रविवार, 25 जुलाई 2010

शिक्षा के नाम पर मासूम बच्चों को प्रताड़ित करना सही है क्या?

कल मेरे पुत्र कि PTM थी. इसका हिंदी में अनुवाद करूँ तो शायद होगा शिक्षक अभिवावक मिलन.

मुझे तो ना चाहते हुए भी ये मिलन करना ही पड़ता है. मेरा पुत्र तीसरी कक्षा में पढता है. मुझे तीन वर्ष हो गए हैं इस तरीके का मिलन करते हुए. शुरु में जब जाता था तो बड़ा उत्साह होता था. लगता था कि कोई महत्वपूर्ण कार्य करने जा रहा हूँ. मुझे मेरे बेटे कि प्रगति के विषय में पता चलेगा. मैं उसके शिक्षक से स्कूल में अपने  बेटे के  व्यव्हार कि  कुछ जानकारी लूँगा और उन्हें घर में इसके व्यव्हार के विषय में बताऊंगा ताकि हम लोग बच्चे कि मानसिकता को ढंग से समझ सकें और मेरा बेटा स्कूल में ज्यादा सहजता के साथ शिक्षा ग्रहण कर सके . ये सब किताबी बातें हैं. असलियत में ऐसा नहीं होता.

असलियत में क्या होता है. आपकी बारी आयी  और शिक्षिका का रटा रटाया संवाद शुरू. (उनकी तरफ से सारा संवाद अंग्रेजी में होता है ज्यादातर अभिवावक तो  बस मूक भाषा का प्रयोग करते हैं ) सुप्रभात ! कार्तिक कैसे हो?  आपने मुझे सुप्रभात नहीं कहा. देखिये आपका बच्चा बहुत बोलता है/बिलकुल चुप रहता है. मैं बहुत परेशान हूँ. मैंने बहुत कोशिश कि इसे चुप करवाने/बोलना शुरू करवाने कि पर इस पर कोई फर्क ही नहीं पड़ता. आप इस ओर ध्यान दीजिये. अभी तो चल रहा है पर भविष्य में बहुत परेशानी होगी. आपका बच्चा  बहुत धीमा /तेज लिखता है. इससे गलती होने कि संभावना रहती है. इस ओर भी ध्यान दीजिये. आपके बच्चे  का इस बार प्रोजेक्ट सुन्दर नहीं था. आप इस ओर ध्यान क्यों नहीं देते. आपके बच्चे के इस बार हिंदी में अंक अच्छे नहीं आए आपको इसे बहुत मेहनत करवानी पड़ेगी. आपके बच्चे  के इस बार इंग्लिश में अच्छे अंक आए हैं पर थोडा ज्यादा मेहनत करवाए तो पूरे अंक आएंगे. गणित में इसके पूरे अंक हैं मेहनत करवाते रहे ये नहीं कि  अगली बार कम अंक आ जाएँ. इस प्रकार  ये जबानी शिकायतें  चलती रहती है जिसमे सारा दोष आपका और आपके बच्चे  का होता.  इस दौरान अभिवावक जी जी करके जिजीयाते रहते हैं

इसके बाद बारी आती है अभिवावकों की.  अभिवावक भी आपने मन की भड़ास निकालते हैं हा ये बात अलग है कि उनकी सारी शिकायते मातृभाषा में ही होती हैं. मेडम मेरे बच्चे को आपने  आधा अंक उस वाले पेपर में नहीं दिया था.  मेरा बच्चा उनके बच्चे से पीछे क्यों चल रहा है.  हमारे बच्चे को कक्षा के सबसे होशियार बच्चे के साथ बैठाये.  हमारे बच्चे को सबसे आगे बैठाएं.   आजकल पढ़ाई कम हो रही है स्कूल में. होमवर्क ज्यादा नहीं मिलता. हमारा बच्चा तो हमारी सुनता ही नहीं थोडा इस टाईट करो. हम तो सारा दिन इसके पीछे पड़े रहते हैं. सभी विषयों कि ट्यूशन भी लगवाई हुई है पर क्या करें सब चौपट है

अब बारी आती है बेचारे बच्चे कि जो कुछ बोलता नहीं बस मूक सुनता रहता है.  शिक्षक बच्चे से पूछता है. हाँ बेटे बताओ ऐसा क्यों करते हो? देखो आपके माता पिता आपके लिए कितना कुछ कर रहे हैं. आप इतने बड़े हो गए हो अभी भी आपको समझ नहीं है. आगे जाकर क्या करोगे . अब  तीसरी कक्षा में पढने वाला सात आठ साल का बच्चा क्या जवाब देगा?  अंततः सारा दोष मासूम बच्चे के  सर मढ़ दिया जाता है. 

ये वो वक्त होता है जब मेरे जैसा पचास किलो का आदमी भी यही सोचता है कि अभिवावक और शिक्षक दोनों को कान पकड़ मैदान  में ले जाऊ जहाँ शिक्षक को तो  मुर्गा/मुर्गी  बना दूँ और बच्चे के माँ बाप को हाथों  में कम से कम दस दस डंडे लगाऊ. पर यार दिन में ग्यारह बजे देखे सपने सच थोड़े ना हो सकते हैं.

अपनी खुद कि बताऊँ तो मैं हर सत्र  के शुरू में ही शिक्षक को बता देता हूँ कि मुझे आपने बच्चे को अभी से आइन्स्टाइन नहीं बनाना. अगर वो पढ़ाई में औसत प्रदर्शन भी करता है तो मैं संतुष्ट हूँ. इसके बाद मुझे कोई तंग नहीं करता. मैं PTM में जाता हूँ. कोशिश करता हूँ कि सबसे पहले पहुचुं ताकि मुझे ऊपर लिखे दृश्य झेलने ना पड़ें. शिक्षक मुझे मुस्कुराकर बताती है कि आपका बच्चा औसत चल रहा है. कक्षा में ज्यादा बोलता नहीं. अनुशासित  है. बस मैं ख़ुशी ख़ुशी बच्चे को लेकर बापस लौटता हूँ. हाँ रास्ते में एक आद आइसक्रीम भी खिला देता हूँ.

6 टिप्‍पणियां:

  1. ये तो हुई सिर्फ़ पढाई की बातें........मुझे कल सातवीं कक्षा के एक बच्चे के घर फोन लगा कर उसकी मम्मी को बताना पडा की उसके नाखून बहुत बडे है...बहुत मैल भरा है उनमें .........पिछले पूरे हफ़्ते बताने के बाद भी उसका एक ही जबाब होता है-- पापा मना कर देते हैं ,और मुझे जो जबाब मिला-------मेडम आज माफ़ कर दिजिये.....क्या करती?... माँ को डाँटना पडा.......कल संडे है ...आप ध्यान दिजियेगा....प्लीज कहा....अब देखना है कल क्या होता है ...वरना PTM......मे..........

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  2. आपकी सोच बहुत स्पष्ट है और बेहतर है कि अपने बच्चे को इस रैट रेस का हिस्सा बनाने का आपका कोई इरादा नहीं है। हमने अपने बच्चों का बचपन छीन लिया है उन्हें डाक्टर, इंजीनियर, एम.बी.ए. बनाने के चक्कर में।
    अपने बच्चों को आप अच्छे संस्कार दे पायें और एक अच्छा इन्सान बनने में उनकी मदद कर सकें, हमारी शुभकामनायें।

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  3. दिन में ग्यारह बजे देखे सपने सच थोड़े ना हो सकते हैं.
    गनीमत है, वर्ना हर तरफ लोग हाथ पीले किये अंडे दे रहे होते।
    मज़ाक अलग, बहुत अच्छे विचार है। इसी विषय पर अगस्त 2008 में कुछ लिखा था अगस्त 2010 में अपने ब्लोग पर पढाउंगा।

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  4. एक बार कार्तिक नाम देख चौक गया ................फिर याद आया .............पर सच लिख है आपने आजकल स्कूल में शिक्षा के नाम पर सिर्फ़ और सिर्फ़ व्यापार होता है ! एक बहुत फायेदेमंद धंधा हो गया है स्कूल खोलना !

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