tag:blogger.com,1999:blog-24190071313312614822024-02-19T18:39:36.036+05:30विचार शून्यVICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.comBlogger116125tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-30259360975261356762013-12-15T00:04:00.000+05:302013-12-15T02:53:25.036+05:30खजुराहो, कृष्ण, अर्जुन और समलैंगिकता <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
टी वी पर हो रही बहसों में अक्सर मैंने यह देखा है कि अगर आप मकबूल फ़िदा हुसैन द्वारा बनाये दुर्गा और भारत माता नग्न चित्रों का समर्थन करते हों, या समाज में तेजी से बढ़ रहे बिना विवाह युवक युवतियों के घर बसा लेने वाले नए चलन के हिमायती हों, या विलायती संत वेलेंटाइन के दिवस पर युवा वर्ग द्वारा खुले आम प्रेम प्रदर्शन को सही ठहराते हों या भारतीय समाज में समलैंगिकता को सम्मानजनक दर्जा दिलाना चाहते हों तो मान लीजिये कि खजुराहों के मंदिर आपके इस जन्म के तारणहार हैं। अगर कोई भारतीय परम्पराओं का समर्थक आपसे बहस करे तो उसके ऊपर खजुराहो नामक बम फोड़ दीजिये आपकी जीत सुनिश्चित है। और फिर भी कुछ बचा रहे तो कामसूत्र के सूत्र से उसका गला घोट दीजिये। <br />
<br />
कल डाक्टर दराल sahab के ब्लॉग par देखा कि समलेंगिकता के समर्थन में कृष्ण, अर्जुन और शिखंडी को भी खीच लाया गया है । मुझे समझ नहीं आया कि समलेंगिकता और कृष्ण या अर्जुन के बीच कहाँ का साम्य है। <br />
मुझे तो इन लोगों कि हाय तौबा भी समझ में नहीं आती। क्या कुछ आकड़े मौजूद हैं कि पुलिस वाले कितने लोगों को समलेंगिकता (धारा ३७७ ) के अपराध में जेल में बंद करते हैं। कल ही मैंने दिल्ली पुलिस के एक सब इस्पेक्टर से पूछा तो उसने बताया कि अपनी सैंतीस साल कि नौकरी में उसने धारा ३७७ में एक भी आदमी या औरत को नहीं पकड़ा। चारों तरफ सम्लेंगिक और उनके समर्थक इस तरह से व्यव्हार कर रहे हैं मानो सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से इन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा और अब सारे समलैंगिकों के शयनकक्षों में पुलिसवाले जाकर पहरा देने लगेंगे। <br />
<br />
असल में धारा ३७७ पर सुधार के बहाने सम्लेंगिक अपने अप्राकृतिक असामान्य व्यव्हार को सामाजिक स्वीकृति दिलवाना चाहते हैं जो होना नहीं चाहिए। इस विषय में तो मैं चाहता हूँ कि यदि धारा ३७७ में सुधार करके सहमति से बनाये अप्राकृतिक यौन सम्बन्धों को सजा योग्य अपराध श्रेणी से हटाया जाता है तो साथ में एक बात अवश्य जोड़ी जानी चाहिए कि समलेंगिकता का सार्वजनिक प्रदर्शन सजा दिए जाने योग्य अपराध होगा। क्योंकि एक बार अगर इन्हे क़ानूनी स्वीकृति मिल गयी तो इन लोगों ने प्यार के इजहार के नाम पर ऐसी गन्दगी फैलानी है कि सम्हालना मुश्किल हो जायेगा। समलेंगिकता एक मनो विकृति है जिसकी सामाजिक स्वीकृति आने वाली पीढ़ियों को विकृत ही करेगी। </div>
VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com21tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-20116718582408708982013-05-04T18:30:00.001+05:302013-05-04T18:30:08.109+05:30समलैंगिकता की चीड़फाड़ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">लगभग डेढ़ वर्ष से मैं भारत भ्रमण पर हूँ। पूर्व से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण लगभग पूरा भारत नाप चूका हूँ। अपने इस भ्रमण के दौरान पुरे भारत में मुझे जो दो चीजें लगभग सभी जगहे दिखाई पड़ी वो हैं खाने में दक्षिण भारतीय सांभर </span><span style="font-size: large;">डोसा और इंसानों में समलैंगिक जोड़े। डोसे का स्वाद मैंने सभी जगहों पर लिया और समलैंगिक जोड़ो को अभी तक </span><span style="font-size: large;">सिर्फ निहारा। </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">अभी पिछले हफ्ते चंडीगड़ में था। इस बार एक समलैंगिक से मुलाकात/बातचीत हो ही गयी जो अपने पार्टनर के साथ संयोग से गेस्ट हॉउस में मेरे बगल के कमरे में ठहरा हुआ था। समलैंगिकता को लेकर कुछ प्रश्न मेरे मन में हमेशा रहे हैं जो मैंने उस जीव के सामने रखे पर अफ़सोस वो "कच्चा खिलाडी" था। वो इस खेल के क्रियात्मक पक्ष से ही जुड़ा था। सिद्धांत रूप में उसने कभी भी इस "कला" की चीड़फाड़ नहीं की थी।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">जब भी मैं स्त्री पुरुष के शारीरिक संबंधों पर विचार करता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है की इन संबंधो में भी एक पक्ष घनात्मक होता है और दूसरा ऋणात्मक। एक यिन होता है तो दूसरा येंग, एक ठंडा होता है तो दूसरा गरम, एक तलवार होता है तो दूसरा उसकी म्यान। ऐसा शारीरिक रूप से हो या मानसिक रूप से पर ऐसा होता जरुर है तभी आनंद की बत्ती जलती है वर्ना नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर दोनों ही घनात्मक होंगे तो
प्यार की बत्ती नहीं जलेगी बल्कि शार्ट सर्किट हो जायेगा । आप ही सोचिये ना अगर दोनों ही तलवार वाले होंगे तो आनंद नहीं होगा
सिर्फ युद्ध ही होगा। </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">अपनी इसी सोच के साथ जब मैं किसी समलैंगिक जोड़े पर विचार करता हूँ तो मुझे जोड़े के </span><span style="font-size: large;">उस व्यक्ति की मानसिकता समझ नहीं आती जो अपने सामान लिंग वाले पार्टनर में विपरीत लिंगी गुण खोज रहा होता है। </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">मैं इस बात में पूरी तरह विश्वास रखता हूँ की कभी कभी कुछ मामलों में प्रकृति से भी गलती हो जाती है और वो एक पुरुष के शरीर में स्त्री को और स्त्री के शरीर में पुरुष को भूल से बांध देती है। ऐसे पुरुष शरीर में फंसी स्त्री तो तो पुरुष की तरफ ही आकर्षित होगी और स्त्री शरीर में फंसा पुरुष स्त्री की ओर ही आकर्षित होगा। </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">इसमें मुझे कोई लोच नज़र नहीं आता। मुझे समलैंगिकों के दुसरे वाले साथी की मानसिकता समझने में कठिनाई होती है।जो स्त्री पुरुष शरीर में फंसी है उसे पुरुष साथी पसंद आएंगे पर उसका साथी क्यों एक अधूरी अपूर्ण स्त्री को पसंद कर रहा है ये बात मुझे समझ नहीं आती। ऐसे ही लेस्बियन जोड़े भी स्त्री शरीर में फंसा पुरुष तो स्त्री की और आकर्षित होगा पर जो मानसिक और शारीरिक रूप से स्त्री ही है वो एक अधूरे अपूर्ण पुरुष की और क्यों आकर्षित हो जाती है ये समझ नहीं आता।</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">अब अपने मन के इस प्रश्न </span><span style="font-size: large;">को हिन्दीब्लोग जगत में इस आशा के साथ </span><span style="font-size: large;">उछाल रहा हूँ की शायद कोई "पक्का खिलाडी" </span><span style="font-size: large;"> इधर भी हो जो इसे सुलझा दे ........... </span><span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"> </span></div>
VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com61tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-70757997619316407742013-04-21T20:25:00.002+05:302013-04-21T22:58:14.200+05:30बकवास बंद ! आइये प्रेम की बात करें। <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div>
<div>
<div>
<div>
<div>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div>
<span style="font-size: large;">यूँ
तो मन था की बकवास जारी रखी जाय और स्त्री समानता पर अपने
घिसे-पिटे विचार प्रस्तुत किये जाय पर अदा जी की टिप्पणी और अपने ब्लॉग जगत में जर्मनी
पुरस्कारों को लेकर चल रही घमासान से मुझे लगा की प्रेम मोहब्बत की
बात की बात करना ज्यादा अच्छा होगा। वैसे इस ओर मेरा ध्यान आकर्षित हुआ <a href="http://draradhana.wordpress.com/2013/04/10/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE-%E0%A4%A8%E0%A4%B9/" target="_blank">"आराधना का ब्लॉग"</a> की एक पोस्ट से जिसमे नारीवादी स्त्री प्यार कर सकती है या नहीं इस विषय पर कुछ प्रकाश डाला गया था।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">प्रेम सभी जानते हैं की भगवान की इन्सान को दी हुयी सबसे बड़ी नेमत है। बड़े बड़े गुणी जनों ने इस पर बहुत बहुत कुछ लिखा है। पर क्या करू सभी
ने प्रेम भावना को इतने भिन्न रूपों में परिभाषित किया है की मैं उलझ जाता
हूँ की वास्तव में प्रेम किस चिड़िया का नाम है और ये किस डाल पर बैठती
हैं। </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">किस्से कहानियों में तो सच्चे प्यार की बहुत सी दास्तानें लिखी और सुनायी गयी हैं जैसे राधा-कृष्ण,लैला-मजनू आदि आदि पर जब भी मैंने सच्चे प्रेम के वास्तविक जीवन में उदहारण खोजने की कोशिश की तो मुझे नाकामी ही मिली।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">मुझे लगता है की शायद मैंने प्रेम की कोई मुश्किल सी परिभाषा पढ़ ली है या फिर प्रेम को परिभाषित ही नहीं किया जा सकता है।</span><br />
<br />
<br />
<span style="font-size: large;">यूँ तो प्रेम एक व्यापक अर्थ वाला शब्द है पर इसकी जो सबसे उत्तम परिभाषा आज तक मुझे मिली उसके अनुसार प्रेम वो
भावना है जिसमे हम किसी पर बिना कुछ चाहे अपना सब कुछ न्योछावर कर देते
हैं या कर देने की इच्छा रखते हैं । (अगर इससे बेहतर कोई और परिभाषा है तो मैं जानना चाहूँगा)</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">उपरोक्त परिभाषा के आधार पर मुझे तो लगता है की मानव मन की जिस भावना का हम प्यार समझते हैं उसका कहीं अस्तित्व ही नहीं है क्योंकि किस्से कहानियों को छोड़ वास्तविक जीवन में इसके उदहारण आपको ढूंढे नहीं मिलेंगे। जिस प्रकार से सत्यनारायण की कथा में उस कथा के महात्मय को ही बतलाया गया है वास्तविक कथा का कहीं भी जिक्र नहीं है उसी प्रकार प्रेम एक ऐसी उच्च कोटि की मानवीय भावना है जो मानवों में ढूंढे नहीं मिलती। </span><br />
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div>
<span style="font-size: large;">सबसे पहले स्त्री
पुरुष के प्रेम को लें। यहाँ में किस्से कहानियों में वर्णित काल्पनिक चरित्रों का उदहारण नहीं लेना चाहता
अपने इर्द गिर्द के वास्तविक प्रेमियों की बात ही करना चाहता हूँ। अपने आस
पास आपको ऐसा एक भी उदहारण नहीं मिलेगा जहा दो प्रेमी एक दुसरे पर बिना कुछ
चाहे न्योछावर हों। दो प्रेमियों के मध्य आपको या तो यौन आकर्षण मिलेगा या
आर्थिक सामाजिक सुरक्षा की चाहत दिखाई देगी। कहा तो बहुत कुछ जायेगा पर ध्यान से देखने पर आप पाएंगे की कहीं न कहीं दोनों को एक दुसरे की जरुरत है इसलिए प्रेम पनपा है।</span><br />
</div>
<div>
<span style="font-size: large;">आप
माता पिता और सन्तानों के मध्य के प्रेम को ले लें। यहाँ भी निस्वार्थ
कुछ नहीं है।एक दुसरे से कोई न कोई चाहत आपको नज़र आ ही जाएगी।</span><br />
</div>
<div>
<span style="font-size: large;">सांसारिक संबंधों की बात छोड़ अध्यात्मिक स्तर पर आयें तो वहां भी हम लोग ईश्वर से प्रेम किसी न किसी लालच के कारण करते हैं। हम जन्म मरण से मुक्ति चाहते हो या जन्नत में हूरों के ख्वाब देखते हों, ईश्वर से प्रेम हम किसी न किसी चाहत के कारण ही करते हैं।</span><br />
</div>
<div>
<span style="font-size: large;">तो प्रेम असल में है कहाँ ? क्या ये वास्तविकता में होता भी है ? मुझे तो लगता है की प्रेम शब्द ही एक छलावा है। प्रेम एक काल्पनिक शब्द है
और असल में प्रेम होता ही नहीं है। मुझे तो लगता है की जिस भावना को हम प्रेम के रूप में परिभाषित करते हैं वो असल में आनंद या सस्ते में कहें तो मज़ा है।</span><br />
</div>
<div>
<span style="font-size: large;">प्रत्येक इन्सान अपने संबंधों में चाहे वो साथी इंसानों के साथ
हों या किसी और चीज के साथ आनंद की तलाश में रहता है। जब उसे वो अननद
मिलता है तो वो कहता है की उसे प्रेम हो गया है। आपसी संबंधों में जब आनंद
नहीं रहता तो प्रेम भी ख़त्म हो जाता है। जब माता पिता अपनी संतान का लालन
पालन करते वक्त आनंदित होते हैं तो उन्हें अपनी संतान से प्रेम होता है पर
बाद में जब उन्हें अपनी संतान से कोई चाहत होती है और वो पूरी नहीं होती तो
उनका आनंद ख़त्म हो जाता है। </span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">स्त्री पुरुष जब पहली नज़र में एक दुसरे को आनंद लेने और देने योग्य पाते हैं तो ये पहली नज़र का प्यार कहलाता है और जब ये आपसी मज़ा खत्म हो जाता है तो प्यार भी कहीं मर जाता है।</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">कभी
कभी स्त्री पुरुष पहली नज़र में एक दुसरे को मज़ा लेने और देने के योग्य
नहीं पाते पर धीरे धीरे साथ रहते रहते एक दुसरे की उपस्थिति से आनंद लेना सीख जाते हैं तो कहा जाता है की प्यार धीरे धीरे परवान चढ़ा। दो स्वतंत्र व्यक्तित्व जब एक दुसरे में आनंद खोजते हैं तो कुछ को लगता है की यही सच्चा प्यार है पर जब उन्हें अपने संबंधों में आनंद नहीं मिलता तो यह सच्चा प्यार भी कुछ दिनों में लुप्त हो जाता है। </span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">हम
ईश्वर का भजन करते हैं, पूजा पाठ करते हैं हमें आनंद मिलता है हम कहते हैं
की हमें इश्वर से प्रेम हो गया।जिस दिन ईश्वर से हट कर हमें सांसारिक
वस्तुओं में मजा मिलने लगता है तो हमें संसार से प्रेम हो जाता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">लगता है की अब ज्यादा उदहारण देने की आवश्यकता नहीं। मेरी बात आपकी समझ में आ ही गयी होगी :-))</span></div>
<span style="font-size: large;">तो मेरी बात मानिये इस संसार में प्यार, मोहब्बत और प्रेम जैसी कोई चीज है ही नहीं । जो कुछ है आनंद ही आनंद है। अतः जीवन के पुरे मजे लें जो अच्छा लगता है उसके साथ लें और मजे ना मिलें तो लूट लें। </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com31tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-21425079107238451512013-04-20T09:49:00.000+05:302013-04-20T22:08:30.274+05:30स्त्री की प्रेम अभिव्यक्ति और हमारे सामाजिक नियम. <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h3 class="post-title entry-title">
</h3>
<span style="font-size: large;">काफी समय पहले की बात है एक ब्लॉग था <span style="background-color: red;"><a href="http://bedakhalidiary.blogspot.in/2010/03/blog-post_28.html" target="_blank">बेदखल की डायरी</a> </span>जिस पर मनीषा जी की एक पोस्ट के जवाब में मैंने कुछ लिखा था। उस वक्त कुछ महिला ब्लोग्गेर्स ने मेरी बातों पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। कल रचना जी द्वारा नारी ब्लॉग पर उठाये एक काल्पनिक प्रश्न ने मुझे अपनी इस पुरानी पोस्ट की याद दिल दी। <span style="background-color: red;"><a href="http://vichaarshoonya.blogspot.in/2010/03/blog-post_30.html" target="_blank">पुरानी पोस्ट</a></span> पर आई टिप्पणियों में आप देख सकते हैं की पुरुषों के प्रति व्यक्त मेरे विचारों को अधिकांश महिलाओं ने कैसे एकदम नकार दिया है और सीधे सीधे मेरी मानसिकता को दोषी ठहराया है. मुझे समझ नहीं आता की आप एक तरफ तो पुरुष का विरोध करते हैं दूसरी तरफ उसकी कमियों को स्वीकारते नहीं। समझ नहीं आता लोग क्या चाहते हैं। खैर फ़िलहाल २०१० में व्यक्त मेरे विचारों पर गौर फरमाइए : </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">मनीषा जी सबसे पहले मैं यह कहूँगा की आप एकदम बिंदास लिखती है अपने
विचारों में कोई काट छाट नहीं करती इसलिए आपका लेखन मुझे बहुत अच्छा लगता
है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">आपने अपने मन की बात कही, आपकी भावनाएं प्राय सभी
भारतीय स्त्रियों की होती है जो आज के समाज में पुरुष के साथ हर field में
कंधे से कन्धा मिलकर चल रही हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">एक मानव के रूप में हम
सभी अपने प्यार की अभिव्यक्ति ठीक उसी रूप में करते है जैसे की अपने किया
पर सिर्फ स्त्रियों को संदेह की नजर से देखा जाता है और उनकी छोटी से छोटी
बात को भी सालों याद रखा जाता है । यह बात विचारनीय है की ऐसा क्यों होता
है । आपका दर्द एकदम जायज है क्योंकि अपने सारी घटना को एक स्त्री के
नजरिये से देखा। पुरुष का नजरिया क्या होता है यह मैं आपको दिखता हूँ।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">जब
आप उन लेखक महोदय, जो की ७० वर्ष की उम्र के थे, से मिलीं तो अपने आदर,
सम्मान व प्यार से उन्हें गले लगा लिया पर इस बात की याद उन्हें अपनी
वृधावस्था में भी वर्षों तक रही यह बात पुरुष की मानसिकता को दिखाती है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">एक
पुरुष के लिए रिश्तों के बंधन से मुक्त नारी हमेशा भोग्या होती है। मेरी
इस बात का बहुत से लोग पुरजोर विरोध कर सकते है पर मैं अपनी बात से कभी
पीछे नहीं हटूंगा। कभी कभी तो रिश्तों की दिवार भी गिरा दी जाती है चाहे
वो कितनी भी मजबूत क्यों ना हो।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">इस वजह से ही हमारे समाज में स्त्री का किसी भी पर पुरुष के साथ शारीरिक या मानसिक जुडाव कभी भी ठीक नहीं समझा गया।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">सभी
स्त्रियाँ इसे खुद पर लांछन के रूप में लेती हैं। उन्हें लगता है की
उनकी पवित्रता पर शक किया जा रहा है। पर सच्चाई यह है, की यह पुरुष की
मानसिकता पर लांछन है। जब दो व्यक्ति व्यव्हार करते हैं तो दोनों की
भावनाओं को देखा जाता है। एक तो निर्दोष भावना से व्यव्हार कर रहा है पर
दुसरे के मन में खोट हो तो नुकसान किसे होगा? आपको यह बात समझनी होगी।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">अपने
एक पुरुष में एक पिता को देखा होगा, एक भाई को देखा होगा, एक प्रेमी को
देखा होगा पर शायद एक पुरुष में सिर्फ पुरुष को कभी नहीं देखा होगा। जब एक
पुरुष एक पिता, भाई , पति या प्रेमी नहीं होता है और विशुद्ध रूप में पुरुष
होता है तो उसे कोई लिहाज नहीं होता , ना भावनाओं का ना उम्र का , ना समाज
का, ना सामाजिक रिश्तों का । पुरुष की इस मानसिकता से वशीभूत होकर ही तो
एक ८१ वर्ष का आदमी १८ साल की युवती से विवाह कर लेता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">तो
मनीषा जी आप जिन सीमाओं को दुष्ट समझकर तोड़ देना चाहती हैं और जो सीमाएं
आपकी समझ से आपको कमतर इन्सान बनती है वो आपके भले के लिए ही हैं। समाज या
कानून द्वारा तय सीमा के अंतर्गत किया गया व्यव्हार किसी भी इन्सान को
कमतर नहीं बनता। शायद यही वो मानसिकता है जिसके तहत आज का युवा रोड पर
स्पीड की सीमा को या रेड लाइट पर रुकने को एक बंधन मानता है। उसे भी समाज
के बनाये नियम कानून को मानाने से अह्सासे कमतरी होता है। ( अह्सासे कमतरी
की वर्तनी मुझे ठीक नहीं लग रही, पर काफी पहले यह शब्द सुना था आज चेपने का
मौका मिला है )</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">अच्छा अब कुछ लोग यह कह सकते हैं की
पश्चिम के समाज में तो ऐसा नहीं है। तो इसका जवाब मैं जब मन करेगा तो जरुर
दूंगा अभी ३१ मार्च है वक्त की कमी है।</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"> <span style="background-color: red;">पहले मेरे ब्लॉग पर स्पैम की समस्या नहीं थी पर अब है। मालूम नहीं क्यों? </span></span><span style="font-size: large;"><span style="background-color: red;"><span style="font-size: large;">क्या स्पैम को ख़त्म किया जा सकता है? कृपया मेरी सहायता करें। </span> </span></span></div>
VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com24tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-68119235377993523082013-04-06T15:05:00.001+05:302013-04-06T15:05:40.751+05:30बकवास जारी है .....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">जब भी नारी अधिकारों की बात चलती है या <a href="http://femen.org/" target="_blank">फेमेन </a>जैसे संगठन सनसनी खेज
तरीके से इस समस्या को सामने लाते हैं तो मेरे मन में इस विषय पर अनेक
प्रश्न कुलबुलाने लगते हैं। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span>
</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">नारीवादी संगठन नारी शक्ति, मुक्ति, आजादी , स्वतंत्रता आदि
बातें बड़े पुरजोर तरीके से उठाते हैं। </span><span style="font-size: large;">मैंने अपने चालीस वर्षीया जीवन में अपने आस पास के माध्यम वर्गीय
हिन्दू समाज में जो कुछ देखा है और समझा है उस अनुभव के आधार पर नारी
स्वतंत्रता मुक्ति आजादी अदि विचारों को मैं समझ नहीं पाता। हो सकता है
कोई पर्दा पड़ा हो। </span>
<span style="font-size: large;"></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मैं ये मनाता हूँ की स्त्रियों को समाज में पुरुषों के </span><span style="font-size: large;">समान अधिकार प्राप्त नहीं हैं और उन्हें कमतर समझा जाता है। मुझे लगता हैं
की इन दोनों में जो शारीरिक भिन्नताए हैं उनका ख्याल रखते हुए </span><span style="font-size: large;">दोनों को </span><span style="font-size: large;">समान<span style="font-size: large;"> </span>समझा
जाना चाहिए पर मैं नारी स्वतंत्रता के विचार को पूरी तरह से समझ नहीं
पाता। </span>
<span style="font-size: large;"></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">कौन, किस से किस बात के लिए कितनी आजादी </span><span style="font-size: large;">चाहता है इस बात को
जीवन मरण के चक्र से मुक्ति, आजादी और स्वतंत्रता की चाह रखने वाला मेरा
हिन्दू मन </span><span style="font-size: large;"> आसानी से समझ नहीं पाता। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मुझे दूसरों का नहीं पता
पर अपने जीवन में कदम कदम पर मैंने खुद को अनेक बंधनों में बंधा पाया है।
अगर इनमे से कुछ एक बंधनों में स्त्री स्वतंत्रता के समर्थक खुद को बंधा
पाते हों तो मेरी मुक्ति आजादी और स्वतंत्रता </span><span style="font-size: large;">के समर्थन में </span><span style="font-size: large;">भी <a href="http://femen.org/" target="_blank">फेमेन</a> टाइप
चोली उतार जिहाद करें। </span>
<span style="font-size: large;"></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मैं छुटपन में नंगा घूमता था। अम्मा पिताजी ने समझाया की </span><span style="font-size: large;">बेटा नंगा मत घुमा करो वर्ना कौवा तुम्हारी बहु नौच ले जाएगा। मैं आज भी घर
पर कच्छे बनियान में रहना पसंद करता हूँ पर पत्नी को पसंद नहीं। बिना नेकर
पायजामा और टी शर्ट के मुझे अपने ही घर में जीने नहीं दिया जाता। वैसे
मैं किसी न्यूड केम्प में कम से कम एक हफ्ता गुजरना चाहता हूँ। विदेश
नहीं जा सकता, दिगंबर या नागा साधू नहीं बन सकता अतः इस इन्तजार में हूँ
की कब अपने देश में लोग इतने आधुनिक,प्रगतिशील और समझदार हों की यहाँ भी
न्यूडिस्ट केम्प स्थापित हों।<span style="font-size: large;"> </span></span><span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;">कुल मिला कर </span>आज की तिथि में मुझे कम से कम अपने घर में पायजामा या नेकर पहनने की घुटन से मुक्ति आजादी और स्वतंत्रता चाहिए।</span>
<span style="font-size: large;"></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मैं युवा हुआ तो अपने पिता की ही तरह बीडी
और हुक्का पीना चाहता था।बड़े भाई की तरह शराब और बियर पीना चाहता था।
इजाजत नहीं मिली। बहुत सी लड़कियों के साथ बिना रोकटोक खुले आम रोमांस करना
चाहता था। चहुँ </span><span style="font-size: large;">ओर से विरोध हुआ। मेरे पिता बीडी हुक्का पी सकते थे, दोस्त
लोग दो दो तीन तीन लड़कियों से प्रेम कर सकते थे पर मुझे आजादी नहीं मिली।
कहा गया चोरी छिपे ये काम कर लो। समाज के इस दोगलेपन पर बहुत गुस्सा आया। बड़ी घुटन सी महसूस हुयी। दिल के अरमान कुचले गए। आज मैं किसी सुन्दर
महिला से बात करता हूँ तो पत्नी को बुरा लगता है। उस सुन्दर महिला के
परिजनों को बुरा लगता है। मुझे आजादी चाहिए, मुक्ति चाहिए। </span>
<span style="font-size: large;"></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मैं छोटा था तो देर तक बाहर रहने पर माता पिता की डांट
सुनानी पड़ती थी। जमाना ख़राब है देर रात तक गलियों में दोस्तों के
साथ आवारागर्दी मत किया करो के जुमले मैंने कई बार सुने। पहली बार बेंक से
पैसे निकलवाने गया तो सुरक्षित रहने के बहुत से तरीकों के साथ मुझे लेस कर
भेज गया। दिल्ली के ही कुछ इलाकों में जाने से पहले सावधान रहने की
हिदायतें भी बहुत बार मुझे मिली हैं।<span style="font-size: large;"> </span>बहुत बार मेरे मन
में आया की मैं अपनी जेब में सौ के नोटों की गड्डी रखकर किसी भीड़ भरे बाज़ार
में कुछ इस तरह से घुमु के गड्डी का कुछ हिस्सा जेब से बाहर दीखता रहे।
ये न पूछे की ऐसा क्यों? भई मेरा सामान है मैं जैसे चाहे रखूं, जब चाहे
जहाँ चाहे दिखाऊ। दुसरे के धन को मिटटी समझना चाहिए। पर दोस्तों मैं रात
की बात छोडो मैं कभी दिन में ऐसा नहीं कर पाया। ये सब देखकर मुझे लगा की इस देश, इस समाज में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज कभी रही ही
नहीं है। आप रात
तो क्या दिन दहाड़े भी अपने कीमती सामान के साथ खुले घूम नहीं सकते। लोगों
की बुरी नज़रों से अपने मूल्यवान सामान को बचा नहीं रख सकते। इस सब
से मुझे बड़ी घुटन महसूस होती है। मुझे अपनी मूल्यवान चीजों को सुरक्षित
रखने के डर से आजादी चाहिए।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">तो कदम कदम पर आजादी मुक्ति </span><span style="font-size: large;">स्वतंत्रता खोज रहे इस पुरुष को भी समर्थन की चाह है। है कोइ सगठन इधर या उधर जो मुझे बेहद </span><span style="font-size: large;">असरदार और प्रभावशाली चोली उतार समर्थन दे सके। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com42tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-60485686117733419562013-04-02T18:37:00.000+05:302013-04-02T18:37:05.051+05:30चोली फाड़ जिहाद <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div>
<span style="font-size: large;"><b><br /> </b></span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"><b>युक्रेन का एक नारीवादी सगठन है
<a href="http://www.femen.org/" target="_blank"> फेमेन </a>। इस संगठन की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य था युक्रेन की युवा महिलाओं में
नेतृत्व,बौद्धिक तथा नैतिक गुणों का विकास करना और युक्रेन की छवि सुधरने
के साथ साथ उसका स्त्रियों के लिए एक अवसर प्रदान करने वाले देश के रूप में
विकास करना। अपने इस उद्देश्य की प्राप्ति और दुसरे स्त्री विरोधी कार्यों
के विरोध के लिए इस संगठन के सदस्य राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय मंचों पर
चोली उतार कर प्रदर्शन करने में विश्वाश रखते हैं। चोली उतार प्रदर्शन
इसलिए क्योंकि इस प्रकार के प्रदर्शन से लोंगों का ध्यान आसानी से आकर्षित
किया जा सकता है और सहज ही खबरों की सुर्खिया बटोरी जा सकती हैं।आज की तिथि में फेमेन का दायरा युक्रेन से आगे बढ़ कर अंतर्राष्ट्रीय हो गया है और इसने खुद को नए तरीके से फरिभाषित किया है अब <span style="font-family: tahoma,arial,verdana,sans-serif,'Lucida Sans'; line-height: 16px;">FEMEN – is a hot boobs, a cool head and clean hands.</span> [ वैसे ये सोचने की बात है की स्त्रियों में चोली उतार कर नेतृत्व बौद्धिक
और नैतिक गुणों का विकास किस प्रकार से किया जाना था और ये बौद्धिक और
नैतिक गुण क्या वही होते जो आम समाज स्वीकारता है या इनकी परिभाषा भी कुछ
और ही होती और हाँ अब hot boobs को महत्व किस लिए ? सस्ती लोकप्रियता या पुरुषों को अभी भी आकर्षित करने का प्रयास ] </b></span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"><b> </b></span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"><b>अब यह संगठन चार अप्रेल से ट्युनिसिया की अमीना के समर्थन
में एक जिहाद शुरू करने जा रहा है। अमीना ने अपने देश के इस्लामिक
कट्टरपंथियों के विरोध में अपनी नग्न तस्वीरें फेसबुक पर सार्वजनिक कर दी
जिसके लिए ट्युनिसिया की सरकार ने उसे मानसिक रोगी समझ कर मानसिक रोगियों
के अस्पताल में भर्ती कर दिया है। </b></span>
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
</div>
<div>
<span style="font-size: large;"><b>फेमेन का वेब पेज सभी स्त्रियों से अमीना के समर्थन और इस्लामिक
कट्टरपंथियों के विरोध में चार अप्रेल को चोली उतार कर स्तन दिखाऊ विरोध
प्रदर्शन करने का आवाहन करता है।<br /></b></span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"><b> इन संगठनों के गंभीरता
से नारीवादी होने में मुझे शक होता है। मुझे लगता है की इस प्रकार के
नारीवादी संगठनों के प्रणेताओं का एकमात्र उद्देश्य सस्ती लोकप्रियता हासिल
करना होता है और नारी अधिकारों के लिए ये लोग सिर्फ अपने स्तनों का
प्रदर्शन ही कर सकते हैं। कोई ठोस कार्य करना इन लोगों के बस का होता ही
नहीं है <br />
<br />जरा सोचिये ट्युनिसिया की अमीना के चोली उतारने पर सभी की चोली
फटवाने को तैयार इन नारीवादी संगठनों में से कितनों ने पाकिस्तान या
अफगानिस्तान की फाकरा युनुस, आयेशा मोहम्मद या मलाला जैसी मुस्लिम
कट्टरपंथियों की बर्बरता की शिकार लड़कियों के समर्थन में कोई प्रदर्शन या
जिहाद किया। क्या इन लड़कियों के समर्थन में तेजाब की एक बूंद से खुद को
झुलसना या प्रतीक रूप में अपने नाक कान कटाने जैसा कोई सनसनीखेज प्रदर्शन
नहीं किया जा सकता था। जी नहीं वो खतरनाक होता। इससे आसान है अपने चोली और
ब्लाउज उतार कर </b></span><span style="font-size: large;"><b>पूरी दुनिया के पुरुषों का ध्यान अपनी और आकर्षित करना। [हो सकता है इसमें
भी कुछ लोगों को मजा आता हो। मैंने वसंत विहार जैसे दिल्ली के पोश इलाके
में एक लडके को भरे बाज़ार अपना लिंग निकल कर घूमते देखा है। ये भी यौन
संतुष्टि का एक रुग्ण तरीका है। ये और बात है की उस लडके की जबरदस्त
धुलाई हुई। ] </b></span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"><b><br />असल
में पश्चिमी सभ्यता में नग्न होकर लोगों का ध्यान आकर्षित करना एक सस्ता
आसान उपाय है। कई बार क्रिकेट मैच के बीच लोग कपडे उतार कर दौड़ लगाने लगते
हैं। कुछ डिपार्टमेंटल स्टोर प्रतियोगिता आयोजित कर नग्न होकर आने वाले
अपने स्त्री पुरुष ग्राहकों को मुफ्त खरीदारी करने का अवसर प्रदान करते
हैं। गाँव देहात में जिस प्रकार हमारे बच्चे जीभ निकल कर दूसरों को चिढाते
हैं उसी प्रकार पश्चिमी गाँव देहात में दूसरों को चिढाने के लिए बच्चे अपना
पिछवाडा उघाड़ देते हैं। <br />
</b></span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"><b>मैं slut walk या topless jihad जैसे हर विरोध प्रदर्शन
के खिलाफ हूँ। ये सामान्य लोगों के काम नहीं हैं बल्कि मानसिक रूप से
विचलित असामाजिक लोगों के कार्य हैं। </b></span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"><b>बकवास जारी रहेगी ..........</b></span></div>
</div>
VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-21359095890435476352012-10-24T18:10:00.000+05:302012-10-24T18:10:08.538+05:30सरकारी अस्पताल में पुरुष नर्स।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
नर्सिंग एक महिला प्रधान
पेशा है। पुरुष भी नर्स बन सकते हैं ये बात मुझे पता थी पर अभी तक मैंने
किसी पुरुष को नर्स का कार्य करते हुए देखा नहीं था। पिछले कुछ दिन मेरे
बच्चे डेंगू की वजह से दिल्ली के एक सरकारी बाल चिकित्सालय में भर्ती थे।
वहां मैंने पहली बार किसी पुरुष को नर्स के रूप में कार्य करते हुए देखा।
दो युवक मेडीसिन वार्ड में नर्स के तौर पर कार्यरत थे। मैं दोनों के ही
कार्य से बहुत प्रभावित हुआ। उनका संयम, धेर्य और बाल मरीजों से बात करने
का तरीका काबिले तारीफ था। आम तौर पर सरकारी अस्पतालों में कार्यरत नर्सें
अपने कार्य के प्रति बेहद असंवेदनशील होती हैं।इसके विपरीत ये दोने युवक
अपने कार्य को बेहद संजीदगी से कर रहे थे।
<br />
<div>
</div>
आम धारणा यह है की मरीजों की सेवा का कार्य स्त्रियाँ पुरुषों से
ज्यादा अच्छे ढंग से कर सकती हैं पर सरकारी अस्पतालों में अभी तक मैंने
जितनी भी महिला नर्स देखी हैं उनमे से 99 प्रतिशत नर्सों को मैंने अशिष्ट,
कामचोर व चिडचिडा पाया। नर्सिंग स्कुल से निकलते वक्त मरीजों की सेवा का जो
व्रत वो लेती हैं सरकारी सेवा में आने के उपरांत उसे वो सबसे पहले भुला
देती हैं। अपने कार्य के प्रति उनका रवैया बेहद मशीनी रहता है
और मरीजों के प्रति उनका व्यवहा<div>
<wbr></wbr>र बहुत ही गैरजिम्मेदाराना होता है।
दिल्ली के जी टी बी हॉस्पिटल में अपने कार्यकाल के दौरान मैंने एक नर्स से
इस बारे में सवाल किया तो उन्होंने कहा था की अगर पुरुष ये कार्य करें तो
उनका व्यव्हार और भी ख़राब होगा। पुरुष नर्सों के साथ मेरा पहला अनुभव तो
अच्छा रहा है और मैं तो चाहूँगा की ज्यादा से ज्यादा पुरुष नर्सिंग की
कार्य को अपनाएं ताकि आम लोगों की ये भ्रान्ति दूर हो की मरीजों की देखभाल
करने जैसे संवेदनशील और भावनात्मक कार्यों पर स्त्रियों का एकाधिकार है।
हालाकिं ये कहा जा सकता है की सिर्फ दो पुरुष नर्सों के साथ हुए अपने अनुभव
के आधार पर यह कहना की पुरुष स्त्रियों से बेहतर नर्स हो सकते हैं एक
जल्दबाजी होगी पर फिर भी महिलओं से भरे एक सेक्शन की पुरे एक वर्ष तक
अगुवाई करने के अनुभव से पैदा हुयी समझ से मैं पुरे भरोसे के साथ कह सकता
हूँ की पुरुष नर्सिंग के कार्य में स्त्रियों से कभी भी कमतर नहीं होंगे।
<br /><br />पिछले वर्ष अगस्त में मैंने भारत सरकार के एक मंत्रालय के प्रधान
लेखा कार्यालय के लेखा विभाग की कमान सम्हाली। मेरे विभाग में एक पुरुष व
चार महिलाएं कार्यरत थी। सांकेतिक रूप से आप उन्हें मिसेज मल्होत्रा,मिसेज
खन्ना, मिसेज टुटेजा और मिसेज तनेजा पुकार सकते हैं। कहने को तो मैं विभागीय अधिकारी था पर सभी महिलाएं उम्र व तनख्वाह में मुझ से कहीं आगे थी। वर्ष भर मैं इन चारों महिलाओं
की आपसी प्रतिस्प्रधा का मूक गवाह बना रहा। प्रतिस्पर्धा अपने कार्य को
बेहतरी से करने की नहीं थी। प्रतिस्पर्धा थी ज्यादा से ज्यादा छुटियाँ लेने, काम पर देरी से आने और जल्दी जाने तथा अपना कार्य दूसरों पर थोपने की। पुरे वर्ष अपने विभागीय कार्यों को समय पर पूरा करवाने के दबाव व तनाव ने मुझे किसी दूसरी चीज पर ध्यान देने का मौका ही नहीं दिया। अंततः
एक सच्चे निडर पुरुष की तरह मैंने रण छोड़ने का निर्णय लिया और अपने विभाग
की कमान एक दूसरी महिला अधिकारी को सौप कर ऑडिट विभाग में भाग खड़ा हुआ। अब
चूँकि ऑडिट विभाग में बार बार देश के विभिन्न हिस्सों में ऑडिट ले लिए जाना
पड़ता है इसलिए कोई भी महिला इस विभाग में नहीं है। यहाँ आने के बाद मैं
तनाव मुक्त हूँ। <br /><br />अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूँ की
सरकारी महिला कर्मचारी आफिस चाहे वो नर्सें हो या फिर कुछ और पुरुष
कर्मचारियों के मुकाबले कुछ भी कार्य नहीं करती। वैसे सरकारी कर्मचारी कार्य कितना करते हैं यह सब को पता है।<br />
</div>
</div>
VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-47110283333961061962012-05-16T22:56:00.003+05:302018-09-04T08:41:00.530+05:30आओ मित्रों परिकल्पना सम्मान-2011 का बहिष्कार करें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div>
ब्लॉग जगत के प्रिय बंधुओ प्रणाम,</div>
<div>
</div>
<div>
बहुत दिनों बाद अपने ब्लॉगर पर लॉग इन किया तो पाया की इनकी तो सूरते हाल ही बदल गयी है. अपने ब्लॉग पर लिख पाना भी भारी हो रहा है अतः जी मेल की सहायता लेकर इस पोस्ट को लिख रहा हूँ. </div>
<div>
खैर संक्षेप में जो कहना चाहता हूँ वह कह रहा हूँ क्योंकि मुझे खुशफहमी है की बहुत से लोग मेरी बात पर ध्यान देंगे.</div>
<div>
</div>
<div>
आदरणीय रचना जी ने अपने नारी ब्लॉग पर परिकल्पना नामित ब्लॉग की एक पोस्ट का लिंक दिया है. इस पोस्ट में कुछ ब्लोग्गेर्स व ब्लोग्स की एक सूची दी गयी है जिसमे से किसी एक का इस दशक के ब्लॉगर व ब्लॉग के रूप में चुनाव किया जाना है. मैंने इस सूची का निरपेक्ष भाव से अध्ययन किया. मुझे बड़ा अफ़सोस है की "दशक के ब्लॉगर" के पुरस्कार के लिए नामांकित सज्जनों/सज्जनियों की सूची को पढ़कर बहुत निराशा हुई है. इस सूची को बनाने वालों ने ना तो सेकुलरिस्म का ध्यान रखा है और ना ही दलित व पिछड़ी जातियों को कोई प्रतिनिधित्व दिया है . पूरी सूची में सभी नामांकित ब्लोग्गेर्स हिन्दू हैं और केवल अगड़ी जातियों से सम्बन्ध रखते हैं.इसमें sc, st, obc और मुस्लिमों के लिए कोई स्थान नहीं है . यह बड़ी शर्म की बात है. मेरी नज़र में यह सूची देश विरोधी है, समाज विरोधी है. </div>
<div>
</div>
<div>
इसलिए मैं इन पुरष्कारों का बहिष्कार करता हूँ और ब्लॉग जगत के अपने मित्रों को छोड़कर बाकी सभी से अपील करता हूँ की इस मुहीम में मेरा साथ दें. </div>
<div>
</div>
<div>
धन्यवाद व शुभ रात्रि।</div>
<div>
</div>
<div>
</div>
</div>VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com24tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-63083937476451767592011-06-24T21:28:00.000+05:302011-06-24T21:28:45.456+05:30स्त्री जीवन अपवित्र है !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">अभी कुछ समय पहले टाइम्स ऑफ़ इंडिया में एक खबर थी की मलेशिया में एक </span><a href="http://www.washingtonpost.com/world/obedient-wives-club-in-malaysia-wants-women-to-be-good-lovers-for-happy-marriages/2011/06/04/AGVuR7IH_story.html"><span style="font-size: large;">"obedient wives club"</span></a><span style="font-size: large;"> स्थापित किया गया है. जिस वक्त यह खबर पढ़ी तभी मन में ख्याल आया की हमारे धर्म और इस्लाम में कितनी समानता है. हमारे यहाँ भी लड़कियों को शुरू से समझाया जाता है की पति परमेश्वर होता है. हर पतिव्रता नारी का कर्तव्य होता है की वो अपने पति परमेश्वर के हर आदेश को ईश्वर का आदेश समझ कर पालन करे. और यही बात इस्लाम में भी कही गयी है. </span></div></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"> इसके बाद स्वाभाविक रूप से मेरे मन उत्सुकता हुई की हमारा तीसरा प्राचीन और लोकप्रिय धर्म यानि की इसाई धर्म स्त्रियों के लिए क्या निर्देश देता है या फिर </span><a href="http://www.religioustolerance.org/lfe_bibl.htm"><span style="font-size: large;">ईसाई धर्म में स्त्रियों की क्या स्थिति</span></a><span style="font-size: large;"> है. तो वहा भी स्त्रियों के लिए कमोबेश वही निर्देश थे जो हिन्दू धर्म और इस्लाम धर्म में हैं. </span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">अब मैंने नेट पर बौद्ध, जैन और दुसरे धर्मों में स्त्रियों की स्थिति के बारे में उपलब्ध जानकारी को कुछ दूसरी साइट्स को देखा जहाँ से पता चला </span><span style="font-size: large;"> की लगभग हर धर्म एक इन्सान के रूप में स्त्री और पुरुष में भेदभाव रखता है. </span><br />
<div style="text-align: left;"><br />
<span style="font-size: large;">इससे पहले मैंने कभी भी इस विषय में गहराई से विचार नहीं किया था. अभी तक तो नारीवादियों द्वारा नारी को दोयम दर्जा दिए जाने की बात मुझे हमेशा मजाक ही लगाती थी क्योंकि समाज में मैंने बहुत से पुरुषों को अपनी घरवालियों के दिशानिर्देशों के अंतर्गत कार्य करते देखा था. मैंने ऐसे घर भी देखे हैं जहाँ गृहस्वामिनी की अनुमति के बिना घर में पत्ता भी नहीं खड़कता. ऐसे में महिलाओं पर अत्याचार और उनके साथ भेदभाव की बात मुझे अतिशियोंक्ति ही लगाती थी. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">स्त्री स्वतंत्रता के समर्थक समाज में जिन बातों का विरोध करते नज़र आते हैं उन सब बातों के पीछे मुझे कहीं न कहीं महिलाओं की भलाई ही नज़र आती थी पर इस बार मुझे हमारे धर्मों में वर्णित एक तर्क बिलकुल भी समझ नहीं आया. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">मैंने देखा की लगभग सभी धर्मों में ये माना जाता है की स्त्री अपवित्र है . हमारे जैन धर्म में तो ये भी मान्यता है की स्त्री पुरुष योनी में जन्म लिए बिना मुक्ति नहीं पा सकती. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">अब स्त्री अपवित्र क्यों है? हमारे धर्मों का तर्क देखिये. स्त्री अपवित्र है क्योंकि उसे मासिक स्राव होता है. मैंने ये तो देखा है की मासिक धर्म के पांच दिनों में स्त्रियों को अपवित्र मान कर पूजा पाठ व अन्य घरेलु कार्यों से दूर रखा जाता है जो की मुझे ठीक ही लगाता था क्योंकि इस दौरान स्त्री को आराम मिलाना चाहिए पर इस वजह से स्त्री के पुरे अस्तित्व को अपवित्र मान लेने की बात मुझे बिलकुल भी हज़म नहीं हुई. मुझे तो इसमे एक बड़ा अजीब सा विरोधाभास लगा. एक तरफ तो स्त्री को रजस्वला होने तक पूर्ण नहीं मन जाता और दूसरी तरफ इसी वजह से उसे अपवित्र मान लिया जाता है. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">इस विरोधाभास से तो मुझे यही नज़र आया की कोई भी धर्म स्त्री को इन्सान का दर्जा देता ही नहीं. उसे तो सिर्फ एक मशीन समझा गया है जो तब तक अपूर्ण है जब तक की वो रजस्वला नहीं होती क्योंकि तब तक वो संतान पैदा नहीं कर सकती. यानि की रजस्वला होना उसके इन्सान के रूप में पूर्णता नहीं बल्कि एक मशीन के रूप में पूर्णता है अन्यथा अपनी इसी विशेषता की वजह से वो अपवित्र है. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">महीने में कुछ समय के लिए होने वाले रक्त स्राव से ज्यादा गन्दा तो स्त्री द्वारा रोजाना त्यागा जाने वाला मल मूत्र है पर उसके कारण स्त्री को अपवित्र नहीं माना जा सकता क्योंकि यही कार्य तो पुरुष भी रोजाना करता है इसलिए उसकी विशेषता उसके अपवित्र होने का कारण बन गयी. जरा सोचिये की अगर भगवान् एक पुरुष न होकर एक स्त्री होता तो पुरुष को उसकी दाढ़ी की वजह से अपवित्र ठहराया जाता और स्त्रियों को उनके चिकने गालों की वजह से जन्म मरण के बंधन से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">खैर जो भी हो मुझे पहली बार ये महसूस हुआ की पुरुषों ने दुनिया की आधी आबादी को गलत ढंग से काबू करने की कोशिश की है. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">मेरी नज़र में जो भी धर्म ये बात कहता है की स्त्री अपवित्र है या फिर ईश्वर के समक्ष वो पुरुष से कहीं भी कम है, वो एक सच्चा धर्म नहीं हो सकता है. ऐसे धर्मों को,ऐसे ईश्वर और ऐसी मान्यताओं को मैं स्वीकार नहीं कर सकता और हो सके तो आप भी स्वीकार ना करें.</span> </div></div><div style="text-align: left;"><br />
</div></div>VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com54tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-72303903178073648922011-06-11T21:21:00.002+05:302011-06-11T21:44:58.866+05:30सपने में देखा एक सपना.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ना है, एक साफ़ सुथरे चरित्र वाला नेता चाहिए. क्या मिलेगा?</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">जी नहीं. साफ़ सुथरा चरित्र तो हमारे भगवानों का नहीं रहा है तो हमारा कैसे होगा . आपको जो है, जैसा है के आधार पर ही काम चलाना होगा. यानि की एक दागदार को दुसरे दागदार से बदला जायेगा. एक निकम्मे का विकल्प दूसरा निकम्मा होगा. वैसे भी आप व्यक्ति नहीं मुद्दा देखिये. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जो कोई नेता बनाना चाहेगा हम उसके पीछे चल देंगे चाहे वो बडबोले कांग्रेसी दिग्विजय सिंह हो या बाबा रामदेव. मुद्दा बड़ा है व्यक्ति नहीं. </span></div></div></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">अच्छा जी , इसका तो मतलब है की दुनिया वैसे ही चलेगी जैसे वो पहले चलती थी. इन लाठी, डंडा, अनशन जैसी तमाम मुश्किलों से मिले परिवर्तन का बस इतना सा फायदा होगा की एक स्थापित भ्रष्टाचारी की जगह हमें एक नौसिखिया भ्रष्टाचारी मिलेगा और जब वो पक जायेगा या जनता उससे पक जाएगी तो हम एक और नया भ्रष्टाचारी खोज लेंगें.</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">तो क्या करें? </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">क्या हम अपनी शासन व्यवस्था को कुछ इस तरह से नियोजित नहीं कर सकते की किसी नेता की जरुरत ही ना रहे. व्यवस्था खुद ही हर समस्या का समाधान खोज ले . नेता के रूप में चाहे डाक्टर अब्दुल कलाम हों या अपनी महामहिम प्रतिभा पाटिल जी किसी को भी कुर्सी पर बैठा दो, व्यवस्था चलती रहे. काम होते रहें. अपने इर्द गिर्द प्रकृति को देखें. सब कुछ व्यवस्थित चलता है. जानवरों के झुण्ड तक एक निश्चित व्यवस्था के तहत अपने नेता का चुनाव आसानी से कर लेते हैं.तो फिर हम इतने समझदार जानवर होते हुए भी अपने लिए एक श्रेष्ठ नेता नहीं चुन पाते. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">......ये सब बकवास है, बचकाना है, अपरिपक्व है. कुछ सोलिड सोचो. </span></div><div style="text-align: left;"><br />
<span style="font-size: large;">चलो तो सबसे पहले एक ईमानदार व्यक्तित्व की खोज करें. मुझे विश्वास है की वो हमें हमारे ही आस पास मिलेगा. फिर उसे इस आन्दोलन की कमान सौप दें. मुझे याद है की अपने डाक्टर कलाम की इच्छा थी की वो दुबारा राष्ट्रपति बने मगर उन्हें पूरा समर्थन ही नहीं मिला और समर्थन मिला माननीया महामहिम प्रतिभा पाटिल जी को जो आज राष्ट्रपति के पद पर शोभायमान हैं . </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">हमारी जनता जो निस्वार्थ भाव से बाबा रामदेव जी को अपना अंध समर्थन दे रही है क्या वो ऐसा ही समर्थन डाक्टर कलाम जैसे लोगों को नहीं दे सकती. कहीं हमारी जनता के मन में ही एक साफ़ और स्वच्छ नेतृत्व के प्रति किसी तरह का डर तो नहीं समाया है. </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">....नहीं ये भी फिजियेबल नहीं है.</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">तो क्यों ना हम लोग खुद में ही बदलाव ले आयें. खुद को सुधार लें. फिर हम सुधारे हुए लोगों को तो एक सही दिशा मिल ही जाएगी. जापान का उदहारण देखो. भ्रष्टाचारी नेता वहां भी पैदा हुए हैं. नेतृत्व वहां भी गलतियाँ करता है पर वहां की सदाचारी जनता हमेशा ईमानदार बनी रहती है. हाल फ़िलहाल में वहां हुयी विपत्तियों में उभर कर आये उन लोगों के चरित्र से हमें कुछ न कुछ प्रेरणा अवश्य लेनी चाहिए .</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">..... प्यारे ऐसी भयंकर बातें छोड़ और कुछ प्रक्टिकल बात कर. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">तो चलो सपने बहुत देख लिए मैं अंत में आपको एक कहानी सुनाता हूँ. आशा है आप मेरी बात को समझ जायेंगे. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">एक स्त्री सबसे कामुक पुरुष से विवाह करना चाहती थी. खोज बीन शुरू हुयी और अंत में एक जंगल में एक पेड़ के नीचे लेटे एक ऐसे पुरुष पर जाकर समाप्त हुयी जो बहुत चीख चीख कर दुनिया की सारी चीजो के साथ सेक्स करने की बात कर रहा था. स्त्री बहुत खुश हुयी की चलो सबसे बड़ा कामुक पुरुष मिला. शादी हुई. सुहागरात का समय आया . पुरुष बडबडाता रहा की पलंग तोड़ दूंगा, ये फाड़ दूंगा वो चीर दूंगा पर जो करना था वो नहीं किया. स्त्री को गुस्सा आया और उसने पुरुष से पूछा अबे इतनी देर से बकवास कर रहा है की ये कर दूंगा वो कर दूंगा जो करना है वो करता क्यों नहीं. पुरुष का जवाब था की मैं तो शुरू से एक बडबोला और बकवासी हूँ और सारी जिंदगी सिर्फ यही कर सकता हूँ. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">तो भैया मेरा तो सभी से यही कहना है की वो सत्ता की सेज पर सोलिड लोगों को लाने का यत्न करें ना की पैदायशी बडबोले और बकवासी लोगों को. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">अंत में जय राम जी की बोलना पड़ेगा. </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"></div><div style="text-align: left;"></div></div>VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-77301782595619476142011-06-05T10:05:00.003+05:302011-06-08T07:57:21.919+05:30समान विचारों का अन्तःप्रजनन खतरनाक है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;">मैं जब भी कुछ लिखता हूँ या कहता हूँ और सभी लोग आसानी से सहमत हो जाते हैं तो जाने क्यों मैं भीतर ही भीतर डर सा जाता हूँ. अपनी कही बात पर दुबारा विचार करता हूँ और अपने निर्णय पर अडिग नहीं रह पाता क्योंकि जब प्रत्येक व्यक्ति मेरी बात से सहमत दिखता है तो मुझे लगता है की या तो मेरी बात पर पर्याप्त विचार नहीं हुआ है या फिर मेरी हाँ में हाँ मिलाने वाला आदमी जाने अनजाने में मुझ से अत्यंत प्रभावित होकर मेरा समर्थन कर रहा है. </span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;">जाने क्यों लोग अपनी आलोचना को नकारात्मक रूप से ग्रहण करते हैं. मुझे लगता है की हमें अपने आलोचक को अपने समर्थक से ज्यादा सम्मान देना चाहिए क्योंकि वो हमें हमारे विचारों को सटीक बनाने में सहायता करता है. सही मायनों में हमारा आलोचक ही हमारा सबसे बड़ा समर्थक है क्योंकि कहीं न कहीं वो हमें उस मुकाम पर पहुचने में सहायता कर रहा है जहाँ से कोई हमें गिरा न सके या जहाँ जहाँ विचारों में कमी का प्रतिशत कम से कम रहे. वर्ना आजकल किसके पास इतना समय और उर्जा है की वो आलोचना जैसे श्रमसाध्य कार्य में लग कर लोगों की बेवजह की नाराजगी मोल ले. </span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;">अपने खुद के बारे में एक बात मैं यहाँ बिलकुल सत्य कह दूँ जिन्हें मैं मन ही मन नापसंद करता हूँ या जिनके भरभरा कर गिराने का मुझे बेसब्री से इंतजार होता है मैं कभी भी उनकी आलोचना नहीं करता. मैं शांत होकर उन्हें गलतियाँ करते देखता जात हूँ और इंतजार करता रहता हूँ की कब गलतियों के फंदे में फंस कर उनकी द्रुत गति पर लगाम लगे. </span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;">सबसे स्वस्थ मंच वो है जहाँ विभिन्न प्रकार के विचारों का स्वस्थ मिलन हो और उनके समागम से श्रेष्ठ गुणों से युक्त विचारधारा का जन्म हो जिसमे कमियों की कम से कम गुन्जायिश हो. परन्तु दुर्भाग्य ये है की हम अपने से विचार रखने वाले लोगों के मध्य ही सहज होते हैं और किसी का जरा सा भी विरोध मिलने पर आक्रामक हो जाते हैं. एक से विचार रखने वाले लोगों के साथ रहने से विचारों का अन्तःप्रजनन शुरू हो जाता है जो भविष्य के लिए खतरनाक हो सकता है. </span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;">तो ध्यान दें स्वस्थ व बेहतर भविष्य के लिए विरोधी विचारों से समागम के लिए हमेशा प्रसन्नता पूर्वक प्रस्तुत रहें. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">भूल सुधार : </span><br />
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<div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">@ अनुराग जी, जब से आपकी टिप्पणी देखी है तब से यही सोचा रहा था की इस शीर्षक में क्या कमी है. बड़ी देर बाद लगा की शायद एक शब्द छुट गया है. "विचारों का अन्तःप्रजनन" को अब "समान विचारों का अन्तःप्रजनन" कर दिया है. अभी भी कुछ ठीक न लग रहा हो तो बताएं, सुधार हो जायेगा. अपना ही ब्लॉग है गलतियों में कभी भी सुधार किया जा सकता है :-))</span><br />
<br />
<div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">@अंशुमाला जी मैंने कभी इस नज़रिए से सोचा नहीं था. भविष्य में ध्यान रखूँगा की सीधे मुझ से किये गए प्रश्नों के उत्तर मैं जरुर दूँ. साथ ही साथ मैं यह भी स्पष्ट कर दूँ की मेरी पोस्ट से सम्बंधित दिए गए आपके या किसी और के विचारों से अगर कोई दूसरा व्यक्ति अपनी सहमती या असमति व्यक्त करता है तो मैं उसे रोक दूँ ये बात मुझे ठीक नहीं लगती.</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"> बेशक गूगल बाबा के आशीर्वाद से ये ब्लॉग मेरा हुआ है पर फिर भी सभ्य भाषा में पोस्ट के विषय से सम्बंधित अपनी बात रख रहे व्यक्ति को मैं सिर्फ इसलिए रोक दूँ की इस ब्लॉग पर पोस्ट लिखने की सुविधा मुझे मिली हुयी है मुझे ठीक नहीं लगता. यहाँ पर प्रकट मेरे विचारों से मेरा कोई लगाव नहीं है.यहाँ मैं अपने विचार रखता ही इसलिए हूँ ताकि अगर मेरी कोई बात गलत है तो उसकी ढंग से मरम्मत हो जाये. आप ऐसा करती हैं इसलिए ही मैं आपकी इज्जत करता हूँ. जब कभी भी मुझे मेरे विचारों की कमियां आप जैसे अनुगृही मित्रों की कृपा से नज़र आती हैं तो मैं उन्हें सुधारने की कोशिश अवश्य करता हूँ. बेशक मैं हर उस बात को सार्वजनिक रूप से स्वीकार न करूँ.</span> </div><div style="text-align: left;">. </div></div></div></div>VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com43tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-32397480591910924222011-06-02T23:20:00.006+05:302011-06-03T22:19:34.570+05:30काश बाबाजी देश को सुपर पावर बनवाने के लिए सत्याग्रह करते.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">बाबा रामदेव जी का अनिश्चित कालीन आमरण अनशन शुरू होने में सिर्फ एक दिन बाकि रह गया है. चार जून से बाबाजी अपने करोड़ों भक्तों के साथ आमरण अनशन शुरू करेंगे ताकि उनकी तीन प्रमुख निम्न मांगें मान ली जाएँ.</span></div></div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><br />
</div></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">बाबाजी की राष्ट्रहित में तीन माँगे </span></div><ul><li><span style="font-size: large;">लगभग चार सौ लाख करोड़ रुपये का काला धन जो की राष्ट्रीय संपत्ति है यह देश को मिलना चाहिए ।</span></li>
<li><span style="font-size: large;">सक्षम लोकपाल का कठोर कानून बनाकर भ्रष्टाचार पर पूर्ण अंकुश लगाना । </span></li>
<li><span style="font-size: large;">स्वतंत्र भारत में चल रहा विदेशी तंत्र (ब्रिटिश रूल ) खत्म होना चाहिए जिससे कि सबको आर्थिक व सामाजिक न्याय मिले । </span></li>
</ul><span style="font-size: large;">(बाबाजी के भक्तों के अनुसार तो बहुत सारे मुद्दे है पर </span><a href="http://www.bharatswabhimantrust.org/bharatswa/Hindi.aspx"><span style="font-size: large;">भारत स्वाभिमान ट्रस्ट</span></a><span style="font-size: large;"> की वेबसाईट इन्हीं तीन प्रमुख मांगों की बात करती है. )</span><br />
<br />
<br />
<span style="font-size: large;">बाबाजी की मांगों को लेकर मेरे मन में संशय है की क्या बाबाजी के आमरण अनशन के टूटने से पहले उपरोक्त मागों में से कोई भी एक पूरी की जा सकती है?</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">ऐसा होना मुझे तो बिलकुल भी संभव नहीं दीखता. सरकार अगर अपने तमाम संसाधनों का उपयोग कर ले तो भी इन मांगों का पूरा होना संभव नहीं तो क्या स्वामीजी व्यर्थ में अपनी और अपने समर्थकों की जान जोखिम में डाल रहे हैं और अगर स्वामीजी को सिर्फ सरकार के आश्वासन से ही संतुष्ट होना है तो वो आश्वासन तो प्रधानमंत्री जी की तरफ से एक हफ्ता पहले ही मिल चूका है तो फिर अनशन पर बैठने की जिद क्यों?</span><br />
<br />
<div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">सरकार स्वामी जी के समक्ष हाथ जोड़े खड़ी है की प्रभु आप जैसा चाहेंगे वैसा ही होगा तो स्वामीजी आगे बढ़कर सरकार का मार्गदर्शन क्यों नहीं करते? काहे को दो चार रोज के लिए भूखे रहकर खुद की उस शक्ति को जोकि देश की सरकार को सही राह दिखने में खर्च की जानी चाहिए थी राम लीला मैदान में जाया कर रहे हैं? ये कैसी कलजुगी लीला है मेरे राम ?</span></div><br />
<span style="font-size: large;">क्या आमरण अनशन जोकि निश्चित रूप से लक्षित मांगों के पूरा होने से पहले ही ख़त्म हो जाना है, भ्रष्टाचार उन्मूलन से ज्यादा महत्वपूर्ण है? </span><br />
<br />
<br />
<div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><u>कुछ बातें और भी ....</u></span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">अपनी टिप्पणी में राहुल सिंह जी ने कहा.....</span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><span style="font-size: large;">आदर्श या बेहतर स्थितियां के लिए कल्पना हो, विचार या प्रयास, स्वागतेय होना चाहिए. </span><br />
<span style="font-size: large;">पर मुझे लगता है की कल्पनाओं और विचारों का तो स्वागत किया जा सकता है पर प्रयास तो सही दिशा में ही होने चाहिए. उदहारण के लिए एक उत्तम विचार/कल्पना है...</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">कौन कहता है की आसमां में छेद नहीं हो सकता</span><br />
<span style="font-size: large;">एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो.....</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">अब जरा सोचें की आपका पडोसी इस विचार को सही साबित करने के लिए प्रयास शुरू कर दे तो क्या होगा. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">स्वामी जी का विचार तो उत्तम परन्तु प्रयास भी कुछ ऐसा ही निर्थक है. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">@ संजय जी उस ईश्वर या प्रकृति ने भेड़ें बनाई हैं तो उसी ने भेडिये भी बनाये हैं पर भेड़ की खाल में छिपे भेडिये नहीं बनाये. मैं भेडियों तो सहन कर लेता हूँ (प्रकृति की देन हैं)पर भेड़ की खाल में छिपे भेडियों को नहीं. </span><br />
<br />
<br />
<span style="font-size: large;">@ आशीष श्रीवास्तव जी आपने मेरे विचारों को मजबूत सहारा प्रदान किया है. आपका बेहद धन्यवाद. </span><br />
<br />
<div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">@ अली सर, धन्यवाद, गलती में सुधार कर दिया है. </span></div></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">@ संजय जी एवं आशीष जी आप दोनों ने मेरी बात को विस्तार दिया, इसके लिए आपका शुक्रिया. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">@ दीपक जी, रामदेव जी के प्रति आपका झुकाव बनता है क्योंकि वो भी बाबा और आप भी बाबा :)) </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">इसके साथ ही सभी को धन्यवाद और आभार. </span><br />
<br />
</div></div>VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-57983838626344148322011-06-01T07:23:00.002+05:302011-06-26T21:02:13.854+05:30अरे बाबा तन्ने बेरा ना के भ्रष्टाचार का साप समाज को भी सर से निगले है.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">इस बाबा का मन भाई ठीक ना है. ना जी कतई ना .</span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">इस बाबा के मन में राजनैतिक चोर है ... हाँ भाई बिलकुल हाँ. </span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">आज तक तो ये बाबा बोले था की समाज को भ्रष्टाचार का नाग डस रहा हैं. इब इस ललिता पवार के छोटे भाई ने ये ना बेरा है के डसने के बाद सापं अपने शिकार को खावे कित से हैं.</span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">हैं जी... ना इब आप ही बताओ. जब भ्रष्टाचार के नाग ने डस ही लिया तो इब वो खायेगा तो ऊपर से ही ना..</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">तो ऊपर वालों पर ही तो नज़र रखनी चाहिए. </span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">ये कुछ बातें हैं जो मैंने बाबा रामदेव जी के लिए उन्हीं की खड़ी हरियाणवी भाषा में कहीं हैं. मैं इससे ज्यादा इस प्रकार की भाषा में बात नहीं कर सकता इस लिए अपनी औकात पर आता हूँ. </span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">मेरे मन में बाबा रामदेव की राजनैतिक आकाँक्षाओं कहीं थोडा सा संदेह था जो अब निसंदेह में बदल गया है. बाबा रामदेव अगर मन से सच्चे होते तो शायद वो कहते की सांच को आंच नहीं और सर्वोच्च पद पर स्थापित लोगों के ऊपर सबसे ज्यादा नज़र रखने की बात करते. पर ऐसा उन्होंने किया नहीं. शायद कहीं ना कहीं उनके मन में ये विशवास हैं की आने वाले समय में वो इस देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं इस लिए प्रधानमंत्री और दुसरे उच्च पदों पर आसीन लोगों को लोकपाल बिल से उन्होंने अलग रखने की बात की है. </span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">ये मेरा अपना अनुभव है की भ्रष्टाचार की शुरुवात उच्च पदों से ही होती है. अगर राजा भ्रष्ट होगा (जो की वो था ही) तो निश्चित है की उसके राज्य की प्रजा भ्रष्टाचारी होगी ही क्योंकि हम हमेशा अपने से ऊपर वाले की नक़ल करते हैं. अगर हमारे देश के सर्वोच्च पदों पर आसीन लोग खुद ही अपने को लोकपाल के समक्ष निगरानी के लिए प्रस्तुत कर दें तो इस बात का समाज के सभी वर्गों में ये सन्देश जायेगा की इस देश में वी आई पी कोई नहीं. कानून सबके लिए बराबर है. </span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">हमारे देश में सभी लोग वी आई पी स्टेटस के लिए मरे जाते हैं क्योंकि एक वी आई पी सामान्य नियम कानूनों के परे होता है, उनसे ऊपर होता है. उच्च पदों पर आसीन लोगों को लोकपाल बिल में वी आई पी स्टेटस देने का मतलब है आम आदमी को ये सन्देश देना की ये लोग चाहे जो कुछ कर ले इनका कुछ नहीं होगा.</span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">मैं माननीय अन्ना हजारे के इस प्रस्ताव का घोर समर्थन करता हूँ की देश को चलाने वाले सभी लोगों की सारी गतिविधियाँ (उनके हगने और मूतने को छोड़कर) हमेशा आम जनता की कड़ी निगरानी में रहनी चाहिए. क्योंकि अगर इन लोगों को भ्रष्ट कार्य करने का मौका नहीं मिलेगा तो ये लोग अपने से नीचे के लोगों में भी भ्रष्टाचार को सहन नहीं करेंगे.</span> </div></div>VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-10409996638043275302011-05-29T00:04:00.000+05:302011-05-29T00:04:51.550+05:30निहारना या घूरना.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7LDjavB5oRnrTRaQQi9hSQbrAdc8nCxapqiSfNSQicKd3Cl-auGcumbj5tRgI4HDcFQljjkaaxiTqV-ReRIncLWf6V9xEM_COfGRsHja0dLlnCZSIQyyV6KsqVuQRiOzOIgJxHRXAIc0/s1600/imagesCAVRLO93.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7LDjavB5oRnrTRaQQi9hSQbrAdc8nCxapqiSfNSQicKd3Cl-auGcumbj5tRgI4HDcFQljjkaaxiTqV-ReRIncLWf6V9xEM_COfGRsHja0dLlnCZSIQyyV6KsqVuQRiOzOIgJxHRXAIc0/s1600/imagesCAVRLO93.jpg" /></a></div><br />
<span style="font-size: large;">कल शाम अपनी बिटिया के साथ सब्जी मंडी में एक दुकान पर प्याज छाट रहा था की देखा मेरी बिटिया सब्जी वाले को घूरे जा रही है. सब्जी वाला खरबूजा खाने में मगन था. मेरी बिटिया सब्जी वाले के एकदम बगल में ही खड़ी थी और निसंकोच उसे एकटक घूरे जा रही थी. पता नहीं उसका मन इस चीज के लिए ललचा रहा था या फिर वो सब्जी वाले के खरबूजा खाने के स्टाइल पर आश्चर्य चकित थी. प्याज लेने के बाद मैं बिटिया को लेकर पास में ही खरबूजे बेच रहे दुकानदार के पास गया और बिटिया को खरबूजे दिखाए तो उसने खरबूजों में जरा भी रूचि नहीं ली बाकि उसे लाल तरबूज ज्यादा पसंद आए. मैंने थोडा हिचकते हुए (क्योंकि आजकल जब तरबूजों की चीनी कम होती है तो कृत्रिम उपाय अपना कर उसे बढ़ा दिया जाता है ) एक छोटा लाल चीनी तरबूजा लिया और घर के लिए वापस लौट आया. </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">घर लौटते हुए मेरा मन हमारे घूरने की आदत पर ही अटका रहा. मुझे लगता है की कहीं न कहीं घूरने की आदत मानव स्वाभाव का ही एक हिस्सा है जो बाल्यकाल से ही हमारे साथ होता है. जैसे जैसे हम सामाजिक तौर तरीके सीखते जाते हैं या दुसरे शब्दों में कहूँ की हम सभ्य होते जाते हैं तो हम अपनी इस आदत पर लगाम कसते जाते हैं. </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">घूरना का एक भाई भी है जिसे हम कहते हैं निहारना. घूरने और निहारने में क्या अंतर है? इन दोनों में वही अन्तर है जो राम लखन फिल्म के राम और लखन में था. किसी को घूरना एक सभ्य समाज में एक बुरी बात समझा जाता है पर आप किसी को भी प्यार से निहार सकते हैं. स्त्रियाँ निहारे जाने को तो पसंद करती हैं पर घूरे जाने को बिलकुल भी पसंद नहीं करती. मेरे एक मित्र निर्दोष भाव से सुन्दर स्त्रियों को निहारना पसंद करते हैं. मैंने उन्हें बताया की आप अपने घर की स्त्रियों को निहार सकते हैं पर परायी नारी को देखेंगे तो इसे बुरा समझा जायेगा. इस पर उन्होंने जो सफाई दी वो मुझे बहुत पसंद आयी . उन्होंने कहा की उनके निहारने या घूरने की आदत पर उनका कोई बस नहीं है. सारा कसूर निगाहों का है जो सीधी सपाट और समतल जगहों पर से तो फिसल जाती है पर वक्रता और गोलाई लिए हुए हर चीज पर टिकी रहती है. </span></div></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9Y4LahUkhni6eYXRrN0WQslKXbGxLiDe-e32Nu3THvIiyBerZP_wdRavd9zFk2O88l0ki4onziWvWeQkO1DNaMCDA5agOx6dIWAQtS7njVjIEcngFUFRU4bmjOlOTXg7Avg0GpW3T0yE/s1600/images.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><span style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9Y4LahUkhni6eYXRrN0WQslKXbGxLiDe-e32Nu3THvIiyBerZP_wdRavd9zFk2O88l0ki4onziWvWeQkO1DNaMCDA5agOx6dIWAQtS7njVjIEcngFUFRU4bmjOlOTXg7Avg0GpW3T0yE/s1600/images.jpg" /></span></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">उसकी बनियान मेरी बनियान से सफ़ेद कैसे. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"></span><br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhmt0zMyYpsDpIk-FvkRh-SjQBH2yW5KNK3MuOaLO9Nt5xz3iFp-w3Uw-A6TDPqu3ez7p77NVwItXW52ULjF2NWKR563waFzAzcjUrT3kAh1OG6ZDBLCr6xQW9UfCotpEDVsCoHOUnfT0Y/s1600/imagesCA1ZEFGE.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><span style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhmt0zMyYpsDpIk-FvkRh-SjQBH2yW5KNK3MuOaLO9Nt5xz3iFp-w3Uw-A6TDPqu3ez7p77NVwItXW52ULjF2NWKR563waFzAzcjUrT3kAh1OG6ZDBLCr6xQW9UfCotpEDVsCoHOUnfT0Y/s1600/imagesCA1ZEFGE.jpg" /></span></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">हम भी क़यामत पर नज़र रखते हैं. </span></td></tr>
</tbody></table><span style="font-size: large;"></span></td></tr>
</tbody></table><span style="font-size: large;">लगभग हर पुरुष सुन्दर स्त्री को निहारना पसंद करता है पर ये उसकी बदकिस्मती है की उसका किसी सुन्दर स्त्री को प्रशंसा की निगाह से निहारना घूरने में परिवर्तित हो जाता है और उस बेचारे को सभ्य समाज के सामने थोड़ी शमिंदगी उठानी पड़ती है. मैं जब भी किसी सार्वजनिक स्थल पर होता हूँ तो मेरा समय आसानी से ये देखने में बीत जाता है की कौन आदमी किस को घूर या निहार रहा है. ये बहुत मजेदार खेल है. मुझे सबसे ज्यादा तब मजा आता है जब किसी सुन्दर स्त्री को कोई दूसरी स्त्री निहार रही होती है और वो खुद इस बात से बेखबर होती है की कोई और (मेरे जैसा) उसे भी बड़ी तन्मयता से निहारे जा रहा है. </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">घूरने और घूरे जाने का ये चक्र बड़ा मजेदार होता है. मैंने कहीं पढ़ा था की स्त्रियाँ बनाव श्रृंगार करती ही निहारे जाने के लिए हैं. अगर आपके बनाव श्रृंगार को देखने वाला कोई न हो तो उसका फायदा ही क्या परन्तु किसी अजनबी द्वारा घूरा जाने उन्हें पसंद ही नहीं होता. पर यार अगर आप कहीं मीठा रखो और ये सोचो की सिर्फ आपकी पालतू मधुमक्खियाँ ही आयेंगी तो ये आपकी गलती है. हमेशा ये धयान रखो की मीठे पर मधुमक्खियाँ आयें या न आयें गन्दगी पर मंडराने वाली मक्खियाँ जरुर आयेंगी अतः उनसे बचने का कोई न कोई बंदोबस्त हमेशा ही करके चलो. </span></div><div style="text-align: left;"></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">हमें किसी को घूरने से मिलता क्या है? मैं जब भी खुद को ऐसी स्थितियों में रंगें हाथो पकड़ लेता हूँ तो हमेशा अपनी गिरेहबान में झांक के यही सवाल पूछता हूँ की बेटे तुझे मिला क्या. किसी को चोरी छिपे कनखियों से निहारना या घुरना मालूम नहीं जाने कौन सा गूंगे का गुड है जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. हम बरबस ही इस और खिचे जाते है. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">चलो जो भी हो उन सभी लोगों को मेरा प्रणाम जो बेफिक्र हो दूसरों को घूरते हैं और साथ ही साथ एक छोटा सा सन्देश की </span><br />
<br />
<div style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">" देखि जां पर छेड़ी ना ".</span></div><br />
<br />
<div style="text-align: center;"><span style="font-size: large;"> इस भाव को अंग्रेज कुछ इस प्रकार व्यक्त करते हैं. </span></div><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0PbNF8eAzuxWAohgHEecBMhlksk77YZpiAxlzw6Nh2KNnYyZ5AeRHxxIQ8fxEmsjGqymbO8o2pEYp8h5ViFeSSKrr8q28VvtNZu06II1aicROv1WsX4o24795MTWSuANlYzZDXMyNIkk/s1600/imagesCA4ENISK.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><span style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0PbNF8eAzuxWAohgHEecBMhlksk77YZpiAxlzw6Nh2KNnYyZ5AeRHxxIQ8fxEmsjGqymbO8o2pEYp8h5ViFeSSKrr8q28VvtNZu06II1aicROv1WsX4o24795MTWSuANlYzZDXMyNIkk/s1600/imagesCA4ENISK.jpg" /></span></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: large;"></span></td></tr>
</tbody></table><br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody>
<tr><span style="font-size: large;"></span></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: large;"></span></td></tr>
</tbody></table></div></div></div>VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com22tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-30579322491980410832011-05-26T19:56:00.002+05:302011-05-26T20:02:20.128+05:30क्या डॉक्टर साहिबा बेईमान हैं.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">कुछ पाच छः दिनों पहले हमने ध्यान दिया की शाम को दोस्तों के साथ खेल कर लौटने पर बेटे की आँखों का सफ़ेद हिस्सा लाल हो जा हो जाता है. मैंने बालक को अपने जान पहचान के चिकित्सक डाक्टर जोशी को दिखाया जिनकी हमारी मंडावली में बहुत अच्छी प्रक्टिस चल रही है. डाक्टर साहब ने एक आई ड्रॉप लिख दी और बताया की आँखों ये लाली गरमी और धुल धक्कड़ में खेलने के कारण हो रही है, जल्दी आराम आ जायेगा, चिंतित न हों. दो तीन दिन आंख में दावा डालने के पश्चात् आंख की लाली चली गयी पर कल शाम को जब बिटुवा खेल कर वापस आए तो उनकी आँखों के लाल डोरे फिर नज़र आ रहे थे. मन में थोड़ी शंका सी हुई तो निश्चय किया की इस बार किसी नेत्र विशेषज्ञ को ही दिखाया जाय. </span></div></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">मुझे अपने घर के आस पास प्राइवेट प्रक्टिस कर रहा कोई भी नेत्र विशेषज्ञ अभी तक दिखाई नहीं दिया है. सरकारी अस्पताल में मेरा जानें का मन नहीं करता क्योंकि वहां जाने के बाद, तमाम जानपहचान के बावजूद, मेरा सारा दिन ख़राब हो जाता है. इसलिए मैं अपने बेटे को मेरे घर के पास के एक तारावती चेरिटेबल मेडिकल सेंटर में ले गया. मैंने बच्चे का ओ पी डी कार्ड बनवाया जिसमे सिर्फ दस रुपये लगे. मुझे बड़ी ख़ुशी हुई की मात्र दस रुपये में एक नेत्र विशेषज्ञ की सेवाएं मिल जाएँगी. मन ही मन मैं तारावती चरितेबल ट्रस्ट वालों को धन्यवाद करने लगा. यहाँ पर डाक्टर अर्चना परवानी नेत्र विशेषज्ञ के रूप में कार्य करती हैं. उनकी सहायक ने कुछ दो तीन मिनट बाद ही बच्चे का नाम पुकारा तो मैं बड़ी ख़ुशी से बच्चे को अन्दर ले गया. यहाँ मुझे पहला झटका लगा जब डाक्टर साहिबा की एक सहायिका ने बच्चे की नेत्र ज्योति की जाँच के लिए बच्चे से चार्ट पढवाना शुरू कर दिया. मैंने उन्हें बताया की बच्चे की नेत्र ज्योति ठीक है बस इसकी आंख में लाली है जिसकी जाँच के लिए मैं बच्चे को लाया हूँ. मेरी इस हिमाकत पर उन्होंने मुझे मुह पर उंगली रख कर चुप रहने का इशारा किया और कार्ड पर बच्चे का विजन सिक्स बाय सिक्स लिख कर मुझसे काउंटर पर पचास रुपये जमा करवाने के लिए कहा. बताया गया की आंख की जाँच होगी. </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">हमेशा की तरह से मुझे पहली बार में ही बात कुछ समझ में नहीं आई. दुबारा पूछने पर पता चला की ये पैसे आंख की पुतली की जाँच के लिए जमा करवाने हैं. आंख में दवाई डाली जाएगी उसके बाद आंख की पुतली की जाँच होंगी. पूरी प्रक्रिया में डेढ़ दो घंटे लगेंगे. मेरे साथ आए सभी दुसरे मरीजों को भी यही सारी बात दोहराई गयी और पैसे जमा करवाने के लिए कहा गया. अब चूँकि मैं अपनी नौकरी के शुरुवाती दौर में जी टी बी हॉस्पिटल में कार्य कर चूका हूँ और पचासों मरीजों को नेत्र विभाग में दिखाया है अतः मुझे मालूम था की आंख की हर छोटी मोटी तकलीफ के लिए dilation करवाने को नहीं कहा जाता. मैंने जब डाक्टर साहिबा से बात करनी चाही तो मुझे जवाब मिला की हमारे चेरिटेबल ट्रस्ट का यही तरीका है आप अपना मरीज दिखाना चाहते हो तो जैसा कहा जा रहा है वैसा करो वर्ना मरीज को कहीं और ले जाओ. </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">लो जी गयी भैस फिर से पानी में. थोड़ी देर पहले मैं जिन तारावती ट्रस्ट वालों को मन ही मन धन्यवाद दे रहा था अब उनकी असलियत जान के दुखी हो रहा था.ये लोग गरीब आदमी की जेब में चोरी छुपे डाका डाल रहे हैं. एक धर्मार्थ संस्था लोगों को ठग रही है. चेरिटेबल ट्रस्ट के नाम पर तारावती संस्था वाले सरकर से जाने क्या क्या छुट लेते होंगे पर असलियत में आम लोगों को दूसरों की तरह ही चोरी छिपे लुट रहे हैं. घर आकर सबसे पहले मैंने डाक्टर साहिबा के खिलाफ एक शिकायती पत्र दिल्ली मेडिकल कौंसिल को भेजा. अब सोचता हूँ की कल एक पत्र तारावती चेरिटेबल ट्रस्ट वालों को भी लिख ही दूँ. हो सकता है की डाक्टर साहिबा अपने कर्म को आसानी से सही साबित कर दें पर अगर मेरी इस लेटर बाज़ी से इन बेईमान लुटेरों के दिल में खोफ का एक अंश भी पैदा हो पाया तो मैं समझूंगा मेरा प्रयास सफल रहा. </span></div></div></div>VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-46487479267116208202011-05-23T22:07:00.000+05:302011-05-23T22:07:23.002+05:30ये स्त्रियों का कौन सा गुण है?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">दो सच्ची घटनाएँ बयान कर रहा हूँ जिनके विषय में मेरे पास प्रथम पुरुष जानकारी (फर्स्ट हैण्ड इन्फोर्मशन) उपलब्ध है. मेरी पूरी कोशिश है की कम से कम शब्दों में अपनी बात कही जाए ताकि आपका कीमती वक्त बर्बाद न हो. कृपया ध्यान से पढ़ें और बताएं की ये स्त्रियों का कौन सा गुण है. </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><span style="color: red; font-size: large;">पहली घटना.</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">मेरी पहली पोस्टिंग के वक्त मेरी जानपहचान एक बहुत ही सुन्दर और सुशील नर्स से हुई जो अपने कार्य के प्रति पूरी तरह से समर्पित थीं(अपने कार्य के प्रति समर्पण सरकारी कर्मचारियों का एक दुर्लभ गुण है) . इन्होने एक निखट्टू से प्रेम विवाह किया था. पति निखट्टू होने के साथ साथ पियक्कड़ भी था. धीरे धीरे उनके प्रेम और विवाह के सारे घटनाक्रम की जानकारी मुझे उन्हीं के मुख से प्राप्त हुई. उन्हें अपने इस प्रेमी से पहली नज़र में प्यार नहीं हुआ था बल्कि शुरू में तो वो आवारा लड़का उन्हें बिलकुल भी पसंद नहीं था और उन्होंने अपने भाइयों से उसकी एक दो बार जबर्दस्त पिटाई भी करवाई पर फिर आहिस्ता अहिस्ता उस निखट्टू के प्रेम का रंग उन पर चढ़ ही गया और अंततः इन नर्स महोदया ने अपने परिवार के जबरदस्त विरोध के बावजूद अपने इसी प्रेमी के साथ, जिसकी कभी शुरुवात में इन्होने पिटाई करवाई थी, विवाह कर घर बसा लिया और अब दो बच्चों के साथ उसका लालन पालन कर रही थी . </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><span style="color: red; font-size: large;">दूसरी घटना.</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">मेरे बचपन के एक सखा हैं जो अपने माता पिता की ग्यारह जीवित संतानों में से सबसे आखिरी पायदान पर हैं. इनके दसवें पायदान वाले भाई साहब ने अपनी मुफ्तखोरी की आदत की वजह से अपनी माता के नाम का २२५ गज का प्लाट जिसका बाजार मूल्य उस वक्त करीब २५ लाख रुपये था सिर्फ दस या पंद्रह हज़ार रुपयों में हमारी कालोनी के ही एक नामी गिरामी गुंडे के पास, जिसका काम ही लोगों की प्रोपर्टी हड़पना था, गिरवी रखवा दिया. कोई बात नहीं घर के सदस्यों ने अपने भाई के इस अपराध को क्षमा कर दिया. बड़ी जद्दोजहद के बात मेरे मित्र ने अपने लिए एक ५० गज के प्लाट का जुगाड़ किया और उसमे मकान बनवाया. मित्र के वही बड़े भाई जिनकी कृपा से वो लोग सड़क पर ही आ गए थे उनके साथ बने रहे हालाँकि उनके रवैये में जरा भी गंभीरता नहीं आई. मेरे मित्र की शादी कर दी गयी और उनके उस बड़े भाई का विवाह नहीं हो पाया क्योंकि वो मुफ्तखोरी और मटरगस्ती अपनी आदत को छोड़ नहीं पाए थे. खैर मेरे मित्र ने विवाह के बाद भी अपने बड़े भाई को अपने घर अपने साथ ही रखा और अपनी पत्नी से बड़े भाई को वही सम्मान दिलवाया जो एक जेठ को मिलना चाहिए . माता जी भी अपने सभी ज्यादा संपन्न और स्थापित पुत्रों को छोड़ अपने सबसे छोटे बेटे के पास ही रही. कहते हैं की माता को अपना सबसे छोटा पुत्र सबसे ज्यादा प्यारा होता है. एक दिन मुफ्तखोर जेठ ने अपनी बहु यानि मेरे मित्र की पत्नी के साथ कोई शारीरिक छेड़खानी कर दी जो मेरे मित्र को सहन नहीं हुआ और उन्होंने अपने बड़े भाई को घर से निकल दिया. इस घटना को लेकर मेरे मित्र की माताजी सारी बातें अच्छी तरह से जानते हुए भी अपने अंतिम वक्त तक मेरे मित्र यानि अपने सबसे छोटे पुत्र और उनकी पत्नी से नाराज ही रहीं. </span></div></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">मुझे तो लगता है की ये स्त्रियों का भावुकता वाला गुण है.(पता नहीं गुण है या कुछ और) </span></div><br />
<span style="font-size: large;">आप बताएं ये दोनों उपरोक्त घटनाएँ स्त्रियों के किस गुण की और इशारा करती दिखाई पड़ती हैं.</span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div></div>VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-12072930628779413352011-05-22T13:28:00.000+05:302011-05-22T13:28:51.302+05:30प्रेम विवाह - मेरा नजरिया.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">मैं प्रेम विवाहों का घोषित विरोधी हूँ. अपने आस पास जब भी कहीं कोई प्रेम विवाह होता है जिसमे कोई अड़चन आ रही हो तो ऐसी जगह पर एक पत्थर मैं भी अपनी और से अड़ा आता हूँ. </span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">अपने ३८ वर्षीय जीवन काल में मैंने सिर्फ एक बार प्रेम विवाह की चाह रखने वाले जोड़े का समर्थन किया है. सिख धर्म को मानाने वाले मेरे दो सहकर्मी विवाह करना चाहते थे. . दोनों बच्चे २५ वर्ष की आयु पार कर चुके थे. सिख लड़का लड़की से ज्यादा संपन्न था. लड़की रूप सौंदर्य में लडके के सामने बिलकुल भी नहीं ठहरती थी. दोनों एक ही धर्म के अनुयायी थे. इस तरह मेरी नज़र में ये प्रेम विवाह के लिए एक आदर्श केस था. इसके अलावा मुझे कभी भी किसी प्रेम विवाह का समर्थन करने का मौका नहीं मिला. जितने भी मामले मेरी नज़र में आए उन सभी में, मैं अपनी तरफ से एक रोड़ा अटका के ही आया.</span></div><br />
<span style="font-size: large;">मैं प्रेम विवाहों का उन मामलों में सख्त विरोध करता रहा हूँ जहाँ लड़की की उम्र १७-२० के आस पास की रही हो और वो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न हो. अधिकतर प्रेम विवाहों में अड़चन प्रेमियों के अलग अलग समाजों और धर्मों से जुड़े होने के कारण होती है. एक अलग जातीय और सामाजिक पृष्ठभूमि में पली बढ़ी युवती अपने ससुराल वालों के रीती रिवाजों और परम्पराओं से जुड़ नहीं पाती और इस वजह से उसे अपने वैवाहिक जीवन में ज्यादा संघर्षों का सामना करना पड़ता है. मेरे परिवार की एक लड़की ने यु पी के स्थानीय ब्राह्मण परिवार के लडके से प्रेम विवाह किया. शुरू के जाने पहचाने विरोध के बाद लडके और लड़की के माता पिता विवाह के लिए मज़बूरी में रजामंद हो गए. अब लड़की अपने ससुराल पक्ष में प्रचलित बहु के कठिन "बहु- धर्म" निबाहते निबाहते तरह तरह के मानसिक और शारीरिक विकारों की शिकार हो चुकी है. सपष्ट है लड़की ने आवेश में आकार प्रेम विवाह तो कर लिया पर विवाह के उपरांत अपने ससुराल पक्ष की अपेक्षाकृत बड़ी हुई उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई और विवाह के १२ वर्षों के उपरांत भी अपनी ससुराल में एक अवांछनीय बाहरी सदस्य बनकर बेकार की मुसीबतों को झेल रही है. तो वो प्रेम जिसके लिए उसने अपने माता पिता और सास ससुर की इच्छाओं के विरुद्ध जाकर विवाह किया आज उसके जीवन में सुख नहीं बल्कि दुःख का घोल रहा है. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">कुछ लोग ऑंखें बंद करके प्रेमी जोड़ों को विवाह करने की आजादी देने की वकालत करते हैं. मैं सोचता हूँ की प्रेम का क्या है प्रेम तो एक शाश्वत भावना है जो हर इन्सान के अन्दर पैदायशी होती है. हम हर उस चीज से प्रेम कर बैठते हैं जिसे अपने जीवन में एक दो बार देख लेते हैं. इन्सान का जन्म ही प्रेम करने के लिए हुआ है इसलिए प्रेम करने की गलती को तो माफ़ किया जा सकता है पर विवाह उन्ही जोड़ों का होना चाहिए जो इसे सही ढंग से निबाहने की काबिलियत रखते हों. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">विवाह बंधन में बंधना उन प्रेमी जोड़ों के लिए ठीक है जो अपने घर परिवार और समाज से दूर रहते हैं या जिनका अपने परिवार से संपर्क थोडा बहुत ही रहता है. यहाँ पर भी लड़की का आर्थिक रूप से आत्म निर्भर होना बहुत जरुरी है ताकि किन्ही परिस्थियों में यदि उनके बीच कोई दरार आती है तो कम से कम लड़की का भविष्य तो सुरक्षित रहे. शायद इसी वजह से उन प्रेम जोड़ों के मध्य का विवाह बंधन जो अपने परिवारों से दूर किसी महानगर में जीवन यापन कर रहे हैं,धीरे धीरे समाज में मान्यता प्राप्त करता जा रहा है और मेरे जैसे प्रेम विवाह के घोर विरोधियों को भी अपनी जबान पर ताला लगाने को मजबूर करता है. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">सामान्य परिस्थितियों में , मैं अरेंज्ड मेरिज का समर्थक हूँ क्योंकि विवाह उपरांत जब प्रेम का भूत उतर जाता है और जमीनी सच्चाई सामने आती है तो सभी को अपने घर परिवार के लोग याद आते हैं. परम्परागत रूप से होने वाली अरेंज्ड मेरिज में भी पति पत्नी को एक दुसरे से सामंजस्य बैठने में दिक्कते आती है पर वो परिवार और समाज के सहयोग से सुलझ जाती है परन्तु जिस सम्बन्ध के लिए परिवार और समाज ही तैयार न रहा हो उसमे आई किसी दिक्कत को दूर करने के लिए प्रेमी जोड़े के पास कोई सहायता नहीं होती और इसलिए प्रेम विवाह आसानी से टूट जाते हैं. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">विवाह तो अपने आप में ही एक सामाजिक समझोता है जिसे समाज और परिवार के सहयोग से कायम रखा जाता रहा है इसलिए अपने प्रेम विवाह पर परिवार और समाज की अनुमति और सहमती की मुहर जरुर लगवाएं और अपने सुखी विवाहित जीवन की संभावनाओं में बढोतरी करें . </span><br />
<br />
<br />
</div>VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com26tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-9084108245434365312011-05-17T12:16:00.003+05:302011-05-17T19:36:00.533+05:30खुद को पहचानो.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoQxaZihJr616HQ0Tn0EBGip-jUlupSw2p0QWuu0D1PgiUI21B8SfvWJIwEIgCoQCeErNX0GKvYxK7jYmTn7Jp7D0z-22IYIydXvV-bWyu_G5kuMFTLm57lk91MlmGA_RNGoiysfEaUKQ/s1600/79847547-gabriella-pasqualotto.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="252" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoQxaZihJr616HQ0Tn0EBGip-jUlupSw2p0QWuu0D1PgiUI21B8SfvWJIwEIgCoQCeErNX0GKvYxK7jYmTn7Jp7D0z-22IYIydXvV-bWyu_G5kuMFTLm57lk91MlmGA_RNGoiysfEaUKQ/s320/79847547-gabriella-pasqualotto.jpg" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">Gabriella Pasqualotto </td></tr>
</tbody></table><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">इन्डियन प्रीमियर लीग की प्रोत्साहन बाला बहन कुमारी गेब्रिएला को भारतीय आकाओं ने आइ पी एल के कुछ सत्यों को समाज के सामने लाने की वजह से निष्कासित कर दिया है. जब उनके ब्लॉग में लिखी बातों का मुझे पहली बार पता चला मैंने तभी ये अनुमान लगा लिया था की इसकी भैस तो गयी पानी में. </span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">सत्यवादी हरीशचन्द्र की इस धरा में सत्य उद्घाटित करने वालों के साथ क्या होता है ये किसी से छिपा नहीं हैं.उस बेचारी ने जो कुछ कहा उसमे कितना सत्य था और कितना झूट इस बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. लोगों को चिंता थी तो बस उन स्थापित लोगों के कुकर्मों पर किसी तरह से पर्दा डालने की और ये तभी हो सकता था जब की उसकी आवाज को दबा दिया जाय जो उन्होंने बखूबी कर ही दिया. इस घटना के प्रकाश में आने के तीन दिन के भीतर बहन कुमारी गेब्रिएला का कोई नाम लेवा नहीं है. हमारे संवेदनशील, भावुक मीडिया जन आइ पी एल में मगन हैं. </span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">मेरे लिए तो इस घटना के बहुत मायने हैं. इस घटना ने मेरे सामने एक बार फिर से ये बात साफ़ कर दी की हम लोग इस दुनिया के सबसे सच्चे snobs हैं. हम लोगों के लिए ईमानदारी, सत्चरित्र, सच्चाई सब आदर्शवादी बातें हैं जो हम बस किताबों में लिखे जाने के लिए ही करते हैं वास्तविक जीवन में अपनाने के लिए कभी नहीं. भीतर से हम लोग वही हैं जो हम हैं. </span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">हम लोग कहते हैं की देश में भ्रष्टाचार की जड़ ये राजनेता और बड़े नौकर शाह या व्यापारी लोग है. जी नहीं .. मेरी नज़र में तो हमारे देश की सभी समस्याओं का मूल कारण हमारा यही sweep everything under the carpet वाला नजरिया है जिसमे हम समर्थ की हर गलत बात को सीधे सीधे नज़र अंदाज कर देते हैं और अगर कोई गेब्रिएला की तरह से कभी कहीं एक छोटा सा प्रयास करता भी है तो उसका समर्थन करते हुए कहीं न शर्मा जाते हैं, हिचक जाते हैं. </span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">आप डुगडुगी बजाकर तमाशा करें, मसखरी करें बहुत से लोग इक्कट्ठे हो जायेंगे पर कहीं कोई छोटी सी गंभीर बात करें जहाँ पर सत्य को स्वीकारना जरा भी मुश्किल हो तो जनाब आपको आपके साथ हमेशा खड़े रहने वाले लोग भी दूर दूर तक दिखाई नहीं देंगे.</span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">मैं तो इस विषय पर यही विचार रखता हूँ और दूसरों के क्या है जानना चाहता हूँ. वैसे कुछ लोग इस बार भी कुछ कहते हुए हिचक या शर्मा ही जायेंगे और सिर्फ शुभकामनायें देते हुए ही निकल लेंगे. ... क्यों जी मैं की झुट बोलियाँ ... </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">.</span> <br />
<br />
<div style="text-align: left;">ये भद्र महिला हम लोगों की ही तरह एक ब्लॉगर हैं .वैसे शायद इनका ब्लॉग हटा दिया गया है पर इनके विषय में थोडा बहुत ज्ञान आप निम्न लिंक पर प्राप्त कर सकते हैं.</div><div style="text-align: left;"><a href="http://foxtipz.blogspot.com/2011/05/gabriella-pasqualotto-blog-online-blog_10.html">लिंक नंबर एक</a> </div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><a href="http://timesofindia.indiatimes.com/topic/search?q=Gabriella%20Pasqualotto">लिंक नंबर दो</a> </div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><a href="http://walkwithworld.com/2011/05/mumbai-indians-cheerleader-gabriella-pasqualotto-fired-for-blogging-on-ipl-players/">लिंक नंबर तीन</a> </div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">यहाँ पर मैं डाक्टर साहब को भी धन्यवाद दूंगा की उन्होंने इस बार फिर से मेरी इज्ज़त बचाई. अब आप मेरे लिए डाक्टर कृष्ण कुमार हैं :-)) </div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><br />
</div></div></div>VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-10386277244942679952011-05-15T21:14:00.000+05:302011-05-15T21:14:35.787+05:30Toilet musings.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">मेरे एक अफसर हैं जिनकी जैविक घडी शायद सामान्य समय से लगभग ४-५ घंटे देरी से चलती है अतः जो कार्य उन्हें सुबह ६-७ बजे घर पर ही निबटा देना चाहिए उसे वो अक्सर ११-१२ बजे ऑफिस में निबटा रहे होते हैं. सुबह ऑफिस पहुचने के उपरांत मैं जब पहली बार मूत्र विसर्जन हेतु जाता हूँ जो उनके मलालय ( नहीं समझे ... अरे यार मूत्रालय का बड़ा भाई) में मिलने की संभावना का प्रतिशत बहुत उच्च कोटि का होता है (मुझे कहीं से आवाज आ रही है ..... बेटा माँतृ भाषा को तो बक्श दे.. पर ये आवाज कुछ साफ़ नहीं है इसलिए जारी रहता हूँ...)</span></div><br />
<span style="font-size: large;"> </span><span style="font-size: large;">अपने अफसर को मैं मौखिक हजारी यहीं दे देता हूँ जिसे वो बेहिचक स्वीकार भी कर लेते हैं..लेकिन सिर्फ अंग्रेजी में. शुरू में मैं उन्हें राम राम जी कहता था तो वो नाराज हो जाते थे इस लिए अब गुड मोर्निंग सर से ही काम चलाता हूँ. </span><br />
<span style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">मेरे ऑफिस में भारतीय तरीके की लेट्रिन नहीं बल्कि विशुद्ध अग्रेजी तरीके की लेट्रिन बनी हुई हैं जिनमे कुर्सी की तरह बैठा जाता है. मुझे लगता है की मेरे ऑफिस की वो लेट्रिन सीट जहा मेरे भरी भरकम अफसर विराजते हैं अब तक तो उनकी तशरीफ़ के आकार को प्राप्त हो चुकी होगी. भगवान न करे अगर उस टोइलेट में कोई अपराध हो गया तो पुलिस वाले मेरे ऑफिसर को पकड़ लेंगे क्योंकि उनके पिछवाड़े के निशान वहां आसानी से मिल जायेंगे. </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">वैसे क्या आपने कभी विचार किया है की जैसे बड़े बड़े महापुरुष अपने कदमों के निशान छोड़ जाते हैं वैसे ही वो अपने पिछवाड़े के निशान क्यों नहीं छोड़ जाते. मैंने बहुत से तीर्थों में महापुरुषों के चरण चिन्ह देखे हैं. जब चरणों के निशान इतनी आसानी से मिल जाते हैं तो उनके पिछवाड़े के निशान तो और भी आसानी से मिल जाने चाहिए. वो क्यों नहीं मिलते ? जरा सोचो अगर मिलते तो गाइड हमें बताता "फलां महापुरुष ने इस जगह पर बैठ कर वर्षों कठोर तपस्या की थी और इस वजह से यहाँ पर उनके नितम्ब चिन्ह बन गए. इन्हें शीश नवाइए" और लोग बाग़ श्रद्धावश उन चिन्हों पर अक्षत रोली चढ़ा रहे होते और धुप बत्ती की जा रही होती. </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">ओहो मैं थोडा भटक गया.. ऑफिस के अंग्रेजी टोइलेट पर वापस आता हूँ.... हाँ तो मैं कह रहा था की मेरे ऑफिस में यूरोपियन मूल के मल-पात्र लगे हुए हैं. इन्हें देख कर मुझे बड़ा अजीब सा महसूस होता है. जब हम लोग एक दुसरे का तौलिया तक इस्तेमाल नहीं करते तो उस मल पात्र को सार्वजनिक रूप से कैसे बाट लेते हैं जो हमारे सबसे गुप्त अंग को अंग लगता है. कई बार लोग इन पात्रों का इस्तेमाल मूत्र त्याग के लिए भी कर लेते है. अगर कोई कोई मल या मुत्रत्यागी अच्छा निशानेबाज न हुआ और अपना सर्वस्व वहां पर बिखेर जाय जहाँ पर व्यक्ति बैठता है तो सोचिये बाद में बैठने वाले की तो हो गयी न ऐसी की तैसी. इसलिए साहब </span><span style="font-size: large;"> मुझे तो जब भी इन अंग्रेजी मल पत्रों का इस्तेमाल करने की मज़बूरी होती है तो मैं अपना देशी तरीका ही अपनाता हूँ. </span></div></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2E4vm4jZt1gxSY0IsfygCppOw1Wmt4XWJq7LraQesozD3UoHe0Sw9d4zcULTDoFggRMwIRHsiUBetKwM5Khni4ko8emasYgYQEJJbTvXu5GTWcAfXCgk5YWCpX-sjVWvxNdxYH68OnCE/s1600/imagesCAEIR3XB.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2E4vm4jZt1gxSY0IsfygCppOw1Wmt4XWJq7LraQesozD3UoHe0Sw9d4zcULTDoFggRMwIRHsiUBetKwM5Khni4ko8emasYgYQEJJbTvXu5GTWcAfXCgk5YWCpX-sjVWvxNdxYH68OnCE/s1600/imagesCAEIR3XB.jpg" /></span></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="font-size: large;">मल त्याग का सर्वाधिक सुरक्षित तरीका.</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br />
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"></span><br />
<span style="font-size: large;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">वैसे सुबह के वक्त मूत्रालय में भी शो हाउस फुल चल रहा होता है क्योंकि सुबह की घर की चाय अब तक त्याग दिए जाने की अवस्था को प्राप्त हो चुकी होती है इसलिए मेरे बहुत से सहकर्मी टोइलेट में नेफ्थालिन की बाल्स के साथ मूत्र पोलो खेलते हुए मिल जाते हैं.बचपन में भी हम लोग खुले में पेशाब करते हुए एक जगह पर खड़े होकर गोल गोल घुमने लगते थे. इससे हमारे चारों तरफ एक घेरा बन जाता था. हम बच्चे लोग अक्सर ये शर्त लगते थे की किसका घेरा पूरा गोल और सबसे बड़ा बनेगा. ... उफ़ वो भी क्या दिन थे. ये ऐसे खेल हैं जो सिर्फ पुरुष ही खेल सकते हैं.(....अफ़सोस.... यहाँ पर कट्टर नारीवादी समानता के अधिकार की मांग नहीं कर पाएंगे ). हम भारतीय लोग तो यहाँ भी पिछड़े हुए जीव हैं . देखिये अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में कितनी प्रगति कर ली है की मूत्र- पात्र में स्कोर बोर्ड भी लगा दिया हैं. </span></div><span style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgd5iAo-oEHtYLcXffN5ry4WD0_sf-afOf1n02KU9kXRbnzZoKk89gRQUS1ho0-_j3HqiqFCg92Bx0OmmG4cGVcfeuElJ4B8zxJm6VgKBtfsu_sEs9QW5iOCNedM2JKo5_9Vy84wW2le3Y/s1600/playstation_urinal_ads.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgd5iAo-oEHtYLcXffN5ry4WD0_sf-afOf1n02KU9kXRbnzZoKk89gRQUS1ho0-_j3HqiqFCg92Bx0OmmG4cGVcfeuElJ4B8zxJm6VgKBtfsu_sEs9QW5iOCNedM2JKo5_9Vy84wW2le3Y/s320/playstation_urinal_ads.jpg" width="275" /></span></a></div><span style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<br />
</span></div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">गूगल पर इन तस्वीरों को खोजते वक्त मुझे अजब गजब तरीकों के मूत्रालय डिजाइनों के दर्शन हुए. इन अंग्रेजों की रचनात्मकता का भी कोई जवाब नहीं. ये लोग जीवन के हर पक्ष को रंगीन बना देते हैं. जरा मुलाहिजा फरमाएं .</span></div><br />
<br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9iGoBiD7FBMkydhte24Jtj9uv1jeDDnZUWGHJ5mz_fe7p9Tpn0j2QrxW69LM6aDrd-0bmmA80gIS1oDO6G2CVJzaz15yThOCIg5b5cxZqdi_pNiorSM2COpClTTf_BYIfIY5STDRcpmI/s1600/imagesCA5GJOYR.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><span style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9iGoBiD7FBMkydhte24Jtj9uv1jeDDnZUWGHJ5mz_fe7p9Tpn0j2QrxW69LM6aDrd-0bmmA80gIS1oDO6G2CVJzaz15yThOCIg5b5cxZqdi_pNiorSM2COpClTTf_BYIfIY5STDRcpmI/s1600/imagesCA5GJOYR.jpg" /></span></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">एकांत से भयभीत रहने वालों के लिए.</span></td></tr>
</tbody></table><br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-MzT8_rMSxkK52Zjpjs6Mp2o5GOtH4NSxnwa3WnqVgk3A5QwnmXhQR5Wl3uuadVUQVnWti9AHXOnr2cadEqBN6HHs-ei3kJjtvYAAm95mag08VaPneoYfUhmwZQQWgPlLUuorgG6k6hw/s1600/imagesCAG3OCPG.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><span style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-MzT8_rMSxkK52Zjpjs6Mp2o5GOtH4NSxnwa3WnqVgk3A5QwnmXhQR5Wl3uuadVUQVnWti9AHXOnr2cadEqBN6HHs-ei3kJjtvYAAm95mag08VaPneoYfUhmwZQQWgPlLUuorgG6k6hw/s1600/imagesCAG3OCPG.jpg" /></span></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">कलात्मक अभिरुचि रखने वालों के लिए 1</span></td></tr>
</tbody></table><br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhH2Jg8BrvOB8P5_fzoltqoEgnDFX-DKL1wx_jH1B_Gm4UzhulCFixlXQzOanU6Vidzq-aHepqTaHJyBVyTVNjsS5y4L368Tey6VSSls5B3fylioZvv8cWHVHCkQ-EtVsSGT7Jcs0zmL8/s1600/imagesCAMSMSNN.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><span style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhH2Jg8BrvOB8P5_fzoltqoEgnDFX-DKL1wx_jH1B_Gm4UzhulCFixlXQzOanU6Vidzq-aHepqTaHJyBVyTVNjsS5y4L368Tey6VSSls5B3fylioZvv8cWHVHCkQ-EtVsSGT7Jcs0zmL8/s1600/imagesCAMSMSNN.jpg" /></span></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">कलात्मक अभिरुचि रखने वालों के लिए 2</span></td></tr>
</tbody></table><br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgB-m5I89muviZVm_VgkkogCaPvjnCOlzoYfIU6lXdsm8i-iemlccx33-9YjP6swnPm4VC_88Qi0TkwH70eNM7OplBQ6Y-W3igQQZhK6_7MyqSFM74hzrlSg5Vzcvd11RarsnYyaP93boI/s1600/imagesCAT65LPI.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><span style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgB-m5I89muviZVm_VgkkogCaPvjnCOlzoYfIU6lXdsm8i-iemlccx33-9YjP6swnPm4VC_88Qi0TkwH70eNM7OplBQ6Y-W3igQQZhK6_7MyqSFM74hzrlSg5Vzcvd11RarsnYyaP93boI/s1600/imagesCAT65LPI.jpg" /></span></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">for the mama's boys </span></td></tr>
</tbody></table><br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEJvgCpZNWrWkJ5ujSgvpMmL2xohY5cPFV-AvvHbofzPVpw3q1NuYYbgA2UtydCHUZoba8kI7aaNDwzSzi4m1tYDW4w4v1UXox9iz4nshfAqU5dPYVmWz-nL_2RvX8usS3T285gYvHNKM/s1600/imagesCAVDM4H5.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><span style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEJvgCpZNWrWkJ5ujSgvpMmL2xohY5cPFV-AvvHbofzPVpw3q1NuYYbgA2UtydCHUZoba8kI7aaNDwzSzi4m1tYDW4w4v1UXox9iz4nshfAqU5dPYVmWz-nL_2RvX8usS3T285gYvHNKM/s1600/imagesCAVDM4H5.jpg" /></span></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">जगह की बचत </span></td></tr>
</tbody></table><br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCQaSvuog7ylHIUSoEwKe-_Bg6OKnomI4aaiPQEc6lweLBZ7t5ppu4dUmr8wsy0btW4Lt1ieCtlM3g-nc7HoWctnRLDORK60j_spaW74O_7RFy_C6L8WDbJhow42Ehb9-ZwqFNdevS7Y8/s1600/imagesCAX2NBDD.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><span style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCQaSvuog7ylHIUSoEwKe-_Bg6OKnomI4aaiPQEc6lweLBZ7t5ppu4dUmr8wsy0btW4Lt1ieCtlM3g-nc7HoWctnRLDORK60j_spaW74O_7RFy_C6L8WDbJhow42Ehb9-ZwqFNdevS7Y8/s1600/imagesCAX2NBDD.jpg" /></span></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">सब कुछ नाप तोल कर करने वालों के लिए </span></td></tr>
</tbody></table><br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjxfUXLbGHkBrZTrojbOZPpxhSQA8rU3_bSzGk3AhnUSmhTGjIqIWMVWujaH5BO2c25FKDbV3bl6t6RhMTBqm3zFFTW6BQdS4cl_kLGmMMeVebZRAaWPEjpkD5dnz639zhZQshr2XE_p8Q/s1600/imagesCAXHSG3N.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><span style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjxfUXLbGHkBrZTrojbOZPpxhSQA8rU3_bSzGk3AhnUSmhTGjIqIWMVWujaH5BO2c25FKDbV3bl6t6RhMTBqm3zFFTW6BQdS4cl_kLGmMMeVebZRAaWPEjpkD5dnz639zhZQshr2XE_p8Q/s1600/imagesCAXHSG3N.jpg" /></span></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">उत्तर या उत्तर पूर्व दिशा के लिए वास्तु अनुकूलित मूत्र पात्र </span></td></tr>
</tbody></table><br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiF3WbJXSP6z0ZONYa8VyfidHh_-0LEwuUR11iRUtfoJKtMNzsyb5mxoyt9UrNKti8LbafE8I3ZukdOExfrzo2i0iwYY9KqaKNg5NdwqkxSaYPtKxQnseqGYjltr6oHhOanFRlqi_Jko2k/s1600/untitled.png" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><span style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiF3WbJXSP6z0ZONYa8VyfidHh_-0LEwuUR11iRUtfoJKtMNzsyb5mxoyt9UrNKti8LbafE8I3ZukdOExfrzo2i0iwYY9KqaKNg5NdwqkxSaYPtKxQnseqGYjltr6oHhOanFRlqi_Jko2k/s1600/untitled.png" /></span></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">शोले के बिना हाथ वाले ठाकुर के लिए रामू काका द्वारा विशेष रूप से निर्मित मूत्रालय. </span></td></tr>
</tbody></table><br />
</div><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJ0x3CC3ksWvD44DxqwG6Sm4sJP0o5duouLDywc9pAz9_GJtOBLW6eoLDgamvxZoorUPV3P6PM8H_Gh6tV5-5x5hryfJFNn8V4No41vaqZTR7RFNnVlt12gIVtqapRUaE_HzxwWQ7jzUY/s1600/imagesCAKT1G0A.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><span style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJ0x3CC3ksWvD44DxqwG6Sm4sJP0o5duouLDywc9pAz9_GJtOBLW6eoLDgamvxZoorUPV3P6PM8H_Gh6tV5-5x5hryfJFNn8V4No41vaqZTR7RFNnVlt12gIVtqapRUaE_HzxwWQ7jzUY/s1600/imagesCAKT1G0A.jpg" /></span></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">एक अनबुझी प्यास </span><br />
<br />
<br />
<div align="left"></div></td></tr>
</tbody></table><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">पोस्ट कुछ ज्यादा लम्बी हो गयी. सब कुछ सहेजते सहेजते बहुत वक्त लग गया है इसलिए मैं तो चला... वहीँ जहाँ मेरे जैसे त्यागी महापुरुष सुबह श्याम नियमित रूप से जाते हैं. </span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><br />
</div></div>VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com24tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-33072032708362347442011-05-14T23:30:00.003+05:302011-05-14T23:35:11.696+05:30why should boys have all the fun ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><br />
<span style="font-size: large;">मेरी बिटिया तीन वर्ष की है और पुत्र उससे लगभग छह वर्ष बड़ा. जब भी बेटा अपने मित्रों के साथ खेलने जाता है तो बेटी अपने खेल खिलोने और सहेलियों को छोड़ उसके साथ हो लेती है. बड़ा भाई अपने दोस्तों के साथ कोई भी खेल खेले छोटी बहिन उसमे भागीदारी करना चाहती है जिससे बड़े भाई को बहुत खीज होती है. </span></div></div></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">जितना सहज छोटी बहना का अपने बड़े भाई के साथ खेलने की जिद करना है उतना ही सहज बड़े भाई का छोटी बहना की उपस्थिति से खेल में पड़ने वाले व्यवधान पर खीजना भी है अतः मुझे दोनों के बीच में आना पड़ता है. बड़े बच्चों के भागा-दौड़ी वाले खेलों के बीच पुत्री की सुरक्षा की चिंता रहती है इसलिए मैं अक्सर उसे वापस घर ले अत हूँ जिसका मेरी नन्ही बिटिया प्रचंड विरोध करती है. </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">मुझे लगता है की अगर मेरी बिटिया में जरा भी समझ विकसित हुई होती और उसे पता होता की वो एक लड़की है और उसका भाई एक लड़का तो निश्चय ही उसने मेरे ऊपर नारी विरोधी होने का आरोप जड़ देना था और मुझ से पूछना था की पापा why should boys have all the fun.......</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">जरा याद करें प्रियंका चोपड़ा का वो विज्ञापन जिसमें वो स्कूटी चलती मासूम शरारतें करते हुए सभी युवा लड़कियों को ये मंत्र दे जाती हैं की केवल लड़के ही मजे क्यों करें......</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">मैंने महसूस किया है की आज की युवा लड़कियों ने प्रियंका चोपड़ा के इस मंत्र को कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ग्रहण किया है. बहुत बार मैंने युवतियों को ये कहते हुए सुना है की अगर लडके ये काम कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं. हमें भी आजादी चाहिए, बराबरी चाहिए या लड़कियाँ लड़कों से कम नहीं हैं . इस तरह के तर्क मुझे कभी भी हज़म नहीं होते. </span></div></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">समाज के पढ़े लिखे वर्ग में बहुतायत से मिलाने वाले नारीवादियों के विचारों को पढ़ने और सुनाने के बाद मुझे लगता है की स्त्री के सम्बन्ध में आजादी,मुक्ति, समानता, बराबरी जैसे शब्दों को गलत अर्थों में समझा जा रहा है. </span></div></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">शौचालय का प्रयोग न करके सड़क के किनारे मूत्र विसर्जन कर रहे एक आदमी से जब पूछा गया की वो ऐसा क्यों कर रहा है तो उसका जवाब था की देश आजाद है अब हम जो चाहे, जहाँ चाहे कर सकते हैं. आजादी का कुछ ऐसा ही अर्थ ये नारीवादी लगते दीखते हैं. हमें विवाह के बंधन से मुक्त कर लिव इन रिलेशन की आजादी दो. शरीर पर कम से कम वस्त्र धारण करने की आजादी दो. पार्कों में खुल कर प्रेम करने की आजादी दो. बहुत से परुष मित्र बनाने की आजादी दो. एक बार एक महिला को आपत्ति थी की लोगों ने उनके द्वारा किसी उम्रदार पुरुष को गले लगाने की बात को याद रखा. तब मुझे लगा था की उन्हें भी इस बात की आजादी चाहिए थी की वो जब चाहें किसी को भी गले लगा लें. </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">स्त्री पुरुष के बीच जब भी समानता की बात होती है तो कहा जाता है की आज की आधुनिक नारी पुरुषों का हर क्षेत्र में मुकाबला कर रही है. वो पुरुषों की तरह छोटे बाल कटा पेंट शर्ट पहन रही है. वो बच्चे घर में छोड़ काम पर जा रही है. वो रेल चला रही है, वो हवाई जहाज उड़ा रही है, वो ट्रक चला रही है इत्यादि इत्यादि. मुझे समझ नहीं आता ये कैसी बराबरी है. कभी ऐसा न हो की बराबरी की इस होड़ में कोई दिन ऐसा भी आए जब कोई महिला सार्वजनिक रूप से ये कहे की आज से उसने दाढ़ी बनाना शुरू कर इस क्षेत्र में भी पुरुषों का एकाधिकार ख़त्म कर दिया है. </span><br />
<span style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">जाने क्यों मुझे नारी स्वतंत्रता और समानता की हर बात में नारीवादियों की सोच micro से हटकर macro की तरफ झुकती नज़र आती है. </span><br />
<span style="font-size: large;"><br />
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<div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">जब से मैं एक बिटिया का पिता बना हूँ तो मैं बहुत गहराई से इस विषय में विचार करता रहता हूँ की एक एक लडके और लड़की में किन किन बातों की समानता होनी चाहिए और दोनों को कितनी स्वतंत्रता दी जानी चाहिए. मेरा ये मानना है की जो स्वतंत्रता एक लडके को दी जा सकती है ठीक उसी स्तर की स्वतंत्रता और समानता एक बेटी को नहीं दी जा सकती. उदहारण के लिए मैं दिल्ली की सडकों पर रात में अपने बेटे को तो अकेले भेजने की इजाजत दे सकता हूँ पर अपनी बेटी को कभी भी अकेले नहीं जाने देना चाहूँगा. मैं सेना की लड़ाकू टुकड़ी में तैनाती के लिए अपने बेटे को तो भेज सकता हूँ पर अपनी बेटी या देश की किसी भी बेटी को नहीं भेजना चाहूँगा. </span></div><br />
<span style="font-size: large;">इस विषय पर कितना विचार करू और कहाँ तक करूँ समझ ही नहीं आता अतः लगता है की यहाँ मुझे भी दीपक चोपड़ा के सात अध्यात्मिक नियमों में से एक अनिर्णय की स्थिति में रहने के नियम का पालन करना पड़ेगा. चलो इस विषय को यूँ ही छोड़ देते हैं. जो होगा जब होगा देखा जायेगा</span></div></div></div></div>VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com25tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-6585750811284928802011-05-13T23:42:00.000+05:302011-05-13T23:42:00.760+05:30मुझे माफ़ करें मैंने कोशिश तो बहुत की पर चुप रह न पाया.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">जब से खुशदीप सहगल जी कि देश कि <a href="http://www.deshnama.com/2011/05/blog-post_11.html">बेटियों को सेल्यूट करती पोस्ट</a> और उसमे दिए लिंक के जरिये <a href="http://asimabhatt.blogspot.com/2011/05/blog-post.html">असीमा भट्ट जी के पिता कि स्थिति</a> जानी हैं तब से मेरा अव्यवहारिक मन अभी तक शांत नहीं हुआ है. इस पोस्ट में मुझे जो बात सबसे ज्यादा अखरी है वो है सुरेश भट्ट साहब का अपने जीवन के अंतिम वर्षों में वृद्ध अनाथालय में गुमनामी की जिंदगी गुजारना. मन में बार बार ये ख्याल आता रहा कि इस दुनिया में ऐसे क्या कारण हो सकते हैं जिनके तहत एक व्यक्ति अपने जीवन के संध्याकाळ कि उस बेला में जब वो शारीरिक रूप से अक्षम हो चुका हो और जिस वक्त उसे परिवार और संतान के सहारे कि सख्त जरुरत हो , उनके प्यार, सेवा और संरक्षण से वंचित हो कहीं दूर अपनी जिंदगी गुजरता है. माता पिता तो हमेशा ही विकट से विकट परिस्थिति में भी अपनी संतान को अपने साथ बनाये रखने का यत्न करते हैं पर ऐसी क्या परिस्थितियाँ भी हो सकती हैं जिनमे वक्त आने पर वही संतान उसके साथ नहीं होती . इस प्रश्न का उत्तर जानने कि इच्छा ने मुझे परेशान कर रखा है. </span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div></div><div><span style="font-size: large;"> </span></div><div><span style="font-size: large;">मैं यहाँ के सभी सुसंस्कृत, संभ्रांत और उच्च शिक्षित लोगों कि मानसिकता को भी अभी तक समझ नहीं पाया हूँ. किसी सड़क पर कोई व्यक्ति मरणासन्न अवस्था में घायल पड़ा है, व्यक्ति का साथी घायल करने वाले को कोस रहा है और आते जाते लोग या तो कोसने वाले कि भाषा कि मार्मिकता पर मुग्ध हैं या फिर घायल व्यक्ति कि दुर्दशा पर ओह उफ्फ करते हुए जय हिंद बोल जाते है. क्या हमारी सामाजिकता हमसे सिर्फ इतने कि ही चाह रखती है. अगर हम ज्यादा कुछ नहीं भी कर सकते तो इतना तो कर ही सकते है कि घायल के साथी से कहें कि बच्चे दुनिया को कोसना छोड़ और इस घायल व्यक्ति कि सुध ले, कुछ इसका भला होगा कुछ तेरा हो जायेगा. पर जाने क्यों हम लोग चुप रह जाते हैं. डाक्टर अमर कुमार जैसे स्पष्ट वक्ता भी ऐसी जगहों पर अपनी स्पष्टवादिता को भूल कर जबान से लड़खड़ाते दिखाई पड़ते हैं. मैंने डाक्टर अमर कुमार जी का ही नाम लिया है क्योंकि जाने क्यों मुझे लगा की उन्होंने अपनी टिपण्णी के पर क़तर दिए, पर मुझे उन सभी लोगों से शिकायत है जिन्होंने इन पोस्टों पर अपने विचार रखे हैं पर सुरेश जी के वृद्ध आश्रम में रहने की वजहों को जानना जरुरी नहीं समझा. क्या हम लोग भी धीरे धीरे उन विकसित पश्चिमी देशों के समकक्ष होते जा रहे है जहाँ बूढ़े लोगों का अंतिम आश्रय परिवार से दूर वृद्ध अनाथालय ही होता है . </span><br />
</div><div><span style="font-size: large;"> </span></div><div><span style="font-size: large;">यद्यपि मेरा ये मानना है कि हमें किसी की निजी जिंदगी में नहीं झांकना चाहिए पर जब कोई इन्सान खुद ही अपने दुःख और तकलीफों को किसी सार्वजनिक मंच से सबके सामने बयान करता है तो मैं समझता हूँ कि ये हम सभी लोगों का कर्तव्य है कि हम उसे उसके दुःख और तकलीफ का मूल कारण क्या है ये समझाएं. ये हमारा सामाजिक कर्तव्य है. </span><br />
</div><div><span style="font-size: large;"> </span></div><div><span style="font-size: large;">अंत में मैं तो एक बार फिर यही कहूँगा कि जिस तरह माता पिता अपनी संतान के पालन पोषण के लिए बड़ी से बड़ी क़ुरबानी या दुनिया का बड़े से बड़ा खतरा उठाने से भी नहीं चूकते व हर हाल में ये कोशिश करते हैं कि उनकी संतान खुद उनके संरक्षण में पाले बढे ठीक उसी तरह संतान का भी ये कर्तव्य बनता है कि वो अंत समय में अपने माता पिता को, जब उन्हें अपने बच्चों के शारीरिक और मानसिक सहारे कि सबसे ज्यादा जरुरत होती है, दूसरों के सहारे ना छोड़ें और अगर छोड़ ही रहे हैं तो कम से कम सारी दुनिया को उसके कर्तव्यों कि याद ना दिलाएं. </span><br />
</div><div></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">मुझे माफ़ करें मैंने कोशिश तो बहुत की पर अपनी बात कहे बिना रह ना पाया. अब किसी को कहीं भी मेरी बात का बुरा लगे तो मुझे जरुर बताएं. मैं भविष्य में अपनी गंवई मानसिकता को भूल खुद को सुधारने की भरपूर कोशिश करूँगा. </span></div></div>VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com17tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-16756250497415263702011-05-10T20:52:00.000+05:302011-05-10T20:52:16.455+05:30क्या साहित्यकार कागज पर अभिनय करते हैं.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">एक अभिनेता विभिन्न लोगों की नक़ल उतरने में माहिर होता है. सबसे पहले वो लोगों के भावों को भली भातीं </span><span style="font-size: large;">पढ़ता है फिर उनकी हु- बहु नक़ल उतर देता है. जिस चरित्र की वो नक़ल उतर रहा होता है जरुरी नहीं की वो चारित्रिक गुण अभिनेता के व्यक्तित्व में भी समाये हों. मानो की एक अभिनेता किसी साहसी व्यक्ति का अभिनय कर रहा है. अगर वो अच्छा अभिनेता है तो उसके प्रदर्शन को देख कर आपको लगेगा की वो एक साहसी व्यक्ति है चाहे अपने निजी जीवन में वो कितना ही डरपोक क्यों न हो. इसी तरह से यदि कोई माहिर अभिनेता एक ईमानदार व्यक्ति का किरदार निभा रहा है तो आम व्यक्ति को लगेगा की वो सच में एक ईमानदार व्यक्ति है जबकि हो सकता है की वास्तविक जीवन में इस अभिनेता का ईमानदारी से दूर दूर का वास्ता न हो. </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">मैं जब भी किसी साहित्यकार के लेख पढता हूँ तो यही सोचता हूँ की ये व्यक्ति भी कागज के मंच पर शब्दों के मुखोटे की सहायता से किसी एक विशेष चरित्र को जी रहा है. कभी किसी लेख में साहित्यकार एक ईमानदार व्यक्ति होता है, कहीं माता का भक्त, कहीं मानवता का पुजारी, कहीं धर्मं का रक्षक और कहीं एक बहुत बड़ा देशभक्त. साहित्यकार के भी बहुत से रूप होते हैं. जो कागजी अभिनेता जितनी बारीकी से अपने किरदार के गुण दोषों को कागज के मंच पर जीवित कर देता है वो उतना ही बड़ा साहित्यकार कहलाता है. </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">एक साहित्यकार कागज पर जो कुछ लिख रहा है जरुरी नहीं की वो अपने वास्तविक जीवन में भी उन गुणों को अपनाता है . वो अपने हर लेख, हर कविता और हर कहानी के साथ एक नया किरदार निभा रहा होता है. </span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">इस ब्लॉग जगत में भी ढेरों साहित्यकार भरे पड़े हैं जो बड़ी सजगता से अपनी एक विशेष छवि रचते रहते हैं. </span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">इन सभी साहित्यकारों को मेरा प्रणाम. </span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div></div><div style="text-align: left;"><br />
</div></div>VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-2130286935503878842011-05-06T20:55:00.004+05:302013-04-20T11:39:33.509+05:30स्त्री पुरुष मैत्री - वास्तविकता या छलावा.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मैंने बहुत बार लोगों को कहते सुना है " हम लोग तो सिर्फ सच्चे मित्र हैं और हमारे बीच में मित्रता के अलावा कोई दूसरा रिश्ता नहीं है." </span></div>
<div style="text-align: justify;">
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<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मैंने इस तरह की बात लड़कियों के मुख से भी सुनी है और लड़कों के मुख से भी सुनी है और ऐसी बातें सुनकर हमेशा मेरा विश्वास मजबूत हो जाता है की जरुर इन लोगों की काली दाल हंडिया पे चढ़ी हुई है. </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">जाने क्यों मुझे विश्वास नहीं होता की एक स्त्री और पुरुष के मध्य शुद्ध रूप से सिर्फ मित्रता का रिश्ता कायम रह सकता है. अगर एक स्त्री व पुरुष के मध्य मित्रता होती भी है तो वो स्वतंत्र मित्रता नहीं हो सकती. उसे तरह तरह के सामाजिक प्रतिबंधों को मानना ही होगा और अगर आप समलिंगी मित्रों के सामान ही विपरीत लिंग के मित्रों से स्वतंत्र मैत्रिक सम्बन्ध रखते हैं तो मेरा मानना है की १०० में से ९८ मामलों में यह मित्रता निश्चय ही शारीरिक संबंधों में परिवर्तित हो जाएगी. स्त्रियों के विषय में तो मैं कुछ नहीं कह सकता पर मैंने देखा है की स्त्रियों से मित्रता करते वक्त अधिकांश पुरुषों के मन में यही भाव होता है की कभी तो मौका मिलेगा.</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मैं अपनी बात को थोडा विस्तर से समझाने के लिए आपको कल्पना लोक में लिए चलता हूँ.</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">कल्पना कीजिये की एक जॉन अब्राहिम टाइप स्वस्थ पुरुष और प्रियंका चोपड़ा जैसी स्त्री के मध्य मित्रता वाला भाव है. एक गर्मियों की शाम वे दोनों घूमने के लिए नेहरू पार्क जाते हैं. लड़का लो जींस और शोर्ट शर्ट में है और लड़की ने देसी गर्ल वाली साड़ी पहनी है. दोनों विशुद्ध मित्र भाव से पार्क में विचरण करते हैं. दोनों में बहुत सी बातें होती हैं फिर अचानक कहीं से काले काले मेघा उमड़ आते हैं. लोगों को गरमी से राहत मिलती हैं. शाम खुशनुमा हो जाती है. दोनों मित्र उस बारिश में भीगते हैं की अचानक लड़की का पांव फिसलता है और उसके पैर में चोट आ जाती है. भइय्या ऐसी मुसीबत में तो मित्र ही काम आते हैं अतः पुरुष मित्र अपनी महिला मित्र को सहारा देकर उठता है. पुरुष अपनी मित्र का एक हाथ अपने कंधे पर रखता है और दुसरे हाथ से उसकी कमर को सहारा देता है. दिल्ली के तिपहिया चालक इस बार भी धोखा देते हैं तो बड़ी मुश्किलात का सामना कर पुरुष स्त्री को अपने घर ले आता है जो की महिला के घर से ज्यादा नजदीक है . घर पर आकार दोनों कपडे बदलते हैं. बारिश से पुरुष को थोडा सर्दी जुखाम हो गया है तो वो दो पैग ब्रांडी के लगा लेता है. पुरुष के घर में एक ही पलंग है अतः दोनों मित्र साथ साथ सो जाते हैं. </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">अब कल्पना लोग से बाहर आकर जरा विचार कीजिये की ऐसी स्थिति में क्या एक पुरुष व स्त्री की मित्रता कायम रह पायेगी परन्तु यदि दोनों मित्र सामान लिंग के होते तो इनकी मित्रता इन सभी परिस्थितियों से गुजर कर भी कायम रहती.</span><br />
<span style="font-size: large;"> ये तो एक उदहारण मात्र है. ऐसी अनेक स्थितिया गिनवाई जा सकती हैं जो यह दर्शाती हैं की एक स्त्री व पुरुष अपनी मित्रता को निर्बाध रूप से लम्बे समय तक कायम नहीं रख सकते और अगर कहीं किसी ने रखी भी है तो उन्होंने अपनी मित्रता पर ऐसे अनेकानेक प्रतिबन्ध लगाये होंगे जो उस सम्बन्ध को सच्ची दोस्ती के रूप से बहुत दूर कर एक समान्य सामाजिक सम्बन्ध में तब्दील कर देते होंगे. </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
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<span style="font-size: large;">मेरी समझ तो यही कहती है की स्त्री पुरुष नैसर्गिक मित्र नहीं होते. ये मित्र भाव रख सकते हैं परन्तु इसके लिए इन्हें किसी न किसी रिश्ते का सहारा जरुर ढूँढना पड़ता है. </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
इस पोस्ट पर मिली प्रतिक्रियाओं के बाद मुझे लगा की पहले कही अपनी बात को और ज्यादा स्पष्ट करने की आवश्यकता है. इस विषय पर कुछ कहने से पहले मुझे मित्रता क्या है इस पर भी कुछ न कुछ अवश्य कहना चाहिए था अतः अब कुछ पंक्तियाँ और जोड़ रहा हूँ और आशा करता हूँ की इनसे मेरे विचार और स्पष्ट होंगे . <br />
<br />
<br />
<span style="font-size: large;">मेरा मूल विचार यही था की विपरीत लिंगी लोग अपने सेम सेक्स के मित्रों सी निर्बाध मित्रता नहीं कर सकते और इसे सामान लिंगी मित्रता के समकक्ष नहीं रखा जा सकता. इस विचार को स्पष्ट करने के लिए बहुत कुछ तैय्यारी के साथ अपनी बात कही जानी चाहिए थी ताकि लोग इसे स्त्री पुरुष के बीच के सामान्य सामाजिक संबंधों से जोड़ कर ना देखें परन्तु मैं ऐसा कर न पाया . </span><br />
<span style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span style="font-size: large;">ऑफिस में या समाज के अन्य क्षेत्रों में हम बहुत से स्त्री पुरुषों से मिलते हैं और व्यावसायिक या सामाजिक सम्बन्ध रखते हैं परन्तु मित्र का दर्जा हर किसी को नहीं देते. मित्रता का सम्बन्ध सामान्य संबंधों से हटकर होता है. अपने मित्र के साथ हम अपनी जिंदगी का हर अनुभव बाटते हैं.दो मित्रों के बीच एक विशवास का संबध होता है, एक निर्बाध सहजता और स्वतंत्रता होती है जो दैहिक प्रतिबंधों की मोहताज नहीं होती. दो दोस्तों के बीच मानसिक निकटता ही नहीं बल्कि शारीरिक निकटता भी होती है. शारीरिक निकटता से मेरा मतलब शारीरिक सम्बन्ध नहीं बल्कि मैं कहूँगा की सेक्स लेस शारीरिक निकटता जो की स्त्री पुरुष की दोस्ती में कभी भी नहीं हो सकती. बस इसी वजह से मैंने कहा था की स्त्री पुरुष नैसर्गिक मित्र नहीं होते. अब कहीं कोई स्त्री पुरुष अपने शरीरों को भूल कर अपनी मित्रता को कायम रख<span style="font-size: large;"> पाते </span>हैं तो उनको मेरा दंडवत प्रणाम. </span><br />
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VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com49tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-87497849671235547412011-05-01T19:45:00.001+05:302011-05-01T23:42:45.798+05:30सीधी बात नो बकवास.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">कल से मैंने अपने ब्लॉग पर लोगों की आवाजाही जानने के लिए feed jit की मुफ्त सेवा ली है. जब से इस सुविधा को अपने ब्लॉग पर लगाया है तब से मैं लगातार देख रहा हूँ की आने वाले अधिकांश लोगों का ध्यान मेरी दो पुरानी पोस्टों पर ही है. एक है </span><a href="http://vichaarshoonya.blogspot.com/2010/03/blog-post_19.html"><span style="font-size: large;">" साईं बाबा के चमत्कार "</span></a><span style="font-size: large;"> और दूसरी है </span><a href="http://vichaarshoonya.blogspot.com/2010/05/blog-post_03.html"><span style="font-size: large;">" कुछ अश्लील (नॉन वेज ) चुटकले". </span></a></div></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">अपने ब्लॉग पर आने वाले लोगों की रूचि को देख कर मुझे लग रहा है की यहाँ की दुनिया मोटे तौर पर दो समूहों में विभाजित है. एक समूह अध्यात्म में रूचि रखने वाले लोगों का है और दूसरा अश्लीलता या सेक्स में रूचि रखता है. (इन समूहों से छिटके हुए लोग या तो ब्लोग्गेर्स हैं या फिर शायद खुद को ठीक से पहचान नहीं पाए हैं) . </span></div><span style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span style="font-size: large;">मोटे तौर पर देखा जाय तो अध्यात्मिक व्यक्ति इस दुनिया की उत्पत्ति कहाँ से हुई या कैसे हुई इस बात में रूचि रखता है और सेक्स पर ध्यान केन्द्रित करने वाला उसकी खुद की उत्पत्ति कहाँ से हुई या कैसे हुई इस बात में रूचि रखता हैं. कहीं न कहीं दोनों का ध्यान उस पैदा करने वाले पर ही है.</span><br />
<span style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span style="font-size: large;">मुझे बेहद दुख है की मैं दोनों की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता हूँ. जो लोग साई के चमत्कारों की तलाश में हैं उन्हें मेरी सोच पर हँसी आती होगी और ऐसा ही हाल मेरे ब्लॉग पर अश्लीलता तलाशने वालों का भी होता होगा. </span><br />
<span style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span style="font-size: large;">मैं तहे दिल से इन लोगों से क्षमा प्रार्थना करता हूँ और प्रण लेता हूँ की अपनी आने वाली किसी भी पोस्ट का शीर्षक कभी भी बरगलाने वाला नहीं रखूँगा. अब से हमेशा "सीधी बात नो बकवास". </span><br />
<span style="font-size: large;"><br />
</span></div></div></div>VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-69545010033926776142011-05-01T10:36:00.000+05:302011-05-01T10:36:18.318+05:30वो पगली नहीं है !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">वैसे तो मैं आस पास के लोगों की घरेलु बातों पर ज्यादा मगज़मारी नहीं करता पर इस खबर पर से मेरा ध्यान हट न सका. मेरी पत्नी को पड़ोस के बब्बल की मम्मी जी ने बताया की हमारे दुसरे पडोसी चेला राम की बीबी पगली होने का सिर्फ ढोंग करती है पर असल में वो पागल नहीं है</span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div></div><span style="font-size: large;">"अच्छा ! उन्हें कैसे पता चला की वो पागल नहीं है."</span><br />
<span style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span style="font-size: large;">"अरे वो बब्बल की मम्मी से कह रही थी की अगर उसकी एक बिटिया और हो जाये तो उसका परिवार भी पूरा हो जायेगा. एक बेटा और एक बेटी. देखो उसको इतनी अक्ल है. पागल होने का तो वो सिर्फ ढोंग ही करती है."</span><br />
<span style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span style="font-size: large;">मेरी नज़रों के सामने चेला राम की इस दूसरी पत्नी का पूरा इतिहास घूम गया. </span><br />
<span style="font-size: large;">पहले पति द्वारा त्याग दी गयी क्योंकि वो पगली थी. </span><br />
<span style="font-size: large;">विधवा माँ और भाइयों ने ६२ वर्ष के नाती पोतों वाले बूढ़े से ब्याह दिया क्यूंकि वो पगली थी. </span><br />
<span style="font-size: large;">सौतेली बेटे बेटियों ने हमेशा नौकरानी समझ कर व्यवहार किया क्योंकि वो पगली थी</span><br />
<span style="font-size: large;">सौतेली पुत्रवधू ने इसकी नसबंदी करवाने की पूरी कोशिश की के कहीं इसके कोई बच्चा न हो जाये और ये चुपचाप सहती रही क्योंकि ये पगली थी.</span><br />
<span style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span style="font-size: large;">अब आज अचानक बब्बल की मम्मी कहती हैं की वो पगली नहीं बहुत सायानी है. </span><br />
<span style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span style="font-size: large;">मुझे लोगों का ऐसा व्यवहार कतई समझ नहीं आता. किसी भी आदमी के वर्तमान के एक छोटे से कार्य से उसके पुरे व्यक्तित्व का निर्धारण कर देते हैं. उसका पूरा इतिहास जानते बुझाते हुए भी नकार देते हैं. कोई साला सारी जिंदगी अपनी मुर्खता और पागलपन को व्यक्त करता रहा और अचानक गलती से ही एक सही काम क्या कर दिया पिछला सब ख़त्म. </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">क्या है यार ये सब........</span></div>VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com14