एक रहन कपोत पलटदास ब्लॉग अवतारी
करके आंख बंद मन मा जाने का बिचारी
तबही आई वहां एक नार शायद वो कुंवारी
देख कपोत भये चकित मति गयी उनकी मारी
संवारना उसका देख कर सोच उनकी भयी बिकारी
लगे सोचने होगा ये......
और होगा वो........
पर........ फुर्र हो गयी वो नारी
और रह गए पलट दास ब्रह्मचारी के ब्रह्मचारी.
इति.
यह क्या कपोतदास तो लंगडे है। एक पैर वाले।
जवाब देंहटाएंअक्सर ऐसा ही होता है जब जबरदस्ती ग़लतफ़हमी पाली हो हा.... हा.... हा
जवाब देंहटाएंअरे सुज्ञ साहब उसे लंगड़ा कह कर बेचारे का अपमान ना करें. वो ध्यान मग्न है. याद करें अपने ऋषि मुनि इस पोज में ही ध्यान लगाते थे. :)
जवाब देंहटाएंये पोस्ट कपोतदास के मानवाधिकारों का हनन है :))
जवाब देंहटाएंscientific-evidence-reincarnation
जवाब देंहटाएंhttp://my2010ideas.blogspot.com/2010/12/scientific-evidence-reincarnation.html
लगता है अब बढ़ चुकी सक्रियता के चलते पलटदास जैसे लोग अब थोड़ा सतर्क हो जाएंगे :)
जवाब देंहटाएंबढ़िया।
वैसे ये आपके घर के आसपास का ही दृश्य लगता है। तभी इतनी देर तक इस पलटदास को फिल्माते रहे :)
:)
जवाब देंहटाएंबढ़िया।
रह गए पलट दास ब्रह्मचारी के ब्रह्मचारी.
जवाब देंहटाएंफुर्र हो गयी वो नारी उसने दिखाई होशियारी
क्योकि घर गृहस्थी बोझ है बड़ी भारी
और एक टांग वाला पलट दास ना उठा पायेगा ये जिम्मेदारी :)))
यह अच्छी श्रंखला है...मामला क्या है ...?
जवाब देंहटाएंध्यान तो बेध्यान में दुर्ध्यान हो गया बंधु।
जवाब देंहटाएंलेकिन एक बात से परेशान हूँ,आपने कैसे निश्चित किया कि कपोत पलटदास ब्रह्मचारी ही रहा? ;)
बन्धु, मैथुनरत क्रौंच युगल में से नर क्रौंच की हत्या देखकर आदिकवि ने पहली कविता कही थी, ’मा निषाद प्रतिष्ठाम......’, दिख रहा है कि आप भी रचोगे कुछ न कुछ ऐसा ही:)
जवाब देंहटाएंकपोत महाराज गा रहे होंगे - मेरी बात रही मेरे मन में, और श्रीमान जी ने पोस्ट लिख मारी, अच्छा नमक छिड़का है गुरू। हमारी संवेदना, सहानुभूति कपोत पलटदास जी के साथ है।
शाश्वत वैचारिक शून्यता है जी, मामला क्या है ...? मेरे कबूतर का एक टांग ?
जवाब देंहटाएंलोकप्रिय-अतिलोकप्रिय-महालोकप्रिय व वरिष्ठ-कनिष्ट-गरिष्ठ ब्लॉगर
हा हा सतीश भाई की प्रस्तुति पर यह चित्रांकन गजब ढा गया !
जवाब देंहटाएंसंजीव जी से सहमत। हम तो डेढ़ टाँग वाले की उम्मीद लगाए थे :-)
जवाब देंहटाएंअंदाज- ए- वयां गजब ..जिसको जो समझना है समझ लें ...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंआपके चित्रों से नहीं लग रहा है कि कपोत दास ब्रह्मचारी रह गए हैं ...
जवाब देंहटाएंदूसरी बात गौरव अगरवाल जी से कि यह मानवाधिकारों का नहीं कपोताधिकारों का हनन है ...
by the way, इसमें नर कौन और मादा कौन है ... मतलब आजकल के युग में सबकुछ थोडा गोलमाल सा है न भाई ... इसलिए पूछ रहा हूँ ...
मुझे तो एक टांग की कबूतरी लग रही है ...
कपोत बिचारे को का मालूम क्वोनो ब्लोगर उका इ हरकत नोट कर रहा है?
जवाब देंहटाएंबिचारे....... ब्लोगर्स ????
कई हरकते नोट होती हैं, पर पता नहीं चलता.
आजकल के बाबाजी भी तो कुछ ऐसा ही कर रहे है...............पहले तो एक टांग वाला बगुला टाईप का ध्यान लगाते है............फिर चेले/चेली उनके शरणागत होते तो बाबाजी कुछ ऐसा ही झपट्टा तो मारते है चेले/चेलियों के धन/आबरू पर.................गजब की पत्रकारिता करे हो..............कपोत महाराज का सारा भंडा फोड़ स्टिंग औप्रेसन कर डाले हो बाबूजी :)
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
लो भाई एक पैर ऐसी ही हरकतोँ से गवाँ कर भी नहीँ चेँते , तो यही होगा
जवाब देंहटाएंअमित भी जानते हैं इनको .....??
जवाब देंहटाएं@ अमित भी जानते हैं इनको .....??
जवाब देंहटाएं# किनको !!! बाबा कपोत दास को ???? या विचारीजी को ???
बाबाजियों की बात कर रहें है तो ५/६ बाबाजियों की लुटिया डुबोयी है मैंने अपने गाँव में .................... विस्तार से कभी बताऊँगा
जवाब देंहटाएंऔर विचारीजी की बात कर रहें है तो ब्लॉगजगत में स्नेह संप्रदाय के बाबाजी के रूप में पहला स्नेह प्रसाद इन्होने ही दिया था
जवाब देंहटाएंअमित भैया, इस बाबा की लुटिया मत डुबो देना........
जवाब देंहटाएं:))
जवाब देंहटाएंsamay kaa sadupyog karna chahiyae !!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंHa,ha,ha!!
जवाब देंहटाएंवाह क्या खूब,शब्दों के चित्र और चित्रों के शब्दों का मिश्रण यहाँ प्रस्तुत किया आपने...
जवाब देंहटाएंइन निरीह,निशब्दों कि भावनाओं को खूबसूरती से पेश ही नहीं किया बल्कि महसूस भी किया है!
कुंवर जी,
जब हुई लाचारी
जवाब देंहटाएंतो बन गए ब्रह्मचारी।
गिरे बीच गंगे
बोले हरगंगे।
chalo do pyar karne wale mile
जवाब देंहटाएंदीपक बाबा का कथन मेरा भी माना जाए अमित !
जवाब देंहटाएंयही तो फर्क है मानव व पशु-पक्षियों में...यही फोटो किसी मानव के होते तो वो मानहानि का मुकदमा कर सकता था ....फिर भी अंदाज-ए-बयां अच्छा लगा....
जवाब देंहटाएंगुड़....फोटो...
जवाब देंहटाएंविचार शून्य जी ,
जवाब देंहटाएंपहले से लेकर पांचवे नंबर के चित्र और उनके अर्थ बराबर हैं बस उससे आगे...
छठवें चित्र में 'समय का संशय' है इसलिए यह कहना कठिन है कि कपोत मनमानी नहीं कर सका :)
सातवें चित्र से तो यह भी लगता है कि उसे अगली की प्रतीक्षा है :)
@ विचार शून्य ,
जवाब देंहटाएंआप अनवर जमाल से सहमत हैं जानकर वाकई अच्छा लगा आपको मैं गंभीर गुरु की श्रेणी में रखता हूँ ...
महाराज ,
कभी कभी अपना मेल बॉक्स भी देख लिया करें ...एक चिट्ठी भेजी है, कम्पुतराइज जवाब मिल गया ...
आपने कपोत का निजी मुआमला सरे-बज्म उठाकर उसकी निजता का अतिक्रमण किया है...अगर उसने मुकद्दमा ठोंक दिया तो...????????????????...............!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंअब इस कपोत दास को कब तक दिखाओगे यार या इससे कुछ करार किया है :-))
जवाब देंहटाएंकुछ लिखो भाई आपके चाहने वाले आपके दरवाजे से खाली जा रहे हैं
:-(
बहुत प्यारी है ये चित्र कथा।
जवाब देंहटाएं---------
दिल्ली के दिलवाले ब्लॉगर।
हम्म ..तो यहाँ भी नारी ने बाजी मारी...और कपोत ने मानी हारी....
जवाब देंहटाएंमज़ा आया पढने मैं भी और चित्र तो बहुत ही बुलते हुए हैं..धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंbahut -bahut sundar....hardik subhkaamnaayen ....
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