गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

अपराध की रेयरेस्ट ऑफ रेयर श्रेणी क्या है ?

 
कल प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड में माननीय सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया जिसमे माननीय जज साहब ने स्वीकार किया की संतोष सिंह ने ही प्रियदर्शिनी मट्टू की बलात्कार के बाद हत्या की लेकिन ये अपराध रेयरेस्ट ऑफ रेयर श्रेणी में नहीं आता इसलिए उसकी मौत की सजा आजीवन कारावास में तब्दील कर दी गयी. जिसका अर्थ ये हुआ की वो अपराधी कुछ वर्षो के कारावास के बाद आम माफ़ी पा सकता है (जहाँ तक मुझे ज्ञात है एक आजीवन कारावास के अपराधी को अच्छे चाल चलन के आधार पर राज्य की तरफ से माफ़ी भी दी जा सकती है ).

क्या कोई बताएगा ये रेयरेस्ट ऑफ रेयर श्रेणी का अपराध  क्या होता है?  

आप एक लड़की को तंग करें. उसका जीना दूभर कर दें. फिर मौका मिले तो उसे अपनी हवस का शिकार बनायें और फिर उसकी हत्या कर दें. अब इसके बाद एक व्यक्ति किसी के साथ और क्या कर सकता है जिसे अपराध की रेयरेस्ट ऑफ रेयर श्रेणी  में रखा जायेगा. 

कुछ वर्षो पहले फ्रंट लाइन पत्रिका में एक महिला के शव की तस्वीरें छपी थीं. उस आठ माह की गर्भवती महिला की हत्या करके उसके पति ने उसके शव को छोटे छोटे टुकड़ों में कटा और उन्हें बोरे में भर कर रेल के डिब्बे में रख दिया. जब उस पति को सजा देने की बात आयी तो भी माननीय कोर्ट ने यही कहा की ये अपराध अपराधों  की रेयरेस्ट ऑफ रेयर श्रेणी  में नहीं आता है.

क्या हमारे किसी माननीय जज साहब ने कभी उदाहण देकर  बताया है की  रेयरेस्ट ऑफ रेयर श्रेणी  का अपराध ऐसा होता है ?

मुझे ये फैसला  हजम नहीं हुआ . हाजमोला मिलेगा.

34 टिप्‍पणियां:

  1. आजकल अदालत के फैसलों पर लात लगाने का मौसम है तो आपके साथ एक लात मेरी भी इस फैसले पर.

    न्याय की देवी ने अपनी आँख की पट्टी ऊपर सरकाई और देखा की इस मामले से जो लोग जुड़े हुए हैं वो समाज के परम प्रभावशाली तबके के लोग हैं. यहाँ तक की न्याय के लिए आवाज लगाने वाली किरण बेदी तक इस 'बेचारे' मट्टू की सिफारिश करती रही है. तो न्याय की देवी ने .....

    सरकार तो नौकरशाहों और नेताओं के बल पर ही चलती है. अगर मौत की सजा मिलाती तो सालों तक जेल में रहना पड़ता लेकिन अब सुश्री शीला दीक्षित इसे भला आदमी मान कर इस साल या अगले साल के बीच में जेल से निकल बाहर करेंगी. जैसे जेसिका लाल के हत्यारों को पेरोल पर छोड़ दिया था.

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  2. हाजमोला भी पचा नहीं सकेगा, ऐसे "माननीय" (इसमें 8 बार माननीय और जोडें) न्यायाधीशों की राय को… :)

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  3. सुरेश भाई के हाजमोला से कुछ आराम मिला या नहीं ?

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  4. मट्टू के हत्यारे जैसे प्रभावशाली कैदियों के गुणगान तो मीडिया में उड़ते ही रहते हैं.
    http://www.thehindu.com/news/cities/Delhi/article582323.ece

    http://www.hindustantimes.com/On-death-row-Mattoo-killer-lends-helping-hand/Article1-203946.aspx

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  6. जब तक आंख के बदले आंख जान के बदले जान का फ़ॉर्मूला नहीं अपनायेगे ये दरिन्दे हमारी बहन बेटिओं माओं की इज्ज़त लूटते रहेंगे उन्हें जान से मरते रहेंगे उन्हें डर किसका है प्रियदर्शनी पुलिस के चक्कर लगाती रही उसने एक FIR तक नहीं लिखा क्या वोह मुजरिम नहीं जब तक किसी को अपने जान का डर नहीं होगा वो अपने पैसे से जज को खरीद सकता है पुलिस को खरीद सकता है मंत्री को भी जब जान के बदले जान ही सजा होगी तो इसमें कोई कुछ नहीं कर पायेगा और ये क़त्ल करने वाले अपने आप सुधर जायेंगे

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  7. रेयरेस्ट ऑफ रेयर श्रेणी में शायद तब रखा जाता जब वह दरिंदा उस लड़की को प्राकृतिक-अप्राकृतिक तरीके के जार-जार करता फिर उसकी हत्या करता, फिर उसके मरे शरीर के साथ बार-बार दुराचार करता. फिर उसके छोटे छोटे टुकड़े करता, फिर उनको फ्रीज़ में रखकर रोज़ थोडा थोडा नाश्ते में तलकर खाता. नहीं शायद फिर भी नहीं होता रेयरेस्ट ऑफ रेयर श्रेणी का अपराध. इससे भी आगे बढ़कर शायद और कुछ करता तब हो पाता रेयरेस्ट ऑफ रेयर श्रेणी का अपराध. अब इसका निर्धारण तो अनंत माननीय विभूषित न्यायाधीश महोदय ही कर सकतें है की किसी लड़की के साथ क्या क्या किया जाये जिससे की वह अपराध रेयरेस्ट ऑफ रेयर श्रेणी का अपराध माना जा सके....................

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  8. क्रूर जीवनशैली के प्रभाव में हमने अपने जीवनमूल्यों में क्रूरता को सामान्य सा आत्मसात कर लिया है।
    इसलिये हर क्रूरतम घ्रणित कार्य सामान्य श्रेणी का होता जाता है।

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  9. सुज्ञ जी ने सब कह दिया , अब क्या बचा है ?? :)

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  10. .

    इसे ही कहते हैं 'संवेदनाओं का सूखा'
    और आज समाज में यह स्थान-स्थान पर देखने को मिल जाएगा.
    इसलिये कहता हूँ कि आप जबरन की हुई छोटी-सी हिंसा में भी भागीदार न बनें.
    अपने नाश्ते को शाकाहार से सजायें.
    एक तरफ आज के प्रकृतिप्रेमी बुद्धिजीवी मानवीय दृष्टिकोण के बड़े बोल बोलते दिखायी देते हैं. दूसरी तरफ ब्रेकफास्ट में आमलेट, लंच में चिकन, और डिनर में मटन पसंद करते हैं. वाह रे! जीवमात्र के प्रति प्रेम-भावना.

    'न्याय' का पद एक साधना है. लेकिन मुझे नहीं लगता वे 'जज' जिह्वा और दिमाग की किसी तरह की साधना करते होंगे. यदि करते होते न्याय यूँ आँसू नहीं बहा रहा होता.

    .

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  11. मुझे नहीं लगता है की ऐसे अपराधियों को मौत की सजा दी जानी चाहिए ये तो बड़ा आसान सजा हो जाएगी उनके लिए की एक झटके में मौत मिल गई | उन्हें तो जिन्दा ही रखना चाहिए और जेल में हर पल जीवन नरक से भी बत्तर बना देना चाहिए ताकि वो खुद सोचे की काश की उसे मौत की सजा ही मिल जाती | पहले आजीवन सजा का अर्थ १४ साल की सजा थी पर कोर्ट ने इसे बदल कर जीवन भर के लिए कर दिया पर हा अब भी १४ साल बाद सरकार उस अपराधी को छोड़ सकती है उसके अपराध की प्रकृति देख कर मतलब की सरकार छोड़ देती है उसकी हैसियत और पहुच देख कर | यदि ईमानदारी से देखे तो जो सजा कोर्ट ने दी है यदि वो पूरी तरह उसे भुगतनी पड़े तो शायद ज्यादा यातना पूर्ण सजा उसके लिए होगी | अगर इस तरह के अपराधी सरकार द्वारा पैरोल पर या माफ़ी पर छोड़ दिए जाते है तो ये गलती सरकार की है | फिर सजा का मतलब अपराध को कम करना है पर वास्तव में ऐसा नहीं हो रहा है क्योकि इस तरह के हजार केस में किसी एक को सजा मिलती है यदि उसे मौत की सजा भी मिल जाये तो बाकि पर कोई असर नहीं होता है अब सोचिये की इस तरह के सभी केस में हर अपराधी को साल भर के अन्दर आजीवन कारावास की सजा मिल जाये तो वो ज्यादा प्रभावी होगा ऐसे अपराध को रोकने के लिए |

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  12. प्रतुल जी की बात से भी सहमत हु शाकाहारी बनिये

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  14. प्रतुल जी ने सटीक बात कही…
    'संवेदनाओं का सूखा'
    छोटी छोटी संवेदनाओं को मन में संरक्षित रखना और बचाना होगा।
    अतः ऐसे उपभोग को भी त्यागना होगा, जो न्युन भी क्रूरता की उपज हो।

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  15. आदरणीय विचार शून्य जी ,
    सबसे पहली बात तो ये कि मैं यहां ये स्पष्ट कर दूं कि अभी कुछ समय पहले आए एक फ़ैसले में अदालत ने ये साफ़ कर दिया है कि , अब आजीवन कारावास का मतलब ....ताउम्र ..यानि उसके जिंदा रहने तक उसे जेल में ही बिताना होगा .....इसलिए ये कतई कयान न लगाएं जाएं कि मुजरिम कुछ समय या सालों बाद छूट जाएगा । अब रही बात इस फ़ैसले पर कुछ टिप्पणी करने की या फ़िर कि आखिर रेयरेस्ट और रेयर की कैटेगरी ..अदालत मानती किसे है ...और वो तय कैसे करती है .। मुझे लगता है कि ..यदि इसका उत्तर एक पोस्ट के रूप में दिया जो ..बेहतर रहेगा ...आज ही अपने किसी ब्लॉग पर लिखूंगा मैं इसी विषय को आगे बढाते हुए । अदालतें जरूर इन दिनों अपनी साख की गिरावट से जूझ रही हैं ......मगर अभी भी ....स्तर उतना भी नीचा नहीं हुआ है ..जितना हम आप समझ समझा रहे हैं । विषय को उठाने के लिए धन्यवाद

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  16. पाण्डेय जी... हमको दू गो बात याद आ रहा है… पहिला ई कि आदमी को बुरा चाल चलन के कारन जेल जाना पड़ता है अऊर वहाँ अच्छा चाला चलन के कारन ऊ छूट जाता है.. साबास!!
    दोसरा बात, कि आजकल तो ई भी फैसला देखने में आया है कि पहिले बलात्कार और जब मुक़दमा चला तो बलात्कारी को कहा गया कि उससेसादी कर लो.. डबल साबास!!
    अब न्यायपालिका पर तो अजय बाबू से बेहतर कोई नहीं बोल सकता, सो बता दिए हैं. चलिए उम्मीद का हाजमोला पुराना से पुराना कब्जियत दूर कर देता है. साठ साल से बेसी हो गया खाते हुए...याददास्त जरूर खराब हो जाता है हाजमा ठीक रहता है... पाँच साल पहिले जो हाजमोला खिलाकर गया था उसको पहिचान नहीं पाता है आदमी अऊर दुसरा हाजमोला खाकर निस्चिंत!!

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  17. प्रकरण पर अपना भी रोष /खेद /दुःख पर रेयरेस्ट आफ रेयर श्रेणी की जानकारी नहीं है सो जबाब नहीं दे पाएंगे इस मसले पर कोई अधिवक्ता ही बेहतर कह पायेगा कि आखिर हुआ क्या ?

    वैसे अजय झा साहब को इस पर एक पोस्ट लिखना ही चाहिए !

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  18. आज सोच रही थी कि इस पर कुछ लिखूं आप का लेख पढ़ा
    विचार शुन्य जी लीजिये कमेन्ट
    जितनी जानकारी कानून कि हैं उसके अनुसार आज कल आजीवन कारावास का अर्थ हैं जब तक मृत्यु ना हो पहले ये १४ साल कि होती थी
    हमारे देश मे इस समय कोई भी जल्लाद मौजूद नहीं हैं सो फांसी कि सजा बेमानी होती हैं
    मुझे ये फैसला देने वाले नयाधीश पर इन्ही दो बातो कि वजेह से गुस्सा नहीं आया क्युकी ये फैसला बहुत दूरगामी हैं

    हाँ कभी कभी सोचती हूँ रेप और मर्डर करने वालो से लोग शादी कैसे करलेते हैं और ऐसे लोग अपने बच्चो के भविष्य के बारे मे क्या कभी सोचते हैं उन्हे संसार मे लाने से पहले ??

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  19. हमारी न्याय व्यवस्था के शर्मनाक पहलुओं में से एक है इस प्रकार की घटनाएं ,मुझे लगता है की ऐसे कमीनों को फांसी जैसी आसान मौत ना देकर ऐसी मौत देनी चाहिए जिससे की उन्हें मृतक की पीड़ा का एहसास हो ,फांसी की जगह गोली मार दी जाए तो अधिक उचित है

    और जिन न्यायधीशों को ये rarest of rare नहीं मालूम होता है उन्हें ये rarest of rare तभी लगेगा जब भगवन ना करे लेकिन कभी उनकी बेटी या बहिन के साथ ऐसा कुछ होगा ,तब देखिएगा कैसे rarest of rare की परिभाषा change होगी

    विचारशून्य जी ,मैं तो आपकी सभी बातों से पूर्णतया सहमत हूँ

    महक

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  20. विद्वान लोगों की सुन लीं, अब हमारा विचार भी सुन लो।
    ’रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर’ अपराध कौन सा है, उअह तौ करने में सबसे महत्वपूरण कारक है, ’अपराधी कौन है?’
    अगर अभियुक्त रसूखदार परिवार से संबंध रखता है तो उसके द्वारा किया गया कोई भी अपराध इस कैटेगरी में नहीं आयेगा, ऐसा हमारा मानना है।
    अभी कुछ साल पहले कोलकाता की एक हाऊसिंग सोसाईटी के चौकीदार को ऐसे ही मामले में मिली सजा के बारे में शायद किसी को याद हो।

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  21. जी हा कोलकत्ता के उस अपराधी का नाम धनजय था जिसे फासी हो भी गई उसकी फासी की सजा पर भी कई मानवता वादियों ने बवाल किया था और रोकने की मांग की थी | दोनों का फर्क झा जी बताएँगे |

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  22. बहुत बहुत आभार आप लोगों का मुझे ये चुनौती /अवसर देने के लिए ...मैं आज ही इस विषय पर एक पोस्ट प्रकाशित करूंगा ....उम्मीद है कि पाठकों की बहुत सारी आशंकाओं जिज्ञासाओं को शायद बेहतर तरीके से शांत कर पाऊं । वैसे इतना स्पष्ट कर दूं कि मैं खुद ऐसे अपराध को रेयरेस्ट औफ़ द रेयर ..तो मारिए गोली ...उसे भी कहीं घ्रृणित मानता हूं ....और ऐसे मामलों की सिर्फ़ एक ही सजा होनी चाहिए ...वो है...ऐसा कुछ जो मौत से भी बदतर हो ..। खैर बांकी बातें पोस्ट पर ..शुक्रिया

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  23. प्रतुल जी और रचना जी से सहमत हूँ
    @अजय जी
    चर्चा के अंत में जीत [सही मायनो में ] विषय के जानकार की ही होती है
    बाकी सब कथित जागरूकता फैलाने वाले इधर उधर के आधे अधूरे नेगेटिव समाचार बताकर संतुष्टि पाते हैं

    कृपया उस पोस्ट का लिंक भी यहाँ दे दीजियेगा
    आभार आपका

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  24. Rarest of rare cases
    Whether a case falls under the category of rarest of rare case or not, for that matter the Apex court laid down a few principles for deciding the question of sentence. One of the very important principles is regarding aggravating and mitigating circumstances. Court opined that while deciding the question of sentence, a balance sheet of aggravating and mitigating circumstances in that particular case has to be drawn. Full weightage should be given to the mitigating circumstances and even after that if the court feels that justice will not be done if any punishment less than the death sentence is awarded, then and then only death sentence should be imposed.

    http://www.legalserviceindia.com/articles/cap_pp.htm

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  25. .

    आजकल के जज ही रेयरेस्ट आफ रेयर केटगरी में आने लगे हैं। इनसे ज्यादा अपेक्षा नहीं है।

    .

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  26. नवरात्रा स्थापना के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं ढेर सारी शुभकामनाएं

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  27. पांडये जी, "रेयरेस्ट ऑफ रेयर श्रेणी" श्रेणी वो गिनी जायेगी जब ..... संसद पर १०-१२ उग्रवादी हमला कर दें.........

    बाकी जिसके दिल पर बीतती है वही जानता है..... की जिंदगी में "रेयरेस्ट ऑफ रेयर" क्षण कब आते हैं.

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  28. लगता है ऊपर मेरी कही बात कुछ कम समझ में आ रही है
    इसलिए स्पष्ट कर दूँ
    मानवतावादी शब्द के आगे "कथित" लगा कर इस शब्द का थोड़ा सम्मान किया जाये ... बस इतना सा अनुरोध है
    या फिर वही गलत ढंग से रीप्रजेन्ट करने वाले लोग ही आपको किसी पक्ष का पूरे रीप्रजेंटेटिव लगते हैं ??
    आगे आपकी मर्जी

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  29. किसी को मेरी टिप्पणी का कोई अलग ही गहरा मतलब नजर आ गया हो
    तो उनकी दूरद्रष्टि (?) को मेरा प्रणाम :)
    ..... और हाँ मौ सम कौन जी और दीपक जी से सहमत हूँ

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  30. न्यायिक प्रक्रिया और पुलिस प्रशासन में सुधार की महती आवश्यकता है. शायद इन्डियन इविडेंस एक्ट में भी आमूल चूल परिवर्तन की आवश्यकता है..

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  31. दो बातें बहुत जरुरी है दोस्त। बिना पूरा फैसला पढ़े इसतरह कि टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए। इस मामले में हाईकोर्ट ने जब फैसला दिया था तब ही ये लगने लगा था कि जनमानस के दबाब का असर हाईकोर्ट पर दिखा है। हालांकि इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। दूसरा जज महोदय ने किस आधार पर ये बात कही है इसकी जानकारी भी बहुत जरुरी है। इसके बाद ही सही औऱ सटीक टिप्पणी की जा सकती है। रेयर ऑफ रेयरस्ट की में भले ही इसे न माना जाया पर इसपर मौत की सजा को कम करने का कोई मतलब ही नहीं था, ये मैं मानता हूं।

    फिलहाल मुजरिम अब इस स्थिती में नहीं है कि अदालत को प्रभावित कर सके।
    @कुछ अन्य टिप्पणिकारों पर
    ये लोकतांत्रिक देश है इसलिए हम अदालतों के फैसले पर भी आज उंगली उठाने का साहस कर सकते हैं। नेताओं को खुलकर गरिया सकते हैं। मगर इसके लिए जरुरी नहीं कि आदिम तरीकों की वकालत करें। खून के बदले खून के जंगल का कानून की वकालत न करें। अगर एक केस में ये आजमाया गया तो बाकी अन्य मामूली केस में भी यही आजमाने का बहाना बन जाएगा और देश में तालिबानी और पाकिस्तानी शासन को लागू करने वालों की वकालत भी की जाने लगेगी।

    उच्च न्यायालय आज नहीं लगभग डेढ़ दशक पहले ही ये साफ कर चुकी है कि उम्रकैद का मतलब जब तक आखिरी सांस है तब तक की सजा है न कि 14 साल।

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  32. उच्च न्यायाल नहीं उच्चतम न्यायालय पढ़ा जाए आखिरी लाइन में....

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