अजित गुप्ता जी का बेटियों को समर्पित लेख पढ़ा. मुझे यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी.
हमारे समाज में बेटियों को एक दायित्व समझा जाता है. पुत्री का लालन पालन हम लोग पराया धन समझ कर करते हैं जो भविष्य में किसी दुसरे घर को आबाद करेगी . काश लोग इस बात को समझ पाते की एक बेटी पैदा होने के साथ ही अपने पिता के घर को आबाद कर देती है जो पुत्र कभी नहीं कर पाते. बेटियां ही घर को घर बनती है वर्ना ये तो एक सराय ही बना रहता है.
मैं भावुकता को स्त्रिओं की सबसे बड़ी कमी मानता था पर मेरी बिटिया ने मुझे सिखाया है की परिवार को जोड़ने के लिए भावुकता और संवेदनशीलता एक स्त्री का सबसे बड़ा गुण हैं. बेटियां और बहनें अपनी भावुकता और संवेदनशीलता से हमारे दिलों में तरलता पैदा करती हैं. जिन परिवारों में सिर्फ लडके ही होते हैं उन परिवारों के सदस्यों का आपसी जुडाव बहुत जल्दी टूट जाता है जबकि बेटियां उम्र भर अपने परिवार के सदस्यों को जोड़ने वाली कड़ी या फेविकोल का कार्य करती रहती है.
अभी इस होली की ही एक छोटी सी घटना मुझे याद आ रही है. मेरी पत्नी गुजिया बना रही थी और मैं उनकी सेवा में उपस्थित था. हमारा यह कार्यक्रम शाम ८ बजे से शुरू हुआ और रात के ग्यारह साढ़े ग्यारह बजे तक चलता रहा. इस सारे वक्त में मेरी बिटिया हमारे साथ गुजिया बनाने में ही व्यस्त रही जबकि हमारा बेटा टी वी पर कार्टून देखता रहा.
मैं और मेरी पत्नी जब भी साथ बैठ कर बातें कर रहे होते हैं तो हमारी बिटिया रानी हमेशा अपने सारे काम छोड़ कर हमारा साथ देती है परन्तु बेटा अपने खेलों और दोस्तों में ही व्यस्त रहता है. वो तभी हमारे पास आता है जब उसे मेरे साथ खेलना होता है या किसी चीज की आवश्यकता होती है. एक परिवार के रूप में माता पिता के साथ बैठ कर गप शाप कर दिल बहलाने वाली बात उसमे मुझे अभी नहीं दिखी है जबकि मेरी तीन वर्ष की बिटिया में ये भावना शुरू से है.
बेटियां एक घर को घर बनती है. ये परिवार में संतुलन पैदा करती है. इस वर्ष होली पर ली गयी मेरी बिटिया की दो तस्वीरें.
मेरे साथ. |
अपनी माँ और भाई के साथ. |
और अब जरा मेरी नन्ही बिटिया की इस तस्वीर को देखे. ये छलकती हुई ऑंखें और बहती हुई नाक किस वजह से? क्या जुकाम हुआ या किसी ने उसे मारा.
जी नहीं उसका ये हाल एक लोकप्रिय राजस्थानी गीत को देख कर हुआ. पहले पहल मुझे विश्वाश नहीं हुआ जब मैंने अपनी बिटिया को इस गीत को सुन कर रोते हुए देखा. इस गीत में बेटी की विदाई के द्रश्यों को देख मेरी तीन वर्ष की बिटिया बहुत ही भावुक हो जाती है.
ठीक ऐसा ही गीत प्रसिद्द गायिका शोभा गुर्टू ने भी गया है जो मुझे बहुत पसंद है और जिसे सुन कर मैं खुद भी बहुत ही भावुक हो जाता हूँ. शोभा जी का मेरा यह पसंदीदा गीत भी आपकी सेवा में प्रस्तुत है
अगर आप एक नन्ही सी बिटिया के भावुक माता पिता हैं तो आइये थोड़ी आंखे गीली कर लें.
अंशुमाला जी के निर्देशानुसार बिटिया की दो एकदम ताजातरीन मुस्कुराती और खिलखिलाती तस्वीरें. |
मैं तो अभी से ही नहीं समझ पाता कि अपनी बेटी को दूर कैसे कर पाऊंगा... और ऐसे ही समय के लिये दर्शन याद आता है कि कुछ भी अपना नहीं. वैसे मेरी बेटी भी बहुत जल्दी आंखों में पानी भर लेती है..
जवाब देंहटाएंमैं तो अभी से ही नहीं समझ पाता कि अपनी बेटी को दूर कैसे कर पाऊंगा... और ऐसे ही समय के लिये दर्शन याद आता है कि कुछ भी अपना नहीं. वैसे मेरी बेटी भी बहुत जल्दी आंखों में पानी भर लेती है..
जवाब देंहटाएंसचमुच द्रवित कर देने वाली. एक बिटिया यहां http://akaltara.blogspot.com/2010/10/blog-post.html पर भी है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपांडे जी,
जवाब देंहटाएंआँखें ही नहीं,मन तक गीला हो गया.. संयोग से हम दोनों ही कन्या के पिता हैं और हमें इस बात का गर्व है!!
मुझे भी गर्व है अपनी बेटिओं पर. पूरी तरह सहमत हूँ आपसे, जो संवेदनशीलता माता पिता के प्रति बेटिओं में है वह लड़कों में कम ही मिलती है.
जवाब देंहटाएंकुछ कहते नहीं बन रहा है ... बस मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं आपको और आपके परिवार को !
जवाब देंहटाएंबेटियां ठंडी हवाएं और बेटे लू के थपेड़े है ..आप खुद बच्चे लग रहे हैं!बात तो वयस्कों वाली करते हैं :)
जवाब देंहटाएंसंवेदना का अहसास केवल संवेदनशील लोग ही कर पाते हैं ! एक संवेदनशील पिता से पूँछिये बेटी की विदाई कैसी लगती है ! अभी आपके लिए काफी समय है :-) शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएं@परिवार को जोड़ने के लिए भावुकता और संवेदनशीलता एक स्त्री का सबसे बड़ा गुण हैं
जवाब देंहटाएं@बेटियां और बहनें अपनी भावुकता और संवेदनशीलता से हमारे दिलों में तरलता पैदा करती हैं
@बेटियां एक घर को घर बनती है. ये परिवार में संतुलन पैदा करती है.
इन बातों और पोस्ट से सहमत हूँ
मेरा नजरिये से आज तक की सबसे अच्छी तरह से दिल की गहराई तक पहुंचने वाली पोस्टस में से एक है
इन बेशकीमती पलों को हम सभी से साँझा किया आपने ...... इसके लिए विशेष आभार
मैं तो मिश्र जी की टिपण्णी पढ़ के मुस्कुरा रहा हूँ
जवाब देंहटाएं"बेटियां ठंडी हवाएं और बेटे लू के थपेड़े है"
इस पोस्ट के लिये साधुवाद और बेटी का पिता होने की बधाई। आमतौर यह सच है कि बेटियाँ ही नहीं, उनके माता-पिता का हृदय भी कोमल हो जाता है लेकिन साथ ही मुझे ऐसा भी लगता है कि कमी बेटों में नहीं बल्कि हम में ही है। हम ही करुणा और ज़िम्मेदारी जैसी भावनायें अपने बेटों को देने का उतना प्रयत्न नहीं करते जितना करना चाहिये। मैं तो ऐसे गुणों वाले अनेकों लडकों को जानता हूँ जो माँ-बाप के हर काम में साथ बैठकर हाथ बंटाते हैं और बेटियों जैसे ही हमेशा जोडने वाले काम करते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट है मित्र, आज इतना ही कहूँगा।
जवाब देंहटाएंSmart Indian जी की टिप्पणी में जो विचार हैं ऐसे ही विचारों के इन्तजार में था ....इसीलिए तीसरी बार आकर इस पोस्ट को देखा... . आभार :)
जवाब देंहटाएंमायके की कल्पना बेटियों के होने से ही है। बेटी नहीं होती तो छुट्टियों में घर मकान बन जाते हैं। लेकिन दुख इस बात का है कि कुछ लोग प्रेम को महत्व नहीं देते बस बेटे होने के भाव में ही गर्व अनुभव करते हैं। आप द्वारा प्रस्तुत गीत एक सीरियल का टाइटल गीत था।
जवाब देंहटाएंबेटी का चित्र और संवेदनाये दोनों अच्छी लगी .
जवाब देंहटाएंबेटी क्या हैं सब जानते हैं लेकिन जब चुनने का समय आता हैं पलड़ा बेटो की तरफ झुकता हैं . बेटो के लिये सब सही हैं उदंडता भी क्युकी मान लिया जाता हैं ये प्राकृतिक हैं . आशा हैं आने वाले समय मे बेटियों की सहनशीलता को एक मानदंड मानकर बेटो को भी सहनशीलता का कुछ पाठ दिया जाए ताकि आप की बेटी जिस घर जाए वहाँ केवल एडजस्ट उसको ही करना पडे या किसी की बेटी जब आप के घर आये तो उसी उन्मुक्तता से रह सके जिस से आप की बिटिया रह रही हैं
बेटिया विवाह कर हमसे दूर जा कर भी कभी हमसे दूर नहीं जाती जबकि पुत्र पास हो कर भी कभी हमारे पास नहीं होते | अनुराग जी से सहमत हूँ हम जो ये मान बैठते है की लड़को में संवेदनशीलता की भावुकता की जरुरत ही नहीं है ये सब तो बस बेटियों बहनों के लिए है ये सब चीजे नारी के गहने है आदि आदि जब हमारी मानसिकता ये रहेगी तो हम पुत्र और पुत्री के परवरिश में मानसिक रूप से ये अंतर करते चले जायेंगे | बेटी के रोने पर उसे भावुक कहेंगे और बेटा रो दे तो उसे "लड़कियों की तरह क्यों रो रहे हो" का ताना देंगे और उसे हिम्मती होने के लिए प्रोत्साहित करेंगे | बस इन्ही छोटी छोटी बातो से उनके अन्दर की संवेदनशीलता और भावुकता मरती जाती है लडके और लड़कियों में किसी भी बात में कोई अंतर नहीं होता है बस फर्क उनके समझदार होते ही उनके आस पास के वातावरण और उनके साथ व्यवहार में हो रहे अंतर के कारण फर्क पड़ता है |
जवाब देंहटाएंरही बात बेटी के बिदाई की तो इस बारे में मै पहले भी ब्लॉग जगत में सभी से शिकायत कर चुकी हूँ की लोग क्यों बेटी के बिदाई जैसी बाते उनके बचपन से ही सोच कर उसके साथ निश्चिन्त हो कर जीने के एहसास में एक फाँस लगा लेते है जो दर्द कही बड़े हो कर पाना है उसका एहसास बचपन से ही उसे करा कर हर पल डराते है दुखी करते है और खुद भी होते है | अपनी बात कहूँ तो विवाह के ९ साल बाद भी आज मै अपने ही विदाई के भूल नहीं पाई हूँ उस पर से यदि बेटी की बिदाई की बात सोचने बैठ जाऊ अभी से तो फिर मेरा जीना ही मुहाल हो जायेगा | मेरी मानिये ये सारी बाते अपने और बेटी दोनों के दिमाग से कम से कम अभी तो निकाल हो दीजिये फिर देखिये उसके साथ में और भी आन्नद आयेगा |
जवाब देंहटाएंऔर एक शिकायत और है इतनी प्यारी बेटी की रोने वाली फोटो क्यों लगा रखी है बचपन सिर्फ हँसने हँसाने और खुश होने के लिए होता है उसे खूब खुश रखिये जब तक की वो आप के साथ है, जब तक की उसके पास आप का साथ है |
अंशुमाला जी की दूसरी टिप्पणी से सहमत!!
जवाब देंहटाएंबात तो हम बेटी के साथ व्यवहार में समानता की करेंगे और 'पराया धन' भी नहीं मानेंगे पर साथ ही बेटी-बिदाई की सम्वेदनाओं को हर समय गममंडित पर पीडानंद में आनंद लेंगे।
मुझे भी सम्वेदनशील और सौम्यता की जीवंत प्रतिमूर्ती का बाप होने का गौरव प्राप्त है।
जवाब देंहटाएंपर अनुराग जी से पूर्ण सहमत हूँ। सम्वेदनाएं लडको में भी असीम होती है। आपने भी लडके होकर पुत्री के प्रति अद्भुत सम्वेदनाएं आलेखित की तो है।
भाव तो मनुष्य मात्र में कोमल होने चाहिए, भले जेंडर विशेष में अधिक हों, पर जेंडर के आधार पर किसी को बार बार कोमलता का ताज़ पहनाना भी भेदभाव की श्रेणी में आता है। आपका पुत्र निरूत्साहित हो सकता है।
पहली टिप्पणी में सुधार……
जवाब देंहटाएं@बेटी-बिदाई की सम्वेदनाओं को हर समय गममंडित पर पीडानंद में आनंद लेंगे।
की जगह्…………………………
= "बेटी-बिदाई की सम्वेदनाओं को हर समय गममंडित कर स्वपीडानंद में आनंद लेंगे।"
बचपन में विदाई ....... शायद इसे कहते हैं
जवाब देंहटाएंhttp://www.youtube.com/watch?v=ixqfPn9GKVE
गाने के शब्दों पर चिंतन करना जरूरी है, मूल अर्थ तभी समझ आएगा
जवाब देंहटाएंयहाँ पर जाएँ
http://filmkahani.com/naya-zamana-songs-lyrics/taare-zameen-par-maa.html
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंएक अभिन्न दृष्टिकोण है।
@ "हम ही करुणा और ज़िम्मेदारी जैसी भावनायें अपने बेटों को देने का उतना प्रयत्न नहीं करते जितना करना चाहिये।"
जवाब देंहटाएंअनुराग जी मैंने महसूस किया की लड़कों को ये बातें सिखानी पड़ती है जबकि लड़कियों में ये जन्मजात गुण होता है और इसी बात को केंद्र में रख पूरी बात कही. और हाँ जो अपने आस पास आम तैर पर देखा है वो लिखा है, वैसे अपवाद तो दोनों जगह ही मिलेंगे लड़कों में भी और लड़कियों में भी.
उपरोक्त पोस्ट की सभी बातें मैंने अपने पुत्र और पुत्री के सहज स्वाभाव को तुलनात्मक रूप से परखने के बाद कही हैं. छः वर्ष तक सिर्फ पुत्र पर ही ध्यान रहा. उसके बाद पुत्री हुई तो न चाहते हुए भी दोनों के स्वाभाव का अंतर स्पष्ट नजर आता रहा है.
और हाँ मैंने यहाँ सिर्फ बेटियों की ही बात की है जब ये बेटियां किसी की बहु बनती हैं तो इनके गुणों में जो परिवर्तन आता है उस दृष्टिकोण से जरा भी नहीं सोचा है क्योंकि एक बेटी जब किसी की बहु बनती है तो उसका स्वाभाव एकदम विपरीत होता है जिस पर कभी और बात होगी. अभी तो सिर्फ यही कहूँगा:
या देवी मम गृहे पुत्री रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नमः.
गौरव जी आप सही है. एक बिदाई ये भी है. पुत्र की बिदाई. तारे जमीं पर का ये गीत तो बहुत ही मार्मिक है पर इसका सन्दर्भ एकदम जुदा है. वैसे इस पोस्ट के बाद आप समझ गए होंगे की मुझे "कन्यादान" शब्द से चिढ क्यों है. :-))
प्यारी बिटिया मुस्कान व् वेदना कितनी सहजता से समेत लेती है आप का गाना भी बहुत प्यारा लगा इसीलिए तो हम कहते हैं बच्चे मन के सच्चे हैं सारे जग से अच्छे हैं -बिटिया दीर्घायु हो -प्यारा ब्लॉग
जवाब देंहटाएंसुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
बहुत अच्छी पोस्ट है|धन्यवाद|
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