बच्चे बड़े हो रहे हैं.... बड़ा महत्वपूर्ण समय है उनके लिए भी और हमारे लिए भी.
हमारे से मेरा मतलब हम मिया बीबी से ही है. बच्चे नहीं थे हम दोनों स्वतंत्र थे. सारा वक्त हमारा निजी वक्त था. जब चाहते जितना चाहते एक दुसरे के लिए समय होता था. साथ बैठते, बतियाते, और जी हाँ.. जी भर के बातचीत किया करते.....
अब सुबह उठते हैं बच्चों को उठते हैं.... जिंदगी कि भागमभाग शुरू.... दूध लाओ.. कपडे प्रेस करो...स्कुल छोडो..खुद तैयार हो कर ऑफिस जाओ.... शाम को आप थके पर बच्चे तरो ताजा... चलो खेलो.... फिर होम वर्क.. फिर रात्रि भोजन... फिर कहानी....बज गए दस. दस का मतलब बस. अब सोने कि तैयारी.
जब बच्चे सोते हैं तब शुरू होता है हमारा सुनहरी एकांत जो कभी हमें २४ गुना ३६५ दिन उपलब्ध था पर अब सिर्फ उस वक्त तक मिलता है जब बच्चे सो जाते हैं और जब तक हम में जगाने कि इच्छा और ताकत होती है.
जीवन कि इस भागदोड़ में हम पति पत्नी बातें तो खूब करते हैं पर बातचीत करने का मौका कम ही मिलता है इसलिए बच्चों के सोने और हमारे ना सोने के बीच का यह वक्त मेरे लिए सोने से भी ज्यादा कीमती होता है.
भाइयों मैं क्या बताऊँ आपको मेरे लिए दुनिया के सारे सुख एक तरफ हैं और पत्नी के साथ खुल कर बिना किसी रोक टोक के बातचीत करने का सुख एक तरफ.
तुलसी दास जी ने ये दोहा मेरे लिए ही तो लिखा था....
सात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरिये तुला इक अंग.
तूल ना ताहि सकल मिली जो सुख पत्नी संग.
अभी कुछ दिन पहले कि ही बात है. ऊपर वाला अभी बरस कर थका ही था और वर्षा से भीगी हवा मंद मंद हमें हमारी ख्वाबगाह में भी भिगो रही थी, बच्चे सो चुके थे और हमारा सुनहरी एकांत पूरे कमरे में फैला था. हम दोनों एक दुसरे में मगन थे कि रंग में भंग हो गया. पत्नी ने कुछ ऐसी बात कही जो मुझे बिलकुल पसंद नहीं तो मेरी प्रतिक्रिया भी कठोर रही . उपरवाला रुका था नीचेवाली शुरू हो गयी...
क्या सोच रहे हैं अब बातचीत क्या खाक होती, दोनों करवट बदल कर सो गए. ऐसी घटनाओं के बाद एक दो दिन तक तो मेरा जोश कायम रहता है. मैं अपनी तरफ से सुलह या साफ़ साफ़ कहूँ तो बातचीत कि कोई पहल नहीं करता. पर फिर मेरी कमजोरी. अपनी प्यारी के साथ ज्यादा दिन तक बातचीत किये बिना मैं रह ही नहीं पाता.
मेरे कुछ दोस्त मेरी इस कमजोरी पर हंसते हैं. कहते हैं पत्नी के अलावा भी कोई ऐसा होना चाहिए जिसके साथ आप बातचीत कर अपना सुख दुःख बाट सकें. पत्नी पर से निर्भरता हटती है. मेरे एक मित्र तो बताते हैं कि जब भी उनकी बातचीत बंद होती है और अगर उनकी गलती ना हो तो वो कभी पहल नहीं करते. उन्हें जरुरत ही नहीं होती बातचीत करने के लिए पहल करने कि. असल में उनकी एक और मित्र हैं. अरे वही सिर्फ मित्रता रखने वाली मित्र जिनके साथ वो बातचीत कर हलके हो लेते हैं. मैं उनसे ईर्ष्या करता हूँ . विशुद्ध ईर्ष्या. पर कभी उनका अनुसरण नहीं कर पाता.
मैं तो अपनी घरवाली के पास ही लौट आता हूँ. यार जब छप्पन भोग घर पर ही हों तो होटल का मुंह तो कोई गधा ही देखेगा. मैं बातचीत शुरू करने का प्रयास दिन से ही शुरू कर देता हूँ. दिन में बार बार उनसे बात करता हूँ. बच्चे सोते हैं. सुनहरी एकांत मिलता है और मैं बातचीत शुरू करने का अंतिम प्रयास करता हूँ.... उनके पास जाता हूँ और सीधे सीधे उनके पाँव पकड़ लेता हूँ..... प्यारी मान जाओ ना.... pleeesssse.....
और हमारी बातचीत शुरू हो जाती है..... एक दुगने जोश के साथ.....
( कुछ समय पहले कि बात है मेरी बच्ची बीमार थी तो हम उसे एक पास कि एक प्रसिद्ध महिला बाल चिकित्सक के पास ले गए. वो एक कुछ कम पढ़ी लिखी सी गंवाई महिला को समझा रही थी..... अपने मरद से बातचीत बिलकुल बंद कर दो. उसे पहले दो महीने आस पास नहीं फटकने देना, समझ गयीं.... मैं थोडा देर से समझा पर समझ गया कि पति पत्नी के बीच बातचीत का क्या मतलब होता है. अब आप भी जाएँ और अपनी पत्नी से खुलकर बातचीत करें. )
राधे राधे!
जवाब देंहटाएंहम तो कहेंगे सीते सीते। कुछ तो ख्याल करो, अब बच्चे बड़े हो रहे हैं।
जवाब देंहटाएंलगे रहिये ..........!!
जवाब देंहटाएंha ha ha majedar post
जवाब देंहटाएंमहाराज,
जवाब देंहटाएंआपकी एक भाभी है, मतलब एक ही है जो काफ़ी है। उसके साथ बातचीत तुम्हारी ही वजह से बंद हो गई है। बधाई स्वीकार करें।
रहने देते हैं बातचीत बंद कुछ दिन, देखी जायेगी।
बढि़या पोस्ट, लगता है ब्लॉगजगत में बोल्डनेस लाने वालों में हमारे मित्र का नाम जरूर आयेगा।
सात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरिये तुला इक अंग.
जवाब देंहटाएंतूल ना ताहि सकल मिली जो सुख पत्नी संग.
:)
हा हा!! अब हम क्या कहें...राधे राधे...सीते सीते तो हो चुका. :)
जवाब देंहटाएंधन्य हो महाराज !!!!
जवाब देंहटाएंबाकि एक विनम्र प्रार्थना है की किसी भी रचनाकार की रचना की तोड़मरोड़ की जानकारी जरूर दें, नहीं तो काफी भ्रम फ़ैल सकता है.
सात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरिये तुला इक अंग.
तूल ना ताहि सकल मिली जो सुख पत्नी संग.
"तात स्वर्ग अपवर्ग सुख, धरिअ तुला इक अंग | तूल न ताहि सकल मिलि, जो सुख लव सतसंग ||" ------ रामचरितमानस
@ तुलसी दास जी ने ये दोहा मेरे लिए ही तो लिखा था....
जवाब देंहटाएंसात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरिये तुला इक अंग.
तूल ना ताहि सकल मिली जो सुख पत्नी संग.
कब और कहाँ लिखा था ???
अमित जी, जानकारी के लिये धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंपहले मुझे लगा कि भारत और पाकिस्तान की बात हो रही है... :) अमित जी की बात पर भी गौर फरमायें.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकिसी तीसरे के सामने
जवाब देंहटाएंस्पष्ट कर देना
प्रिय और स्वयं के
मध्य की गोपनीयता
अपराध है किसी को छेड़ने जैसा.
यह अपराध मैं भी कर चुका हूँ.
स्पष्टवादी बनने के चक्कर में
कर चुका हूँ प्रायश्चित
प्रत्येक स्पष्टीकरण के बाद.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं[1] ________ छेद se ढह जाती दीवार ___________
जवाब देंहटाएंबाँध का पानी मज़बूत दीवारों से रुका रहता है. यदि उस दीवार में एक ज़रा-सा भी छिद्र हो जाए तो वह शीघ्र बड़ी दरार और फिर दिवार ढहाने का कारण बन जाता है. हमारी मुखरता भी कुछ इसी तरह से है.
[2] _______हमारी कल्पनाशीलता हावी_________
बहुत पहले, खालीस टीवी युग में,
जब दूरदर्शन पर वेदप्रकाश और शम्मी नारंग समाचार पढ़ते थे तो उनको केवल छाती तक दिखाया जाता था और तब किसी ने मुझसे कहा कि ये लोग गर्मियों में केवल कमीज़-टाई और नीचे कच्छे में आकर बैठ जाते हैं कौन देखता है.
तबसे हम कैमरे के नीच होने का इंतज़ार करते थे. हम बच्चों की बातचीत में यह विषय भी शामिल रहता. यह हमारी कल्पनाशीलता ही तो थी जो बेवजह एक दिशा लेकर अपनी ऊर्जा बेकार कर रही थी.