बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

धर्म धार्मिकता से कोसों दूर.

एक आम भारतीय की तरह से मैं भी धार्मिक हूँ। रोज पूजा करता हूँ। भगवान से ढेर सारा रुपया मांगता हूँ। मुसीबतों को दूर रखने की प्रार्थना करता हूँ। अपने दुश्मनों के विनाश की मंगल कमाना करता रहता हूँ। माथे पर टीका भी लगाता हूँ। मंदिर में दूध मिला जल भी चदता हूँ और जब भी मौका मिलता है अपनी इन आदतों का बखान चार लोगों के बीच करने से नहीं चुकता। यानि मैं सामान्य अर्थों में धर्म परायण व्यक्ति हूँ। अब इससे ज्यादा कोई क्या कर सकता है।

पर मैं थोडा और आगे जाना चाहता हूँ। अपने धार्मिक ज्ञान को थोडा और बढ़ाना चाहता हूँ। इसके लिए टीवी देखता हूँ। यह सस्ता साधन मेरे कमरे में ही है। टीवी पर आजकल अनेकों धर्म गुरु भारतीय जनमानस की धार्मिकता को बदने का प्रयास कर रहे हैं। में उनकी शिक्षाओं को ग्रहण करने का प्रयास कर रहा हूँ पर थोडा दिग्भ्रमित हूँ की किसको छोडू और किसे अपनों। सभी एक से बढकर एक हैं।

एक गुरूजी कहेतें हैं की भगवन तो ऊपर है धरती पर तो गुरु ही है। भगवन का अनुसरण करना तो कठिन है अतः आप लोग आसानी से सुलभ गुरु का ही अनुसरण करो और उस पर अपना तन मन धन न्योछावर कर दो।

दुसरे महाराज जी कहते हैं की सभी देवी देवताओं में मेरी पूज्य यह देवी ही आपका कल्याण कर सकती हैं अतः आप इनकी ही पूजा करो। अपनी बात के समर्थन में वो हर बेद पुराण में लिखी उक्तियों का उल्लेख करते हैं। अपनी बात को पुष्ट करने के लिए वो बताते हैं की यह बात फलां पुराण के फलां पेज की फलां लाइन में लिखी है। अरे भाई आप क्या कर रहे हैं। आप हमें अपनी तेज बुद्धि से प्रभावित करना चाहते हैं या फिर अपने विचारों से। अगर आपकी बात में दम है तो उसे दबाया नहीं जा सकता फिर चाहे वह कहीं लिखी गई हो या नहीं।

एक गुरूजी अपने भक्तों को कल्याण हेतु मंत्र देते हैं पर गुप्त रूप से ताकि किसी अनजाने भक्त का भला न हो जाये। वे कहते हैं की मेरे मन्त्रों से आपके सभी दुखों, कष्टों, परेशानियों का निबटारा हो जायेगा पर आपको मेरे शिविर आना पड़ेगा। टीवी पर तो मैं सिर्फ अपना प्रचार ही करूँगा।

सभी गुरुओं के मत भिन्न हैं पर एक बात सभी में सामान है। अगर आप इन्हें अन्य भक्तों के कल्याण हेतु अपने इलाके में बुलाना चाहते हैं तो ये गुरुजन बिना पैसे लिए आपको कृतार्थ नहीं करेंगे। एसा कोई भी नहीं जो मुफ्त में आपका कल्याण कर दे।

पर मैं तो एक मुफ्तखोर हूँ अतः चाहता हूँ की उस इश्वर से मेरा सीधा संपर्क हो। बीच में कोई दलाल न हो।
मैं और मेरा ईश्वर और मध्य में कोई नहीं, न कोई धर्मं न कोई धर्मगुरु, न मंदिर न मस्जिद, कुछ नहीं बस मैं और वो।

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