मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

आदरणीय या पूजनीय

सभी को कन्या पूजन दिवस की बधाइयाँ.

सुबह से ही गली में गहमा गहमी सी हैं. लोग बाग कन्याओं की तलाश में द्वारे द्वारे डोल रहे हैं. मेरे घर में भी एक छोटी सी कन्या है अतः मेरे दरवाजे पर भी कई बार दस्तक हुयी और न चाहते हुए भी बार बार बिटिया को भेजना पड़ा.

मुझे भारतीय मानसिकता में व्यक्तिपूजन एक बहुत बड़ा अवगुण लगता  है.  व्यक्ति पूजन की   प्रवृति हमारी मानसिकता का अभिन्न अंग है. किसी व्यक्ति के प्रति अपने आदर, प्रेम और सम्मान को प्रकट  करते समय हम लोग सहज नहीं रहते. हम लोगों को चने के झाड़ पर चढाने  में माहिर हैं. महात्मा गाँधी पूजनीय हैं. सचिन तेंदुलकर क्रिकेट के भगवान हैं. दक्षिण भारत में रजनीकांत और खुशबू के मंदिर हैं. अनेकों संत महात्माओं की लाइव आरती आप विभिन्न आस्था जैसे चैनलों पर कभी भी देख सकते हैं. आजकल लोग बाग़ अन्ना हजारे को भी पूज रहे हैं.

हमारी इस मानसिकता की शुरुवात बचपन से ही हो जाती है जब हमें बताया जाता है की हमारे माता पिता पूजनीय हैं. हम अपने माता पिता को इन्सान न मानकर भगवान बना देते हैं जिनकी तस्वीर पर हार चढ़ाना हमारा परम कर्तव्य होता है. उनके मानवीय गुण, उनकी इंसानी इच्छाएं और कर्म उनके देवतुल्य पूजनीय व्यक्तित्व के तले तब जाते हैं.

मुझे अपने लड़कपन की एक रोचक बहस याद आती है जो मैंने सिर्फ इस पूजनीय मानसिकता की वजह से जीत ली थी.

मेरे एक मित्र, जो उम्र में हमसे करीब तीन चार वर्ष बड़े थे, ने नवीं कक्षा में जीव विज्ञानं की अपनी पाठ्य पुस्तक से  मानव प्रजनन पर प्राप्त ज्ञान का हम सभी मित्रों के समक्ष वर्णन किया. उन्होंने स्त्री पुरुष के सहवास की विधि अत्यंत विस्तार से हमें समझाई.  उस  वक्त  तक मेरा पूर्ण विश्वास था की मानव अपनी संतति का विस्तार अलैंगिक जनन के जरिये करता है जिसमे बच्चे तो पति द्वारा पत्नी को प्यार से छूने से ही हो जाते हैं और सेक्स बड़ी गन्दी चीज है अतः मैंने  मित्र का अपने तर्कों द्वारा कड़ा विरोध किया.

मेरा पहला तर्क था की महात्मा गाँधी जिन्हें सारा संसार पूजता है उनके  भी बच्चे थे तो क्या उन्होंने सेक्स के जरिये बच्चे पैदा किये. मित्र ने पुरे विश्वास के साथ सहमती दी. अब मैंने  दूसरा  तीर  चलाया.  मैंने कहा की भगवन राम के दो पुत्र थे. क्या उन्होंने सीता मैय्या के साथ  सेक्स किया होगा. मित्र थोडा हिचके पर फिर भी उन्होंने हामी भर  दी.  तब  अंत  में  मैंने उनसे पूछा की वो और उनके  तीन  भाई  बहन क्या तब  पैदा  हुए   जब उनके पिता ने उनकी माँ की............  
इस बार  मेरा  ब्रम्हास्त्र  अपना काम कर गया. एक पुत्र अपने पूजनीय  माता पिता के मानवीय  गुणों को स्वीकार न कर पाया और उसने मान  लिया की बच्चे छूने से ही पैदा होते  है तथा  सेक्स  करना   गन्दी  बात   है.   आज जब  हम सभी मित्रों  को वास्तविकता का ज्ञान है तो हम मिलकर अपनी उस बहस पर हँसते  हैं.   

मुझे व्यक्ति पूजा इसलिए बुरी लगाती है क्योंकि हम अपने  
श्रद्ध्येय  के मानवीय गुणोंऔर दोषों को स्वीकार नहीं  कर पाते.  हमारी  श्रद्धा  हमें उनके  भीतर  की  कमजोरियों को और  कमियों  को  सहजता से स्वीकारने नहीं देती. जो लोग तेंदुलकर को क्रिकेट का   भगवान  मानते हैं उन्हें ये  नजर नहींआता की २००3 के वल्ड कप फ़ाइनल में भी  उनका  ये भगवान असफल ही रहा था. खुशबु का सेक्स पर दिया एक  बयान ही उनके समर्थकों के दिल तोड़ देता है जो प्रतिउत्तर में उनके मंदिर तोड़ देते हैं. गाँधी जी को महात्मा कह पूजने वाले उनके ब्रहमचर्य पर किये गए प्रयोगों को स्वीकार नहीं कर पाते. एक आज्ञाकारी पुत्र अपने पूजनीय माता पिता द्वारा बहुओं के साथ  किये जा रहे  पक्षपातपूर्ण  व्यव्हार  का  मूक  समर्थन करता रह जाता है.  

अब प्रश्न उठता है की हम किसकी पूजा करें ? क्या मासूम कन्याओं की साल में दो बार पूजा करते रहने  से हमें मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती रहेगी.

इस  उत्तर की तो मुझे भी तलाश है.










19 टिप्‍पणियां:

  1. रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  2. पाण्डेय जी आप का एक पाठक होने पर गर्व होता है ... ना ना मैं आपको कतई पूजनीय नहीं मान रहा हूँ ... मैं तो सिर्फ़ आप के खुल कर अपनी बात कहने वाले इस मानवीय गुण की ही प्रशंसा कर रहा हूँ ... आप की बात में दम है ... केवल साल में दो बार कन्या पूजन से कुछ नहीं होने वाला ... अगर हम समाज में कन्या को पैदा ही नहीं देंगे तो पूजन का सवाल ही पैदा नहीं होता ! हम सब को अपनी इस सोच को बदलना होगा कि लड़कियां लडको से किसी बात में कमतर है !

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  3. पता नहीं किस संदर्भ में यही विचार आज शाम मेरे मन में भी उमड़ घुमड़ रहे थे -व्यक्ति पूजा मनुष्य के आँखों पर एक आवरण चढ़ा देती है -अन्धश्रद्धा और आशीर्वाद से बचना ही श्रेयस्कर है !

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  4. मेरे विचार में कन्याओं का ये पूजन समाज में महिलाओं के महत्व को दर्शाता है. उनके स्थान को दर्शाता है. ये अलग बात है कि हम लोग हर बात में नफा-नुकसान खोजते रहे और कन्या को भ्रूण में ही खत्म करने पर उद्यत हो गये.

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  5. एकदम सहमत हूँ,व्यक्तिपूजा को किसी भी तरह सही नहीं ठहराया जा सकता.

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  6. दीप सर,
    आपसे बहस करने में छीछालेदर ही होनी है इसलिये सहमत हो लेते हैं। वैसे पेले, माईकल जैक्सन, एल्विस प्रैस्ले, कर्नल गद्दाफ़ी, फ़िदेल कास्त्रो, सद्दाम हुसैन आदि आदि अंतहीन ऐसे व्यक्तित्व रहे हैं जो खुद भी भारतीय नहीं थे और उन्हें पूजने वाले भी भारतीय नहीं थे। पूजा का तरीका अलग हो सकता है। अपने रोल मॉडल्स को एक विशेष स्थान दे देना मानवीय स्वभाव ही है, सिर्फ़ भारतीय मानसिकता नहीं। हम भावनात्मक रूप से कुछ ज्यादा ही इन्वाल्व हो जाते हैं, ऐसा जरूर है।
    कन्यापूजन पर भारतीय नागरिक जी की टिप्पणी को हमारी भी टिप्पणी मान लिया जाये। सिर्फ़ दिखावे के लिये ऐसा किया जाना मुझे भी पसंद नहीं।

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  7. व्‍यक्ति श्रद्धा के पात्र हो सकते हैं लेकिन पूजा के नहीं। हमारे यहाँ किसी को भी भगवान बना दिया जाता है। अब भगवान का अर्थ है जो सृष्टि की रचना करे और उसको संरक्षण करे। लेकिन सचिन भी अब भगवान बन गए हैं? असल में हम सब भिखारी है, बस मौका तलाशते हैं कि किस से कुछ मांगा जाए। इसलिए न जाने हमने कितने भगवान बना दिए हैं। अब सचिन तो खुद मांग रहे हैं और हम उन्‍हें भगवान बनाना चाहते हैं। रही बात माता-पिता की, उन्‍हें भी ईश-तुल्‍य कहा है, क्‍योंकि उन्‍होंने हमारा सृजन किया है। हमारा संरक्षण किया है।

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  8. वैसे ना समझना हमारी निशानी है .................. हमेशा अनुशासन से रहना चाहिये यह सिखाया जाता है बचपन से क्यों ???? क्योंकि इससे समाज की व्यवस्था बनी रहती है साथ साथ निजी जिन्दगी में भी आवश्यक है अनुशासन............... उसी तरह पूजा मतलब किसी के प्रति विनय, श्रद्धा और समर्पण का भाव प्रकट करनेवाले कार्य होता है, किसी को प्रसन्न या संतुष्ट करने के लिए किया जानेवाला कोई कार्य भी पूजा कहलाता है.
    पूजा का मतलब रोली मोली चावल चढ़ाना ही थोड़े होता है .......................पति या पत्नी एक दूसरे का आदर करे या एक दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पण रखें तो यह पूजा कहलाई . वैसे ही माता -पिता का सम्मान भी उनकी पूजा ही है. ................ कन्या पूजन का महत्त्व कन्या के सम्मान से उसके समाज में स्थान से है........................ अब अनुशासन तोड़े हम की रेड लाइट पर नहीं रुकना, बिना हेलमेट के गाड़ी चलाना, या या या (ये "या" काफी लम्बे है ) उसी तरह बडगे-बूढ़े तो हमें कन्या पूजन के रूप में रास्ता दिखा गए के बच्चों कन्या समाज में, तुम्हारे-हमारे जीवन में विशिष्ठ स्थान रखती है.......इसका हमेशा सम्मान करना. येह पूजा (सम्मान) योग्य है ............... इसको कभी असंतुष्ट मत करना ........................... पर अब इसे भी हमने खीर-पुढी खिलाने और दक्षिणा देने तक सीमित मान लिया तो दोष "कन्या पूजन" का नहीं है........ दोष कन्या पूजने वालों का है........ दोष अनुशासन तोड़ने वालो का है .................... दोष हमारा है.

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  9. bhai deepji.......

    hum to darshak-dirgha me baith liye.......is vimarsha ko dekhne ke liye........vishay sundar
    hai.......dristikon apka......bajariye apke tark
    ..........sahi lag rahe hain........bakiya.....
    shreshthjan ke dwara 'saar'....samjhi jayegi....

    pranam.

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  10. जय किसकी बोलूँ ?
    क्यों बोलूँ ?
    सब ही उस सीढ़ी से गुजरे.
    क्या भिन्न वयों के पट खोलूँ?
    देखूँ कि वो कितने सुधरे ?
    ............ सृष्टि की प्रक्रिया को कटघरे में खड़ा करना मूर्खता है.
    बालमन को व्यस्त रखते के लिये तमाम प्रश्न बिखरे रहते हैं उनमें ही उलझाकर रखना चाहिए.
    एक समय के बाद मस्तिष्क कुछ मेच्योर हो जाने पर ही इन प्रश्नों की उलझन दूर करनी चाहिए.
    किसी व्यक्ति या सन्त या महापुरुष के प्रति आदर और पूजा की भावना पैदा जिन कारणों से होती है
    उसे 'काम' पर ही केन्द्रित नहीं कर देना चाहिए. बहुत से ऐसे अन्य पहलू भी होते हैं जो हमें गुरुजनों के प्रति नत करवा देते हैं.

    यदि मैं आज़ किसी बालक या नवयुवक से प्रेम करता हूँ या उसे पसंद करता हूँ तो उसकी किसी अत्यंत निजी वृत्ति के कारण उससे घृणा करने लगूँ तो यह तो उसके अन्य गुणों को नज़रअंदाज करना होगा. मित्र, आप मुझे मिलते हो तो आपकी किसी विशेष बात का ही मुझे ध्यान हमेशा नहीं रहता. मैं तो आपकी छवि आपके एकाधिक गुणों के कारण मानस में बैठाए रहता हूँ. शायद आप सम्जः पायें कि आदर और पूजा के भाव कई अन्य वजहों से उपजते हैं न कि 'काम' संबंध के मानसिक चित्रों के कारण. हाँ, जिसके मन में विचारों की शून्यावस्था हमेशा बनी रहे तो उसके मन में वही बात सबसे पहले दाखिल होगी जिसे वह सबसे अधिक पसंद करता होगा.

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  11. @ लड़कपन ,
    हमारा पारिवारिक / सामाजिक ताना बाना एक लंबी उम्र तक हमारे लड़कपन( भ्रम ) को बरकरार रखता है जबकि वयस्कता सत्य है और उसे बहुत पहले जग ज़ाहिर हो जाना चाहिए ! बस यूं समझिए कि आदरणीय/पूज्यनीय और अनादृत/अपूज्यनीय की विभेद रेखा भी ऐसे ही अस्तित्वमान है !

    @ प्रविष्टि ,
    क्लास ( शास्त्रीय ) ,बेहतरीन ,अदभुत पर्यवेक्षण !

    @ जी चाहता है कि कह दूं ,
    कतिपय मित्र आपकी इस प्रविष्टि को ए सर्टिफिकेट देने की सोच रहे होंगे जिसे उनका लड़कपन माना जाए :)

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  12. राहुल जी के कमेंट के आगे एक लाइन जोड़ने का मन हो रहा है...

    तर्कों की दुधारी तलवार
    इधर जाओ उधर से होगी वार।

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  13. @मुझे भारतीय मानसिकता में व्यक्तिपूजन एक बहुत बड़ा अवगुण लगता है. व्यक्ति पूजन की प्रवृति हमारी मानसिकता का अभिन्न अंग है.

    पाण्डेय जी, बहुत ही वैचारिक प्रशन आपने उठाये है, आशा करता हूँ कि टीप के माध्यम से आपको उत्तर मिले होंगे.... पर मैं ये कहना चाहता हूँ कि सम्पूर्ण भारत वर्ष में जहाँ अलग अलग रहन सहन है ...... अलग ही संस्कृति है, पर व्यक्ति पूजा हरेक समाज में है ..... उत्तर के सीमान्त राज्यों से लेकर दक्षिण के राज्यों तक आप देख सकते है........

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  14. @...मुझे भारतीय मानसिकता में व्यक्तिपूजन एक बहुत बड़ा अवगुण लगता है.

    @...पर व्यक्ति पूजा हरेक समाज में है ..... उत्तर के सीमान्त राज्यों से लेकर दक्षिण के राज्यों तक आप देख सकते है...

    भारत में ही क्यों, व्यक्ति पूजा हर संस्कृति में है। जिन समाजों ने पूजास्थल गिरा दिये वहाँ बुतपरस्ती कुछ ज़्यादा ही है। यह एक सामान्य मानवीय गुण है, आवश्यकता है इसे निखारने की जैसा कि कन्यापूजन की मूलभावना में निहित था।

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  15. अनुराग जी से पूर्णतः सहमत!!
    "आवश्यकता है इसे निखारने की"
    आवश्यकता है जिस गुणो के लिये कोई पूज्य बनता है उन गुणों को अंगीकार करने के शुभभाव की।
    आवश्यकता है गुणों को गुणों के रूप में पुनः स्थापित करने की।
    पूज्य गुणों को सम्मान देकर, उसकी महिमा बढाकर, उसके मूल्यों को अनुकरणीय बनाने की।

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