हम लोग अपने जीवन में बहुत से प्रतीकों को प्रयोग में लाते हैं
मैं जनेऊ पहनता हूँ. मेरी जनेऊ के छः सूत्र मेरे विभिन्न ऋणों और कर्तव्यों के प्रतीक हैं.
स्त्रियों विवाह के उपरांत मंगल सूत्र धारण करती हैं. अपनी मांग में सिंदूर भरती हैं. ये उनके सुहागन होने का प्रतीक है.
हमारे कुछ देवताओं का विचित्र स्वरुप भी प्रतीकात्मक ही है जो कुछ लोगों को भ्रमित कर देता है . शिवरात्रि पर शिव के स्वरुप पर प्रश्न चिन्ह लगाती एक पोस्ट "नास्तिकों के ब्लॉग " पर पढ़ी थी जिसके लेखक "श्रीमान दृष्टिकोण" का खुद का स्वरुप भी प्रतीकात्मक ही था.
मुझे बहुत बार लगता है की आज के जीवन में हमारे धर्म और रीती रिवाजों के प्रतीकात्मक चिन्ह ही मुख्य हो चले हैं और वो मूल भावना जिनका की वो प्रतिनिधित्व करते हैं कहीं भुला दी गयी है.
आप सिख बनाना चाहते हैं. गुरु नानक जी को दिल से मानें और सिख विचारधारा का चाहे मन से कितना भी पालन कर लें बिना बाल बढ़ाये,कृपाण, कच्छा, कड़ा और कंघा धारण किये कोई आपको सिख नहीं मानेगा क्योंकि यही सिख धर्म के प्रतीक चिन्ह है.
हिन्दुओं में कोई स्त्री मन कर्म और वचन से कितनी भी पतिव्रता क्यों न हो अगर वो सुहाग के चिन्ह धारण नहीं करेगी तो उसका पति के प्रति प्रेम निरर्थक माना जाता है.
इस वेलेंटाइन डे पर मैंने खुद को सशरीर अपनी पत्नी के चरणों में समर्पित कर दिया पर वो नाराज ही रहीं क्योंकि मैंने सच्चे प्यार का प्रतीक लाल गुलाब उन्हें भेट नहीं किया था.
कभी कभी मैं सोचता हूँ की क्यों न हम अपने जीवन से इन प्रतीक चिन्हों को हटा दे और अपने कर्म और सोच से ही किसी विचार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और समर्पण को आकें.
पर क्या ये संभव है?
दर-असल प्रतीक एकरूपता का प्रतिनिधित्व करते हैं. और किसी हद तक ठीक भी हैं. जैसे फौजी की ड्रेस, स्कूल की यूनिफार्म, रेडक्रास का चिन्ह. दिक्कत तब होती है जब हम इसे धर्म के व्यापक दायरे में न देखकर संकीर्ण दृष्टि से देखते हैं और प्रतीकों की भावना न समझते हुये मात्र उसके ऊपरी आवरण को ही सत्य मान बैठते हैं.
जवाब देंहटाएंहमें खुद को भी और दूसरों को भी साँचों में ढले देखने की आदत है, ये नहीं जा सकती। जैसे कानून के बारे में कहते हैं कि "JUSTICE SHOULD NOT ONLY BE DONE, IT SHOULD ALSO SEEM TO HAVE BEEN DONE" और काम के बार में कहते हैं कि ’काम हो या न हो, काम होता हुआ दिखना चाहिये’ वैसे ही प्रतिबद्धता के बारे में भी कह सकते हैं। क्या कह सकते हैं ये मनुष्य के संस्कार, परिवेश, उद्देश्य. प्राथमिकताओं पर निर्भर है, दोनों में से जो स्टाईल अच्छा लगे उसे अपना लो।
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर पोस्ट और विचारणीय भी
जवाब देंहटाएंबस यहाँ पर मैं कुछ अपनी बात कहना चाहूँगा
@कभी कभी मैं सोचता हूँ की क्यों न हम अपने जीवन से इन प्रतीक चिन्हों को हटा दे और अपने कर्म और सोच से ही किसी विचार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और समर्पण को आकें
मैं मानता हूँ
क्यों ना हम सभी अध्ययन को थोडा समय दें और प्रतीकों के पीछे छिपी मूल भावनाओं को समझें उसके बाद हटाने का तो प्रश्न ही नहीं उठेगा और हमें अपने ऋषि मुनियों की सोच और उनकी वैज्ञानिक दृष्टि पर भी गर्व होगा
रही बात शिवलिंग की सबसे पहले इस आकार के बारे में दृष्टिकोण बढ़ाना जरूरी लगता है
जो बातें मैंने वहां कही है वो वीडियों के रूप में सुनिए
http://video.google.com/videoplay?docid=7750003834905326157#
A lot of medical benefits can be received from the Parad Shivling. Diseases like asthma and high blood pressure can be controlled by wearing a parad mala or beads.
http://wishgoodluck.com/india-good-luck-symbols/parad-shivling/
जनेऊ , तिलक आदि के वैज्ञानिक फायदे तो हम सब जान चुके हैं
अब मंगल सूत्र
थाइमस ग्रंथि से सम्बन्धित पॉइंट्स पर प्रेशर डालता है इससे इससे रिलेटेड प्रोसेस में कोई खराबी हो जाने के कारण होने वाले रोग दूर होते हैं।
http://religion.bhaskar.com/article/why-is-the-mangalsutra-important-to-married-women-883484.html
करधनी (कन्दौरा)-
एडिनल ग्रंथि से सम्बन्धित पॉइंट्स पर प्रेशर डालती है। इससे छोटी आंत, बड़ी आंत तथा पेट में होने वाले रोग ठीक हो जाते हैं।
बिछुआ-
बिछुआ आंख व बाम्कल ट्यूब से सम्बन्धित पॉइंट्स पर प्रेशर डालता है। इससे आंखों के कई रोग तथा बाम्कल ट्यूब में होने वाले रोग ठीक हो जाते हैं।
पायजेब-
घुटने, पीठ तथा कूल्हे से सम्बन्धित पॉइंट्स पर प्रेशर डालती है इससे घुटने , पीठ , कूल्हे का दर्द ठीक हो जाता है।
http://www.jkhealthworld.com/detail.php?id=6439
होली के ढेर सारी शुभकामनाएं
एक कोमन वाली मूल भावना ये नजर आती है
जवाब देंहटाएं"पहला सुख निरोगी काया "
इस देश में अधिकतर युवाओं की मेंटल कंडिशनिंग ऐसी की जाती है की सभी "प्रश्न [धर्म से रिलेटेड] पूछने" भर को "तार्किकता" और किसी "थ्योरी[धार्मिक वाली विशेष तौर पर] को डिसअप्रूव" करने को वैज्ञानिकता मानते हैं :))
[मेरी बात में "प्रश्न पूछने वालों में" वे लोग शामिल नहीं जो जिज्ञासा वश पूछते हैं मैं उन लोगों की बात कर रहा हूँ जिनकी प्रश्न करते हुए मानसिकता कुतर्क वाली होती है ]
खास अर्थ में, शार्ट कट और भौतिक अभिव्यक्ति जैसे हैं कुछ प्रतीक.
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग के माध्यम से एक अनुरोध और कर रहा हूँ [हर भारतीय युवक युवती से] एक बार अपने दिल में झाँक कर देखिये और सच बताइये क्या किसी रिचुअल की आलोचना करने से पहले उसके बारे में सभी (सही या गलत)सन्दर्भ देखे हैं ???
जवाब देंहटाएंअगर नहीं तो अनुरोध है मित्रों मानसिक गुलामी त्यागो
क्योंकि
गुलामी जिस्म की रहती है जंजीर कटने तक
गुलामी जेहन की बड़ी मुश्किल से जाती है |
[वसीम बरेलवी साहब के शेर से ]
मुझे तो भारत एकलौता देश नजर आता है जिसमें युवा चिढ जाता है इस बात से की "इस देश के रिचुअल्स में साइंस है / था / हो सकता है"
ओह ! उत्तर देना तो भूल ही गया मैं
जवाब देंहटाएं@पर क्या ये संभव है?
मुझे संभावना कम ही नजर आती है आप स्वयं ऐसे कईं लोगों को जानते होंगे जो सिर्फ जबानी जमा खर्च करते हैं (जैसे माना देश भक्ति के नाम पर ) और वो इस कला में माहिर भी होते हैं लेकिन फिर भी "तिरंगा" एक साइकोलोजिकल इफेक्ट तो डालता ही है सब पर .. है ना !
मित्र दीप,
जवाब देंहटाएंआपकी साधना स्थली पर गौरव जी ने वैचारिक पताका फहरानी शुरू कर दी है. मेरी भी एक छोटी-सी पताका देखते हैं लहर पाती है या नहीं.
"है धर्म नहीं बतलाता चोटी रखना।
यज्ञोपवीत गलमुच्छ जटायें रखना।
कच्छा कृपाण कंघा केशों को रखना।
कर-कड़ा, गुरुद्वारे में अमृत चखना।
प्रेरणा मिले इनसे तो बात भली है।
हैं धर्म अंग, वरना यह रूप छली है।"
प्रतीकों का सहज स्वभाविक उदय होता है। वे किसी मानवीय कर्म या कर्तव्य की लम्बी चौडी परिभाषा और अर्थ के संक्षिप्त रूप होते है।
जवाब देंहटाएंउत्सव मानव के उत्साह प्रकट करने के उद्देश्य से होते है,फिर क्यों हम किसी निश्चित दिन को ही उत्सव मनाते है? जब भी हृदय में उत्साह हो प्रकट कर दे… पर मानव व्यस्त रहता है, वह उत्साहित होकर नव उर्जा भरने के अवसर को खो देता है। होली जैसे पर्व वे प्रतीक है जब एक दूसरे को देख हम स्वयं में अपने अपने विस्मृत उत्साह का पुनः संचार कर उर्जा और जीवन-बल प्राप्त कर लेते है। इस पूरी प्रक्रिया का बार बार विवेचन करने के स्थान पर हम कह देते है 'होली'। एक शब्द प्रतीक में सब कुछ समाहित।
गौरव जी आपका आभारी हूँ आपने एक बहुत ही उपयोगी और ज्ञान-चक्षुओं को खोलने वाला लिंक दिया.
जवाब देंहटाएंभजन करो भोजन करो गाओ ताल तरंग।
जवाब देंहटाएंमन मेरो लागे रहे सब ब्लोगर के संग॥
होलिका (अपने अंतर के कलुष) के दहन और वसन्तोसव पर्व की शुभकामनाएँ!
मानव-जीवन से प्रतीक कभी भी दूर नहीं किये जा सकते, एक प्रतीक को भूलेंगे उसी स्थान पर दूसरा प्रतीक जगह बना लेगा।
जवाब देंहटाएंहमारे स्वयं के नाम हमारे सम्पूर्ण व्यक्तित्व के प्रतीक बन जाते है।
वस्तुओं की गुणवत्ता के लिये ब्रॉण्ड प्रतीक बन जाते है।
केसरी रंग शौर्य और श्वेत रंग सौम्यता के प्रतीक बन जाते है।
एक रचना राष्ट्रगान बनकर राष्ट्रभक्ति का प्रतीक बन जाती है।
तिरंगा राष्ट्रध्वज बनकर राष्ट्रगौरव का प्रतीक बन जाता है।
आप को होली की हार्दिक शुभकामनाएं । ठाकुरजी श्रीराधामुकुंदबिहारी आप सभी के जीवन में अपनी कृपा का रंग हमेशा बरसाते रहें।
जवाब देंहटाएंoh my god oh my god oh my god
जवाब देंहटाएंगौरव जी के कमेन्ट पढ़ कर लगा की हम कितने सेल्फिश रहे हैं पुरुषो के प्रति . उसके स्वास्थय संबंधी बातो का हमने कभी ध्यान ही नहीं रखा . कोई भी ऐसा प्रतीकात्मक चिन्ह उनके लिये नहीं बनाया जो उनको सदा स्वस्थ रखने मे साहयता करे "बहुत ना इंसाफी हैं कालिया "
अभी भी देर नहीं हुई हैं सेहत के लिये कुछ प्रतीकात्मक चिन्ह पुरुष भी धारण कर सकते हैं गौरव के कम से कम ७-८ कमेन्ट आ जाए इस पर तब दुबारा आयुंगी
अब आती हूँ आप की पोस्ट पर
पत्नी को खुश करने के लिये अगर एक गुलाब दे कर काम चल सकता हैं तो वही कर देते इस मंथन से बच जाते दीप आप .
हां प्रतीक चिन्ह पहनना या पहनना ये आज की शिक्षित नारी खुद सोच सकती हैं
लेकिन आप का ये कहना हिन्दुओं में कोई स्त्री मन कर्म और वचन से कितनी भी पतिव्रता क्यों न हो अगर वो सुहाग के चिन्ह धारण नहीं करेगी तो उसका पति के प्रति प्रेम निरर्थक है. कुछ समझ नहीं आया इस पोस्ट मे क्युकी पता नहीं चल रहा की आप क्या कहना चाह रहे हैं इस लिये ??? लगा रही हूँ ये वाक्य पोस्ट से इतर लग रहे हैं या कुछ छुट सा गया हैं
हिन्दू धर्म मे आस्था है पर अंधी नहीं
प्रतीक हमारे जीवन में "To do" समान स्मृति सूचना की भूमिका निभाते है।
जवाब देंहटाएंजब भी वे प्रतीक हमारी दृष्टि में आते है हमें उन कृतव्यों की याद दिलाते है।
प्रतीकों को हटाते ही हमारी सोच और कल्पना अनियंत्रित हो जाने की सम्भावना बढ जाती है। और कर्म व कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्धता में असावधानी तलवार लटकती रहेगी। प्रतीक हमें सावधान रखने का कार्य करते है।
शिव का अर्थ है कल्याण, शिव सक्षात कल्याण के देवता है। वाममार्गीयों द्वारा उनके स्वरूप को भ्रष्ट किया गया है। उनके प्रतीकात्मक पूजन के लिये प्रारंभ में प्राकृतिक गोल आकार (नदी आदि में स्वतः गोल आकार पाया खण्ड)लिया गया होगा जिसे उनका चिन्ह कहा गया होगा। चिंन्ह और लिंग शब्द समानार्थी है। पुरूष जननांग के लिये चिन्ह का अर्थ लिये लिंग शब्द, बाद के युग की उपज है। वाममार्गीयो में शब्द-आकार साम्यता से इस मान्यता को गढ लिया।
गौरव सारगर्भित टिपण्णी के लिए धन्यवाद. आप जैसा एक टिप्पणीकार , "हाजिर हूँ जनाब" वाली सैकड़ों टिप्पणियों पर भारी होता है. मैं साहित्यकार नहीं और ना ही समाज सुधारक हूँ. मैं तो एक आम आदमी हूँ जो स्वस्थ संवाद के जरिये अपने आस पास घट रही जीवन की छोटी बड़ी घटनाओं पर दुसरे लोगों की राय जानना चाहता है.
जवाब देंहटाएंगौरव मैं खुद भी मनाता हूँ की जो भी प्रतीक हम अपने जीवन में इस्तेमाल करते हैं वे निरुद्देश्य नहीं हैं. उनके पीछे कोई न कोई सन्देश अवश्य ही है. लेकिन जाने क्यों हमारे पूर्वज सिर्फ प्रतीकों के जीवन में प्रयोग पर ही बल देते रहे. उन्होंने इन प्रतीक चिन्हों के पीछे छिपी वैज्ञानिकता को जाहिर नहीं किया.
जरा सोचें एक डाक्टर हमें इंजेक्शन लगता है लेकिन हर बार इंजेक्शन में दवाई बीमारी के अनुसार होती है. अगर हम आने वाली पीढ़ी को दवा का ज्ञान न दें और सिर्फ इंजेक्शन लगाने पर ही जोर दें तो क्या भविष्य में किसी का इलाज हो पायेगा.
इसी प्रकार हर चीज का विकास होता है. कुछ समय पहले मसाला सिल पर पीसा जाता था आज वाही मसाला पिसा पिसाया मिलता है. अब सोचो कोई आदमी पिसे हुए मसाले को भी सिल बट्टा लेकर पीसे तो क्या होगा. क्या ये बेवकूफी नहीं होगी.
मुझे अपनी बहुत सी प्रथाएं आज के समय में निरर्थक लगती है पर परम्परावादी उनसे चिपके रहना चाहते हैं और जो परिवर्तन चाहता है या बेहतर तकनीक को अपनाना चाहता है उसका विरोध करते हैं.
मैं सोचता हूँ की हमें अपने रीति रिवाजों के प्रति थोडा खुल नजरिया भी रखना चाहिए.
रचना दीदी
जवाब देंहटाएंउत्तर बस थोड़ी देर में ...
पहले होली की ढेर सारी शुभकामनाएं :)
@पाण्डेय जी
जवाब देंहटाएंआप भी आ गए ......मजा तो अब आएगा चर्चा का ...सच्ची :)
@लेकिन जाने क्यों हमारे पूर्वज सिर्फ प्रतीकों के जीवन में प्रयोग पर ही बल देते रहे. उन्होंने इन प्रतीक चिन्हों के पीछे छिपी वैज्ञानिकता को जाहिर नहीं किया.
जवाब देंहटाएं...... अगर हम आने वाली पीढ़ी को दवा का ज्ञान न दें और सिर्फ इंजेक्शन लगाने पर ही जोर दें तो क्या भविष्य में किसी का इलाज हो पायेगा.
ये हम कैसे कह सकते हैं की उन्होंने जाहिर नहीं किया ......... हो सकता इन कारणों को प्रचारित ही ना किया गया हो
@इसी प्रकार हर चीज का विकास होता है. कुछ समय पहले मसाला सिल पर पीसा जाता था आज वाही मसाला पिसा पिसाया मिलता है. अब सोचो कोई आदमी पिसे हुए मसाले को भी सिल बट्टा लेकर पीसे तो क्या होगा. क्या ये बेवकूफी नहीं होगी.
नहीं होगी ......मसाला पीसने की वजह से स्त्रियों को (ख़ास तौर से ) जिम नहीं जाना पड़ता था :))
आज कल पैसे देकर जाना पड़ता है .. वैसे एक बेवकूफी ये भी है की मल त्यागने के पारंपरिक तरीके की जगह हमने कमोड को अपनाया है . तकनीक तो आज कल यही चल रही है या फिर टाई जिसे बच्चे कस कर बाधते हैं और ग्लूकोमा का खतरा बढ़ जाता है .. अगर यही बेहतर तकनीक है तो मैं इसका विरोध करता हूँ ...क्योंकि ये जीवन में शामिल होती जा रही है :) लेकिन रूढ़िवादी लोग इससे क्यों चिपके रहते हैं पता नहीं :)
@मुझे अपनी बहुत सी प्रथाएं आज के समय में निरर्थक लगती है पर परम्परावादी उनसे चिपके रहना चाहते हैं और जो परिवर्तन चाहता है या बेहतर तकनीक को अपनाना चाहता है उसका विरोध करते हैं.
अक्सर विरोध करने के बाद लोगों को उस बात की जानकारी हो पाती है ...कुछ लोग तो फिर भी नहीं स्वीकारना चाहते
मैंने हमेशा कहा है कमेंट्स पर माहौल का प्रभाव रहता है
@मैं तो एक आम आदमी हूँ जो स्वस्थ संवाद के जरिये अपने आस पास घट रही जीवन की छोटी बड़ी घटनाओं पर दुसरे लोगों की राय जानना चाहता है.
मैं भी एक आम आदमी ही हूँ .. वैसे मेरे बड़े कमेन्ट चर्चा में बाधक लग रहे हैं तो वजह ये है कुछ लोग लेख पढ़ते नहीं है इसलिए बड़ा हिस्सा कोपी पेस्ट करना पड़ता है ..आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे ...वैसे मैं खुद भी आजकल चर्चा के अंत में कुछ बोलना पसंद करता हूँ [आपने नोटिस किया होगा] आज रहा नहीं गया ..क्षमा चाहता हूँ
रचना जी मैं शायद अपनी बात को स्पष्ट नहीं कर पाया. मैं आपके द्वारा उल्लेखित पैर में यही कहना चाहता हूँ की हमारा समाज सिर्फ प्रतीक चिन्हों पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है व्यक्ति के दिल की भावनाओं को नहीं समझता. मंगल सूत्र चूड़ी बिंदी का से ही किसी स्त्री का अपने पति के प्रति प्यार आंका जाता है और इन पर जरुरत से ज्यादा जोर दिया जाता है. अगर इनका कोई वैज्ञानिक महत्व है तो उस पर जोर होना चाहिए न की किसी और बात पर. हिन्दुओं में विवाहित स्त्री मांग भरती है चुडा पहनती है. कहा जाता है की ये उसके सुहाग के लिए हैं. अरे सीधे सीधे कहो की ये तुम्हारे खुद के भले के लिए हैं, इनके पीछे की वैज्ञानिकता ये है इसलिए इन्हें पहनो.
जवाब देंहटाएंगौरव आज शनिवार है और बच्चे होली में व्यस्त है अतः थोडा वक्त है अपने पास चर्चा का मजा लेने के लिए. दूसरी बात आपका कमेन्ट लम्बा होता है पर किसी बात को बहुत विस्तार से समझाता है इस लिए पसंद करता हूँ.
जवाब देंहटाएंमेरे एक शिक्षक कहते थे की जब भी किसी प्रश्न का उत्तर दो तो हर बात को विस्तार से समझाओ. किसी भी बिंदु को ये सोच कर न छोडो की इतना तो वो खुद भी समझ ही लेगा.
आप बेहिचक लम्बे कमेन्ट करो. किसी और को फायदा हो न हो मुझे तो होगा.
और हाँ रचना जी हंसुली कमरबंध बाजु बंध कुंडल सर ढकना अदि चीजे तो भारतीय पुरुष भी करते थे जो शायद पाश्चात्य प्रभाव में भूल गए हैं. गावों में ये चीजे अब भी देखि जा सकती हैं.
जवाब देंहटाएंहोली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं। ईश्वर से यही कामना है कि यह पर्व आपके मन के अवगुणों को जला कर भस्म कर जाए और आपके जीवन में खुशियों के रंग बिखराए।
जवाब देंहटाएंआइए इस शुभ अवसर पर वृक्षों को असामयिक मौत से बचाएं तथा अनजाने में होने वाले पाप से लोगों को अवगत कराएं।
@कोई भी ऐसा प्रतीकात्मक चिन्ह उनके लिये नहीं बनाया जो उनको सदा स्वस्थ रखने मे साहयता करे "बहुत ना इंसाफी हैं कालिया "
जवाब देंहटाएंआप यकीन नहीं करेंगी मुझे ऐसे किसी प्रश्न का इतंजार था .. अब तो मानेंगी ना की पुरुष कितने सालों से बेवजह "इमोशनल ब्लेकमेल" होता आ रहा है ..लेकिन ये पति पत्नी के बीच स्नेह बढाने के लिए साइकोलोजिकल फंडा रहा होगा .. कोई भी इस बात को मानेगा .. वर्ना "बोर्नवीटा" कोई और पीये और सेहत किसी और की बने ये बात कुछ हजम नहीं होती .. है ना !
अब मैं सोच रहा था .................हम समानता पर कुछ बोलते रहेंगे उससे क्या होता है ? :)
अभी तक गर्भधारण तो स्त्री को ही करना पड़ता है ना (काफी मुश्किल काम होता होगा) इस लिहाज से स्त्री के स्वास्थ्य के ज्यादा महत्व दिया होगा .................. बाकी किसी स्त्री के महत्त्व पर जबानी जमा खर्च वाले स्त्री स्वास्थ्य को ज्यादा बेहतर बता सकते हैं
जिन्होंने नारी जाती का इतना ख्याल रखा हम उनकी मानसिकता समझे बिना कुछ भी बोल देते है नाइंसाफी तो ये है (इन बातों से मुगेम्बो की खुश हो सकता है गब्बर कालिया का तो गया जमाना)
शब्दार्थ :
मुगेम्बो = ऐसे लोग जो भारत को गुलाम बनाना चाहते हैं
@अभी भी देर नहीं हुई हैं सेहत के लिये कुछ प्रतीकात्मक चिन्ह पुरुष भी धारण कर सकते हैं
चिन्ह वो धारण करे जो गर्भ धारण करे और जिसे स्वास्थ्य रिलेटेड कोम्प्लेक्सिती ज्यादा होती हो .
वैसे जब सुन्दरता स्वास्थ्य कम प्रयासों में मिले तो वो (विदेशी महंगे सौन्दर्य प्रसाधन ) क्यों ले, ये (गहने) ना लें
@गौरव के कम से कम ७-८ कमेन्ट आ जाए इस पर तब दुबारा आयुंगी
इतनी बात तो किसी बच्चे के भी समझ में आ जायेगी इसके लिए बहुत सारे कमेन्ट की क्या जरूरत है .. थोडा सोचने की जरूरत है :)
और हाँ ......मल्टिपल कमेन्ट इसलिए भी हो जाते हैं क्योंकि में चर्चा के दौरान ई मेल आई डी का इस्तेमाल बिलकुल नहीं करता .... अक्सर लोग करते हों शायद :)
जवाब देंहटाएं~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पिछली टिप्पणी में थोडा सुधार
जिन्होंने (पूर्वजों ने )नारी जाती का इतना ख्याल रखा हम उनकी मानसिकता समझे बिना कुछ भी बोल देते है नाइंसाफी तो ये है (इन बातों से मुगेम्बो ही खुश हो सकता है गब्बर कालिया का तो गया जमाना)
शब्दार्थ :
मुगेम्बो = ऐसे लोग जो भारत को गुलाम बनाना चाहते हैं
~~~~~~~
@कहा जाता है की ये उसके सुहाग के लिए हैं. अरे सीधे सीधे कहो की ये तुम्हारे खुद के भले के लिए हैं, इनके पीछे की वैज्ञानिकता ये है इसलिए इन्हें पहनो
जवाब देंहटाएंपाण्डेय जी
ये पति पत्नी आपसी स्नेह बढाने का फंडा है .. आप खुद ही सोचिये इससे एक कनेशन जुड़ तो जाता है .. शायद पशुता प्रधान मॉडर्न प्रधान साइंस इसे प्रूव ना कर पाए पर सब जानते हैं .. है ना !
एक गाना याद आ गया सुनाऊं क्या ?? आप तो म्यूजिक के साथ सुनो ...
http://www.youtube.com/watch?v=toBOKtBMwiY
सुज्ञ जी अपने कहा की प्रतीक किसी मानवीय कर्म या कर्तव्य की लम्बी चौडी परिभाषा और अर्थ के संक्षिप्त रूप होते है। मुझे लगता है यहीं गड़बड़ी हो जाती है. संक्षिप्त रूप की व्याख्या लोग अपने सुभीते के अनुसार करते हैं. कविता में भी एसा ही होता है. लोग कविता के ऐसे अर्थ निकलते हैं जो कवि सपने में भी नहीं सोच पाता. प्रतुल जी मेरी बात से सहमत होंगे. जन कल्याण के हर रीती रिवाज को विस्तार से पालनकर्ता को समझाया जाना चाहिए ताकि किस गलत व्याख्या की गुन्जायिश ही न रहे.
जवाब देंहटाएं@कहा जाता है की ये उसके सुहाग के लिए हैं. अरे सीधे सीधे कहो की ये तुम्हारे खुद के भले के लिए हैं, इनके पीछे की वैज्ञानिकता ये है इसलिए इन्हें पहनो
जवाब देंहटाएंपाण्डेय जी,
ये पति पत्नी आपसी स्नेह बढाने का फंडा है .. आप खुद ही सोचिये इससे एक कनेक्शन जुड़ तो जाता है .. शायद "पशुता प्रधान" "मॉडर्न साइंस" इसे प्रूव ना कर पाए पर सब जानते हैं .. है ना !
एक गाना याद आ गया सुनाऊं क्या ?? आप तो म्यूजिक के साथ सुनो ...
http://www.youtube.com/watch?v=toBOKtBMwiY
गौरव जी पति पत्नी के बीच स्नेह बढाने के फंडे वाली बात अच्छी लगी. पत्नी से कहा जय की तुम मंगल सूत्र पहनो तुम्हारे पति की आयु लम्बी होगी और इससे खुद उसके स्वस्थ्य पर अच्छा असर पड़ता हो. मतलब एक तीर से दो निशाने.
जवाब देंहटाएंबात में दम है.
@दीप
जवाब देंहटाएंअब पेरा ज्यादा क्लेअर हैं टीप के बाद , सही समझे तो उसमे पेरा मे भी जोड़ दे क्युकी बहस मे पाठक कमेन्ट नहीं पढते कई बार
और
@हंसुली कमरबंध बाजु बंध कुंडल सर ढकना अदि चीजे तो भारतीय पुरुष भी करते थे जो शायद पाश्चात्य प्रभाव में भूल गए हैं.
वही बात मे भी कहती हूँ संस्कृति पर प्रभाव पडते रहते हैं इसलिये कुछ अगर पुरुषो से किसी प्रभाव के तहत छूटा तो कुछ स्त्रियों पर टीका टिपण्णी नारी पर ही ज्यादा होती हैं .
संस्कृति मे बदलाव आते हैं पर सभ्यता मे नहीं .
@गौरव
अगर बदलाव को नहीं ग्रहण करियेगा तो फिर कंप्यूटर पर क्यूँ हैं हम सब , पढाई तो पट्टी पर भी होती थी और बड़े बड़े वैज्ञानिक , ज्योतिषाचार्य बिना कंप्यूटर के ही पट्टी पर पढ़ के नाम कमा चुके हैं . बदलाव को ग्रहण करना और उस से अपने हित की सोचना इंसान को इंसान के दर्जे मे रखता हैं
सुहाग के प्रतीक से अगर पति पत्नी का प्रेम बढ़ता तो हर विवाहित जोड़ा सुखी होता क्या हैं ???
सुहाग के प्रतीक और चिन्ह पहने से अगर शरीर सही रहता तो किसी भी विवाहित स्त्री को कोई बिमारी ना होती
आज कल ऑफिस मै किसी भी प्रकार के जेवर की मनाई हैं अस्पताल मे हर डॉक्टर को हर जेवर उत्तार कर ही ओ टी मे जाना होता हैं
क्या आप को लगता हैं की ये गलत हैं या अगर एक डॉक्टर ने मगल सूत्र उत्तार कर बाहर रख दिया तो उसके पति का अनिष्ट होगा
गौरव होनी अनहोनी इष्ट अनिष्ट हो कर रहते हैं इनको रोकना असंभव हैं
प्रतीक केवल प्रतीक हैं उस से ज्यादा कुछ नहीं
प्रेम का असली रूप दैहिक नहीं हैं दैविक हैं
लेकिन उन लोगों का क्या जो हर कही गयी बात पर विश्वास नहीं करते . कोई मुझसे कहे की तुम भूखे रहो और तुम्हारी पत्नी का वजन कम हो जायेगा तो भाई मैं तो उस की बात पर कभी विश्वाश नहीं करूँगा. एसा कहने की जगह अगर कोई मुझे ये कहे की कम खाने से तुम स्वस्थ रहोगे और गृहस्थ जीवन का भरपूर आनंद लोगे तो मैं सहज ही इस बात का अनुसरण करूँगा.
जवाब देंहटाएं@अगर बदलाव को नहीं ग्रहण करियेगा तो फिर कंप्यूटर पर क्यूँ हैं हम सब
जवाब देंहटाएंग्रहण करने और समझ के ग्रहण करने में फर्क है उदाहरण फिर से "कमोड" और "टाई" , कंप्यूटर खराब हो जायेगा तो क्या जिन्दगी रुक जाएगी ??
प्रोग्रामिंग लेंगुएज [जिससे सोफ्ट वेयर बनता है ] तक वही सही मानी जाती है तो मशीन इंडीपेंडेंट हो जैसे "जावा"
आज के केक्युलेटर गुलाम विद्यार्थियों का जरूरत है वैदिक गणित पढने की | उन्हें वैदिक गणित पढने को मिले तो पता लगे की गप्प और असलियत में फर्क क्या होता है और कितना पिछड़ा (बदला ) है आधुनिक[?] मनुष्य का दिमाग
@बदलाव को ग्रहण करना और उस से अपने हित की सोचना इंसान को इंसान के दर्जे मे रखता हैं
बदलाव को सही ढंग से समझे बिना ग्रहण करना इंसान को मशीन डिपेंडेंट / मशीन जैसा बना देता है
@सुहाग के प्रतीक से अगर पति पत्नी का प्रेम बढ़ता तो हर विवाहित जोड़ा सुखी होता क्या हैं ???
वैसे यहाँ बात स्वास्थ्य और साइकोलोजिकल इफेक्ट की चल रही है शायद फिर भी आपने पूछा है तो बता देता हूँ ..संतोषी सदा सुखी
संतोषी =कर्म करने के बाद फल के मामले में संतोषी
@सुहाग के प्रतीक और चिन्ह पहने से अगर शरीर सही रहता तो किसी भी विवाहित स्त्री को कोई बिमारी ना होती
इसका क्या मतलब हुआ????? ये तो वही बात हुयी की "डॉक्टर कभी बीमार नहीं पड़ते क्या" ???.. इससे तो लोग डॉक्टर के पास जाना /उनकी बात मानना भी छोड़ देंगे ....बच्चे मम्मी की बात नहीं सुनेंगे और बारिश में खेलने निकल जायेंगे :(
जारी .......
@आज कल ऑफिस मै किसी भी प्रकार के जेवर की मनाई हैं अस्पताल मे हर डॉक्टर को हर जेवर उत्तार कर ही ओ टी मे जाना होता हैं
जवाब देंहटाएंजीवन में ऐसे कईं परिस्थितियाँ आती होंगी जब जेवर थोड़ी देर लिए उतारने पड़ते होंगे , और अगर अगर किसी को अलर्जी हो तो क्यों पहने ??.. इसमें कन्फ्यूजन कहाँ है .. व्रत में भी बीमार, बच्चों आदि को छूट होती है . ये आप कैसी बातें कर रही हैं ???
@क्या आप को लगता हैं की ये गलत हैं या अगर एक डॉक्टर ने मगल सूत्र उत्तार कर बाहर रख दिया तो उसके पति का अनिष्ट होगा
???????????? अब या तो पालन ही नहीं करेंगे और करेंगे तो इतना जम के करेंगे :)) ऐसे थोड़ी होता है ......
@गौरव होनी अनहोनी इष्ट अनिष्ट हो कर रहते हैं
मैंने कब कहा की अनिष्ट रोकने के लिए कोई टोटका अपनाना चाहिए यहाँ बात स्वास्थ्य और साइकोलोजिकल इफेक्ट की हो रही थी
@ इनको रोकना असंभव हैं
ये आप कौनसे जमाने की बात कर रही हैं दीदी , स्त्री आगे बढ़ रही है , इंसान अपना भाग्य खुद बनाता है , अपनी बुद्दी से फैसले करता हैं , सिद्दांत कर्म के फल का है .. आप भाग्य वादी क्यों बन रही हैं ?? मुझे तो गर्व है "नारी ब्लॉग" पर उससे बदलाव आएगा ये उम्मीद भी.. आप ऐसे सोचेंगी तो कैसे काम चलेगा ?? ..इससे लोग डॉक्टर के पास जाना बंद कर देंगे .. या शराब पी कर गाडी चलाया करेंगे और कहेंगे " जब जो होगा तभी होगा " .....हिच्च .. "डरो मत, चलाओ गाडी " ..... हिच्च :(
@प्रेम का असली रूप दैहिक नहीं हैं दैविक हैं
ये ९० % लोगों के लिए जबानी जमा खर्च है .. राष्ट्र गीत सबको याद होता है तो क्या सब देश भक्त होते हैं ??
विषयांतर : मैंने कईं फिल्मों में देखा है हीरो हिरोइन को कईं बार नाजुक पलों में इन्ही प्रतीक चिन्हों को देख कर अपनी जिम्मेदारी को याद करते हैं और उनके फैसलों में मानवता / त्याग (पुराने ज़माने की बातें) इनक्लूड हो जाती है इससे फिल्म का अंत अच्छा होता है
[मुझे ऐसा लग रहा है ......क्या आज आपकी आई डी से कोई और कमेन्ट कर रहा है/ रहीं हैं ]
@ब्लॉग जगत वासियों (आधुनिक / वैज्ञानिक सोच वाले )
जवाब देंहटाएंआप सब से शिकायत है .. आप लोग मेरे कमेन्ट ठीक से नहीं पढ़ते हैं :(
इसीलिए तो इतना सारा टाइप करना पड़ता है :(
फिर कहते हो कमेन्ट बहुत सारे करता है :(
भारत में कम ही लोग जानते हैं, पर विदेशों में लोग मानने लगे हैं कि वैदिक विधि से गणित के हिसाब लगाने में न केवल मज़ा आता है, उससे आत्मविश्वास मिलता है और स्मरणशक्ति भी बढ़ती है.
जवाब देंहटाएंhttp://www.dw-world.de/dw/article/0,,5216144,00.html
ऑस्ट्रेलिया के कॉलिन निकोलस साद वैदिक गणित के रसिया हैं. उन्होंने अपना उपनाम 'जैन' रख लिया है और ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स प्रांत में बच्चों को वैदिक गणित सिखाते हैं. उनका दावा हैः "अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा गोपनीय तरीके से वैदिक गणित का कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाले रॉबट बनाने में अपयोग कर रहा है. नासा वाले समझना चाहते हैं कि रॉबाट में दिमाग़ की नकल कैसे की जा सकती है ताकि रॉबट ही दिमाग़ की तरह हिसाब भी लगा सके-- उदाहरण के लिए कि 96 गुणे 95 कितना हुआ....9120".
जवाब देंहटाएंवैदिक विधि से बड़ी संख्याओं का जोड़-घटाना और गुणा-भाग ही नहीं, वर्ग और वर्गमूल, घन और घनमूल निकालना भी संभव है. इस बीच इंग्लैंड, अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में बच्चों को वैदिक गणित सिखाने वाले स्कूल भी खुल गये हैं.
जवाब देंहटाएंये तो सिर्फ डेमो है .. अगर कोई चर्चा चलाना चाहे तो चर्चा १०००, १०००० कमेंट्स या उससे भी ज्यादा तक चल सकती है .. सच तो सच ही रहेगा
जवाब देंहटाएंसूर्य कल भी पूर्व से उगता था आगे भी उगता रहेगा .. अगर हम में से कोई कोई पश्चिम की ओर खड़ा रह के उम्मीद करना चाहे तो उनकी मर्जी
लेकिन मैं ये बात नहीं भूलता की अकेले कोई कुछ नहीं कर सकता हम सब को मिल के प्रयास करना होगा ..वर्ना हमारी आज की मौजूदा उपलब्धियां कल की गप्पें बन जायेंगी
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जवाब देंहटाएंपाण्डेय जी का आभार की उन्होंने चर्चा के लिए मंच (ब्लॉग के रूप में) दिया
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
@ मुझे लगता है यहीं गड़बड़ी हो जाती है. संक्षिप्त रूप की व्याख्या लोग अपने सुभीते के अनुसार करते हैं.
जवाब देंहटाएंदीप जी,
गडबडी तो होती है, लेकिन गलत उद्देश्य से नहीं, प्रतीक रूपी संक्षिप्त व्याख्या मात्र सुभीते के लिये ही नहीं, कई कारक हो सकते जिसमे सबसे बडा कारण है विस्तृत व्याख्या के लिये समय की कमी और दूसरे प्रबुद्ध व्याख्याकारों का अभाव, प्रमाणीक शास्त्रों की विस्मृति, अश्लील उल्लेखों से बचने के प्रयत्न। सुबोध जन को ईशारे में समझानें के प्रयत्न।
आज भी हमारे पास इतना वक्त नहीं हम हर बात पर विस्तार में जाते हुए अपने दैनिक कार्य करें।
इन प्रतीकों और परंपराओ को गलत समझनें का जोखीम तो तब भी था जब व्याख्याएं उपलब्ध थी, आज भी है और रहेगा भी।
मानव स्वभाव की क्षमता अनुसार तीन श्रेणिया है…अबोध, सहज-बोध और दुर्बोध।
होली की हार्दिक शुभ-कामनायें!
जवाब देंहटाएंगौरव जी आपके बौद्धिक जुनून ने तमाम सवालों का खून कर दिया.
जवाब देंहटाएंआपकी इस वैचारिक सुनामी से न जाने कितने विकसित कुतर्क ढह गये, पाश्चात्य अन्धानुकरण के भवन बह गये. हम तो केवल मनुष्य की मोर्डन रचनाओं को नष्ट होने का तमाशा देखते रह गये.
घर में गुजिया और नमकीन तलते रह गये. सुज्ञ जी ने भी ख़ूबसूरत ढंग से इस बौद्धिक चर्चा पर रिएक्टर बांधने का काम किया. मैं तो गदगद होता रहा.
गौरव जी आपकी स्वाध्यायशीलता का मैं कायल हो गया हूँ.
जवाब देंहटाएं@जन कल्याण के हर रीती रिवाज को विस्तार से पालनकर्ता को समझाया जाना चाहिए ताकि किस गलत व्याख्या की गुन्जायिश ही न रहे.
जवाब देंहटाएंदीप जी,
बात आपकी सही है, जैसा कि मैने कहा ग्रहण करनेवाले की मेघा की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है, पारंपरिक जीवन दर्शन सार-संक्षेप अधिक होता है, शायद इसीलिये गूढ भी कहलाता है।
जैसा कि गौरव जी नें कहा, स्वास्थ्य मिश्रीत सौन्दर्य कारणों से वैज्ञानिक सोच के साथ गहनों का चलन हुआ, नेह और समर्पण के भावों की अभिव्यक्ति को साथ में ही स्थान मिल गया, प्रकारान्तर से समृद्धि और रुतबे को भी यहां घुसने का अवसर मिल गया।
किसी दिलजले को कुबुद्धि सुझी होगी, उसने सार्थक गहनों को नारीसम्मान के विरुद्ध ठहराने के लिये, पशुओं पर नियंत्रण करनें के साधनो, नाथ बेडी गले के बंधन से जोड दिया। यह तुक्का चल गया। आज नारीवादियों को यह पुरूषप्रधानता का षडयंत्र नजर आता है। और नारी अपमान का प्रतीक।
पर यह सर्वांग गलत धारणा है। अन्यथा पत्नी के लिये गहने लाकर देने वाला पति भले लाकर दे। पर एक बेटा सर्वप्रथम अपनी माँ को इन गहनो से अवश्य मुक्त करता।
यह हमारा दुर्भाग्य है कि समाज के लिये उपयोगी बातों को गलत व्यख्यायित करने की परम्परा भी समानान्तर विध्यमान होती है।
दीप जी,
जवाब देंहटाएंमैं भी आभार व्यक्त करता हूँ आपने चर्चा के लिए आपके उत्तम ब्लॉग रूपी फलक प्रदान किया।
प्रतुल जी सराहना के लिये आभार!!
चर्चा के लिये सम्भावनाएं अभी शेष है……
@जन कल्याण के हर रीती रिवाज को विस्तार से पालनकर्ता को समझाया जाना चाहिए ताकि किस गलत व्याख्या की गुन्जायिश ही न रहे
जवाब देंहटाएंपाण्डेय जी,
क्या आप समझाने की बात कर रहे हैं ??? :))))))
परेशानी यही है की आज कल सब रेडीमेड समझदार हैं
इनको (आधुनिक लोगों को ) यौन शिक्षा पर भाषण बाजी करने में गजब का सुख मिलता है , नतीजे पता नहीं क्यों नहीं देखते ???
http://sarathi.info/archives/507
अब ये मैं क्यों कहा रहा हूँ .......????
क्योंकि जब बात आती शिवलिंग की तब लोगों के ब्रोड माइंड का स्विच ऑफ़ हो जाता है
इन्हें दोनों ही बातों
01 यौन शिक्षा के कांसेप्ट
02 शिवलिंग के कंसेप्ट
की जानकारी बिलकुल नहीं लगती लेकिन लेख लिखने की क्षमता अद्भुद है और कांफिडेंस तो लाजवाब है ..सच्ची :)
सुज्ञ जी, प्रतुल जी
जवाब देंहटाएंहां एक (कु)तर्क पढ़ा था जिसमें ये सिद्द करने का प्रयास किया गया की पायल आदि का प्रयोग नारी को पशु सामान मानते हुए किया गया है (सन्दर्भ कुछ नहीं था )
मेरा उत्तर कुछ ये था
किसी भी चीज का प्रयोग मानसिकता पर निर्भर करता है जैसे.....
एक दवा का प्रयोग भी किसी भी तरह से किया जा सकता है ,
"गौरतलब है कि ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल सामान्य तौर पर जानवरों का दूध बढाने के लिए किया जाता है। इसी तरह सब्जियों का आकार और उनका रंग निखारने के लिए भी आजकल इस इंजेक्शन का इस्तेमाल चोरी-छिपे होने लगा है लेकिन अब वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेलने से पूर्व मासूम बच्चियों को बडा करने के लिए ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन लगाया जाने लगा है। "
अब क्या इसमें कोई ऑक्सीटोसिन का दोष बताये तो कैसा लगेगा ???
http://sanjeevsharma.jagranjunction.com/2010/05/19/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%AC%E0%A4%9A/
और कौन कहता है की आधुनिक नारियां वापस अपनी संस्कृति की और रुख नहीं कर रही
जवाब देंहटाएंअगर ख़बरों की माने तो...
Model-turned-actress Mughda Godse has turned vegetarian and says she has given up meat because she has started practicing the art of Ashtang Yoga.
.
.
.
The actress practices yoga every morning and makes sure that she sticks to this routine.
http://naarijagat.blogspot.com/2011/03/mughda-godse-turns-vegetarian.html
चर्चा में मैंने कमोड और टाई की बात कही है इसलिए सन्दर्भ दे रहा हूँ
जवाब देंहटाएंकमोड के बारे में
my2010ideas.blogspot.com/2010/09/blog-post_19.html
टाई के बारे में
Wearing your necktie tight might look smart, but it could increase the risk of developing the serious eye disease glaucoma, reveals a study in the British Journal of Ophthalmology.
http://www.innovations-report.com/html/reports/studies/report-20215.html
रचना जी,
जवाब देंहटाएं@अगर बदलाव को नहीं ग्रहण करियेगा तो फिर कंप्यूटर पर क्यूँ हैं हम सब , पढाई तो पट्टी पर भी होती थी और बड़े बड़े वैज्ञानिक , ज्योतिषाचार्य बिना कंप्यूटर के ही पट्टी पर पढ़ के नाम कमा चुके हैं . बदलाव को ग्रहण करना और उस से अपने हित की सोचना इंसान को इंसान के दर्जे मे रखता हैं
मात्र बदलाव नहीं, सार्थक बदलाव को ही अनुमति मिलनी चाहिए।
माँ की प्रसंशा कर दी तो उसका निहितार्थ पत्नी की निंदा कैसे हो सकता है?
अर्थार्त:, यदि कोई सभ्यता प्रेरित सार्थक परंपरा जो अभी भी मानव हित में है को अक्षुण्ण रखनें के पक्ष में है तो वह मानवीय सभ्य विकास का विरोधी कैसे हो गया?
आपको सपरिवार होली की शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंहोली की ढेर सारी शुभकामनायें। आपकी 12 मार्च की पोस्ट पर उलझ गया । यह पोस्ट भी काफी रोचक है। फिर कभी...
जवाब देंहटाएंप्रतुल जी सराहना के लिए आभार, आप अच्छे [भावनाएं भी समझने वाले] टीचर हैं जो मुझे अच्छे मार्क्स दे रहे हैं
जवाब देंहटाएंलेकिन जो बात आप या सुज्ञ जी २ या ३ कमेन्ट में पूरी कर देते हैं उसके लिए मैंने कितने सारे कमेन्ट कर डाले ? :)
इसका मतलब है ......अभी तो है अध्ययन, चिंतन है बाकी बहुत सारा :(
एक कविता बोलूं ?:)
[ये समर्पित है युवाओं को ]
वो युवा कहो किस मतलब का
हो जिसे स्वधर्म का ज्ञान नहीं
बिना ज्ञान के आलोचना
क्या आधुनिकता का अपमान नहीं???
उम्र तुम्हारी इतनी कम है
कैसे बने इतने विषयों के आलोचक???
संदेह है मुझे
नहीं पहुंचे किसी विषय की गहराई तक
हाँ में मिलाकर हाँ किसी की
कुछ देर के लिए तुम आधुनिक बन जाओगे
लेकिन, हे बुद्धिजीवी, सोचा है कभी
बदले में क्या तुम पाओगे ???
झूठी प्रशंसा , झूठा अपनापन
सब कुछ झूठ
जब उठोगे
सच्चाई को बहुत कडवा पाओगे
तब तुम देना किसी को दोष ना
आज बैठ कर तन्हाई में
दो घडी मेरी बातों पर सोचना......
suyagya ji
जवाब देंहटाएं"बदलाव को ग्रहण करना और उस से अपने हित की सोचना"
kaa matlab saarthak badlaaav hi haen agar aap "अपने" ki paribhasha ko vrhat rup sae lae
माँ की प्रसंशा कर दी तो उसका निहितार्थ पत्नी की निंदा कैसे हो सकता है?
जवाब देंहटाएंmaa aur patni mae saamjasya kyun beethna padtaa haen ?? kyuki maa aur patni ko aesa condition kiyaa gayaa haen sadiyon sae ki wo "adhikaar cheenae ki prakriyaa " samjhtee haen
jab tak naari ko rudhiyon sae mukti nahin milagi wo kaese saarthak badlaav ki aur chalaegi ?//
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@दीदी
जवाब देंहटाएंमैं समझ नहीं पाया की आपने ये लिंक क्यों दिया है
ये मेरी पोस्ट ......
http://my2010ideas.blogspot.com/2011/03/blog-post_19.html
@ maa aur patni mae saamjasya kyun beethna padtaa haen ?? kyuki maa aur patni ko aesa condition kiyaa gayaa haen sadiyon sae ki wo "adhikaar cheenae ki prakriyaa " samjhtee haen
जवाब देंहटाएंरचना जी,
वैसे तो दृष्टांत का भावार्थ शाब्दिक नहीं था, वह सार्थक परंपरा (माँ)और सार्थक विकास (पत्नी) से था। किन्तु आपने सही बात उठाई।
क्या आप मानती हैं कि यह दो नारियों में आपसी अधिकार छीनने की प्रतिस्पृदा की कंडिशनींग पुरूष वर्ग करता है?
@ jab tak naari ko rudhiyon sae mukti nahin milagi wo kaese saarthak badlaav ki aur chalaegi ?
हाँ कुछ तो रूढियां है ही पर कुछ निर्दोष संस्कार भी है जो रूढियों की तरह निकृष्ट माने जा रहे है। गधा घोडा एक भाव बेचना तो न्याय नहीं। नारी-विवेक को चाहिए कि वह निर्मल परिशीलन करे और वास्तविक बेडियों को उतार फैके पर निज-हित, परिवार-हित और समाज-हित के संस्कारों को रूढियों के साथ साथ तजनीय न माने।
आखिर तो नारी और पुरूष मिलकर ही समाज की इक इकाई बनते है। दोनो के बीच द्वेषपूर्ण टकराव तो समाज का ही पतन है।
सहयोग के साथ सार्थक बदलाव सरल बन जाते है।
पिछली कविता समर्पित है युवाओं को जिनका मुझे इन्तजार था .. वो नहीं आये :(
जवाब देंहटाएंचलो कोई बात नहीं .... मैंने अपनी ओर से सभी बातों का उत्तर दे दिया है .....अब आगे चर्चा सुज्ञ जी और प्रतुल जी ही करेंगे... हम तो चले..... जरूरत पड़ी तो फिर आना हो सकता है :)
गौरव जी कविता अपना असर दिखायेगी ही.
जवाब देंहटाएंकीर्ति और प्रसिद्धि का रूप नहीं हुआ करता मित्र
चुपचाप कर्म करते चलो .... आप पर दृष्टि है लगातार
मुझे भविष्य धुंधलके में नज़र आ रहा है.... उसके सारथी आप जैसे युवा ही हैं.
सही दिशा में चलेगा ....... संस्कार रथ..
सुज्ञ जी मैं तो राहुल द्रविड़ की तरह टुक टुक कर ही खेल सकता हूँ यानि की मैं टेस्ट मेच का खिलाडी हूँ. गौरव आपकी टिप्पणियों के क्लस्टर बम का असर घातक होता है शायद इसलिए ही खुद अपने विचारों पर विश्वाश न रखने वाले लोग तुमसे घबराते हैं. कविता अच्छी लगी और सारथी वाला लिंक भी रोचक है. शास्त्री जी के ब्लॉग पर अब बार बार जाना पड़ेगा.
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी,
जवाब देंहटाएंनिर्दोष संस्कारों की पैरवी आपने सही तरह से की
गधे और घोड़े यदि एकभाव बिकेंगे तो गुणवत्ता अपनी महत्ता शीघ्र खो देगी.
सहयोग के साथ सार्थक बदलाव सरल बन जाता है।.... मुझे पसंद आई बात.
सार्थक चर्चा तो शान्त चित से ही होती है, गौरवजी में गज़ब की उर्जा है। तेजी और गम्भीरता का सामंजस्य। मेरे लिये तो ईष्या का कारण है।:)
जवाब देंहटाएंआज प्रातः काल से ही डेस्कटॉप पर आपका विचारशून्य स्थिर सा है।
आपनें तो शानदार बोल(पोस्ट) खेलकर गौरव के पाले में डाल दी थी।
सारथी वाली पोस्ट वाकई विचारणीय है। शास्त्री जी आज कल सारथी पर नियमित नहीं लिखते। पता नहीं क्यों?
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंबशीर बद्र साहब का यह शेर दृष्टव्य है……
किसी की याद में
दहलीज़ पर दीए न रखो,
किवाड़ सूखी हुई
लकड़ियों के होते हैं।
-बशीर बद्र
कौन कहता है कि हिंदी ब्लॉगिंग में सार्थक काम नहीं हो रहा? इतनी स्पांटैनियस और गहरी चर्चा और वो भी सभ्य, शालीन शब्दों में - सभी प्रतिभागी धन्यवाद के पात्र हैं।
जवाब देंहटाएंये एक नॉन सीरियस बंदे का सीरियस और सिंसियर कमेंट है। सहमति असहमति अपनी जगह, लेकिन पोस्ट में और कमेंट्स में जानकारी भी मिल रही है और आनंद भी आ रहा है। रचना जी, गौरव, सुज्ञ जी, प्रतुल भाई, दीप - आप सब एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं कि कैसे बिना लाऊड हुये भी अपनी बात कही जा सकती है।
हैट्स-ऑफ़ टू यू आल।
प्रतिस्पृदा की कंडिशनींग पुरूष वर्ग करता है?
जवाब देंहटाएंsamaj kartaa haen aur purush is liyae doshi bantaa haen kyuki wo kahin naa kahin naari ki pragati mae apnae liyae ek pratidwanditaa daekhtaa haen
नारी-विवेक को चाहिएकि वह निर्मल परिशीलन करे
vivek shiksha sae aataa haen aur uskae saath saath aatm nirbhartaa bhi aatee haen
shikhsha sae nazariya badaltaa haen
sab sae badii baat ki naari kaa vivek kyaa sahii mantaa haen iskae liyae maandand koi aur kaesae banaa saktaa haen
agar samaaj ko jo sahii lagtaa rhaaa haen saalo wo shiksha laene kae baad kisi naari ko sahii nahin lagtaa haen to kyaa hamko us naari ki sochnae ki khsmtaa ko sahii nahin maan laena chahiyae yaa hamko usko kewal galt is liyae maan lena chaiyae kyuki wo "lakeer par nahin chaltee ""
आखिर तो नारी और पुरूष मिलकर ही समाज की इक इकाई बनते है।
jee nahin naari aur purush sae mil kar samaj ki ekaaii nahin bantee haen
ikaii kewal aur kewal pati -patni sae bantee haen
purak naari aur purush nahin haen purak haen pati aur patni
shiksha ne naari ko batyaa haen ki jeevan mae wo boss bhi saktee haen , dost bhi ho saktee haen , subordinate bhi ho saktee haen , yaani naukri kar saktee haen . purush kae aadhar kae bina apna jeevan jee saktee haen aur khush bhi reh saktee
ab agar aap kehtey haen yae soch galat haen kyuki sadiyon sae nahin rahee to mae kahungi " aap kaun hotey haen kisi ki soch ko galat kehane waale " ek shikshit naari ko adhikaar haen ki wo chun sakey ki usae kyaa karnaa haen
conditioning kaa sedha arth hotaa haen naari ko wahii kartey rehna haen jo hotaa aayaa haen
aao sae vinamr aagrh haen kahie jab bhi samay ho naari blog ko ek puraa padhey aap ko bahut kuchh milaegaa is badli soch par ek baar vichaar karnae kae liyae
समय कम है इसलिए सिर्फ पोस्ट पढ़ कर टिपण्णी कर रही हु विद्वान् जनों की टिपण्णी फिर कभी फुरसत में पढ़ लुंगी | ९ साल विवाह के हो गए है बाकायदा हिन्दू रीती रिवाज से अरेंज मैरिज हुआ था , किन्तु बिझिया पायल चूड़ी बस २० दिन पहना और कुछ महीनो बाद सिंदूर भी लगाना बंद कर दिया हम लोगो में मंगलसूत्र पहनने का रिवाज नहीं है, घर में है तो बदल बदल कर कुछ पहनने के लिए बस कभी कभी पहन लेती हूँ | पति के कुछ पूछने से पहले ही उनसे पूछ लिया की की ज्यादा जरुरी क्या है की मै विवाहित दिखू या मै मानु की मै विवाहित हूँ उन्होंने दूसरा विकल्प पसंद कर लिया सो उनकी तरफ से कोई परेशानी नहीं हुई मेरे घरवाले सब मुझे जानते है तो कोई मुझसे इस बारे में कभी पूछा नहीं सुरु में बाहर कभी कोई पूछता तो पति ने जवाब दिया की जब साढ़े पांच फिट का सुहाग जब हर समय साथ मौजूद रहता है तो २ इंच की निशानी की क्या जरुरत है :))))
जवाब देंहटाएंफ़िलहाल ये सब न पहनने से मुझे कोई मानसिक ,शारीरिक, सामजिक ,क़ानूनी पारिवारिक , वैवाहिक, धार्मिक और जीतनी भी परेशानी है वो नहीं हुई | इसलिए मुझे मेरे पति और परिवार को तो कोई फर्क नहीं पड़ता है और इसके बाहर बाकियों की चिंता मै करू क्यों |
होली की आप को और आप के परिवार को शुभकामनाये |
होली पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ|
जवाब देंहटाएं@ अंशुमाला जी,
जवाब देंहटाएंमेरे एक आचार्य हैं. उनके प्रति मेरा अत्यधिक प्रेम और आदर हृदय में रहता है. लेकिन जब भी मिलता हूँ न तो नमस्ते करता हूँ और न ही कोई अभिवादन का शब्द कहता हूँ. और न ही कोई सामाजिक शिष्टाचार के प्रतीक चरण-स्पर्श/ प्रणाम आदि करता हूँ.
वे मुझे अहंकारी मानने लगे. दूसरे शिष्य भी मुझे अशिष्ट और अव्यवहारी कहते हैं. .......... इसका मतलब तो मैं वैसा ही हूँ.
मैं अपने हृदय के आदर-सम्मान को बिना प्रतीकों के दर्शाना चाहता हूँ ......... बताइये कैसे दर्शाऊँ?
शब्द प्रतीक और क्रिया-कलाप प्रतीकों के बिना मुझे कोई अन्य प्रतीक नहीं सूझ पाता........ क्या करूँ?
...
जवाब देंहटाएंव्यैक्तिक धर्म तो हम तोड़-मरोड़कर कैसे भी बना सकते हैं. सामाजिक [सामुदायिक] धर्म यदि प्रतीकों से अनुशासित होता है तो वे स्वीकार्य कर ही लेने चाहिए.
नीति-नियम और बंधन आदि सर्वाधिक उनके लिये निर्धारित होते हैं जिनपर
– दायित्व और कर्तव्यों का अधिक दारोमदार होता है.
– शारीरिक रूप से अधिक कष्ट सहने की संभावनाएँ होती हैं.
[चीटियों में रानी चींटी के लिये अलग कायदे होते हैं. रानी मधुमक्खी अन्य प्रकार की मक्खियों से भिन्न महत्व पाती है. मादा वृश्चिक नर वृश्चिक को मिलन के बाद समाप्त कर देती है ... इन सब बातों का यह मतलब नहीं है कि श्रमिक चींटियों और मजदूर मक्खियों के साथ उनका समाज अन्याय करता आ रहा है.]
वैसे भी चपलता और अबोधता के नुकसान जिस वर्ग को अधिक उठाने पड़ेंगे अथवा शील-भंग का जिसको अधिक सामाजिक भय और खामियाजा उठाना पड़ेगा उसी के लिये तो नियमों और रिवाजों का खूँटा गाढा जाएगा.
मेरी प्रिय बहन अंशुमाला जी
जवाब देंहटाएंशोर्ट में बोलता हूँ
1. जो आपने बताया वो बात तो मैं आपकी नथ पर बनाई पोस्ट देख कर ही समझ गया था :)
2. आज कल लेटेस्ट (आधुनिक युवाओं) का ट्रेंड ये है [हम लोगों का तो गया जमाना ]
http://answers.yahoo.com/question/index?qid=20101114131803AABZ39L
http://www.wisegeek.com/when-should-i-let-my-daughter-get-her-ears-pierced.htm
http://www.howmuchisanosejob.com/qa/how-do-i-convince-my-parents-to-let-me-get-my-nose-pierced/
३. जीजाजी को भी ये चर्चा पढने को बोलियेगा , या शायद जब आपको पता चले की मामला समाज का बाद में स्वास्थ्य का पहले है तो आप खुद ही पहनना शुरू कर दें :))
और वैसे भी ........... अब जमाना बदल रहा है दीदी :)
अभी मुझे बीच में इसलिए बोलना पड़ा क्योंकि .....
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है की जब तक प्रतुल जी, सुज्ञ जी , या मैं (कोई भी संस्कृति से जुड़े हुए पुरुष ) कुछ कहेंगे आप के मन में पहले से मौजूद विचार आपको हितैषी मानसिकता को समझने नहीं देंगे
@रचना दीदी
जवाब देंहटाएंवैसे तो शिक्षा और विवेक पर कुछ बोलना मुझे बहुत अच्छा लगता लेकिन.... क्या फायदा ......फिर से १० - १२ कमेन्ट हो जायेंगे :))
मुझे सुज्ञ जी के उत्तर का इन्तजार है / रहेगा
@सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंअक्सर ग्रुप वाले ब्लोग्स में पाठक (जो समर्थन ना करे ) उसकी योग्यता पर प्रश्न चिन्ह लगाने के असफल प्रयास होते हैं/ हो सकते हैं ...लेखक / लेखिका "बेहद संवेदनशील विषय पर" कुछ भी लिखे सब चलता है :))
दो बेहतरीन ब्लॉग बता रहा हूँ ताकि आप केवल गंभीर लेख पढ़ें और आपको बेवजह मेहनत भी ना करनी पड़े
पुरुष ब्लोगर
http://sarathi.info
महिला ब्लोगर
http://rashmiravija.blogspot.com/
और भी हैं..... लेकिन अभी याद नहीं आ रहे .. बाद में :)
@ सुज्ञ जी , प्रतुल जी , पाण्डेय जी
जवाब देंहटाएंसराहना के लिए ..इसी तरह स्नेह और आशीर्वाद बनाए रखियेगा,
कभी कोई गलती हो तो डाँटने में भी कोई कसर मत छोड़ियेगा
मैं अपने हृदय के आदर-सम्मान को बिना प्रतीकों के दर्शाना चाहता हूँ ......... बताइये कैसे दर्शाऊँ?
जवाब देंहटाएंwhenever he is in some problem just stand with him like a rock and he will understand
and in any case doing namaskaar and wearing mangalsutr are 2 different things
gaurav
i came into bloging in 2004 and in hindi bloging in 2007
sarathi was there in 2007 and i was a regular commentator
start reading that blog from there on read the debates from there on
naari blog was made because at that point of time bloggers used to target woman bloggars and write filth on them WHY because openly we were defying what they were saying
naari blog does not allow comments which are not in favor of woman upliftment { woman upliftment from the eyes , mind and heart of a woman }
we are open to discussions but we dont want readers to read what we think is "retarding " we have no option to delete your comments because they are overloaded with links which we dont think will help in woman empowerment
we would be wrong if we dont inform you before hand and delete your comment we have it right above the comment box so अक्सर ग्रुप वाले ब्लोग्स में पाठक (जो समर्थन ना करे ) उसकी योग्यता पर प्रश्न चिन्ह लगाने के असफल प्रयास होते हैं/ हो सकते हैं ...लेखक / लेखिका "बेहद संवेदनशील विषय पर" कुछ भी लिखे सब चलता है :))is not justified because again the owner / moderator of the blog has right to do what they want
[मुझे ऐसा लग रहा है ......क्या आज आपकी आई डी से कोई और कमेन्ट कर रहा है/ रहीं हैं ]
after this
i felt insulted and stopped relying to your comments i dont think i have ever insulted u or any one one but if you do it again be prepared to "take it back " from me i dont insult and dont accept any comments that insult me or any other woman blogger call me rachna and i am comfotable because when you call someone didi and try to prove that she is not what she is YOU ARE INSULTING THE INDIAN CULTURE
वैसे भी चपलता और अबोधता के नुकसान जिस वर्ग को अधिक उठाने पड़ेंगे अथवा शील-भंग का जिसको अधिक सामाजिक भय और खामियाजा उठाना पड़ेगा उसी के लिये तो नियमों और रिवाजों का खूँटा गाढा जाएगा.
जवाब देंहटाएंyahii haen asmaantaa jiska ham virodh kartey haen
samaj mae purush ko anushaashit karane ki jagah stri ko baediyon sae jakdaa jaata haen
niyam dono taraf barabar ho VARJNAAYE BHI
इसे पढते हुए मूल पे सूद भारी का ख्याल आ रहा है :)
जवाब देंहटाएंबेड़ियों और बंधन में बड़ा अंतर है.
जवाब देंहटाएं'बेड़ियाँ' डाली जाती हैं अन्यों के द्वारा. जिसे परतंत्रता कहते हैं...... पर [अन्य का] + तंत्र {शासन]
'बंधन' स्वीकार किये जाते हैं....स्वयं के द्वारा ......... जिसे स्वतंत्रता कहते हैं. ............ स्व [स्वयं का] + तंत्र [शासन]
स्वयं को कायदों के खूँटे से बाँध लेना............ अर्थात अपने गले में रस्सी डालकर स्वयं को अनुशासित करना.
जब हमारे घर में कोई अबोध और चपल बालक/ बालिका अपने स्वभाव से स्वयं को हानि पहुँचाने लगता है तब घर के बड़े-बूढ़े उसपर कुछ अधिक पाबंदियां लगा देते हैं. जिन पाबंदियों में उनका हित छिपा होता है. ................ बाल मति बेशक यही सोचते हैं कि उनपर अन्याय हो रहा है. परीक्षा के दिनों में बालक अपने मन को मारकर परीक्षा की तैयारी करते हैं...... वे चाहकर भी रोचक क्रिकेट मैच नहीं देख पाते या कोई नयी आ रही फिल्म देख पाते हैं. किसी-किसी बच्चे को अपने अभिभावक कट्टर दुश्मन लगने लगें तो इसका मतलब तो यही है उन माता-पिता को मानवीय अधिकारों का हनन कर्ता मान फाँसी पर लटका देना चाहिए.
बंधन के कुछ अन्य अच्छे प्रयोग देखें ........... रक्षा-बंधन....... गठबंधन ....... आदि जहाँ भी बंधन शब्द पायेंगे अच्छे सन्दर्भ में पायेंगे.
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता को पुनः स्पष्ट कर दूँ ................. स्वयं पर शासन करना 'स्वतंत्रता' है जिसका 'मनमानी करना' अर्थ कतई नहीं है. [स्व+तंत्र]
जवाब देंहटाएंखुद का शासन मतलब खुद के लिये नीति-नियमों का निर्धारण स्वयं करना. दूसरे दखलंदाजी नहीं होती. 'दूसरे' का मतलब यहाँ शत्रु से है और
एक ही समाज में पुरुष 'स्त्री' का शत्रु नहीं हो सकता. [वह अपने किसी स्वार्थवश 'ज्यादती' जरूर कर सकता है.] किन्तु जो सामाजिक बंधन और निष्पाप/ निर्दोष रिवाज हैं उनको स्वयं के लिये हितकर मानकर स्वीकार करना ही चाहिए.
@रचना दीदी
जवाब देंहटाएंवेरी गुड ......
@[मुझे ऐसा लग रहा है ......क्या आज आपकी आई डी से कोई और कमेन्ट कर रहा है/ रहीं हैं ]
इससे आपकी इन्सल्ट हो गयी ????????????? क्या बात है ....... ग्रेट .. चलिए एक ऑप्शन देता हूँ ............क्योंकि आपको "दीदी" कहा है ...... आप चाहें तो अपना पिछला कमेन्ट हटा सकती हैं .. और मैं अपना उत्तर अपने पास रख लूँगा
रही बात "वापसी" की ............मुझे क्या मिलता है इसकी चिंता नहीं है ..मेरी तरफ से भाड़ में जाए ऐसी ब्लोगिंग (जैसी मैं कर रहा हूँ ).....जिसके पास जो होता है वही देता है .. इसीलिए ये "स्नेह" भरा कमेन्ट भेज रहा हूँ ..लेकिन आप को किसी की इन्सल्ट करने कुछ ज्यादा मजा आता हो
लेकिन आप को किसी की इन्सल्ट करने कुछ ज्यादा मजा आता हो ..शायद
जवाब देंहटाएंपुरुषों के लिये भी वर्जनाएँ निर्धारित हैं :
जवाब देंहटाएंराष्ट्र सापेक्ष : 'ब्रह्मचर्य' का विधान पुरुषों के लिये अधिक महात्म्य रखता आया है. आलस्य का त्याग कर शारीरिक शक्ति संचय करना, अपने व्यक्तिगत स्वार्थ का त्याग कर संगठन (देश) के हित में सोचना.
शेष का चिंतन होली खेल लेने के बाद....
@ रचना दीदी
जवाब देंहटाएंलम्बा चौड़ा टाइप मत कीजियेगा
....सिर्फ......
"I AM WAITING FOR YOUR ANSWER "
से काम चल जायेगा
गौरव जी
जवाब देंहटाएंजो इंसान अपने माता पिता का दिया हुआ नाम बदल सकता हैं वो इंसान दूसरो को प्रतीकात्मक चिन्हों से जुड़े रहने की सलाह देता हैं .
यानी अपने लिये तो माँ पिता का दिया नाम भी बदलने मे कोई उज्र नहीं पर अंशुमाला अगर कुछ कहे तो उनके पति को भी पढ़ाया जाए . क्या ये दोहरी मानसिकता
का परिचायक नहीं हैं . माँ पिता जो नाम देते हैं वो महज नाम नहीं होता हैं वो उनके दिये हुए संस्कार होते हैं , वो पहचान हैं की वो हमे क्या देखना चाहते हैं .
आप ने तो वो नाम ही बदल दिया . दोहरी मानसिकताए इंसान को दोहरी जिन्दगी जीने के लिये मजबूर करती हैं जहां हम क्या हैं और क्या दिखाना चाहते हैं दोनों मे अंतर होता
हैं
इसके साथ इस पोस्ट पर ये मेरा आखरी मंथन हैं
सबको होली की बधाई और आशीष
सिर्फ १० मिनट की टाइपिंग .. सिर्फ १० मिनट की ........ और मैं सिद्द कर सकता हूँ जो गलती (इन्सल्ट करने की ) आपने की है उसी का कितना गलत आरोप आपने मुझ पे लगाया है .. सिर्फ कोपी पेस्ट करने की देर है ...... लेकिन सच में पहली बार किसी ने मुझे बिना कोई गलती किये इतना ज्यादा अन्दर तक घायल किया है .. मुझे आश्चर्य है आप पर .. मेरी स्त्री पुरुष समानता आपके लिए दोहरी मानसिकता बन गयी ...मेरा निर्मल विनोद आपका अपमान हो गया .. मेरे "हटाने के अनुरोध के साथ दिए जाने वाले कमेंट्स" हटा कर और नाम ले लेकर ये बता कर की हटा दिए हैं आपको सच्चा सुकून मिला .. पर मैं क़न्फ्युज हूँ
जवाब देंहटाएंकोई पुरुष होता तो अब तक उसे उसकी शैली में जवाब दे देता .. अगर चर्चा में ही जीतना था मुझसे कह दिया होता .. अपनी सोच के इस पहलू से मुझे अवगत करवाने की क्या जरूरत थी आपको ?? आज के बाद किसी भी ब्लोगर (स्त्री) को दीदी बोलते हुए मुझे डर लगेगा .. हाँ ....आज मैं आधुनिक हो गया ..पता नही आपकी बातों का उत्तर कैसे दूँ .....सन्दर्भ (सेव किये पेज ) पास में होना सबकुछ नहीं होता ...... इतना दर्द कभी नहीं हुआ .. सच...... की बोर्ड के अक्षर नाम आँखों की वजह से धुंधले हो रहे हैं .. शायद बस इतना ही ......आभार आपका
एक ब्रेक ले रहा हूँ दोस्तों .. और किसी को भी मेरे दिए स्नेह के बदले मुझे अपमानित करना हो तो वे सभी आमंत्रित है .. मुझे नहीं लगता मैं जवाब दे पाउँगा ..बाद में मेरी ही आत्मा कचोटेगी (पता नहीं क्यों ??)..... काश इश्वर थोड़ी देर के लिए मुझे संवेदना हीन बना देता ...आप ऐसी कोई भी घटना बता सकते हैं / सकतीं हैं आप जो कभी न घटी हो . मैं ईंट का जवाब पत्थर से दूँ तो कैसे? अपनी बहन पर पत्थर फैकना मुझे नहीं सिखाया गया .. अभी तो अपमान की ईंट से हुए मेरे जख्म भर जाएँ वही काफी है
होली की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंअब आयी बात समझ में मुझे , मामला गलत फहमी का है /हो सकता है
जवाब देंहटाएं@i came into bloging in 2004 and in hindi bloging in 2007
sarathi was there in 2007 and i was a regular commentator
start reading that blog from there on read the debates from there on
हाँ तो वहां आपके कमेन्ट देख कर पहुँच जायेंगे ना वो सही पोस्ट पर?? इससे मेहनत कम होगी ?? है ना ! मैंने तो ऐसे ही सुज्ञ जी को दो बेहतरीन ब्लॉग बताये थे और भी बताने वाला था मुझे क्या पता की आपको इसमें क्या बुरा लगा होगा ??? और देखिये मैंने समानता कितनी मेंटेन की है मैंने एक महिला ब्लोगर और एक पुरुष ब्लोगर बताये हैं .. आपका समानता पर ध्यान नहीं जाता शायद ??
@naari blog was made because at that point of time bloggers used to target woman bloggars and write filth on them WHY because openly we were defying what they were saying
इस तरह की जितनी भी पोस्ट हैं वहां मेरे कमेंट्स देख लीजिये और मुझे पता है कारण बता कर प्रचार करने की आवश्यकता नहीं है..और अगर बताना ही है तो ये भी बताइये की बचे समय में हम संस्कृति को पोस्ट में बाँध कर उस पर पत्थर भी फिकवाते हैं .. जब उस रोती हुयी संस्कृति को कोई मलहम (स्पष्टीकरण) लगाने आता है तो उसके कमेन्ट मोडरेट कर लेते हैं मतलब आप एक बार से ज्यादा मलहम नहीं लगा सकते .........एक बार भी अगर रचना जी चाहें तो ही (नयी वाली पालिसी , कुछ दिन पहले तक इतनी सख्ती नहीं थी :)
@naari blog does not allow comments which are not in favor of woman upliftment
आपके अपलिफ्टमेंट की डेफिनेशन यहाँ नजर आ रही है .
कोई नारी गहने ना पहने..... वर्ना अपलिफ्टमेंट रुक जायेगा .
अब संविधान का क्या हुआ ???, एक ब्लॉग बनाते ही अपने ढंग से संविधान बना शुरू कर दिया ना हम सबने??? ........अपनी संस्कृति को बेइज्जत करने का हक़ है क्या उसमें आपको ????
{ woman upliftment from the eyes , mind and heart of a woman }
बहुत इफेक्टिव जबानी जमा खर्च है ..
pragya said... [डिलीट किया गया कमेन्ट ]
गायत्री परिवार द्वारा चलाए गए आन्दोलन को विस्तार से जानना चाहूँगी अग्रवाल जी...
March 1, 2011 10:56 AM
Global Agrawal said... [डिलीट किया गया कमेन्ट ]
@प्रज्ञा जी
मुझे लगता है इन साइट्स पर आपको पूरी अपडेट मिल सकती है
नोट : मैं इस संस्था का किसी भी तरह का सदस्य नहीं हूँ , लेकिन इस तरह के प्रयासों पर रहनी चाहिए (हम सबकी).....पता तो चले कौनसी औषधि इफेक्टिव है समाज में फैली बीमारियों के लिए ????? संस्कृति से स्वतंत्रता या संस्कृति में सुधार :)
http://hindi.awgp.org/?gayatri/news/
www.akhandjyoti.org
Monthly Magazine
www.dsvv.org
University (Dev Sanskriti Vishwavidyalaya)
www.bsgp.org
Cultural Examination (Bharatiya Sanskriti Gyan Pariksha)
www.pragyaabhiyan.info
news portal
मेरी सोच है की किसी भी एक ग्रुप [आध्यात्मिक हो या साइंटिफिक ] जुड़ने से बेहतर इस तरह के सारे के सारे गुप्स से सीख ले कर अपने ही घर या मोहल्ले से सुधार शुरू कर दिया जाये तो और भी जल्दी शुभ परिणाम नजर आ सकते हैं .... है ना ! यही सच्ची स्वतंत्रता है ..निर्गुट .... निष्पक्ष
March 1, 2011 12:11 PM
{यहाँ साइट्स इसलिए ज्यादा दी थी क्योंकि कुछ साइट्स खुल नहीं रही थी, बाकी आपको एक नारी की जिज्ञासा को नहीं दबाना चाहिए }
जारी .................
@we are open to discussions but we dont want readers to read what we think is "retarding "
जवाब देंहटाएंफिर क्यों लेख लिखते हैं उस बात पर आप ??? ..या ये बात सिर्फ कमेन्ट पर ही एप्लाई होती है ??? ये तो असमानता हुयी :)
इस बात में ये कहाँ बताया आपने की हम परंपरा को गलत ढंग से डिफाइन करके , अपमानित करके , लात मार कर हटाने का प्रयास करते हैं (बिना जानकारी के )
एक कचरा बीनने वाला / वाली भी एक्सपर्ट होता/ होती है | वो भी उपयोगी अनुपोयोगी में फर्क समझता/समझती है क्या हम उससे भी गएबीते हैं ???
ये भी पढ़िए ना ..प्लीज :(
2. आज कल लेटेस्ट (आधुनिक युवाओं) का ट्रेंड ये है [हम लोगों का तो गया जमाना ]
http://answers.yahoo.com/question/index?qid=20101114131803AABZ39L
http://www.wisegeek.com/when-should-i-let-my-daughter-get-her-ears-pierced.htm
http://www.howmuchisanosejob.com/qa/how-do-i-convince-my-parents-to-let-me-get-my-nose-pierced/
@we have no option to delete your comments because they are overloaded with links which we dont think will help in woman empowerment
फिर से..... ये "we" कौन है ???
"woman empowerment " शब्द बड़ा धाँसू है लेकिन यहाँ आना चाहिए था ....
हम वही कमेन्ट स्वीकार करते हैं जो हमारे द्वारा बड़ी मेहनत से फैलाए जा रहे "असुरक्षा के माहौल" का आंशिक या पूर्ण रूप से सहयोग करे
note : कमेन्ट के लिए आपके पास सही जानकारी होना जरूरी नहीं :)
@we would be wrong if we dont inform you before hand and delete your comment we have it right above the comment box so अक्सर ग्रुप वाले ब्लोग्स में पाठक (जो समर्थन ना करे ) उसकी योग्यता पर प्रश्न चिन्ह लगाने के असफल प्रयास होते हैं/ हो सकते हैं ...लेखक / लेखिका "बेहद संवेदनशील विषय पर" कुछ भी लिखे सब चलता है :))is not justified because again the owner / moderator of the blog has right to do what they want
आप तब बिलकुल गलत हैं जब कमेन्ट करने वाले ने खुद ही अनुरोध किया है पढ़ के हटाने का भी (अगर जरूरी लगे ) .. आप से ब्लॉग से बेहतर पोलिसी मेरे कमेन्ट की है :)) लेकिन अगर आप इन्सल्ट करने की ठान ले तो क्या पालिसी और क्या एथिक्स ???? ........... सब रोंग चीजें राईट हैं जी बस जो आप कर दें .................सब सही है
(इस लाइन को भी आपने गलत जज कर लिया नारी ब्लॉग के लिए नहीं थी .....ये लिखते वक्त मेरे दिमाग में कुछ और ही चल रहा था)
वही चर्चा है ..अगला कमेन्ट था
जवाब देंहटाएंGlobal Agrawal said...
........ तकलीफ होती है जब सारा दोष संस्कृति (रिचुअल्स )को दे दिया जाता है जिन्हें हम ठीक से समझ भी नहीं पाए या अन्याय की वजह के स्थान पर पुरुषों के प्रति लेखों में आक्रोश नजर आता है ...क्योंकि इस तरह तो हल नहीं निकलना
समय मिले तो ये भी पढियेगा
http://my2010ideas.blogspot.com/2011/02/01.html
स्पष्टीकरण : क्षमा चाहता हूँ , मुझे अपने ही ब्लॉग का लिंक देना पड़ रहा है .. इस आधार पर ये टिपण्णी (पढने के बाद) हटाई भी जा सकती है ..लेकिन इसे किसी तरह का ब्लॉग प्रचार ना समझें
March 1, 2011 12:22 PM
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दीदी ने एक कमेन्ट किया, जिसमें मुझे एथिक्स के बारे में बताया गया :)) , मुझ बेवकूफ को लगा दीदी नाराज हो गयी ....लेकिन या तो वो माइंड गेम था या दीदी ने मेरा कमेन्ट पूरा पढ़ा ही नहीं था .... आप लोग तो पढ़ रहे हैं ना !
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मैंने फिर से एक कमेन्ट किया जिसमें नाराज ना होने की की प्रार्थना की ...... फिर से ! :(
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तब दीदी ने अपना खुद का एथिक्स सिखाऊ कमेन्ट हटा कर ये गैर जरूरी कमेन्ट किया
रचना said...
राजन अगर मेरा कहा याद आ जाता हैं है तो दूर कहां हूँ . एक मेल भी दी थी आप को शायद मिलीं नहीं स्पाम मे देखे . हां आप का स्नेह बना रहे यही आग्रह हैं आप जैसे लोग ही प्रेरणा हैं नयी पीढ़ी आप से ही हैं .
स्नेह आशीष के साथ
गौरव
नाराज होने का प्रश्न नहीं हैं हां कमेन्ट वही अब पुब्लिश होगे जो नारी के प्रति सोच को आगे ले जा सकने मे सहायक होगे
आशीष
March 1, 2011 4:09 PM
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{शायद दीदी मेल वाली बात पर नाराज हो गयी लेकिन मेरा मतलब इस बात से नहीं था :)) इतनी छोटी सोच नहीं है मेरी }
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दीदी [मेरा ये कमेन्ट भी मोडरेट कर लिया गया]
मैंने आपके पिछले कमेन्ट को (जो आपने हटा दिया है को पढ़ कर नाराज ना होने की बात कही थी) अगर आप को आपके ब्लॉग पर मुझे "पिछड़ी सोच का" ही कहना है तो साफ़ शब्दों में कह दीजिये , कोई परेशानी नहीं है ...... या तो अपने कमेन्ट ना हटाया करें या फिर नाम लेकर ये न बताया करें की आपने मेरे कमेन्ट हटा दिए हैं .. इस सम्मान के लिए आभारी हूँ और अगर आप चाहें तो कमेन्ट हटाने में भी समानता दिखाएँ
@ जो इंसान अपने माता पिता का दिया हुआ नाम बदल सकता हैं वो इंसान दूसरो को प्रतीकात्मक चिन्हों से जुड़े रहने की सलाह देता हैं .
जवाब देंहटाएंहाँ तो दोस्तों, लोग अब मुझे और मेरी प्रोफाइल को भी सीरियसली लेने लगे .. अच्छा होता मेरी बातों को वो सीरियसली लेते तो उन्हें ये कुतर्क करने की जरूरत ही ना पड़ती :) ..जिसको कुछ ना मिले मेरी प्रोफाइल पर चढ़ाई कर देता/देती है ..अब आप फिर से शुरू मत हो जाना ये भी कईं बार हो चुका है :))
{आपको आपके ब्लॉग पर इसका संस्कृति से रिलेटेड कारण बता दिया था, मेरे लोजिक कहते हैं की संस्कृति हम सबकी माँ है ..तब ही कुछ कह दिया होता आपने??? पर इन्सल्ट करने का मजा कहा आता ?? और क्या लगता है इससे किसी की इन्सल्ट हो सकती है ???? एक असफल प्रयास }
@यानी अपने लिये तो माँ पिता का दिया नाम भी बदलने मे कोई उज्र नहीं पर अंशुमाला अगर कुछ कहे तो उनके पति को भी पढ़ाया जाए . क्या ये दोहरी मानसिकता का परिचायक नहीं हैं
इसे कहते हैं
"कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा चर्चा में हमने विषय को छोड़ा" ..
वैसे अंशुमाला जी को बुरा लगा या नहीं ये उन्होंने आपको बताया या ये आपका अपना दिव्य ज्ञान है ??
सॉरी जीजाजी , सॉरी अंशुमाला दीदी , अगर आप साथ साथ पढेंगे तो असामनता फैलने का खतरा है (पता नहीं कैसे?? पर है .. तो है )
@दोहरी मानसिकताए इंसान को दोहरी जिन्दगी जीने के लिये मजबूर करती हैं जहां हम क्या हैं और क्या दिखाना चाहते हैं दोनों मे अंतर होता हैं
बात तो सही कही लेकिन इसका करूँ क्या ???? असुरक्षा की भावना कर सुरक्षा की बात करना..... कैसी मानसिकता है ?????
@इसके साथ इस पोस्ट पर ये मेरा आखरी मंथन हैं
.....जिससे विष निकालने की पूरी कोशिश की है :) लेकिन ये आपका ब्लॉग नहीं है दीदी ....यहाँ अमृत ही निकलेगा ..और जहां अपना कमेन्ट पूरी तरह हटा दिया फिर नाम ले ले कर बताया की "देखा! तेरे कमेन्ट हटा दिया हमने"
@सबको होली की बधाई और आशीष
वैसे आपने किस मानसिकता से दिया है मैं समझ सकता हूँ .....फिर भी रख लेता हूँ :)
[मुझे ऐसा लग रहा है ......क्या आज आपकी आई डी से कोई और कमेन्ट कर रहा है/ रहीं हैं ]
जवाब देंहटाएंafter this
i felt insulted and stopped relying to your comments i dont think i have ever insulted u or any one one but if you do it again be prepared to "take it back " from me i dont insult and dont accept any comments that insult me or any other woman blogger call me rachna and i am comfotable because when you call someone didi and try to prove that she is not what she is YOU ARE INSULTING THE INDIAN कल्तुरे
इसका उत्तर देना रहा गया था .....
फिर अगली पोस्ट बनायी.... दीदी ने कन्या दान पर डोनेशन शब्द को लीड बना कर, ये नारियों को वस्तु कहना चाहती थी (अब मैं ठहरा दीदी दीदी बोलकर उनका अपमान[?] करने वाला ) लोग समर्थन विरोध दोनों कर रहे थे .. मैंने पिछली बाते हमेशा की तरह भुलाते हुए एक कमेन्ट कर दिया ....इस बार सिर्फ एक (हटाने का अनुरोध नहीं था ).......दीदी ने सुज्ञ जी का कमेन्ट पब्लिश किया मेरा नहीं .. दोनों एक जैसी ही दिशा में थे .. अब क्योंकि इश्वर ने सारा बढ़प्पन मुझे ही दे रखा है मैंने ब्लॉग, पोस्ट, या लेखिका का नाम लिए बिना मेरे ब्लॉग, अमित भाई के ब्लॉग, और पाण्डेय जी के ब्लॉग पर कन्यादान की जानकारी से रिलेटेड कमेन्ट कर दिए पोस्ट नहीं बनायी :( ...बनाता भी तो भी .....कहाँ से, क्यों बनायी है ?? ये मैं नहीं बताता क्योंकि मैं "नारी ब्लॉग" के रूप में किया गए प्रयास का सम्मान कुछ कारणों से करता हूँ .. और नैतिकता की पराकाष्ठा देखिये मेरा कमेन्ट पब्लिश होते ही मैंने सभी ब्लोग्स से कन्यादान की जानकारी वाले अपने कमेन्ट भी हटाये :(
बाकी सच में मुझे आपके ब्लॉग से कोई शिकायत नहीं थी , आपने बेकार में ओवर रिएक्ट कर दिया :(
oh my lord oh my lord oh my lord
lord = लोर्ड मेकाले
अब मुझे पूरा यकीन है आज आपकी आई डी किसी ओर ने यूज नहीं की है :)
@सभी से
जवाब देंहटाएंमैं सबका सम्मान करता हूँ .. और आगे भी करूँगा चाहे किसी को बुरा लगे ..लेकिन प्लीज आप मेरी विनम्रता का मजाक मत उड़ाइए , मेरी ओर से ये बात यहीं ख़त्म होती है , पोस्ट पोस्ट खेलने की मेरी कोई इच्छा नहीं है . आगे जिसकी जैसी मर्जी
हौसलों से उड़ान होती है ----- एक स्त्री का संघर्ष
जवाब देंहटाएंhttp://naarijagat.blogspot.com/2011/03/blog-post.html
दोस्तों चर्चा जारी रखियेगा ..... मेरी तो किस्मत ही ऐसी है :) .. आप लोग सीरियस मत होना :)
जवाब देंहटाएंचलिए मैं ही शुरू कर देता हूँ
जवाब देंहटाएंभारत हजारों वर्ष प्राचीन सभ्यता है। विश्व का प्राचीनतम ज्ञानकोष ऋग्वेद इसका साक्ष्य है। भारतीय सभ्यता का विकास अंधआस्था या किसी अदृश्य ईश्वरीय संदेशवाहक की उद्घोषणा से नहीं हुआ। ऋग्वेद में विचार विविधिता है। परिपूर्ण वैचारिक जनतंत्र है। संसार को उत्सवधर्मा, उल्लासधर्मा बनाने की ऋषि अभिलाषाएं है। ऋग्वेद भारत में उगा। विज्ञान, चिकित्सा और सुख समृद्धि के कर्म तप अथर्ववेद में है। उपनिषद् विश्व दर्शन का आकाश है। दुनिया का पहला ‘अर्थशास्त्र’ ग्रंथ कौटिल्य ने लिखा, काम (यौन) व्यवहार पर विश्व का प्रथम ग्रन्थ वात्स्यायन ने यहीं रचा। भाषा अनुशासन पर प्रथम ग्रन्थ पाणिनि ने लिखा। चिकित्सा विज्ञान पर ‘चरक संहिता’ की प्राचीनता सर्वविदित है। अभिनय कला पर भरत मुनि का नाट्यशास्त्र’ के सामने आधुनिक हालीवुड और बालीवुड के अभिनय सूत्र बौने हैं।
भारतीय संस्कृति और दर्शन की प्रशंसा अंग्रेजों, जर्मनों ने भी की थी। गांधी जी ने विलियम विल्सन हंटर की किताब ‘इण्डियन अम्पाइर’ से तमाम तर्क खोज निकाले थे। एच0एस0 मेन ने बीज गणित अंकगणित की प्राचीन भारतीय क्षमता की प्रशंसा की थी कि दशमलव प्रणाली के आविष्कार का उनका हम पर ऋण है। अरबांे ने ये अंक हिन्दुओं से लिए और यूरोप में फैलाए। अरब चिकित्सा प्रणाली की बुनियाद संस्कृत ग्रंथों के अनुवाद पर रखी गयी। (सम्पूर्ण गांधी वाड्मय, 1.185) जर्मन विद्वान मैक्समुलर वेदों और भारतीय दर्शन पर मोहित थे, एक अन्य जर्मन विद्वान शापेन हावर ने उपनिषदों के बारे में लिखा था “सारे संसार में मूलतत्वों को छोड़कर और किसी वस्तु का अध्ययन इतना लाभदायक नहीं है जितना उपनिषदों का।” गांधी जी ने ऐसे सभी अंश संजो रखे थे। (सम्पूर्ण गांधी वाड्.मय 1.183-84)
जवाब देंहटाएंगांधी जी आहत थे कि ऐसी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के उत्तराधिकारी पश्चिम की कथित आधुनिक सभ्यता के मोह जाल में हैं। उन्होंने ‘हिन्द स्वराज’ को ‘आधुनिक सभ्यता की टीका’ का उपकरण बनाया और लिखा, “मेरी पक्की राय है कि हिन्दुस्तान अंग्रेजों से नहीं, बल्कि आज कल की सभ्यता से कुचला जा रहा है, उसकी चपेट में वह फंस गया है।” (हिन्द स्वराज, वही, पृष्ठ 44) मैकाले भारत को ईसायत में बदलना चाहता था। मैकाले की निगाह में भारत के लोग कमजोर, आलसी और अर्द्धसभ्य थे। गांधी को यह बात बहुत अखरी। उन्होंने हिन्द स्वराज (पृष्ठ, 46) मेें लिखा, “मैकाले ने हिन्दुस्तानियों को नामर्द माना, वह उसकी अधम अज्ञान दशा को बताता है। हिन्दुस्तानी नामर्द कभी नहीं थे। आप कभी खेतों में गये हैं? मैं आपसे यकीनन् कहता हूं कि खेतों में हमारे किसान आज भी निर्भय होकर सोते हैं, जब कि अंग्रेज और आप वहां सोने के लिए आनाकानी करेंगे। बल तो निर्भयता में है।” गांधी जी अंग्रेजी सत्ता से टकरा रहे थे। यह बात प्रत्यक्ष है लेकिन गांधी जी अंग्रेजी सभ्यता से ही टकरा रहे थे, यह तथ्य हिन्द स्वराज में है
जवाब देंहटाएंगांधी ने अंग्रेजी सभ्यता को मानवता विरोधी कहा और लिखा “यह सभ्यता तो अधर्म है और यह यूरोप में इतने दर्जे तक फैल गयी है कि वहां के लोग आधे पागल जैसे देखने में आते हैं। उनमें सच्ची कूवत नहीं है, वे नशा करके अपनी ताकत कायम रखते हैं। एकान्त में वे बैठ ही नहीं सकते। जो स्त्रियां घर की रानियां होनी चाहिए, उन्हें गलियों में भटकना पड़ता है, या कोई मजदूरी करनी पड़ती है। इंग्लैण्ड में ही चालीस लाख गरीब औरतों को पेट के लिए सख्त मजदूरी करनी पड़ती है। (वही पृष्ठ 40) गांधी यहां निरे राष्ट्रवादी या अहिंसावादी ही नहीं हैं। वे आक्रामक योद्धा हैं। वे अंग्रेजी सभ्यता को भारत के लिए खतरनाक बताते हैं, स्वयं इंग्लैड के लिए भी खतरनाक बताते हैं। वे भारत के कुछ हिस्सों में इस सभ्यता के न पहुंचने के सुखद परिणाम भी बताते हैं “और जहां यह चांडाल सभ्यता नहीं पहुंची है वहां हिन्दुस्तान आज भी वैसा ही है। उसके सामने आप अपने नये ढोंगों की बात करेंगे, तो वह आपकी हंसी उड़ायेगा। (वही पृष्ठ 63) गांधी जी ने अंग्रेजी सभ्यता के लिए चाण्डाल सभ्यता का आक्रामक प्रयोग किया है। गांधी विचारधारा को “मजबूरी का नाम महात्मा गांधी” बताने वाले आधुनिकतावादियों को ‘हिन्द स्वराज’ जरूर पढ़ना चाहिए।
जवाब देंहटाएंhttp://www.janadesh.in/innerpage.aspx?Story_ID=1299%20&Parent_ID=16&Title=%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%B8%E0%A5%8C%20%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%B8
[जो कमेन्ट अनावश्यक लगे हटाया जा सकता है ]
ये दो वीडियो इन्डियन लोग ही देखें ब्लॉग के नाम में "इंडियन" रख लेने से कोई इन्डियन (सही मायनों में ) नहीं हो जाता और अगर आप अपने ब्लॉग के अनुसार मानसिकता नहीं रखते तो आप दोगले हैं .. सही मायनों में दोगले एक दम ओरिजिनल वाले दोगले
जवाब देंहटाएंhttp://www.youtube.com/watch?v=PhEAtzHFTUU
http://www.youtube.com/watch?v=aIecM-osSjg
{इस वीडियो में
बोम = अभी तक किये कमेन्ट
केमिकल और शार्पनर = चुभने वाले बातें जो सच भी हों }
अपनी बात कहने के लिए दूसरे को ढाल ना बनाएं + उन पर दबाव ना बनाएं .. मैंने विनोद उन्ही लोगों से करता हूँ जिनका और मेरा व्यवहार ऐसा रहा है, नाम बदले की वजह से दो बार मुझे (मुझसे पूछे बिना) एक दो बार विवाहित बता दिया गया है मैंने उनसे कुछ नहीं कहा मुझे पता है इन बातों इश्यू बनाना किनी छोटी सोच है .. मेरी तो नहीं है
ये दो वीडियो इन्डियन लोग ही देखें ब्लॉग के नाम में "इंडियन" रख लेने से कोई इन्डियन (सही मायनों में ) नहीं हो जाता और अगर आप अपने ब्लॉग के अनुसार मानसिकता नहीं रखते तो आप दोगले हैं .. सही मायनों में दोगले एक दम ओरिजिनल वाले दोगले
जवाब देंहटाएंhttp://www.youtube.com/watch?v=PhEAtzHFTUU
http://www.youtube.com/watch?v=aIecM-osSjg
{इस वीडियो में
बोम = अभी तक किये कमेन्ट
केमिकल और शार्पनर = चुभने वाले बातें जो सच भी हों }
अपनी बात कहने के लिए दूसरे को ढाल ना बनाएं + उन पर दबाव ना बनाएं .. मैंने विनोद उन्ही लोगों से करता हूँ जिनका और मेरा व्यवहार ऐसा रहा है, नाम बदले की वजह से दो बार मुझे (मुझसे पूछे बिना) एक दो बार विवाहित बता दिया गया है मैंने उनसे कुछ नहीं कहा मुझे पता है इन बातों इश्यू बनाना कितनी छोटी सोच है .. मेरी तो नहीं है
और हाँ .....
जवाब देंहटाएंपिछले वीडियों में
महान नेता = बड़े ब्लोगर (ब्लोगिंग एज के हिसाब से/एज के हिसाब से/ दोनों एज के हिसाब से)
एक बात और ......
जवाब देंहटाएंपिछले कमेन्ट के पहले वीडियो में
( कुछ इस तरह से भी देखें )
जबरदस्ती खिलाया जा रहा खाना = आधुनिकता (वेलेंटाइन आदि से ले सकते हैं )
अजय देवगन = आज का हर युवा जो देशभक्त है (नास्तिक / आस्तिक दोनों )
भूख हड़ताल = भविष्य में नुकसान देने वाली आधुनिकता को ग्रहण ना करना / विरोध करना (अन्य देशों में हुए परिणाम का अध्ययन करने के बाद )
(ये अर्थ इसलिए बताने पड़ रहे हैं की फिर से कोई नयी "छोटी सोच" का सामना ना करना पड़ जाए )
(ये बात मैं बताना नहीं चाहता था )
पिछले कुछ दिनों पहले हुयी एक दुर्घटना में कुछ इन्जरी हुयी थी इस लिए ब्लोगिंग शुरू की थी २०११ में .... अब मैं ठीक भी हो गया हूँ , मेरी छुट्टियां भी ख़त्म होने वाली हैं
उम्मीद है आप लोग मेरी बातों और विचारों पर विचार शून्य हो कर सोचेंगे ,
वन्दे मातरम्
दुखद है, शनिवार शाम ही मेरा नेट खराब हो गया।
जवाब देंहटाएंऔर रचनाजी का वह कमेंट देख ही न पाया जिस पर मुझे प्रत्युत्तर देना था। अब तो देर हो चुकी।
लेकिन रचना जी,
उसके बाद जो कुछ भी पढा……… मुझे साहस से यह कहना ही पडेगा कि आपकी विचारधारा में अन्य दृष्टिकोण के लिये कोई जगह नहीं है।
किसी सार्थक विचार पर कोई सहानुभूति नहीं है। आपकी दृष्टि एकांतिक हो गई है। अनेक पहलुओं से विचार को आपने निषेध कर रखा है। अत: आपके नारी सम्मान व समानता पर चर्चा बाधित ही रहेगी।
नारी अन्याय कर आक्रोश व्यक्त करना अच्छी बात है। समाज से असमानता दूर करने के लिये प्रयासरत रहना उससे भी प्रसंशनीय कार्य है। पर उन विचारों को नफरत की हद तक ले जाना, दुर्भाग्यपूर्ण है।
आपने गौरव जी के नाम परिवर्तन पर माता-पिता के दिए नाम से जोडकर उलहाना सा दिया?
मैं तो समझ रहा था, माता-पिता शब्द में पुरूष-प्रधान पिता शब्द देखकर आप कहने वाली हों कि यह पुरूष-पिता कौन होता है हमारा नाम निर्धारित करनेवाला????
पर लगता है मात्र विरोध के लिये ही विरोध करने के आक्रोश में यह तथ्य आपकी दृष्टि में न आया।
रचाना जी,
जवाब देंहटाएंआपका प्रत्युत्तर कमेंट, विषय को भिन्न दिशा दे रहा है। उसपर पुनः प्रतिक्रिया करना आवेश बढाना ही होगा। अत: उसपर प्रतिक्रिया न करते हुए, आपके अन्तिम कथन्…
aao sae vinamr aagrh haen kahie jab bhi samay ho naari blog ko ek puraa padhey aap ko bahut kuchh milaegaa is badli soch par ek baar vichaar karnae kae liyae
मैं अक्सर नारी ब्लॉग पढता हूँ, और कई समास्याओं को सही इंगित किया भी जाता है। पर कभी कभी पाता हूं कि बात को समग्र पहलू से नहीं परखा गया। और दृष्टिकोण रखने की तीव्र इच्छा भी होती है। लेकिन वहां भिन्न विचारों को बाधित किया गया है। सार्थक चर्चा को वहाँ अवसर ही नहीं है।
suyagya ji
जवाब देंहटाएंआपने गौरव जी के नाम परिवर्तन पर माता-पिता के दिए नाम से जोडकर उलहाना सा दिया?
kyuki pehal unhonae ki yahaan bhi
जो समर्थन ना करे ) उसकी योग्यता पर प्रश्न चिन्ह लगाने के असफल प्रयास होते हैं/ हो सकते हैं ...लेखक / लेखिका "बेहद संवेदनशील विषय पर" कुछ भी लिखे सब चलता है
[मुझे ऐसा लग रहा है ......क्या आज आपकी आई डी से कोई और कमेन्ट कर रहा है/ रहीं हैं ]
aur mae ek ebhas mae haasya , majaak ityadi nahin kartee hun
behas kaa arth hota haen us samay ho rahey samvad par baat karna jo ki hindi bloging mae sambhav hae hi nahin kyuki yaahaan baat ghuma kar kii jaatee haen aur agar seedhi baat kaho to log bura maantey haen
jab aap kisi kae upar vyang karae aur uski identity par ??? lagayae to apni identity par question mark sae kyun timilaahat honi chaiyae
koi bhi agar behas karna chahtaa haen to usko ek kement daene kae baad baaki logo kae kament kaa intezaar to karna hi chaiyae aur vyaktigat kament karae to jwaab sunanae kae liyae bhi tayaar hona hogaa
रचना जी,
जवाब देंहटाएं@"क्या ये दोहरी मानसिकता का परिचायक नहीं हैं . माँ पिता जो नाम देते हैं वो महज नाम नहीं होता हैं वो उनके दिये हुए संस्कार होते हैं , वो पहचान हैं की वो हमे क्या देखना चाहते हैं ."
दोहरी मानसिकता????????
संस्कार के प्रतीक 'नाम' का समर्थन?
पिता के थोपे संस्कारों का समर्थन?
माता-पिता सुशीला नाम देते है,शीला नाम देते है। क्या वे सद्चरित्र को बाध्य करते प्रतीत नहीं होते? और उनके प्रयासों का क्या होता है जब कोई बुरी मानसिकता वाला "शीला की जवानी…" गीत रचकर प्रसारित कर देता है। और कोई शीला सुशील होते हुए भी उस दिन को भांड्ती जब माता-पिता ने यह नाम दिया होगा।
नाम परिवर्तन कई महापुरूष, लेखक, कवि और साधु आदि करते है। यह माता-पिता का अपमान नहीं होता।
@रचना दीदी
जवाब देंहटाएं@kyuki pehal unhonae ki yahaan bhi
आपके मन में अपराध बोध है किसी को अपमानित करने इसीलिए ये परेशानी खड़ी हुयी है .. हो सके तो अपने ब्लॉग पर जा कर मेरा रीसेन्ट कमेन्ट भी चेक करें , मैं आपके ब्लॉग के प्रयासों की सराहना की कर रहा हूँ
@aur mae ek ebhas mae haasya , majaak ityadi nahin kartee hun
यहाँ आपकी नहीं अंशुमाला जी की बात हो रही है , जिन्हें आपने ढाल बनाया है
और ये किसने कहा
@"बहुत ना इंसाफी हैं कालिया "
@behas kaa arth hota haen us samay ho rahey samvad par baat karna jo ki hindi bloging mae sambhav hae hi nahin kyuki yaahaan baat ghuma kar kii jaatee haen aur agar seedhi baat kaho to log bura maantey haen
हो सके तो इस बात पर नजर डालिए नियम बोलना आसान है पालन करना मुश्किल .. है ना !
आपने नहीं कहा था की ....
@क्या आप को लगता हैं की ये गलत हैं या अगर एक डॉक्टर ने मगल सूत्र उत्तार कर बाहर रख दिया तो उसके पति का अनिष्ट होगा
गौरव होनी अनहोनी इष्ट अनिष्ट हो कर रहते हैं इनको रोकना असंभव हैं
@koi bhi agar behas karna chahtaa haen to usko ek kement daene kae baad baaki logo kae kament kaa intezaar to karna hi chaiyae
मैंने जो पहला कमेन्ट सन्दर्भ दिया है वो काफी बाद में किये गए कमेन्ट में से है , पाठक की जिज्ञासा को दबाना दुर्भावना फैलाना है
@aur vyaktigat kament karae to jwaab sunanae kae liyae bhi tayaar hona hogaa
मान गया आपके कोंफीडेंस को अगर आप अंशुमाला जी की बात कर रही हैं तो सुज्ञ जी बेहतर बता सकते हैं की हम भाई बहन में ये विनोद चलता रहा है
@गौरव होनी अनहोनी इष्ट अनिष्ट हो कर रहते हैं इनको रोकना असंभव हैं
जवाब देंहटाएंमैंने यहाँ ज्योतिष का ज्ञान नहीं दिया था और आपने फैसला भी कर लिया था की शायद मैं कोई अन्धविश्वासी हूँ
रचना जी,
जवाब देंहटाएंयह जरूरी तो नहीं कि हमें बुरा लगा तो, सार्थक चर्चा को ताक पर रख कर किसी को तिलमिलाया ही जाय।
क्योंकि आवेश किसी समस्या का समाधान नहीं होता। ईट का जवाब पत्थर से वाली कहावत कमसे कम शांति तो नहीं लाती।
सम्वाद और सार्थक चर्चा, कमसे कम परिवर्तन लाने के इच्छुक व्यक्तित्व के लिये अतिआवश्यक है।
@aur vyaktigat kament karae to jwaab sunanae kae liyae bhi tayaar hona hogaa
जवाब देंहटाएंअगर आपने व्यक्तिगत कमेन्ट किया होता तो शायद में इग्नोर कर देता लेकिन माता पिता को शामिल करना आपके बात को कुतर्क बना रहा है ... और बनाता जा रहा है ....आपको नहीं लगता कुछ ज्यादा ही बर्दाश्त कर रहा हूँ मैं ???
( अब अंशुमाला जी की बात मत कीजियेगा उत्तर दे चूका हूँ उस बात का)
मैं आपसे अनुरोध कर रहा हूँ मुझसे / मेरे बारे में बहस करना बेकार है
@ सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंइनके पास मुझे कोई कारण नजर नहीं आ रहा बुरा लगने का , जिसें बुरा लगना चाहिए वो इन सबको दीदी दीदी बोल बोल कर पागल हुआ फिरता है .. गाँवडेल , गवार पिछड़ी मानसिकता का "ग्लोबल " यानी मैं खुद .. मुझसे ज्यादा आधुनिक आज मुझे वो नजर आ रहे हैं जो "कन्यादान" की बुराई के बहाने पूरी नारी जाति को "वस्तु" बोल देते/ देतीं हैं , या वैज्ञानिकता झाड़ने के लिए पशु से तुलना कर देते/ देतीं हैं या बेनामी प्रोफाइल से कमेन्ट कर के अपनी भड़ास निकालते/ निकालतीं हैं .. पर मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाला क्योंकि मैं ओरिजिनल आस्तिक हूँ १०० प्रतिशत शुद्द भारतीय आम आदमी .....जो जानता है की नेचर हमारे मन में आये हर भाव को नोट कर रही है......... हर पल ...हर क्षण .. चर्चा में में जीत हार अलग बात है और उस परम सत्ता के निगाह में हार जीत अलग बात है
लात मारता हुआ ऐसी ब्लोगिंग को .....
जवाब देंहटाएं.....जैसी मैं कर रहा हूँ ..मैंने आज की पोस्ट भी हटा ली है खुश हो जाईये सभी आधुनिक लोग
जवाब देंहटाएंअब आप इधर उधर के लिंक जमा कर के मुझ पर पोस्ट बनाइये..... ये अगला तरीका है ...
जवाब देंहटाएंशायद अभी तो मेरा ऑफ़ लाइन होना ही बेहतर है .......लगता है ये चाहते हैं मैं कुछ बोलूं जिस पर ये पोस्ट बना सकें.. इस वक्त दिमाग शांत रखना ज्यादा जरूरी होगा मेरे लिए
जवाब देंहटाएंगौरव जी,
जवाब देंहटाएंआप भी आवेश में न आएँ, पर वह प्रतिक्रियात्मक पोस्ट हटा कर आपनें अच्छा ही किया। हम आपको संस्कृति संरक्षक के लेबल में ही देखना चाहते है, किसी पुरूष अन्याय के पहरूए के लेबल में नहीं।
इतनी नफरत तो नहीं ही फ़ैलनी चाहिए कि नारी-पुरूष विद्रोह एक युद्ध में बदल जाय। और प्रकृति एवं समाज की रचना खण्ड खण्ड हो जाय। अन्यथा हम स्वयं को कभी माफ न कर पायेंगे। और इतिहास हमें माफ न करेगा। दोनो का सह अस्तित्व ही सृष्ठि है।
@ सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएं@वह प्रतिक्रियात्मक पोस्ट हटा कर आपनें अच्छा ही किया।
वैसे तो कृष्ण पर पोस्ट पब्लिश की थी (अमित भाई के ब्लॉग से प्रेरित हो कर) लेकिन उसमें कृष्ण स्त्री रक्षक के रूप में नजर आ रहे थे|अब मैंने सोचा ये तो पक्का प्रतिक्रिया ही मानी जायेगी तो सोचा चलो एक बार पोस्ट ही बना दें की "आंकड़े कहते हैं पुरुष भी वही पीड़ा झेलते हैं जो स्त्री".... ये बात तो सही है की वो पोस्ट मेरे मूल स्वभाव से मेच नहीं करती :) लेकिन बेमतलब के आरोप से निर्णय शक्ति प्रभावित हो ही जाती है ..वो पोस्ट भी बुरी नहीं थी :)
@हम आपको संस्कृति संरक्षक के लेबल में ही देखना चाहते है, किसी पुरूष अन्याय के पहरूए के लेबल में नहीं।
इश्वर का आभारी हूँ की उसने मुझे चापलूस रीडर्स नहीं दिए बल्कि सीधी साफ़ बात करने वाले मित्र दिए ..... आभारी हूँ
@इतनी नफरत तो नहीं ही फ़ैलनी चाहिए कि नारी-पुरूष विद्रोह एक युद्ध में बदल जाय। और प्रकृति एवं समाज की रचना खण्ड खण्ड हो जाय। अन्यथा हम स्वयं को कभी माफ न कर पायेंगे। और इतिहास हमें माफ न करेगा। दोनो का सह अस्तित्व ही सृष्ठि है।
बाकी सुज्ञ जी कही बातें (जो मेरे मूल स्वभाव में हमेशा से शामिल हैं ) सब लोग सुन रहे है ना ?? :)
@सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंऔर लेटेस्ट ट्रेंड के लिंक्स दूँ आपको ?? :)
ये रहे ...
नया ज़माना
चाहे नाक छिदवाना
कहने को बदला है ज़माना .... लेकिन खुद को आधुनिक बोलने भर से कोई आधुनिक थोड़ी होता है........ है ना !
कुछ और लिनक्स
http://answers.yahoo.com/question/index?qid=20090430083715AAEfN4S
http://www.nose-piercings.com/nose-piercing.html
http://noquestionleftbehind.blogspot.com/2009/05/nose-piercing-and-parents.html
यहाँ तो ढेरों हैं
http://parents.berkeley.edu/advice/teens/piercing.html
अब तो मुझे आधुनिकता का लेबल मिलना ही चाहिए :))
जवाब देंहटाएंआधुनिका अमर रहे :)
"आधुनिकता" के नाम पर "रुढ़िवादी" अपना जाल फैलाना बंद करें तो बड़ा अच्छा होगा :)
सुधार:
जवाब देंहटाएंआधुनिकता अमर रहे :)
दीप पाण्डेय जी,
जवाब देंहटाएंसूत्रधर की भूमिका निभाएं, शायद कुछ देर और सार्थक चर्चा जारी रहे।
और आपके विचार शून्य ज़िम में कुछ और बौद्धिक कसरत करें।
.
जवाब देंहटाएंहुआ किस तरह का ये मंथन
नर-अन्नर संग्राम ठना.
निकल रहे थे रत्न-विमर्शी.
सहसा विष संवाद सना.
अमृत तो सब पी लेते हैं
'नीलकंठ' विषपायी बना.
'बंधन' उसके लिये बने हैं
जो जकड़न में रहे तना.
.
.
.
विचारशून्य मंदराचल पर्वत
ग्लोबल-रचना नर-अन्नर*.
सुज्ञ बने हैं नाग वासुकी
सब पाठक जाते डर-डर.
_________
अन्नर - नारी
.
पिछली बार अपनी पोस्ट पर मैंने जो अंतिम कमेन्ट देखा था वो "मो सम कौन" संजय जी का था जिसमे उन्होंने सार्थक चर्चा पर अपनी टोपी उतार दी थी. उसके बाद मैं दिल में तस्सली लेकर पत्नी के साथ गुजिया बनाने में व्यस्त हो गया था. होली हो ली और भंग, रंग उतरने के बाद जब वापस आया तो बाबा अपनी टोपी ही उतारी दिखी.
जवाब देंहटाएंरचना जी, सुज्ञ जी,प्रतुल और गौरव आप सभी ने अपना बहुमूल्य समय देकर मेरे विचारों को विस्तार दिया जिसके लिए मैं आभारी हूँ लेकिन अंत में हम थोडा भटक गए. यहाँ मुद्दे से हटकर जो भी व्यक्तिगत बातें हुई उनकी जरुरत नहीं थी लेकिन कोई बात नहीं होली का त्यौहार दिल में दबी अच्छी बुरी भावनाओं को बाहर निकालने के लिए ही है. हम सभी में कहीं कुछ बुरा है तो बहुत कुछ अच्छा भी है.
मैं सोचता हूँ की यहाँ पर हमें एक खनिक की सी मानसिकता रखनी होगी. जैसे एक खनिक का सारा ध्यान टनों मिटटी में छिपे छटांग भर सोने पर ही रहता है और उसे पाकर वो बहुत खुश और संतुष्ट होता है वैसे ही हमें भी इस वार्तालाप से सिर्फ अच्छे विचारों को ही ग्रहण करना होगा और बेकार की बातों पर धूल डालनी होगी.
अंत में एक बार फिर से सबका धन्यवाद.
एक तरफ़ा मेच हुआ ....... ना तो मैने बल्ले बाजी शुरू की, ना बाउंसर फेंके, मैं तो बस क्षेत्र रक्षण की करता रहा
जवाब देंहटाएंबल्लेबाजी = सवाल पूछना
बाउंसर = तीखे उत्तर
क्षेत्र रक्षण = स्पष्टीकरण
उम्मीद है ये घटनाएँ मेरे दिमाग में थोड़ी आधुनिकता[?] ठूंस पाएंगी ...बाकी आज तक मुझे किसी तार्किक व्यक्ति ने बताया नहीं की दोस्ती[?] होती क्या चीज है सच में
[सुधार]
जवाब देंहटाएंमैं तो बस क्षेत्र रक्षण ही करता रहा
मित्र ग्लोबल,
जवाब देंहटाएंआपकी मित्रता के काबिल हम ही नहीं हैं.
आपकी धाराप्रवाह विद्वता किसी मित्र को इतनी छूट भी नहीं देती कि वह अपने दैनिक कार्यों को करते हुए चिंतन का अंतराल ले सके.
फिर भी मुझे आपकी भयभीत कर देने वाली मित्रता स्वीकार है.
आप क्षेत्र-रक्षण न किया करें. क्योंकि ऐसे खिलाड़ियों की ऊर्जा व्यर्थ जाती है.
आप अपनी ऊर्जा गेंदबाजी और बेटिंग में लगाया करें. क्योंकि आज उन्हीं पर फोकस रहता है जो या तो उपदेश करते हैं या फिर प्योर आलोचना करते हैं.
स्पष्टीकरण देने वाले और बीचबचाव करने वाले पिस जाते हैं.
आशा है आप अपनी जिज्ञासाओं को और सुधारक धर्म को सही दिशा देंगे.
मुझे आप कहीं भी ग़लत नज़र नहीं आये. केवल एक अनुचित बन गये मज़ाक को छोड़ के - "आपकी आई डी से कोई दूसरा तो नहीं लिख रहा, दीदी" वाला.
एक बात और नाम परिवर्तित करने के सन्दर्भ में...हम नाम बदलते क्यों हैं ...
— यह एक बच्चों का शौक है, जो सभी में रहता है. मैंने भी यह शौक पाला था... 'ओम नाम रखा, पंचम रखा और भी बहुत रखे..."
— जितने महान पुरुष हुए उन्होंने भी बदले नाम ....... स्वामी विवेकानंद जी नरेन्द्र थे. .... स्वामी दयानन्द जी मूलशंकर थे........
— प्रायः संन्यास लेकर नाम बदल लिया जाता है .... यह सोच अपनी संकीर्णता से उबरने का प्रतीक है ......... माता-पिता के नाम-उपहार का अपमान नहीं.
— श्रीकृष्ण के सैकड़ों नाम हैं ........ के व्यक्ति के तमाम नाम होते हैं... स्वभाव अनुसार... संबंध अनुसार..... व्यवसाय अनुसार... आदि कई प्रकार से नाम विविधता हो सकती है.
अतः यह एक हल्की बात है.
...... आपके आत्मीय आपकी मित्रता से अपेक्षा रखते हैं कि वह थोड़ी और उदार बने ..... वह अनुचित अनुमान न लगाए किसी के प्रति..
जब कोई शास्त्रार्थ को अपने दम पर संभालता दिखायी देता है तब सभा के सभासद केवल मौन होकर निष्कर्ष का इंतज़ार करते हैं. वही हमने भी किया.
क्या हमने अपराध किया?....... रचना जी, अंशुमाला जी को सुज्ञ जी समय-समय पर सार्थक उत्तर दिये हैं. मेरा बोलना ठीक न होगा.
फिर भी कोई बात नहीं मुझे फर्क नहीं पड़ता
जवाब देंहटाएंफंडा है .....
"संतोषी सदा सुखी"
मेरी ओर से भी सभी को आभार
एक दिन सब लोग [भाई/बहन ] मेरी बातें जरूर समझेंगे ....धीरे धीरे ही सही.... यही उम्मीद है ......सूर्य पूर्व से ही उदय होता है
सुधार :
जवाब देंहटाएं# ... के व्यक्ति के तमाम नाम होते हैं...
@ एक व्यक्ति के तमाम नाम होते हैं....
# .... रचना जी, अंशुमाला जी को सुज्ञ जी समय-समय पर सार्थक उत्तर दिये हैं.
@ रचना जी, अंशुमाला जी को सुज्ञ जी ने समय-समय पर सार्थक उत्तर दिये हैं.
@प्रतुल जी
जवाब देंहटाएंअभी वापस आता हूँ :)
@प्रतुल जी
जवाब देंहटाएंमैं आभारी हूँ आपका की आप मुझ जैसे अल्पज्ञ की मित्रता स्वीकार कर रहे हैं
अभी बीच की बातों पर विचार बाद में पहले मेरी एक जिज्ञासा है
आपने कहा है .....
@आपके आत्मीय आपकी मित्रता से अपेक्षा रखते हैं कि वह थोड़ी और उदार बने ...............सभा के सभासद केवल मौन होकर निष्कर्ष का इंतज़ार करते हैं वही हमने भी किया. क्या हमने अपराध किया?.
यदि ये आप मुझसे कह रहे हैं तो कृपया बताएं मुझसे कोई भूल हुयी है ? , कृपया स्पष्ट कर मेरा मार्ग दर्शन करें , गलती नजर आने पर स्वीकारने में कोई परेशानी नहीं होगी मुझे
कहने का मतलब है अगर आप को मेरी कोई टिप्पणी गैर जरूरी प्रतिउत्तर लगी हो तो कृपया स्पष्ट करें, मैं अवश्य उसका कारण बताना चाहूँगा ...और क्योंकि आप सिर्फ मेरी टिप्पणी बताएँगे विवाद की कोई संभावना भी नहीं रहेगी :)
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणियों से प्रतीत होता है कि आप अति भावुक और अति-गतिमान प्रतिवादी हो.
जवाब देंहटाएंजब तक अपनी बातों की पुष्टि के लिये उचित तर्क और विश्लेषण नहीं पा लेते ..... पागल रहते हो..
इस जुनून से या कहें इस पागलपन से सामान्य प्रेमियों को घबराहट हो जाती है.
यदि उत्तर देने में थोड़ी भी देर हुई कि आप बेचैन हो उठते हो.
अब आते हैं आपकी टिप्पणियों पर ...
आप प्रश्न पर प्रतिप्रश्न करते हैं. साक्ष्य देते हैं. आस-पास के उदाहरणों से बात स्पष्ट करते हैं. प्रतीकों से समझाते हैं. कविता करते हैं.....
आप अपनी जल्दबाजी को ठहराव के साथ व्यक्त नहीं करते.... छोटे-छोटे वक्तव्यों [टिप्पणियों] से इसका इज़हार हो ही जाता है.
विषयगत चर्चा यदि वैयक्तिक मोड भी ले रही हो तो उसे अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिखकर सुलझा लें.
शायद मित्र दीप जी दूसरी पोस्ट जलाने का इंतज़ार कर रहे हों!
सभी के अनुभव की एक बात कहता हूँ :
बचपन में जब हम खेल में हारने लगते थे तो खेल बिगाड़ने की सोचते थे... न आगे खेल होगा और न ही पराजय का मुख देखना होगा.
यही मानसिकता कुछों में बड़े होने तक मिट नहीं पाती..
बस इस बात को यहीं विराम देते हैं. और आप केवल एक संक्षिप्त बात कहकर इस पोस्ट की इति करें.
बेहद प्यार भरा है मेरे हृदय में आपके लिये.
@इस जुनून से या कहें इस पागलपन से सामान्य प्रेमियों को घबराहट हो जाती है
जवाब देंहटाएंपागलपन ही सही शब्द है ......."हितकारी पागलपन"
@विषयगत चर्चा यदि वैयक्तिक मोड भी ले रही हो तो उसे अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिखकर सुलझा लें.
मुझे कईं बार लोग कुछ ना मिलने पर मेरी प्रोफाइल पर (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से) चढ़ाई करते मिलते हैं किस किस पर पोस्ट बनाऊं ??:)
@बचपन में जब हम खेल में हारने लगते थे तो खेल बिगाड़ने की सोचते थे... न आगे खेल होगा और न ही पराजय का मुख देखना होगा.
:))
रियल लाइफ एक्सपीरियंस :
बड़ी उम्र के लोग दो तरह के होते हैं
जिज्ञासु : ये हर बात को सुनते हैं क्योंकि "नयी जनरेशन बोल रही है"
बाकी लोग : ये हर बात इसीलिए नहीं सुनना चाहते क्योंकि "नयी जनरेशन बोल रही है" :)) इनके मन की बात बोले तो ठीक है :)
नाराज लोगों से :
क्या कर सकते हैं ?? आप भी और मैं भी | ब्लोगिंग तो खेल ही आइडियाज का है.. सोच का टकराना या / और गलतफहमी होना नेचुरल है.. कृपया इसे व्यक्तिगत तौर पर ना लें | मैंने कमेन्ट के साथ "गैर जरूरी माफ़ी" और "गैर जरूरी स्पष्टीकरण" का भी रिकोर्ड बनाया हुआ है , उस पर भी ध्यान दें :)
मेरी अपनी बात :
बस एक बार अपने काम में डूब गया तो फिर क्या ब्लोगिंग क्या कमेन्ट ...आज गा लो.... मुस्कुरा लो ....महफिलें सजा लो .......क्या जाने कब अपनी ब्लोगिंग छूट जाये :)
@ बेहद प्यार भरा है मेरे हृदय में आपके लिये.
मेरा सौभाग्य :)
साइंस प्रेमियों के लिए:
Science is the study of human limitations.
Bindiya Murgai
What man thinks he understands, he calls science. What he can not fathom, is fiction.
Bindiya Murgai
@ सभी के लिए
http://www.youtube.com/watch?v=J3cl-oZ_UW8&feature=player_embedded
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वीडिओ का लिंक दिया :
वसुधैव कुटुम्बकम.... एक संसार एक परिवार.
सच्चा ज्ञान सभी के लिये. ......... अब इस परिवार का ग्लोबल यदि छब-दर्शन देदे तो परिवार के अन्य सदस्यों को अपार प्रसन्नता हो.
जीने की कला. ... का लिंक दिया.
अब .. दिखने की कला.. का भी लिंक दो. मतलब स्व-दर्शन.
badhiya, sahee kah rahe hain. aaj sab-kuchh jeewan, raajneeti sabhee prateekaatmak hee ho gaye hain. aapke blog par aakar achha laga.
जवाब देंहटाएंTippanee ke oopar likha bhee achha laga. blogging main bhee fashion ban gaya hai, Main tera blog padh raha hun, isliye too bhee mera padh aur tippanee de...taaki mera blog adhik padha jaane waala maana jaaye.
har samaj main kuch pagal kism ke log hote hai agar yakeen na ho to pagal khane ja kar dekh le.....
जवाब देंहटाएंaap ka visay sunder hai charcha sarthak hai ....
tark,vitrak.kutarak main se tark ...ki charcha ki jaye to wah sarthak hoti hai .....kuch logo ki virodh karne ki aadat hoti hai...
jai baba banaras.....
बाप रे...आपका ब्लॉग पढ़ने के लिए तो सभी कामो से एकाध सप्ताह की छुट्टी लेनी पड़ेगी।
जवाब देंहटाएं@प्रतुल जी
जवाब देंहटाएंमैं तो प्रोफाइल के नाम परिवर्तन से ही डर गया सच्ची ...
वैसे अपना चित्र ना लगाने के पीछे वजह कुछ और थी लेकिन अब सोचता हूँ ये अच्छा ही हुआ
माना मैंने अपने प्रोफाइल में लगे फोटो में
--तिलक ना लगाया हुआ होगा तो
कोई ये ना कह दे जो इंसान खुद तिलक नहीं लगाता वो दूसरों से कैसे कह सकता है ?:))
और
--अगर तिलक लगाया हुआ होगा तो
वे लोग मेरा कमेन्ट पढने से पहले ही मुझे पुरानी सोच का इंसान समझ लेंगे :)
वैसे कोई मेरी बात सुने/ ना सुने दोनों परिस्थिति में नुकसान मेरा नहीं है , फिर भी चिंता तो होती है , परिवार जो मानता हूँ सबको :)
@ सभी से
जवाब देंहटाएंएक बात बतानी रह गयी थे दोस्तों .....भगवान की दया से अभी तक ब्लॉग जगत में मुझे व्यक्तिगत रूप से कोई नहीं जानता/जानती .......ये तो यूँ ही हवा में तीर छोड़ दिया है ..और हाँ मैं अपनी प्रोफाइल में फिर से नाम बदल सकता हूँ :) ... ये सोच मॉडर्न है या रूढ़िवादी ..पता नहीं....लेकिन मैं मानता हूँ की इंसान की पहचान "नाम"/"प्रोफाइल" से नहीं से नहीं बल्कि "विचारों" से होती है
[सुधार]
जवाब देंहटाएं#एक बात बतानी रह गयी थे दोस्तों .....
@एक बात बतानी रह गयी थी दोस्तों
सार बात : किसी वाद या कन्सेप्ट की अति करना सबसे पहले उस कांसेप्ट को ही नुकसान पहुंचाने लगता है..चाहे ये बात उस वक्त समझ ना आती हो ... चाहे वो अति साइंस को लेकर हो , धर्म को लेकर हो , अन्य किसी भी वाद को लेकर हो
जवाब देंहटाएंजैसे माना कोई हमेशा यही ढूंढता / ढूंढती है की ये चीज साइंटिफिकली प्रूव है या नहीं , वो चीज साइंटिफिकली प्रूव है या नहीं, ये भी प्रतीक के पीछे बेवजह भागना ही है , या किसी बात को जो धर्म से जुडी है बस इसीलिए नकारते रहना की वो धर्म से जुडी है ये भी कोई समझदारी वाली बात नहीं है .. जहां धर्म और विज्ञान दोनों सहमत नजर आते हैं वहीं से विकास का मार्ग खुलता है .. और जब जब ऐसा होता है एक नया इतिहास लिखा जाता है और फिर कईं सालों बाद उसी इतिहास को किसी प्रतीक से प्रदर्शित किया जाता है
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंवाह!! क्या तथ्यपरक बात कही है…
जहां धर्म और विज्ञान दोनों सहमत नजर आते हैं वहीं से विकास का मार्ग खुलता है .. और जब जब ऐसा होता है एक नया इतिहास लिखा जाता है और फिर कईं सालों बाद उसी इतिहास को किसी प्रतीक से प्रदर्शित किया जाता है
सटीक कथन!!
up-sanghar ho chuki to ab apni amad poori kar den.....
जवाब देंहटाएंsadar.
@सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंमध्यप्रदेश की ये न्यूज देखिये तो
http://www.bhaskar.com/article/mp-bpl-geeta-vedic-maths-and-yoga-may-be-part-of-school-education-1818380.html
http://www.bhaskar.com/article/MP-OTH-1254738-1921399.html
भारतीय संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान को भूलती जा रही पीढ़ी को अपनी जड़ों की ओर लौटाने और भारतीय सांस्कृतिक समृद्धि की पुनस्र्थापना की दिशा में यह निर्णय मील का पत्थर साबित होगा। आदेश को तत्काल लागू करने कोशिश करेंगे।
प्रो.आनद मिश्रा, कुलसचिव जीवाजी विश्वविद्यालय
http://www.patrika.com/news.aspx?id=542440
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