बच्चे कैसे पैदा होते हैं या बच्चे कहाँ से आते है?
प्रश्न तो बड़ा सरल है. इसका उत्तर खोजना भी आनंददायक कार्य है. मैं सोचता हूँ कि इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भी आदमी को बड़ा मजा आए बस प्रश्न कि शुरुवात इस तरह से ना हो....
"पापा बच्चे कैसे पैदा होते हैं?"
प्रश्न में पापा का जुड़ना बड़ा दर्ददायक है.
अपनी माता को प्रसव पीड़ा से परिचित करवाने वाले पुत्र ने इस बार पिता को प्रजनन सम्बन्धी जानकारी देने कि पीड़ा सहने के लिए चुना.
यार दोस्तों और ऑफिस में सेक्स सम्बन्धी विषयों पर खुल कर बोलने के लिए प्रसिद्ध होने के बावजूद अपने पुत्र द्वारा इस प्रश्न का सामना होने पर मेरी बोलती बंद हो गयी.
अब बेटे को क्या उत्तर दूँ? उसे कैसे समझाऊ कि वो कैसे पैदा हुआ? कहाँ से आया?
आज मालूम हुआ हमारे ऋषि मुनियों को इन प्रश्नों का उत्तर अभी तक क्यों नहीं मिला कि वो कहाँ से आए हैं? कैसे आए हैं? किस प्रयोजन से आए हैं?
हमारे जनक, हमारे उस परम पिता परमेश्वर को भी शायद हिचक होती होगी इन प्रश्नों का उत्तर देते हुए. वो क्या बताये अपने पुत्रों को कि उसे तो सृजन सुख मिल रहा था तो उसने रचना कर दी हमारी. उसने सोचा थोड़े ही था कि कहा से आए हैं? क्यों आए हैं जैसे प्रश्नों का उत्तर भी देना पड़ेगा.
ढूंढते रहो उत्तर! कहाँ से आए हैं? आने का क्या प्रयोजन है? कहाँ जायेंगे?
चलो ये समस्या तो अध्यात्मिक समझदारों कि है हम तो अपनी बात करें. तो मेरे पुत्र ने मुझे पहली बार ऐसी परेशानी में डाला जिसका मेरे पास तुरंत कोई हल नहीं था.
पुत्र ने पूछा " पापा बच्चे कैसे पैदा होते हैं ? मैंने भी एक प्रति प्रश्न कर दिया, " बेटा तुम किस के बच्चों कि बात कर रहे हो आदमी के बच्चे या जानवरों के बच्चे?
शायद मेरा बच्चा सोच रहा था कि अपने प्रश्न के उत्तर में उसे पापा कि झिडकी मिलेगी या चुप्पी. अब जब झिडकी मिली ना चुप्पी तो बच्चा उलझ गया. अपने मूल प्रश्न से भटक कर उसने पूछ लिया पापा जानवरों के बच्चे कैसे होते हैं.
मैंने राहत कि साँस ली. इस प्रश्न का उत्तर तो दिया जा सकता है. मैं शुरू हो गया. आदि से अंत तक कि सारी कथा मैंने कह सुनाई. अंत में महाराज युधिष्ठिर के श्राप वश सार्वजनिक रूप से अपनी प्रजनन लीला करने वाले श्वान का उदहारण भी दे दिया. पर थोड़ी गलती हो गयी जब एक लाइन और जोड़ दी कि इंसानों के बच्चे भी ऐसे ही होते हैं.
उफ्फ ये क्या कर दिया. मेरा आठ वर्षीय बेटा देर तक मुंह दाबे हँसता रहा. तब ये ख्याल आया कि कही वो अपने कल्पना पटल पर उदहारण में प्रयुक्त श्वान कि जगह पर इंसानों को रख कर तो हँसे नहीं जा रहा और उससे भी खतरनाक बात कि कहीं वो इन्सान हम दोनों मिया बीबी ही तो नहीं.
ये तो बुरे फंसे. क्या सोचा था क्या हो गया. अपनी तो इज्जत ही दाव पर लग गयी. तब से मैं बेटे से मुंह छिपाए घूम रहा हूँ. सोचता हूँ काश मेरा बेटा मेरी तरह से ही इन बातों को खुद ही जान जाता तो कितना अच्छा होता.
शुक्र है मुझसे किसी ने नहीं पूंछा ...पता नहीं क्या जवाब देता ?
जवाब देंहटाएंसतीश जी ने जवाब दे दिया शुक्र है!!
जवाब देंहटाएंपाण्डेय जी, बस यह मान लो कि बाल बाल बचे हो आप !
जवाब देंहटाएंहा हा हा सही मे बाल बाल बचे हैं।
जवाब देंहटाएंगज्जब हो महाराज।
जवाब देंहटाएंअभी तो आगे आगे होता है क्या देखिये............................. टी.वी. पर जब परिवार नियोजन के साधन और व्हिस्पर के एड देखकर सवाल होंगे उसके लिए भी तैयार रहिये............................. बाल-बाल बचने की सोचकर रहत मत लीजिये !!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंPandit ji Thoda sa Control , Ha ! Ha1 Ha1, waise bacche aksar hi aise ulte -pulte sawal dagte rahte hain. lekin koi bat nahi , thoda bade hone par khud hi samajh jate hai. ye insani praviti hoti hai
जवाब देंहटाएंउत्तर खोजने की समस्या कहाँ है, उत्तर बालक की समझ और वय के अनुसार हो यह समस्या है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रिय तफरीबाज कृपया दूसरों कि टांग खीचने के लिए मेरे ब्लॉग का प्रयोग ना करें. यहाँ पर मैं सिर्फ खुद कि टांग खिचवाना पसंद करूँगा.
जवाब देंहटाएंअमित जी और स्मार्ट इंडियन जी की बातों से पूरी तरह सहमत हूँ
जवाब देंहटाएंमेरी और से अभी तो "नो कमेंटस" :))
मित्र दीप जी,
जवाब देंहटाएंयक्ष प्रश्न कक्ष में ही उत्तरों की अपेक्षा करते हैं. और वह धर्म आपने अपने स्पष्टवादी तरीके से बखूबी निभाया भी. नज़रें चुराना 'झूठ पकड़े जाने' पर चाहिए.
पुत्र को सत्य के दर्शन कराना पहली शर्त है, उसकी कल्पनाशीलता पर आप अंकुश कब तक लगाओगे, वह तो अपना आकाश ढूँढ ही लेगी.
सृष्टि परक क्रियायें बिना संयोग और उत्तेजना के संभव नहीं. इस बात को सभी अलग-अलग स्तरों पर स्वीकार करते हैं. कुछ स्त्री-पुरुष संयोग को संस्कार का नाम देते हैं तो कुछ इसे केवल वासना नाम देकर जीवनपर्यंत मुँह छिपाते फिरते हैं. यह मानसिकता की बात है किसी के समझाए या दबाव से नहीं बदली जा सकती.
पुत्र जिज्ञासु है उसे अभी कई और बातें केवल आपसे ही सीखनी हैं. और वह दायित्व आप तभी बखूबी निभायेंगे जब कुछ भी सिखाने के पीछे आपकी सोच और मानसिकता की भावना परिलक्षित होगी. यदि निर्लिप्त भाव आपकी व्याखेय शैली में दिखेगा तो वह दबी हँसी कभी नहीं हँसेगा. यदि हँसेगा भी तो आज की दबी हँसी कल की पिता के प्रति सम्मान भावना होगा. क्योंकि आपने उसे वही कहा जो प्रश्न का उत्तर था.
अच्छा मित्र चलो एक अच्छे पिता की तरह अपने बेटे को जल्दी से बुलाओ और अपनी गोद में बिठाकर प्यार करो. कुछ और पूछने का अवसर दो.
बढिया व रोचक पोस्ट!
जवाब देंहटाएंविचार शुन्य जी,
जवाब देंहटाएंआपने एक ऐसे प्रश्न को सामने रखा है जो केवल पिता ही नहीं बल्कि बहुत सी माताओं को भी परेशानी में डाल देता है, की कैसे इस प्रश्न का जवाब दिया जाये !
हम बच्चे को हमेशा बच्चा समझते हैं यही हमारी गलती है। आपका बेटा शरमा कर हंस रहा था , ये इस बात का दोत्तक है की उसे सारी बात समझ आ रही है, और वो नादान नहीं है।
प्रश्न जब किया जाता है वही , उत्तर देने का सबसे सही समय होता है। उस समय बच्चे की जिज्ञासा सरलतम शब्दों में जरूर शांत करनी चाहिए।
बच्चे के प्रश्न का छोटे-छोटे चरणों में उत्तर देना चाहिए ! और उसके अगले प्रश्न का इंतज़ार करना चाहिए। इससे बच्चे में सही सोच प्रक्रिया विकसित होगी !
आपने अपने बेटे को सुना और उसको उत्तर दिया । यकीन मानिये आपका प्रयास सराहनीय है।
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@विचारशून्य जी
जवाब देंहटाएंमैं आपको हम सबके साझा ब्लॉग का member और follower बनने के लिए सादर आमंत्रित करता हूँ,
http://blog-parliament.blogspot.com/
महक
@विचारशून्य जी
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@विचारशून्य जी
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महक
सच को सच ही कहा जाए तो बेहतर है, क्योंकि सच तो एक न एक दिन सामने आना ही है।
जवाब देंहटाएं................
महिला खिलाड़ियों का ही क्यों होता है लिंग परीक्षण?
बच्चे अनेक बार बड़ों की बोलती बंद कर देते हैं.
जवाब देंहटाएंकाहे के बच्चे जनाब आजकल... जो हमने उनकी उम्र में सोचा भी न था आजकल के बच्चे वो सब कर भी चुके हैं... और् आप हम देख रहें हैं... हैरान परेशान
जवाब देंहटाएंThanks for such a nice and informative article. It is surely going to help students in their coming journey.
जवाब देंहटाएंHope to see such nice article in future too.
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