अजीब सा प्रश्न है मेरा पर इस ओर मेरा ध्यान कैसे आकृष्ट हुआ बताता हूँ. . असल में कुछ दिन पहले मुझे कुछ property dealers के संपर्क में आना पड़ा. उनमे से एक थे मल्होत्रा साहब. मैं जब भी उन से कोई मुश्किल सा प्रश्न करता तो बरबस ही उनका हाथ नीचे उनके अंग विशेष पर चला जाता और वो अपने सारे विचारों को वहां से दुह कर लाते. उनकी इस हरकत ने मुझे इस विषय पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया.
मैंने अक्सर देखा है कि आप किसी से कोई ऐसा प्रश्न करो जिसका जवाब देने के लिए उसे थोडा मेहनत करनी पड़े तो वो अपने शरीर का कोई ना कोई अंग खुजलाने लगेगा. कोई सर खुजलायेगा, कोई अपनी कनपटी पर खुजलायेगा, कोई अपने कान खुजलाना शुरू कर देगा, कोई ठोड़ी खुजलायेगा, कोई अपना पेन लेकर अपनी पीठ खुजलाने लगेगा और कोई कोई भाई अपनी उंगली लेकर वहा तक पहुच जायेगा.
ये क्या हरकत है हम लोगों कि. हम ऐसा क्यों करते हैं. क्या बड़े बड़े पहुचे हुए लोग भी ऐसा करते हैं या ये हम जैसे निम्न वर्गीय लोगों का ही अधिकार है या समाज में ऐसा होता ही नहीं सिर्फ मेरी नजर ही ऐसी है. आपने कभी इस ओर ध्यान दिया है. शायद नहीं दिया होगा. ऐसी बचकानी हरकत करने का लाइसेंस मैने ही लिया है.
चलिए मैंने थोडा आगे सोचा कि ऐसा क्यों होता है. फिर मुझे याद आया कहीं पढ़ा था कि हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं और अलग अलग व्यक्ति कि चेतना अलग अलग चक्र पर स्थित होती है. जो निम्न वर्गीय होते हैं उनकी चेतना उनके मूलाधार चक्र पर अवस्थित होती है और जैसे जैसे उनका लेवल बढ़ता जाता है उनकी चेतना उर्ध्वगामी होती जाती है. तो शायद जब हम चेतन्य होने का प्रयास करते हैं तो हम अपने उस चक्र के आस पास के अंग को खुजलाते हैं जिस चक्र पर हमारी चेतना स्थित होती है.
मैंने तो बस यहीं तक सोचा और उससे आगे सोचने से ज्यादा बेहतर समझा कि समस्या को ब्लॉग जगत के हवाले कर दिया जाय. चलिए आप सोचे और बताये कि इस दौरान आपने अपना कौन सा अंग खुजाया.
बाकी सब आम इंसानों की तरह सर ही खुजाते है , जी !!
जवाब देंहटाएंबडी गजब की रिसर्च है भैया..... हम तो सर खुजा रहे हैं...
जवाब देंहटाएंनो कमेंट्स
जवाब देंहटाएंबन्धु,
जवाब देंहटाएंध्यान तो दिया है हमने भी, लेकिन इतनी विचार शून्यता से नहीं। थ्योरी दमदार है, कोई शक नहीं।
कुछ जगह पर पाँच चक्र भी माने गये हैं और हर चक्र का\की एक अधिष्ठाता देवी\देवता भी माना गया है।
ऐसे विषय, जिनपर हर किसी का ध्यान नहीं जाता या जाने नहीं दिया जाता, उनपर भी बहुत सफ़ाई से कलम चलाते हो जैसे Gillette Mach III चलता है सटासट। इसीलिये तो पोस्ट का इंतज़ार करते रहते हैं।
और ये जवाब देते समय हमने अपना माथा खुजाया था(अब कहना तो यही बनता है, नहीं तो सबको पता चल जायेगा कि हमारी चेतना अभी उर्ध्वगामी नहीं हुई है)।
अक्षर जहाँ ऐंठते हैं, वहाँ हकलाहट होती है.
जवाब देंहटाएंखच्चर जहाँ रेंकते हैं, वहाँ झल्लाहट होती है.
अक्ल का इससे कोई लेना देना नहीं मेरे दोस्त,
मच्छर जहाँ बैठते हैं, वहीं पर खुजलाहट होती है.
>>>>>> सभी को चतुरायी से फँसाकर आप बुद्धीजीवी लोगों को अक्ल के विभिन्न ठिकानों पर सोचने को आमादा कर रहे हो.
मुझे भी आपकी ये रिसर्च बड़ी कमाल की लगी ,हमारे वैज्ञानिक ब्लोग्गेर्स को इसका जवाब देना चाहिए
जवाब देंहटाएंभैया आपकी बात से सर खुजला रहे हैं। शायद डेन्ड्रृफ हो गयी है। हा हा हाहा।
जवाब देंहटाएंसरजी आपकी रिसर्च का अध्यन करतें करतें मेरे सर्वांग में खुजली होने लगी है.................लग रहा है जैसे मेरी चेतना रोम रोम से फूट पड़ना चाह रही है :)
जवाब देंहटाएंकुछ मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि सभ्य होने के नाम पर जितना अपने भावों का दमन करते हैं वह सब एक "ऊर्जा बबल" की तरह हमारे शरीर के विभिन्न हिस्सों में ट्रैप हो जाते हैं, जब हम अन्य कार्यं में उलझे होते हैं तब भी येन-केन-प्रकारेण हम उसे स्टीमुलेट कर ऊर्जा निष्कासित कर रहे होतें है, सोच विचार के समय; एक गैप आ जाता है, तो यह बात ज़रा जोर-शोर से ध्यान में आ जाती है।
जवाब देंहटाएंअब खोपड़ी की इस खुजली को क्या कहा जाये?
@ सम्वेदना के स्वर
जवाब देंहटाएंक्योंकि मैं मनोविज्ञान के प्रति बड़ी जिज्ञासा रखता हूँ इसलिए
अगर आप इन मनो वैज्ञानिकों के बारे में भी कुछ [नाम , रेफरेंस बुक आदि कुछ भी ]बताएं तो ज्ञान प्राप्ति भी हो जायेगी
[ये सिर्फ एक जिज्ञासा है ]
आधुनिक शोध के अनुसार तो सोचना अपने आप में ही एक खुजाल है ...
जवाब देंहटाएंमुझे तो लगता है कि खुजली का वास्ता सोचने से नहीं है किसी और चीज से है मतलब यदि दस दिन से एक ही कपडे पहने है और अब खुजली शुरू हो गई है तो पत्नी के मायके से आने का इंतजार छोड़ दे और कपडे खुद ही धुल ले या खुद हफ्ते से नहीं नहाया है तो पानी आने का इंतजार छोड़ दे और जा कर किसी नदी तालाब कुए पर नहाले सारी खुजली चली जाएगी |
जवाब देंहटाएंअपन तो मूलाधार पर ही लटके हैं जी यानि चेतना अभी तक कामकेन्द्र पर ही रहती है। लेकिन खुजाते वक्त या सोचते वक्त सिर पर यानि सहस्रधार हाथ ले जाता हूँ। ताकि किसी को मेरी चेतना के इतने नीचे होने की बात का पता ना चले :)
जवाब देंहटाएंप्रणाम स्वीकार करें
कोई एक अंग फिक्स नहीं ,शायद खुजलाहट नहीं भी ! इसका सोच से कोई वास्ता है ऐसा लगता तो नही :)
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंखुजलाने लिए तो अष्टांग हैं मेरे पास....लेकिन अफ़सोस, सोचने के लिए जो अंग [ दिमाग] चाहिए वो मिसिंग है.....खुजलीदार लेख....बधाई।
.
खुजली फैला रहें आप तो
जवाब देंहटाएंइतना सोच विचार में पड़ते ही नहीं, खिसक लेते हैं. :)
जवाब देंहटाएंDIMAG KHUJANE WALI BAAT POOCH LI AAPNE... BAHUT HI BADHIYA....
जवाब देंहटाएंआपके पिछले आठ लेख पढ़े. सभी एक से बढ़कर एक थे... इससे बिल्कुल पीछे वाला बहुत अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंमैं तो पूरा शरीर खुजाता हूं, अर्टिकेरिया के कारण...
इसी तरह के डिपार्टमेन्ट अपनाते हैं होली पर, कोई पीठ पर, कोई दांतों में, कोई आंख, तो कोई नाक, कोई छाती के अन्दर, किसी को बालों में तो किसी को पीठ के नीचे रंग डालने में एक्पर्टाइज हासिल होती है..
कुछ और नहीं मिला लिखने को विचार शून्य जी :-)
जवाब देंहटाएंआगे से मैं सर खुजाया करूंगा और पंहुचे हुए लोगों की श्रेणी में रहूँगा ! सुझाव के लिए धन्यवाद ! भविष्य के लिए शुभकामनायें ;-)))
हा-हा-हा-हा, पाण्डेय साहब , न भी खुजली हो रही हो तो भी
जवाब देंहटाएंआप मजबूर कर देंगे, खुजलाने को :) )
गंजे हो गए!
जवाब देंहटाएंkisi bhi prakaar ki khujli ho,anand deti hai....
जवाब देंहटाएं