tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post3375931840518430076..comments2023-10-31T18:36:02.752+05:30Comments on विचार शून्य: अपराध की रेयरेस्ट ऑफ रेयर श्रेणी क्या है ?VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.comBlogger34125tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-39273378440765170872010-10-13T06:41:19.707+05:302010-10-13T06:41:19.707+05:30उच्च न्यायाल नहीं उच्चतम न्यायालय पढ़ा जाए आखिरी ल...उच्च न्यायाल नहीं उच्चतम न्यायालय पढ़ा जाए आखिरी लाइन में....Rohit Singhhttps://www.blogger.com/profile/09347426837251710317noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-73827371425319286812010-10-13T06:34:51.082+05:302010-10-13T06:34:51.082+05:30दो बातें बहुत जरुरी है दोस्त। बिना पूरा फैसला पढ़े...दो बातें बहुत जरुरी है दोस्त। बिना पूरा फैसला पढ़े इसतरह कि टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए। इस मामले में हाईकोर्ट ने जब फैसला दिया था तब ही ये लगने लगा था कि जनमानस के दबाब का असर हाईकोर्ट पर दिखा है। हालांकि इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। दूसरा जज महोदय ने किस आधार पर ये बात कही है इसकी जानकारी भी बहुत जरुरी है। इसके बाद ही सही औऱ सटीक टिप्पणी की जा सकती है। रेयर ऑफ रेयरस्ट की में भले ही इसे न माना जाया पर इसपर मौत की सजा को कम करने का कोई मतलब ही नहीं था, ये मैं मानता हूं। <br /><br />फिलहाल मुजरिम अब इस स्थिती में नहीं है कि अदालत को प्रभावित कर सके। <br />@कुछ अन्य टिप्पणिकारों पर<br />ये लोकतांत्रिक देश है इसलिए हम अदालतों के फैसले पर भी आज उंगली उठाने का साहस कर सकते हैं। नेताओं को खुलकर गरिया सकते हैं। मगर इसके लिए जरुरी नहीं कि आदिम तरीकों की वकालत करें। खून के बदले खून के जंगल का कानून की वकालत न करें। अगर एक केस में ये आजमाया गया तो बाकी अन्य मामूली केस में भी यही आजमाने का बहाना बन जाएगा और देश में तालिबानी और पाकिस्तानी शासन को लागू करने वालों की वकालत भी की जाने लगेगी। <br /><br />उच्च न्यायालय आज नहीं लगभग डेढ़ दशक पहले ही ये साफ कर चुकी है कि उम्रकैद का मतलब जब तक आखिरी सांस है तब तक की सजा है न कि 14 साल।Rohit Singhhttps://www.blogger.com/profile/09347426837251710317noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-47138518726595522392010-10-10T18:17:20.288+05:302010-10-10T18:17:20.288+05:30न्यायिक प्रक्रिया और पुलिस प्रशासन में सुधार की मह...न्यायिक प्रक्रिया और पुलिस प्रशासन में सुधार की महती आवश्यकता है. शायद इन्डियन इविडेंस एक्ट में भी आमूल चूल परिवर्तन की आवश्यकता है..भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-1523868579313263372010-10-10T06:48:18.443+05:302010-10-10T06:48:18.443+05:30किसी को मेरी टिप्पणी का कोई अलग ही गहरा मतलब नजर आ...किसी को मेरी टिप्पणी का कोई अलग ही गहरा मतलब नजर आ गया हो<br />तो उनकी दूरद्रष्टि (?) को मेरा प्रणाम :)<br />..... और हाँ मौ सम कौन जी और दीपक जी से सहमत हूँएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-69918983667869521912010-10-10T06:39:23.925+05:302010-10-10T06:39:23.925+05:30लगता है ऊपर मेरी कही बात कुछ कम समझ में आ रही है
इ...लगता है ऊपर मेरी कही बात कुछ कम समझ में आ रही है<br />इसलिए स्पष्ट कर दूँ<br /><b>मानवतावादी </b> शब्द के आगे <b>"कथित"</b> लगा कर इस शब्द का थोड़ा सम्मान किया जाये ... बस इतना सा अनुरोध है<br />या फिर वही गलत ढंग से रीप्रजेन्ट करने वाले लोग ही आपको किसी पक्ष का पूरे रीप्रजेंटेटिव लगते हैं ??<br />आगे आपकी मर्जीएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-21878154298459842452010-10-08T20:17:52.408+05:302010-10-08T20:17:52.408+05:30पांडये जी, "रेयरेस्ट ऑफ रेयर श्रेणी" श्र...पांडये जी, "रेयरेस्ट ऑफ रेयर श्रेणी" श्रेणी वो गिनी जायेगी जब ..... संसद पर १०-१२ उग्रवादी हमला कर दें.........<br /><br />बाकी जिसके दिल पर बीतती है वही जानता है..... की जिंदगी में "रेयरेस्ट ऑफ रेयर" क्षण कब आते हैं.दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-9023801360228292682010-10-08T19:36:12.395+05:302010-10-08T19:36:12.395+05:30नवरात्रा स्थापना के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं ढेर स...<b>नवरात्रा स्थापना के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं ढेर सारी शुभकामनाएं </b>एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-86797664325310924782010-10-08T15:35:21.031+05:302010-10-08T15:35:21.031+05:30.
आजकल के जज ही रेयरेस्ट आफ रेयर केटगरी में आने....<br /><br />आजकल के जज ही रेयरेस्ट आफ रेयर केटगरी में आने लगे हैं। इनसे ज्यादा अपेक्षा नहीं है। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-11813198257591429462010-10-08T09:25:56.996+05:302010-10-08T09:25:56.996+05:30Rarest of rare cases
Whether a case falls under th...Rarest of rare cases<br />Whether a case falls under the category of rarest of rare case or not, for that matter the Apex court laid down a few principles for deciding the question of sentence. One of the very important principles is regarding aggravating and mitigating circumstances. Court opined that while deciding the question of sentence, a balance sheet of aggravating and mitigating circumstances in that particular case has to be drawn. Full weightage should be given to the mitigating circumstances and even after that if the court feels that justice will not be done if any punishment less than the death sentence is awarded, then and then only death sentence should be imposed.<br /><br />http://www.legalserviceindia.com/articles/cap_pp.htmरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-15073617291258497702010-10-08T09:05:27.314+05:302010-10-08T09:05:27.314+05:30प्रतुल जी और रचना जी से सहमत हूँ
@अजय जी
चर्चा के...प्रतुल जी और रचना जी से सहमत हूँ <br />@अजय जी<br /><b>चर्चा के अंत में जीत [सही मायनो में ] विषय के जानकार की ही होती है </b><br />बाकी सब कथित जागरूकता फैलाने वाले इधर उधर के आधे अधूरे नेगेटिव समाचार बताकर संतुष्टि पाते हैं <br /><br />कृपया उस पोस्ट का लिंक भी यहाँ दे दीजियेगा<br />आभार आपकाएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-36385540747910975462010-10-08T08:28:53.338+05:302010-10-08T08:28:53.338+05:30बहुत बहुत आभार आप लोगों का मुझे ये चुनौती /अवसर दे...बहुत बहुत आभार आप लोगों का मुझे ये चुनौती /अवसर देने के लिए ...मैं आज ही इस विषय पर एक पोस्ट प्रकाशित करूंगा ....उम्मीद है कि पाठकों की बहुत सारी आशंकाओं जिज्ञासाओं को शायद बेहतर तरीके से शांत कर पाऊं । वैसे इतना स्पष्ट कर दूं कि मैं खुद ऐसे अपराध को रेयरेस्ट औफ़ द रेयर ..तो मारिए गोली ...उसे भी कहीं घ्रृणित मानता हूं ....और ऐसे मामलों की सिर्फ़ एक ही सजा होनी चाहिए ...वो है...ऐसा कुछ जो मौत से भी बदतर हो ..। खैर बांकी बातें पोस्ट पर ..शुक्रियाअजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-78248328381871069052010-10-07T23:31:56.497+05:302010-10-07T23:31:56.497+05:30जी हा कोलकत्ता के उस अपराधी का नाम धनजय था जिसे फा...जी हा कोलकत्ता के उस अपराधी का नाम धनजय था जिसे फासी हो भी गई उसकी फासी की सजा पर भी कई मानवता वादियों ने बवाल किया था और रोकने की मांग की थी | दोनों का फर्क झा जी बताएँगे |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-29168272891069480492010-10-07T22:19:02.634+05:302010-10-07T22:19:02.634+05:30विद्वान लोगों की सुन लीं, अब हमारा विचार भी सुन लो...विद्वान लोगों की सुन लीं, अब हमारा विचार भी सुन लो।<br />’रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर’ अपराध कौन सा है, उअह तौ करने में सबसे महत्वपूरण कारक है, ’अपराधी कौन है?’<br />अगर अभियुक्त रसूखदार परिवार से संबंध रखता है तो उसके द्वारा किया गया कोई भी अपराध इस कैटेगरी में नहीं आयेगा, ऐसा हमारा मानना है।<br />अभी कुछ साल पहले कोलकाता की एक हाऊसिंग सोसाईटी के चौकीदार को ऐसे ही मामले में मिली सजा के बारे में शायद किसी को याद हो।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-73440719154472269142010-10-07T21:14:11.844+05:302010-10-07T21:14:11.844+05:30हमारी न्याय व्यवस्था के शर्मनाक पहलुओं में से एक ह...हमारी न्याय व्यवस्था के शर्मनाक पहलुओं में से एक है इस प्रकार की घटनाएं ,मुझे लगता है की ऐसे कमीनों को फांसी जैसी आसान मौत ना देकर ऐसी मौत देनी चाहिए जिससे की उन्हें मृतक की पीड़ा का एहसास हो ,फांसी की जगह गोली मार दी जाए तो अधिक उचित है <br /><br />और जिन न्यायधीशों को ये rarest of rare नहीं मालूम होता है उन्हें ये rarest of rare तभी लगेगा जब भगवन ना करे लेकिन कभी उनकी बेटी या बहिन के साथ ऐसा कुछ होगा ,तब देखिएगा कैसे rarest of rare की परिभाषा change होगी <br /><br />विचारशून्य जी ,मैं तो आपकी सभी बातों से पूर्णतया सहमत हूँ <br /><br />महकMahakhttps://www.blogger.com/profile/11844015265293418272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-73369375770174875992010-10-07T21:09:29.451+05:302010-10-07T21:09:29.451+05:30आज सोच रही थी कि इस पर कुछ लिखूं आप का लेख पढ़ा
वि...आज सोच रही थी कि इस पर कुछ लिखूं आप का लेख पढ़ा<br />विचार शुन्य जी लीजिये कमेन्ट<br />जितनी जानकारी कानून कि हैं उसके अनुसार आज कल आजीवन कारावास का अर्थ हैं जब तक मृत्यु ना हो पहले ये १४ साल कि होती थी<br />हमारे देश मे इस समय कोई भी जल्लाद मौजूद नहीं हैं सो फांसी कि सजा बेमानी होती हैं<br />मुझे ये फैसला देने वाले नयाधीश पर इन्ही दो बातो कि वजेह से गुस्सा नहीं आया क्युकी ये फैसला बहुत दूरगामी हैं<br /><br />हाँ कभी कभी सोचती हूँ रेप और मर्डर करने वालो से लोग शादी कैसे करलेते हैं और ऐसे लोग अपने बच्चो के भविष्य के बारे मे क्या कभी सोचते हैं उन्हे संसार मे लाने से पहले ??रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-11247726408821816642010-10-07T20:29:15.662+05:302010-10-07T20:29:15.662+05:30प्रकरण पर अपना भी रोष /खेद /दुःख पर रेयरेस्ट आफ रे...प्रकरण पर अपना भी रोष /खेद /दुःख पर रेयरेस्ट आफ रेयर श्रेणी की जानकारी नहीं है सो जबाब नहीं दे पाएंगे इस मसले पर कोई अधिवक्ता ही बेहतर कह पायेगा कि आखिर हुआ क्या ?<br /><br />वैसे अजय झा साहब को इस पर एक पोस्ट लिखना ही चाहिए !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-77699674443718020702010-10-07T19:48:15.916+05:302010-10-07T19:48:15.916+05:30पाण्डेय जी... हमको दू गो बात याद आ रहा है… पहिल...पाण्डेय जी... हमको दू गो बात याद आ रहा है… पहिला ई कि आदमी को बुरा चाल चलन के कारन जेल जाना पड़ता है अऊर वहाँ अच्छा चाला चलन के कारन ऊ छूट जाता है.. साबास!!<br />दोसरा बात, कि आजकल तो ई भी फैसला देखने में आया है कि पहिले बलात्कार और जब मुक़दमा चला तो बलात्कारी को कहा गया कि उससेसादी कर लो.. डबल साबास!!<br />अब न्यायपालिका पर तो अजय बाबू से बेहतर कोई नहीं बोल सकता, सो बता दिए हैं. चलिए उम्मीद का हाजमोला पुराना से पुराना कब्जियत दूर कर देता है. साठ साल से बेसी हो गया खाते हुए...याददास्त जरूर खराब हो जाता है हाजमा ठीक रहता है... पाँच साल पहिले जो हाजमोला खिलाकर गया था उसको पहिचान नहीं पाता है आदमी अऊर दुसरा हाजमोला खाकर निस्चिंत!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-35586354970551883282010-10-07T18:30:04.727+05:302010-10-07T18:30:04.727+05:30आदरणीय विचार शून्य जी ,
सबसे पहली बात तो ये कि मैं...आदरणीय विचार शून्य जी ,<br />सबसे पहली बात तो ये कि मैं यहां ये स्पष्ट कर दूं कि अभी कुछ समय पहले आए एक फ़ैसले में अदालत ने ये साफ़ कर दिया है कि , अब आजीवन कारावास का मतलब ....ताउम्र ..यानि उसके जिंदा रहने तक उसे जेल में ही बिताना होगा .....इसलिए ये कतई कयान न लगाएं जाएं कि मुजरिम कुछ समय या सालों बाद छूट जाएगा । अब रही बात इस फ़ैसले पर कुछ टिप्पणी करने की या फ़िर कि आखिर रेयरेस्ट और रेयर की कैटेगरी ..अदालत मानती किसे है ...और वो तय कैसे करती है .। मुझे लगता है कि ..यदि इसका उत्तर एक पोस्ट के रूप में दिया जो ..बेहतर रहेगा ...आज ही अपने किसी ब्लॉग पर लिखूंगा मैं इसी विषय को आगे बढाते हुए । अदालतें जरूर इन दिनों अपनी साख की गिरावट से जूझ रही हैं ......मगर अभी भी ....स्तर उतना भी नीचा नहीं हुआ है ..जितना हम आप समझ समझा रहे हैं । विषय को उठाने के लिए धन्यवादअजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-71192907418452618002010-10-07T17:26:06.223+05:302010-10-07T17:26:06.223+05:30प्रतुल जी ने सटीक बात कही…
'संवेदनाओं का सूखा&...प्रतुल जी ने सटीक बात कही…<br />'संवेदनाओं का सूखा'<br />छोटी छोटी संवेदनाओं को मन में संरक्षित रखना और बचाना होगा।<br />अतः ऐसे उपभोग को भी त्यागना होगा, जो न्युन भी क्रूरता की उपज हो।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-46348973739329173652010-10-07T17:25:29.365+05:302010-10-07T17:25:29.365+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-10501673371313642712010-10-07T16:44:25.169+05:302010-10-07T16:44:25.169+05:30प्रतुल जी की बात से भी सहमत हु शाकाहारी बनियेप्रतुल जी की बात से भी सहमत हु शाकाहारी बनियेanshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-85136575770722366122010-10-07T16:43:09.852+05:302010-10-07T16:43:09.852+05:30मुझे नहीं लगता है की ऐसे अपराधियों को मौत की सजा द...मुझे नहीं लगता है की ऐसे अपराधियों को मौत की सजा दी जानी चाहिए ये तो बड़ा आसान सजा हो जाएगी उनके लिए की एक झटके में मौत मिल गई | उन्हें तो जिन्दा ही रखना चाहिए और जेल में हर पल जीवन नरक से भी बत्तर बना देना चाहिए ताकि वो खुद सोचे की काश की उसे मौत की सजा ही मिल जाती | पहले आजीवन सजा का अर्थ १४ साल की सजा थी पर कोर्ट ने इसे बदल कर जीवन भर के लिए कर दिया पर हा अब भी १४ साल बाद सरकार उस अपराधी को छोड़ सकती है उसके अपराध की प्रकृति देख कर मतलब की सरकार छोड़ देती है उसकी हैसियत और पहुच देख कर | यदि ईमानदारी से देखे तो जो सजा कोर्ट ने दी है यदि वो पूरी तरह उसे भुगतनी पड़े तो शायद ज्यादा यातना पूर्ण सजा उसके लिए होगी | अगर इस तरह के अपराधी सरकार द्वारा पैरोल पर या माफ़ी पर छोड़ दिए जाते है तो ये गलती सरकार की है | फिर सजा का मतलब अपराध को कम करना है पर वास्तव में ऐसा नहीं हो रहा है क्योकि इस तरह के हजार केस में किसी एक को सजा मिलती है यदि उसे मौत की सजा भी मिल जाये तो बाकि पर कोई असर नहीं होता है अब सोचिये की इस तरह के सभी केस में हर अपराधी को साल भर के अन्दर आजीवन कारावास की सजा मिल जाये तो वो ज्यादा प्रभावी होगा ऐसे अपराध को रोकने के लिए |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-68993506768530126652010-10-07T13:39:15.009+05:302010-10-07T13:39:15.009+05:30.
इसे ही कहते हैं 'संवेदनाओं का सूखा'
और....<br /><br />इसे ही कहते हैं 'संवेदनाओं का सूखा' <br />और आज समाज में यह स्थान-स्थान पर देखने को मिल जाएगा. <br />इसलिये कहता हूँ कि आप जबरन की हुई छोटी-सी हिंसा में भी भागीदार न बनें. <br />अपने नाश्ते को शाकाहार से सजायें.<br />एक तरफ आज के प्रकृतिप्रेमी बुद्धिजीवी मानवीय दृष्टिकोण के बड़े बोल बोलते दिखायी देते हैं. दूसरी तरफ ब्रेकफास्ट में आमलेट, लंच में चिकन, और डिनर में मटन पसंद करते हैं. वाह रे! जीवमात्र के प्रति प्रेम-भावना. <br /><br />'न्याय' का पद एक साधना है. लेकिन मुझे नहीं लगता वे 'जज' जिह्वा और दिमाग की किसी तरह की साधना करते होंगे. यदि करते होते न्याय यूँ आँसू नहीं बहा रहा होता. <br /><br />.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-85249550363228554062010-10-07T11:58:27.617+05:302010-10-07T11:58:27.617+05:30सुज्ञ जी ने सब कह दिया , अब क्या बचा है ?? :)सुज्ञ जी ने सब कह दिया , अब क्या बचा है ?? :)एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-64696714186326056982010-10-07T11:31:02.988+05:302010-10-07T11:31:02.988+05:30क्रूर जीवनशैली के प्रभाव में हमने अपने जीवनमूल्यों...क्रूर जीवनशैली के प्रभाव में हमने अपने जीवनमूल्यों में क्रूरता को सामान्य सा आत्मसात कर लिया है।<br />इसलिये हर क्रूरतम घ्रणित कार्य सामान्य श्रेणी का होता जाता है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.com