़त्म ही कर दिया. जब मैंने पहली बार इस ब्लॉग को देखा तो मुझे लगा कि मेरे कंप्यूटर में कोई गड़बड़ी हो गयी है. कंप्यूटर में कोई खराबी है इसका ख्याल ही मुझे सदमा दे देता है तो जब मैं सदमे से उबरा मुझे बड़ा अच्छा लगा कि कोई अपने ब्लॉग को इस तरह से एकदम सादा भी रख सकता है.
अभी तक लेखन के अलावा दूसरी वजहों से मैं जिन ब्लोग्स कि तरफ आकर्षित हुआ वो हैं हथकढ़ और उम्मतें. हथकढ़ में टिप्पणी का आप्शन नहीं है पर लेखन और अपनी बात को कहने का अंदाज शानदार है और उम्मतें के बारे में लिख ही दिया है.
अली साहब का ब्लॉग देख कर एक प्रश्न मन में अक्सर उठता है कि पता नहीं अली साहब व्यक्तिगत जीवन में कैसे हैं. ब्लॉग देखकर लगता है कि सफ़ेद कुरते पायजामे में रहते होंगे पर क्या पता असलियत में नेल्सन मंडेला कि तरह से रंग बिरंगी कमीजे पहनते हों. चलो जो भी हो मुझे ये सादगी एकदम पसंद आयी और मैंने इस ब्लॉग का तुरंत अनुसरण करना आरंभ किया. अली साहब कि लेखनी शानदार है पढ़कर आनंद मिलता है.
तो साहब वापस अपनी बात पर आता हूँ कि मैंने अपने ब्लॉग का थोबड़ा सुधारने का विचार मैंने मन से निकल दिया है. डरता हूँ कि 'नालायक का बस्ता भारी' वाली कहावत का जीवंत उदहारण मैं ना बन जाऊं और लायक बनना अपने बस में है नहीं.
अब किसी भाई को मेरा ब्लॉग सादा और साधारण सा लगे तो अली साहब को नोटिस भेजें.
बिलकुल सही कहते है आप. मैंने भी अपने ब्लौग http://hindizen.com को यथासंभव फालतू की चीज़ों से दूर रखा है. वहां साइडबार में जो कुछ भी है उसका संबध मेरे ब्लौग से ही है. इसके अलावा मैं ब्लौग पर विज्ञापन या उससे किसी कमाई के पक्ष में भी नहीं हूँ. मैंने उम्मतें ब्लॉग देखा है. बहुत खूबसूरत ब्लॉग है. मेरी पसंद का यह अंग्रेजी ब्लॉग http://mnmlist.com भी देखें इसमें सफ़ेद खालीपन के सिवाय कोई साज-सज्जा नहीं है.
जवाब देंहटाएंलेकिन मैं फिर भी कहूँगा की आपका यह टेम्पलेट बदलने लायक है क्योंकि इससे ब्लोग्गर के पुराने वर्ज़न का भ्रम होता है. आप नए टेम्पलेट्स में सी भी अपनी पसंद का सादा सा चुन सकते हैं.
हाँ .. हाँ .. विचारी जी ,
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग का नाम लिखते लिखते ही रह गए लगता है
सोचा होगा नाम लूँगा तो फिर बहस बाजी शुरू कर देगा :))
मुझ नालायक का बस्ता सबसे भारी है :)
पर एक बात है ये लेख मजेदार है हमेशा की तरह और
सीख भी दे रहा है पर मैं तो नहीं लूँगा इस बार शिक्षा :))
अपना बस्ता तो भारी ही रहेगा :)
और हाँ ...
जवाब देंहटाएंअच्छा याद दिलाया
अब तो घड़ी भी लगाऊंगा
जगह कम है तो क्या हुआ :))
आप और आपका ब्लॉग जैसा है हमें वैसे ही अत्यंत प्रिय है ,अपनी origionality बनाए रखें
जवाब देंहटाएंमैंने अभी-२ अली जी का ब्लॉग देखा है आपके दिए हुए लिंक के द्वारा पर विचारशून्य जी वह ब्लॉग तो कुछ ज्यादा ही सादा है
मस्त, हमेशा की तरह।
जवाब देंहटाएंये पहला पैराग्राफ़ जल्दी खत्म कर दिया, उदाहरण एकदम सटीक हैं।
असली बात तो यही है कि लिखा हुआ पढ़ने के लिये ही ब्लॉग पर आया जाता है, केवल सजावट या फ़िर सादगी भी ब्लॉग स्तर का कोई पैमाना नहीं है। जिन दो ब्लॉग्स का जिक्र किया है, दोनों अपने भी फ़ेवरेट हैं लेकिन ये सजे धजे रहते तब भी फ़ेवरेट ही रहते। इतना जरूर है कि सादगी से अपनेपन का अहसास तो होता ही है और एक कम्फ़र्ट लेवल महसूस होता है हम जैसों को।
बेहतरीन पोस्ट, सटीक लेखन।
शुभकामनायें।
वैसे, ब्लौग पर घड़ी लगाने के क्या फायदे हैं?
जवाब देंहटाएंहर कम्पूटर के निचले कोने में घड़ी तो होती ही है.ब्लौग पर भी घड़ी एक कोने में ही लगाई जा सकती है. पोस्ट में नीचे जाने पर तो वह छुप ही जाती है.
यह बात मैंने एक ब्लौग पर लिख दी तो वो सज्जन मुझसे इतना नाराज़ हो गए कि उन्होंने फिर कभी मेरे ब्लौग की ओर रुख नहीं किया. हा हा हा.
ना ना निशांत जी, बात है बेसिकली "सजावट" की, और वैसे भी कंप्यूटर के निचले कोने की घडी बड़ी ही बोरिंग लगती है ,
जवाब देंहटाएंउससे तो कोई अपनी घडी भी नहीं मिलाता, ध्यान ही नहीं देता :))
और देखिये मैंने अभी घडी लगा भी ली है , कितनी बढ़िया लग रही है टाइम मिलाने का भी मन कर रहा है :))
ना ना = नहीं नहीं
जवाब देंहटाएं@ gaurav
जवाब देंहटाएंवाह गौरव! मैं अभी टाइम चैक करके ही आ रहा हूँ.
तुम्हारी घड़ी तो फिर भी छोटी और सादी है. कुछ घड़ियाँ चौथाई स्क्रीन घेरती हैं.
वैसे तो पांडेय जी ब्लोग की सजावत ऊत्तम है आपके मगर फ़ौट हम जैसे काणों के लिये दिक्कत करते है कभी कभार !
जवाब देंहटाएंनिशांत मिश्र जी आपकी पहली टिप्पणी के विषय में आपको धन्यवाद कहना चाहूँगा कि अपने विचार स्पष्ट लिखे. मैं भी अपने ब्लॉग को एकदम सफ़ेद कर लेना चाहता हूँ और उस पर काले अक्षरों में लेख लिखूंगा ताकि और कुछ नहीं तो कम से कम मेरे अक्षर भेंस बराबर तो रहें.
जवाब देंहटाएंगौरव मुझे कभी भी नाम लेने से हिचक नहीं होती. जब मुझे तुम्हारा नाम लेना होगा तो बेहिचक लिखूंगा...बच कर रहना :-) और ये जो 'नालायक का बस्ता भारी' वाली बात लिखी है उस परिधि में आप और 'मो सम कौन' वाले तनेजा जी नहीं आते. आप लोगो का ब्लॉग भी सुन्दर, लेख भी सुन्दर,विचार भी सुन्दर, याने के सब कुछ सुन्दर है.....
तनेजा साहब टिप्पणी के लिए थंकू बजा लाता हूँ ......
गोंदियाल साहब कोशिश करता हूँ कि फॉण्ट बड़े हो जाएँ. इस ओर ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद.
ओहो विचारी जी ,
जवाब देंहटाएंमजा आ रहा था बात करने में :(
चलो कोई बात नहीं ... घडी तो लग ही गयी :)
सच में बहुत दिन से सोच रहा था, हर बार या तो भूल जाता हूँ , या मेचिंग की नहीं मिलती :(
आज किस्मत ही कहिये की ढंग की घड़ी मिली है :)
[कोई सीरियस वाला मेटर नहीं है, मैंने तो अंदाजा लगाया था , गलत निकला :( सही निकलता तो भी नहीं होता :)]
Theek hai..jo kahna hai ,Ali sahab se kahenge!
जवाब देंहटाएंaapko janmashtami ki dheron shubhkamnayen!
jnaab likha to thik he lekin aap logon ki prvaah kiye bger jo shi he or jise aap shi smjhte hen zrur kren kisi ki prvaah hrgiz nhin kren . akhtar khan akela kota rajsthaan
जवाब देंहटाएंहाँ .....
जवाब देंहटाएंबस एक बात और .............
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श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
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महक जी प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद. मैं जिस भी ब्लॉग पर गया वहां हमेशा कुछ ना कुछ देखा पर मेरे देखे ब्लॉग में उम्मतें एकमात्र ऐसा ब्लॉग था जो एकदम सादा था इसलिए अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंशमा जी आपसे हमेशा ही प्रोत्साहन मिला है पर मेरी फितरत ही ऐसी है कि भौतिकी के "हर क्रिया कि प्रतिकिर्या होती है" वाले सिद्धांत का विरोध करती है... जाने क्यूँ ....
खान साहब कोशिश करूँगा कि आपकी सलाह पर अमल करता रहूँ बाकि अपनी फितरत तो ऊपर लिख ही दी है. किसी भी क्रिया कि प्रतिकिर्या अपने ऊपर देर से होती है...
गौरव जी आपको और सभी को जन्माष्टमी कि शुभकामनाएं.
@ विचार शून्य भाई ,
जवाब देंहटाएंपता नहीं कैसे ? ख्यालात रंगने की कोशिश में ब्लॉग सादा रह गया !
बाह्य सादगी हो तो अंदरूनी गुण दृष्टि में आते हैं.
जवाब देंहटाएंमतलब हाईलाइट होते हैं.
आप और अली जी की सादगी बाह्य ही है.
अन्दर से काफी रंगीन मिजाज़ हो.
अली साहब ने ब्लॉग को सादा रखने के चलते खयालातों के रंगने को तो स्वीकार कर ही लिया है.
और आपने समय-समय पर उसका परिचय दिया ही है.
आपने अपने पोस्ट-शीर्षक से कहना चाहा है.
जवाब देंहटाएं"लायक का बस्ता हलका"
बच गये..अली साहब को नोटिस नहीं भेज रहे हैं. :)
जवाब देंहटाएंफोन्ट वाली परेशानी मैंने भी कईं जगह महसूस की है
जवाब देंहटाएंइसका एक तरीका यह भी हो सकता है की "की बोर्ड" पर
"कंट्रोल की" दबाये रखें और "माउस के बीच वाले स्क्रोल व्हील" को
आगे की और घुमाया जाये
[मैं इसी ट्रिक का प्रयोग करता हूँ ]
कह लो भाई! मौका है तुम्हारा। हम तो कुछ भी हटाने वाले नहीं। जो हट जायें, वे बरेली वाले कहाँ?
जवाब देंहटाएंवीर तुम डटो वहीं
वीर तुम हटो नहीं... वगैरा वगैरा...
सही है भाई
जवाब देंहटाएंमेरा बस्ता बहुत भरी है
काश मई भी विचार शून्य कर पाता
अच्छा लेख है ......
जवाब देंहटाएं( क्या चमत्कार के लिए हिन्दुस्तानी होना जरुरी है ? )
http://oshotheone.blogspot.com
लायक हु या नालायक ये तो पता नहीं पर जी अपना बस्ता भी भारी नहीं है | पर मुझे पता नहीं था की लोग ब्लॉग की सजावट भी देखते है मुझे तो लगा की लोग ध्यान नहीं देते होंगे इस ओर | इस लिए जो डिजाइन हमें पसंद आया वो लगा दिया दूसरो के बारे में सोचा ही नहीं | मुझे तो लगता है सादा ब्लॉग उच्च विचार ही ठीक है |
जवाब देंहटाएं@ विचारी जी
जवाब देंहटाएंअरे वाह, क्या बात है
बेकग्राउंड कलर बदला है
एक दम आसमान जैसा लग रहा है
बहुत अच्छा है
@ अंशु माला जी
अच्छा नारा है "सादा ब्लॉग उच्च विचार"
हम इसका पालन करने की जरूर कोशिश करेंगे... करते रहेंगे