गुरुवार, 5 अगस्त 2010

अपने बच्चों को राष्ट्रधर्म भी सिखाएं.

आजकल हमारे कुछ मुस्लिम भाई राम के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं.

इसके पीछे जो मानसिकता कार्य कर रही है वो शरीफ खान जी के अपने ताजा लेख में पूछे गए पहले प्रश्न से स्पष्ट है. शरीफ भाई साहब (ब्लॉग पर लगी फोटो से तो शरीफ खान साहब ६० ७० वर्ष कि उम्र के युवा लगते हैं पर उनकी पुत्री उम्र में मेरे बच्चों के बराबर कि ही है अतः उन्हें भाई साहब पुकार रहा हूँ. आशा है बुरा नहीं मानेंगे) ने जो प्रश्न पूछा है वो इस प्रकार है.

1. कक्षा सात में पढ़ने वाली मेरी बेटी ने जिज्ञासावश मुझसे एक सवाल किया कि क्या कारण है कि इतिहास में जब अकबर, शाहजहां, बहादुर शाह आदि किसी मुस्लिम राजा से सम्बन्धित कोई बात कहनी होती है तो इस प्रकार से कही जाती है कि अमुक राजा ऐसा था, ऐसे काम करता था आदि। और यदि शिवाजी, महाराणा प्रताप आदि हिन्दू राजाओं से सम्बन्धित कोई बात होती है तो सम्मानित भाषा का प्रयोग करते हुए इस प्रकार से लिखा जाता है कि वह ऐसे थे, ऐसे कार्य करते थे आदि। मैं बच्ची को जवाब से सन्तुष्ट नहीं कर सका क्योंकि मैं कैसे बतलाता कि लिखने के ढंग से ही जहां पक्षपात की गंध आ रही हो वहां सही तथ्यों पर आधारित इतिहास हमारे समक्ष प्रस्तुत किया गया होगा ऐसा नहीं प्रतीत होता।



शरीफ खान साहब कि  बच्ची के मन में ऐसे प्रश्न उठाना स्वाभाविक हैं क्योंकि उसे सिखाया गया है कि उसका धर्म उसके राष्ट्र से ऊपर है.

 अगर उसे बताया गया होता कि बाबर एक विदेशी आक्रमणकारी था जिसने अपनी क्रूरता और युद्ध के बेहतर तरीकों लो वजह से इस पवित्र धरा पर राज किया और यहाँ के मूल निवासियों कि श्रद्धा का अपमान किया और उसके वंशज भी ऐसी ही मानसिकता के तहत इस देश के लोगों को तंग करते थे तो शायद वो ऐसा प्रश्न नहीं करती पर उसे सिखाया गया है कि इस्लाम को मानने वाले सभी आक्रमण करी चाहे वो मोहम्मद  गजनी हो चंगेज खान हो बाबर हो औरंगजेब हो या फिर आजकल भोपाल में आने वाले अरब हों सभी अच्छे लोग हैं.

बाबर के वंशजों ने भारत में रहकर यहाँ कि शहजादियों के साथ विवाह किये और बच्चे पैदा किये ये उनका इस देश से प्यार नहीं बल्कि उनकी राजनीती थी. अकबर जिसे उदारवादी मुस्लिम कहा जाता है उसके दरबार में ईरानी , तुर्क और पठानों कि क्या हेसियत थी इसके ऐतिहासिक प्रमाण आसानी से मिल जायेंगे. आज भी दिल्ली कि जामा मस्जिद का इमाम एक ईरानी परिवार है जो भारतीय मूल के मुसलमानों से खुद को उच्च समझते हैं.

ऐसे लोगों को क्या सिर्फ इसलिए सम्मान दिया जाय कि वो मुस्लिम हैं. मैं ऐसा नहीं समझता.

मैं तो अपने बच्चों का सिखाता हूँ कि हमारा  युसूफ पठन श्रीलंका के मुरलीधरन,न्यूजीलैंड के दीपक पटेल  या इंग्लैंड के मोंटी पनेसर से अच्छा स्पिनर है.

अगर आप धर्म को राष्ट्र के ऊपर प्रमुखता देंगे और चाहेंगे कि पाकिस्तान के जिया उल हक, भुट्टो और मुशर्रफ़ को आदर के साथ उल्लेखित किया जाय तो बच्चे तो कन्फ्यूज होंगे ही जनाब.

 नेपाली हिन्दू राजाओं ने हमारे उत्तराखंड पर आक्रमण किया और उसे बहुत दिनों तक कब्जे में रखा हम उनके लिए सम्मान कि बात नहीं करते आप भी ऐसा ही करे और अपने बच्चों को भी यही सिखाएं तभी इस देश का भला होगा.

नेपाल चीन के साथ मिलकर भारत के विरुद्ध अगर षड़यंत्र रचता है तो मैं चाहूँगा कि नेपाल को भी सबक सिखाया जाय जबकि वहां पर हिन्दू बाहुल्य है. पर ऐसा सिर्फ एक हिन्दू ही क्यों सोचे. ये सोच अधिकांश मुस्लिम लोगों कि क्यों नहीं है.  एक मुस्लिम क्यों विदेशी आक्रमण कारियों  को इस देश के लोगों से ज्यादा सम्मान देना चाहता है?

धर्म राष्ट्र से ऊपर नहीं है राष्ट्रवादी भावना धर्म से ऊपर है वर्ना धर्म को ऊपर रखने वाले पाकिस्तान कि क्या हालत है किसी  से छुपी नहीं है. मुस्लिम राष्ट्र होने कि वजह से क्या दिन देख रहा है.

कृपया भारत के बच्चों को राष्ट्रवाद कि प्रेरणा दें तभी हमारा और आने वाली पीढ़ियों का विकास होगा.

12 टिप्‍पणियां:

  1. विचार शून्य जी आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ ,हमारा राष्ट्र कल भी सबसे बड़ा और अधिक महत्वपूर्ण था, आज भी है और आगे भी यही सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण रहेगा .इसके सामने हर मज़हब, हर जाती, हर प्रांत हमेशा छोटा था और रहेगा .

    इतनी अच्छी और सच्ची पोस्ट लिखने के लिए आपका आभार

    महक

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  2. विचारों में एक क्रांतिकारक मोड़.
    दमदार पोस्ट.
    पूरी तरह सुलझा हुआ राष्ट्रधर्म का बोध कराता जवाब.
    मुझे अपने पर गर्व होने लगता है कि मेरी मित्रता श्री दीपचंद जी से है.

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  3. गुड... राष्ट्र जागरण जारी रहे....

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  4. @ विचार शून्य भाई ,
    धर्माधारित पोस्ट / विषयों और उनपर क्रियाओं / प्रतिक्रियाओं से मेरा हाजमा खराब हो जाता है , डाक्टर की सलाह यही है , सो परहेज़ करता हूं !
    मुझे केवल राष्ट्रवाद के बिंदु पर सहमत मानिये ! एक और ब्लॉग है जहां आपके लिए एक अनुरोध छोड़ आया हूं ! जरुरी समझियेगा तो मेल कर लीजियेगा !

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  5. हमारे लिये जयचंद जैसे लोग हिन्दू होने के बावजूद सम्मान के पात्र नहीं हैं, और अशफ़ाकउल्ला खां, अब्दुल हमीद जैसे वीर सिर्फ़ इसलिये त्यज्य नहीं हैं कि वे मुस्लिम थे।
    पाकिस्तान में रहने वाले चाहे किसी भी धर्म के मानने वाले हों, हम उनसे भी यही अपेक्षा रखेंगे कि वो अपने देश के प्रति समर्पित रहें। तो अपने देश में रहने वाला कोई भी हो, पहले वो भारतीय है।
    केवल धर्म के आधार पर किसी के बारे में फ़ैसला करना हास्यास्पद है।
    और भाई, बच्चों को प्रेरणा तभी देंगे अगर हमारे पास कुछ देने लायक होगा। वैसे भी हम भारतीय कब हैं? हम हिन्दू हैं, मुस्लिम हैं, पंजाबी हैं, बिहारी-बंगाली है, सब कुछ हैं बस हिन्दुस्तानी नहीं है।
    मैं खुद भी कोई बहुत धार्मिक नहीं हूं, लेकिन मुझे अपने देश पर, अपने धर्म पर बहुत गर्व है। दूसतों के लिये उनका धर्म गर्व करने लायक हो सकता है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि वो मेरे धर्म की बुराई करेंगे, मेरी आस्था पर प्रश्नचिन्ह लगायेंगे।
    दीप, इतनी स्पष्टता से अपने विचार रखने पर बधाई।

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  6. @ मो सम कौन जी धन्यवाद आपने मेरी सोच को विस्तार दिया. मैं दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ा हूँ. इतिहास कि किताबों को पढ़कर हमेशा ही मैंने अकबर को एक महान मुग़ल सम्राट के रूप में जाना. औरंगजेब को छोड़ जहाँगीर आदी अन्य मुग़ल बादशाहों के विषय में जो कुछ भी हमारी किताबों में लिखा गया वो कहीं भी असम्मानजनक नहीं है. बाल्यकाल में ये लोग मेरे हीरो थे. इन लोगों कि असलियत तो मेरे सामने तब आयी जब मैंने स्वतंत्र लेखकों कि पुस्तकों को पढना शुरू किया. सरकारी इतिहास कि किताबों में तो बाबर मोहम्मान गोरी और दुसरे मुस्लमान आक्रमण कारियों का नाम सम्मान के साथ ही लिया जाता है. मुस्लिमों के साथ दुसरे दर्जे के नागरिकों सा व्यव्हार होता तो क्या इस देश में मुस्लिम राष्ट्रपति, , उप राष्ट्रपति, प्रधान न्यायाधीश आदी उच्च पदों पर (एक बार नहीं अनेक बार) आसीन हो पाते. असम्मान और भेदभाव का रोना रोने वाले इन गिने चुने मुसलमानों को क्या शाहरुख़ खान, आमिर खान, सैफ अली खान, दिखाई नहीं देते जो सभी भारतीयों के दिलों पर राज कर रहे हैं. अगर भारत में मुस्लिमों के साथ भेदभाव होता तो क्या ये लोग इतने ऊचे पहुच पाते. भारत में कोई भी ईसाई इन उच्च पदों पर नहीं पहुच. उन बेचारों को कहना चाहिए कि उनके साथ भेदभाव वाला व्यव्हार हो रहा है मुसलमानों के ऐसा कभी भी नहीं बोलना चाहिए. मुस्लिमों को या अन्य किसी भी दुसरे धर्म के लोगों को भारत में सामान अधिकार प्राप्त हैं और सभी को सम्मान कि दृष्टि से देखा जाता है . शरीफ साहब का नजरिया दोषपूर्ण है.

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  7. @ अली साहब मेरे पास आपका इ मेल एड्रेस नहीं है. आपकी टिप्पणी का जो मेल आया है उसी का जवाब आपको भेजा है आशा करता हूँ आपको मिल जायेगा. अगर ऐसा ना हो तो कृपया अपना इ मेल एड्रेस बताएं मैं आपसे संपर्क कर लूँगा.

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  8. आपने सही पते पर मेल किया है ! मैंने वही पर आपसे थोड़ी सी गुफ्तगू की है :)

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  9. आपकी बात और जज़्बा दोनों समझ में आ रहे हैं।

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  10. आपके विचारों से असहमत होने का कोई कारण नहीं बनता. शरीफ खान जी यदि खुली सोच रखते हों तो संतुष्ट हो जाना चाहिए.

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