शनिवार, 11 जून 2011

सपने में देखा एक सपना.

भ्रष्टाचार  के विरुद्ध लड़ना है, एक साफ़ सुथरे चरित्र वाला नेता चाहिए. क्या मिलेगा?

जी नहीं. साफ़ सुथरा चरित्र तो हमारे भगवानों का नहीं रहा है तो हमारा कैसे होगा . आपको जो है, जैसा है के आधार पर ही काम चलाना होगा. यानि की एक दागदार को दुसरे दागदार से बदला जायेगा. एक निकम्मे  का विकल्प दूसरा निकम्मा होगा. वैसे भी आप व्यक्ति नहीं मुद्दा देखिये. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जो कोई नेता बनाना चाहेगा हम उसके पीछे चल देंगे चाहे वो बडबोले कांग्रेसी दिग्विजय सिंह हो या बाबा रामदेव. मुद्दा बड़ा है व्यक्ति नहीं.

अच्छा जी , इसका तो मतलब है की दुनिया वैसे ही चलेगी जैसे वो पहले चलती थी. इन लाठी, डंडा, अनशन जैसी तमाम मुश्किलों से मिले  परिवर्तन का बस इतना सा फायदा होगा की एक स्थापित भ्रष्टाचारी की जगह हमें एक नौसिखिया भ्रष्टाचारी मिलेगा और जब वो पक  जायेगा या जनता उससे पक जाएगी तो हम एक और नया भ्रष्टाचारी खोज लेंगें.

तो क्या करें?

क्या हम अपनी शासन व्यवस्था को कुछ इस तरह से नियोजित नहीं कर सकते की किसी नेता की जरुरत ही ना रहे. व्यवस्था खुद ही हर समस्या का समाधान खोज ले . नेता के रूप में चाहे डाक्टर अब्दुल कलाम हों या अपनी महामहिम प्रतिभा पाटिल जी किसी को भी कुर्सी पर बैठा दो, व्यवस्था चलती रहे. काम होते रहें. अपने इर्द गिर्द प्रकृति  को देखें. सब कुछ व्यवस्थित चलता है. जानवरों के झुण्ड तक एक निश्चित व्यवस्था के तहत अपने नेता का चुनाव आसानी से कर लेते हैं.तो फिर हम इतने समझदार जानवर होते हुए भी अपने लिए एक श्रेष्ठ नेता नहीं चुन पाते.

......ये सब बकवास है, बचकाना है, अपरिपक्व है. कुछ सोलिड सोचो. 

चलो तो सबसे पहले एक ईमानदार व्यक्तित्व की खोज करें. मुझे विश्वास है की वो हमें हमारे ही आस पास मिलेगा. फिर उसे इस आन्दोलन की कमान सौप दें. मुझे याद है की अपने डाक्टर कलाम  की इच्छा थी की वो दुबारा राष्ट्रपति बने मगर उन्हें पूरा समर्थन ही नहीं मिला और समर्थन मिला माननीया महामहिम प्रतिभा पाटिल जी को जो आज राष्ट्रपति के पद पर शोभायमान हैं . 

हमारी जनता जो निस्वार्थ भाव से बाबा रामदेव जी को अपना अंध समर्थन दे रही है क्या वो ऐसा ही समर्थन डाक्टर कलाम  जैसे लोगों को नहीं दे सकती. कहीं हमारी जनता के मन में ही एक साफ़ और स्वच्छ नेतृत्व के प्रति  किसी तरह का डर तो  नहीं समाया है.
....नहीं ये भी फिजियेबल नहीं है.

तो क्यों ना हम लोग खुद में ही बदलाव ले  आयें. खुद को सुधार लें. फिर हम सुधारे हुए लोगों को तो एक सही दिशा मिल ही जाएगी. जापान का उदहारण देखो. भ्रष्टाचारी नेता वहां भी पैदा हुए हैं. नेतृत्व वहां भी गलतियाँ  करता है पर वहां की सदाचारी जनता हमेशा ईमानदार  बनी रहती है. हाल फ़िलहाल में वहां हुयी विपत्तियों में उभर कर आये  उन लोगों के चरित्र से हमें कुछ न कुछ प्रेरणा अवश्य लेनी चाहिए .

..... प्यारे ऐसी भयंकर बातें  छोड़ और  कुछ प्रक्टिकल बात कर.

तो चलो सपने बहुत देख लिए मैं अंत में आपको एक कहानी सुनाता हूँ. आशा है आप मेरी बात को समझ जायेंगे.

एक स्त्री सबसे कामुक पुरुष से विवाह करना चाहती थी. खोज बीन  शुरू हुयी और अंत में एक जंगल में एक  पेड़ के नीचे  लेटे एक ऐसे पुरुष पर जाकर समाप्त हुयी जो बहुत चीख चीख कर दुनिया की सारी चीजो के साथ सेक्स करने की बात कर रहा  था. स्त्री बहुत खुश हुयी की चलो सबसे बड़ा कामुक पुरुष मिला. शादी हुई. सुहागरात का समय आया . पुरुष बडबडाता रहा की पलंग तोड़ दूंगा, ये फाड़ दूंगा वो चीर दूंगा पर जो करना था वो नहीं किया. स्त्री को गुस्सा आया और उसने पुरुष से पूछा अबे इतनी देर से बकवास कर रहा है की ये कर दूंगा वो कर दूंगा जो करना है वो करता क्यों नहीं. पुरुष का जवाब था की मैं तो शुरू से एक बडबोला और बकवासी हूँ और सारी जिंदगी सिर्फ यही कर सकता हूँ.

तो भैया मेरा तो  सभी से यही कहना है की वो सत्ता की सेज पर सोलिड लोगों को लाने  का यत्न करें ना की पैदायशी बडबोले और बकवासी लोगों को.

अंत में जय राम जी की बोलना पड़ेगा.  

16 टिप्‍पणियां:

  1. पैमाना किसके पास है. लाने कौन देगा. ऐसे सालिड व्यक्ति के पास संसाधन कहां से आयेंगे. क्या गारन्टी है कि ऐसे व्यक्ति को किसी जाल में नहीं फंसाया जायेगा. जनता के पास एक ही औजार हो सकता था. मेरे अनुसार १. प्रधानमन्त्री का सीधे चुनाव पांच साल के लिये. २. अनिवार्य मतदान और ३. महत्वपूर्ण मुद्दों पर जनमत संग्रह.

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  2. @ दुनिया वैसे ही चलेगी जैसे वो पहले चलती थी
    मामला बहुत काम्प्लिकेटिड है, मगर "निकम्मों की झोली-सिद्धांत" के द्वारा आपकी समझ में आसानी से आ जायेगा। इस सिद्धांत के साथ समस्या यह है कि अभी तक इसे लिख कर व्यक्त नहीं किया जा सका है। फ़ोन नम्बर ईमेल कर सकते हो क्या?

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  3. छोडिये ई सब पहले निशान्त जी की जिज्ञासा शान्त कीजिये -किस ठांव गयी वह देवि?

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  4. निशांत की "उस स्त्री " और अरविन्द मिश्र की "देवी" कहां हैं इस का जवाब देना तो बनता हैं . अब ब्लॉग पर सवाल जवाब नहीं होगे तो क्या फायदा ...
    देश की फ़िक्र सिविल सोसाइटी कर रही हैं
    सेहत की फ़िक्र योगी कर रहे है
    सो फ़िक्र की क्या जरुरत हैं
    आज इतवार हैं बच्चो और पत्नी को आइसक्रीम खिलवादे मेरी तरफ से , पहली मीटिंग मै उधार चुकता कर दूंगी .

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  5. सारी जिंदगी सिर्फ यही कर सकता हूँ.....

    पहचाना मगर बहुत लेट....

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  6. .
    .
    .
    दीप पान्डेय जी तो बतायेंगे नहीं पर मैं बता सकता हूँ वह देवि कहीं नहीं गई... हमारी परंपरा को निभा रही हैं, उसी बड़बोले के साथ हैं और दोनों मिलकर 'वैवाहिक जीवन में सच्चा व परमानंद युक्त (काम)सुख कैसे प्राप्त करें' पर लेक्चर सीरिज चला रहे हैं... अच्छा खा-कमा लेते हैं दोनों... शिष्य भी हैं ही प्रैक्टिकल करने के लिये...



    ...

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  7. सचमुच अगर यह जीवन एक सपना ही दिखाई पड़ने लगे तो फिर दुनिया में कोई विवाद न हो। समस्या तो यही है कि हम हर सपने को सच साबित करने में लग जाते हैं।

    हर व्यवस्था एक समय के बाद अव्यवस्था हो जाती है और तब एक नई व्यवस्था पैदा होती है। जिसका लोग समर्थन करते हैं। किंतु इस नई व्यवस्था का समर्थन लोग इसलिए नहीं करते कि वह व्यवस्था पहली व्यवस्था से अच्छी है बल्कि इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें नहीं व्यवस्था के दोषों का पता नहीं होता।

    हम तो यही चाहते हैं कि देश में कोई भूखा न रहे ...

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  8. दूसरे अनुच्छेद की आखिरी पंक्ति में नहीं को नई पढ़ें ।

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  9. यह बिलकुल सच है की बडबोले और बकवासी कुछ करते नहीं हैं, सिवा बडबडाने के; जैसे की भाजपा वालों ने सत्ता में आने से पहले अयोध्या में राम-मंदिर बनवाने का खूब शोर किया पर सत्ता में आते ही सब भूल गये। पर काम करने वाले सोलिड लोग कहाँ खोजे जाएँ? फिर भी हम कामना करते हैं की आपका सपना सच हो।

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  10. आपका ब्लॉग पसंद आया....
    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

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  11. हर समाधान से एक समस्या का जन्म होता है ..मैं तो सुधरा हुआ हूँ दूसरा सुधार जाय बस यही चलेगा तो ..नौ दिन चले अढाई कोस...!!

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  12. आदरनीय जी ,आपकी सभी रचनाये बेहद अच्छी व् किसी न किसी विषय को उठाती है सौभाग्य से पढने को मिल गयी ,आपने निवेदन है की एक मार्ग दर्शक के रूप में (एक प्रायस "बेटियां बचाने का ")ब्लॉग में जुड़ने का कष्ट करें
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