मैं ये जानना चाहता हूँ की लड़कियों के नाक और कान छिदवाना जरुरी होता है क्या? अगर उनके नाक और कान छिद्रित ना हों तो क्या फर्क पड़ेगा?
मेरी बिटिया ढाई वर्ष की हो गयी है. पत्नी चाहतीं हैं की उसके कानों में बाली पहना दी जाय जबकि मैं इसके पक्ष में नहीं हूँ. मैं सोचता हूँ की जब वो बड़ी हो जाएगी और अगर उसकी इच्छा होगी तो वो ये काम खुद कर लेगी. हम अभी से जब उसे खुद इस बात की समझ नहीं है सिर्फ अपनी इच्छा के लिए क्यों ये काम करें. अगर वो कुंडल या नथ पहनना ही चाहेगी तो आजकल तो ये नाक और कान में छिद्र करवाए बिना भी संभव है. कुछ इस तरह के कानों के कुंडल आते हैं जिन्हें बिना छिद्र के भी पहना जा सकता है जैसे की अक्सर नाटकों में पहने जाते हैं.
इस विषय में मेरे एक मित्र ने मुझे बड़ी रोचक बात बताई. उनके अनुसार कान और नाक में छिद्र करवाने से स्त्रियों की कामुकता कम हो जाती है या उनके शब्दों में कहें तो शरीर की गरमी निकल जाती है. नाक कान छिदवाने का ये बहाना मुझे नहीं जंचा. शरीर क्या कोई गुब्बारा है की जिसमे छिद्र करो और गरमी बाहर. अगर ऐसे ही कामुकता ख़त्म होती हो तो सारे बलात्कारियों के नाक और कान छिद्वादो या सजा के तौर पर उनके नाक और कान कटवा ही दो. ना रहेगा बांस और ना रहेगी बांसुरी.
मित्र ने अपनी बात के समर्थन में पश्चिमी देशों का उदहारण भी दिया की वहा स्त्रियों के नाक और कान छिद्रित नहीं होते जिस वजह से वो इतनी हॉट होती हैं. वैसे पडोसी देश में ये रिवाज है की वो कामुक स्त्रियों के नाक कान कटवा देते हैं. कहीं इस रिवाज के पीछे की मानसिकता येही तो नहीं की नाक कान स्त्रियों की कामुकता को नियंत्रित करते हैं.
इस विषय में मेरा अपना एक अनुभव है. हम जनेऊधारी ब्रह्मण लोग शौच जाते वक्त अपने जनेऊ को कान पर लपेट लेते हैं. जब मैंने इसका कारण जानना चाहा तो मुझे बताया गया की हमारे कान में कोई ऐसा पॉइंट होता है जिसे दबाने पर पखाना तुरंत पास हो जाता है. एक बार मैं इसकी जाँच के लिए घंटे भर शौचालय में बैठ कर अपने दोनों कानों को दबाता रहा पर कोई ऐसा बिंदु नहीं मिला जहाँ पर दबाव पड़ते ही मीटर डाउन हो जाय. इस कसरत में कुछ नहीं हुआ बस घंटे भर बाद मैं लाल कानों के साथ टॉयलेट से बाहर आया.
भाई मैं तो अपनी गुडिया को इस उम्र में तंग नहीं करने वाला. बाद में जो होगा देखा जायेगा. वैसे व्यक्तिगत तौर पर मुझे स्त्रियों के छिदे हुए नाक और कान उस वक्त बिलकुल पसंद नहीं जब वे सूने पड़े होते है. बाली और नथ के बिना ये सूने नाक और कान मेरे मन को बहुत दुःख देते हैं और तब मुझे लगता है की स्त्रियों की नाक और कानों में छिद्र होता ही नहीं तो अच्छा होता.
छोटी उम्रमे छिदवाने का प्रचलन शायद इस लिये किया गया होगा क्युकी तब बाल विवाह होते थे और दूसरी बात शायद छोटी उम्र मे आसानी से छिद जाता हैं क्युकी स्किन / लिगामेंट मुलायम होता हैं { कोई साइंस का ज्ञाता या डॉ सही बता सकेगा या अनुमोदन दे सकेगा } । बाकी सब कहानिया हैं । आज कल डॉ , क्लोरोफोर्म दे कर भी करते हैं सो दर्द नहीं होता । बड़े ज्वेलर कि दुकान पर भी किया जाता हैं । बाकी मेरी भांजी जो १७ वर्ष कि वो जब ३ साल कि थी बहुत रोई थी छिदाने पर लेकिन अभी दूसरा बार कान के लोब को छिदा कर खुश हैं फैशन हैं जी!!!!! इस मे आपतिजनक बस एक ही बात लगती हैं कि हम इतनी छोटी उम्र से लड़कियों को सजने सवारने के लिये प्रेरित करते हैं जो आगे तक जाता हैं
जवाब देंहटाएंवैसे आज कल लडके भी छिदवा रहे हैं !!!!!!!!
कर्णवेध संस्कार तो लड़के/लडकी दोनों का ही होता है, आजकल लड़कों के कान छिदवाने बंद कर दिये, लेकिन फिर भी फैशन के नाम पर लड़कों का लुप्त संस्कार फिर लौट रहा है. हां वैसे लड़कियों के कानों में झुमका, बाली आदि उनकी सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं. नाक की नथ भी उनकी सुंदरता की पूर्णता प्रदान करती है. सामान्यत: इन्हें सुंदरता की दृष्टि से ही देखा जाता है.
जवाब देंहटाएंपाण्डेय जी , जितना मैं आपको जानता हूँ .... आप करोगे वही जो आपने सोच रखा है !
जवाब देंहटाएंऔर वैसे भी इस मामले में अपना ज्ञान बहुत सिमित ही है ! वैसे आपके मित्र से मैं भी सहमत नहीं हूँ !
बहुत'सही'कहा'अपने'आजकल'अतिबुधिवादी'लोग'अपने'अधूरे'ज्ञान'को'साथ'लेकर'चलते'है''
हटाएंवैसे आपके मित्र से मैं भी सहमत नहीं हूँ !
जवाब देंहटाएंकर्णवेध संस्कार yadi 5-6 saal ki umr main kiya jay to behtr hoga, tb tk bitiya bhi samajhdaar ho jayegi,,,,,
आपके मित्र के कामुकता संबंधी तर्क पर कोई कमेन्ट नहीं ! रचना जी के इस सुझाव से सहमत कि मुलायम स्किन जैसी कोई बात हो सकती है और इससे भी कि लड़के भी इस होड में हैं !
जवाब देंहटाएंये मुद्दा हमारे घर भी उठा था , तब हमने फैसला बिटिया पर छोड़ दिया था ! उसके करीब दो बरस बाद उसने कहा उसे यह पसंद है और हमने कहा ठीक है !
@ विचार शून्य जी ! आज आपकी दूसरी पोस्ट पढ़ी , काफी विचार पूर्ण लगी । मैंने भी नहीं छिदवाए अपनी बेटियों के नाक कान । गाय भैंसों की भी छिदवाई जाती है नाक । खेती कार्य में गोवंश से काम लेने के लिए गाय के बेटों की नाक भी बनिये ब्राह्मण और अगड़े पिछड़े सभी हिँदू सदा से क्रूरतापूर्वक छिदवाकर उनकी आज़ादी छीनते आए हैँ । पहचान की ख़ातिर उन्हें गरम लोहे से दाग़ते आए हैं । बलि के विरूद्ध आवाज़ उठाने वाले भी इस हिंसा पर कुछ नहीं बोलते ।
जवाब देंहटाएंआपका फैसला ठीक है ।
बिटिया पर ही छोड दिया, अच्छा किया जी
जवाब देंहटाएंथोडा बडी होने पर उसका उसका अपना चुनाव होगा।
वैसे आपके मित्र की बात को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता है। हिन्दू धर्म में ज्यादातर संस्कारकार्य और आभूषण आदि पहनने के वैज्ञानिक कारण होते हैं। हाँ यह अलग बात है कि आज हमने वह ज्ञान और जानकारी खो दी है।
हाँ अगर आप केवल बच्ची को दर्द होगा इस कारण कान नाक छिदवाने से मना करते हैं तो यह आशंका निर्मूल है।
हिन्दू धर्म में सोलह श्रृंगार में कानों और नाक में आभूषण पहने जाते हैं जो सुन्दरता में चार चाँद लगा देते हैं।
प्रणाम स्वीकार करें
जरूरी नहीं बल्कि ऑप्शनल होना चाहिए ! नाक छिदवाने का तो मैं सख्त विरोधी हूँ मगर कान लडकी की इच्छा पर निर्भर होना चाहिये और मैं समझता हूँ की बहुत सी लडकिया पसंद भी करती है यह !
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ठीक है... कामुकता वाली बात सोच से परे है..
जवाब देंहटाएंअनवर जमाल की बातों पर हंसी आती है...
बलि देना और काम पर लगाने के लिये नाक छेदने में अन्तर है..
यह प्रक्रिया भी तब विकसित हुई थी जब मनुष्य जंगली था, उसके पास खाने की समझ विकसित नहीं थी, मशीनों का विकास नहीं हुआ था..
आज के युग में इस क्रूरता पर भी रोक लगना चाहिये और कोई अच्छा तरीका खोजना चाहिये पशुओं पर लगाम लगाने का..
लेकिन कुर्बानी के साथ इसे जोड़ना विशुद्ध अक्लमन्दी है..
नाक कान छिदवाना कोई जरुरी नहीं है | मेरे घर में आठ लड़किया थी जिसमे से सिर्फ बड़ी दीदी के ही नाक में छेद था बाकि किसे ने नहीं कराया यहाँ तक की विवाह के बाद भी हम सब में किसी ने भी नाक में छेद नहीं करवाया सभी ने विवाह के समय दबा कर पहनने वाले नथ को पहना था और तीज त्योहर पर जिसे पसंद हो फैशन के लिए वही पहन लेता है हा कान में बड़े होने के बाद फैशन के लिए खुद से छेद करवाया था | जैसा रचना जी ने कहा की त्वचा के मुलायम होने के कारण बच्चो के करवाए जाते है | यहाँ मुंबई में दो से चार महीने के बच्चो के कान छेद दिए जाते है सभी ने मुझे भी राय दिया पर मेरी बेटी चार साल की होने जा रही है मैंने नहीं कराया है | जब वो बड़ी होगी तो अपनी इच्छा से करा लेगी दर्द का तो सवाल नहीं उठता आप डाक्टर शून्य कर के कर देते है | यदि बाद में दर्द हुआ तो बड़े होने पर वो मुझे बता सकती है छोटी बच्ची तो बाद में होने वाले दर्द को तो बता ही नहीं पायेगी और ना उस कष्ट को सह पायेगी |
जवाब देंहटाएंनाक कान छिदवाना पुराने दिनों में सजावट के लिए आरंभ किया गया था ... धीरे धीरे परंपरा बन गया ... जैसा कि अक्सर होता है एकबार कोई परंपरा जड़ जमा ले तो फिर दिमाग और समाज से उतरता ही नहीं है ... भले ही उसका महत्वा खतम हो जाये ... फिर उसे धर्म से जोड़ दिया जाता है ...
जवाब देंहटाएंकामुकता वाली बात हास्यास्पद है ...
bahut thik laga dost par mujhe sabse achha laga k agar uski marji hogi to vo karva legi ham abhi se us per ye kyun thope. aap aise he likhte rahiye.
जवाब देंहटाएंआपका निर्णय ही वस्तुत सहि निर्णय है, इन संस्कारों के पिछे क्या भावना रही होगी, या उसके क्या लाभ है। अज्ञात है। यह अधिकार भी बिटिया का होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंलड़कियों के नाक कान छिदवाना जरुरी है क्या ? जवाब: कोई आवश्यकता नहीं. लड़की का गए बैल है?
जवाब देंहटाएंNaak ya kaan chhidwana bilkul zaroori nahi! Gar chhidwa bhi liye aur badi hoke ladki unme kuchh na pahne to dheere,dheere wo band bhee ho jate hain.
जवाब देंहटाएंकान और नाक छिदवाने के पीछे का विज्ञान तो नहीं मालूम, हां छोटे बच्चों के कान कभी न छिदवाये, अगर कपड़ों में उलझ जायें बालियां तब? मैने तो अपनी बिटिया के कान बारह वर्ष की उम्र में छिदवाये थे, जब उसकी खुद की इच्छा हुई.
जवाब देंहटाएंये काम होना तो है ही, आज नहीं तो कल। कम से कम इस मामले में तो श्रीमति जी की राय मान लो, स्त्री होने के नाते वे आपके मुकाबले इस मामले को ज्यादा अच्छे से समझती होंगी।
जवाब देंहटाएंमित्र क्या कह रहे हैं समझ से परे है किंतु कर्ण छेदन संस्कार हमारे भी हुए हैं कोई कारण ज़रूर है.
जवाब देंहटाएं@ भारत के नागरिक जी ! ॐ शाँति , वन्दे ईश्वरम् , आख़िर हिंदू कहलाए जाते वाले लेखकों में वह कौन सा सुर्ख़ाब का पर टंका है कि वह इस्लाम की , खुदा की शान में गुस्ताख़ी करने के लिए आजाद है , इस्लामी रिवाज को बेधड़क कुकृत्य कह सकता है लेकिन अगर कोई मुसलमान उसका जवाब दे तो उस पर ऐतराज किया जाए ?
जवाब देंहटाएंक्या जागरूकता और निष्पक्षता इसी दोग़लेपन का नाम है ?
मनु स्मृति में कहा गया है कि विधि से काटे गए पशु का मांस ही खाने योग्य है विधि रहित मांस कभी नहीं खाना चाहिए !
विधि है हलाल करना क्योंकि जानवर को इसमें कोई कष्ट नहीं होता । 'हमारी अंजुमन' ब्लाग पर वैज्ञानिक प्रमाण देकर सिद्ध कर दिया है कि इस्लाम सरासर रहमत है सबके लिए , जानवरों के लिए भी ।
प्राचीन आर्य शहद और मांस आदि का भरपूर सेवन करते थे और वे धर्म का पालन करने वाले आदर्श व्यक्ति माने जाते हैं . दशरथ जी और राम जी का शिकार खेलना जग प्रसिद्ध है ही । ऐसे में उनके भोजन को घृणित क्यों मान लिया गया ?
इस पर विचार किया जाना चाहिए ।
2- आज भी देश की नीतियाँ बनाने वाले और सीमाओं की रक्षा करने वाले अधिसंख्य हिंदू मांसाहारी हैं । मांसाहारियों को अधम, पापी और राक्षस कहना प्राचीन हिंदू आदर्शों के साथ साथ आपने वर्तमान हिंदू सैनिकों का भी अपमान करना है
मांसाहार के समर्थन में अदा जी के ब्लाग पर वैज्ञानिक तर्क पेश करने के लिए विचार शून्य जी को बधाई ।
जवाब देंहटाएंकुर्बानी भी व्यर्थ नहीं दी जाती है देखें
islamdharma.blogspot.com
पर ...
..
जवाब देंहटाएंमित्र दीपक
आपको पहले परामर्श करना चाहिए था इस तरह के प्रश्न उठाने से पहले. बहुत समय पहले मैंने इस सन्दर्भ की सामग्री आपको प्रेषित भी की थी. लेकिन आपको अपने ऑफिस के साथियों के कहे का कुछ अधिक असर होता है. फिर प्रतिक्रिया स्वरुप अपनी पोस्ट भी निकाल देते हैं जिसे जमाल जैसों को अनपेक्षित बल मिलता है. आपको तीन-चार चरणों में इस संस्कार के बारे में पुनः बताता हूँ.
कर्णवेध संस्कार
कान में छेद कर देना कर्णवेध संस्कार है. गृह्य सूत्रों के अनुसार यह संस्कार तीसरे या पाँचवे वर्ष में कराना योग्य है. आयुर्वेद के ग्रन्थ सुश्रुत के अनुसार कान के बींधने से अंत्रवृद्धि [हर्निया] की निवृत्ति होती है. दाईं ओर के अंत्रवृद्धि को रोकने के लिये दायें कान को तथा बाईं ओर के अंत्रवृद्धि को रोकने के लिये बायें कान को छेदा जाता है.
cont.
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जवाब देंहटाएंइस संस्कार में शरीर के संवेदनशील अंगों को अति स्पर्शन या वेधन [नुकीली चीज़ से दबाव] द्वारा जागृत करके थेलेमस तथा हाइपोथेलेमस ग्रंथियों को स्वस्थ करते सारे शरीर के अंगों में वह परिपुष्टि भरी जाती है कि वे अंग भद्र ही भद्र ग्रहण हेतु सशक्त हों. बालिकाओं के लिये इसके अतिरिक्त नासिका का भी छेदन किया जाता है.
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जवाब देंहटाएंसुश्रुत में लिखा है ........ "रक्षाभूषणनिमित्तं बालस्य कर्णों विध्यते" अर्थात बालक के कान दो उद्देश्य से बींधे जाते हैं. बालक की रक्षा तथा उसके कानों में आभूषण डाल देना. आजकल यह काम सुनार या कोई भी व्यक्ति जो इस काम में निपुण हो .. कर देता है. परन्तु सुश्रुत में लिखा है "भिषक वामहस्तेनाकृष्य कर्णम दैव्क्रिते छिद्रे आदित्यकारावभास्विते' शनैः शनैः ऋजु विद्द्येत" — अर्थात वैद्य सीधे बींधे. इससे यह प्रतीत होता है कि कान को बींधने का काम ऐसे-वैसे का न होकर चिकित्सक का है क्योंकि कान में किस जगह छिद्र किया जाय यह चिकित्सक ही जान सकता है.
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जवाब देंहटाएंमित्र दीपक
आपके माध्यम से जमाल जी के लिये मैं कुछ शब्दों के मैक्समूलरीय अर्थ करता हूँ तो आज के प्रोफेसरों को ग्रहण करने में सुविधा होगी.
हिंसा अर्थात ......... हीन + सा मतलब ......... जो घृणास्पद हो
कुर्बानी ...... मतलब .......... कुर + बानी मतलब
कुर == परिधि, मंडल, गोला
बानी == किसी काम की शुरुआत करने वाला
कुर+बानी बोले तो ........ परिधि में किसी काम की शुरुआत करने वाला.
मतलब ............ दायरे में सिमटी हुई क्रिया . ......
कुर+बानी+कार का अर्थ तो बेहद ही बढिया है ..........
दायरे में सिमटी हुई क्रिया करने वाला धूर्त......
देखे — जदीद [लुगत} ......... पृष्ठ 216 और 618.
..
मैंने तो टिप्पणियां पढ़कर ही ज्ञान अर्जित कर लिया अरे भई देर से आने का कहीं तो फ़ायदा उठाऊं
जवाब देंहटाएंदेश में,खरबों रूपया महिलाओं के जेवरों के रूप में डम्प पड़ा है। नाक और कान का छिदवाना रुके,तो थोड़ा पैसा देश में अन्य रूप से गतिशील हो सकता है। मगर मुए इस गर्दन का क्या किया जाए!
जवाब देंहटाएंप्रश्न बडा कठिन है। इसीलिये टिप्पणी टाल रहा था। आज भी बस यूँ ही गोलमोल लिखकर जा रहा हूँ मगर मुद्दे पर कभी बाद में वार्ता करेंगे।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंPratul ji has given a beautiful reply . The scientific reason is beautifully defined.
Thanks.
.
@विचारी जी
जवाब देंहटाएंआपने रचना जी के ब्लॉग पर कहा है
@उई माँ ये तो मेरी कही बात पर ही विचार हो रहा है
मुझे लगता है आपके मित्र की बातों पर विचार हो रहा है
हाँ सेन्स ऑफ़ ह्यूमर आपसे चुराया हुया जरूर लगता है :))
जवाब देंहटाएं.... और हाँ मुझे मुझे नहीं लगता कोई बेनामी टिप्पणी आएगी क्योंकि वहाँ फिलहाल कोई भी संस्कृति को सीरियसली नहीं लेने वाला [मेरे अलावा ] और मैं बेनामी टिप्पणी करता नहीं हूँ
... दोनों लेखों की मानसिकता में फर्क बहुत है
जवाब देंहटाएंये पढियेगा , शायद कुछ काम की बात हो
http://tarunchhattisgarh.com/index.php/2010-04-05-07-45-16/1610-2010-07-02-10-00-54
आदर्णीय दीपक जी,
जवाब देंहटाएंचरण स्पर्श...
ज्यादा ज्ञान तो इस विषय पर नहीं है, पर इतना जारूर सुना है,कान छिदवाना लाभदायक होता है| बड़े बुज़ुर्ग भी इसीलिए कुंडल पहना करते थे...
सुना है राजस्थान में आज भी पुरुष कान छिद्वाते है....और देखे तो आजकल फैशन बन गया है,लड़कियों से ज्यादा लड़के पहने मिलेंगे|
आपके विचार से सहमत हूँ, जब बिटिया बड़ी हो जाएगी और उसकी इच्छा से ही कान-नाक छिदवाना चाहिए|
धन्यवाद|
@विचारी जी
जवाब देंहटाएंआपकी इस चर्चा को आगे बढ़ाने का एक प्रयास यहाँ भी किया गया लगता है :)
http://my2010ideas.blogspot.com/2010/11/blog-post_25.html
.... और लेखक ने अनुरोध भी किया है की जब भी समय मिले अपने विचार [कोई प्रश्न / सुझाव / शंका जो भी ] हो तो अवश्य बताएं :)
जवाब देंहटाएंविचार शून्य जी को विचारी जी ना कहे
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं'विचारी' कहना तो मुझे शुरू से अखरता रहा है.
इस शब्द की ध्वन्यात्मकता कई अन्य शब्दों की झंकार पैदा कर देती है.
ब्रह्म+....., सदा+......, दुरा+...., व्यभि+...., आदि-आदि.
.
रचना दीदी , आदरणीय प्रतुल जी
जवाब देंहटाएंये नाम मेरा बनाया हुआ नहीं है ... संभवतया अपनेपन की भावना में लिखा हुआ कहीं पढ़ा था तब से मैंने भी अपना लिया, क्षमा चाहता हूँ .. मैं तो हमेशा मानसिकता पर ही गौर करता आया हूँ |
पाण्डेय जी से भी क्षमा
एक मोलिक सोच के साथ उठाया गया प्रश्न ...आपका निर्णय सही है ..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंचलते -चलते पर आपका स्वागत है
नाक, कान तो पुरुषों के भी छिदते हैं, इसे एक्यूपंक्चर माना जाता है, कुछ पुरुषों का नाम याद करा रहा हूं, नकछेद या कनछेद प्रसाद, नकछेदी या कनछेदी लाल. आजकल लड़के फैशन में एक कान छिदवाकर 'लौंग' भी डाल रहे हैं. प्रतुल जी की और अन्य टिप्पणियां देखने के बाद सिर्फ यह जोड़ना जरूरी मान रहा हूं कि महिलाओं के नाक छिदवाने की परम्परा पुरानी नहीं, इसका एक शर्मनाक पक्ष- नथ उतारने का मुहावरा भी इसी से जुड़कर बना है.
जवाब देंहटाएंमुहावरा बनाना तो मानसिकता पर निर्भर करता है, किसी भी अन्य प्रतीक का प्रयोग किया जा सकता है
जवाब देंहटाएंरही बात परंपरा के पुराने या नए होने की तो ये देखा जाना चाहिए कहीं ये परंपरा व्यर्थ तो नहीं
बाकी यहाँ पढ़ें
http://my2010ideas.blogspot.com/2010/11/blog-post_25.html
जनेऊ'इसीलिए'पहना'जाता'है'की' कान_के_पीछे_जो_लोहोतिका''नामकी''नाड़ी''है''उसमे_एक_प्रकार'का'मग्नेटीक'फिल्ड'जो_दाये-कन्धे_से_बायीं_कमर_तक_का_क्षेत्र'_त्रेक्ष्नियता'युक्त''रखता'है''अगर''कोई''' सावित्री'{गायत्रि}का''पुर्श्चर्ण''करे_तो_नर'का'नारायण''बन'जाए'''वैसे''ही''लडकियों''के''लेफ्ट'नोस्टिल''की''वहिनी''नाड़ी''{ देखे'सम्सुत्र''९९८१|७२...'अर्ग्न्वोज्ज्वित.........} जहा'''से'''लेफ्ट'ओवरी''तक'''विगिन'''क्षेत्र'रहता''है''जिससे'''अब्रुक्ष्र्ण=infection...'आक्रमित''नहीं''होता''आज''देखे''९८% डोक्टर'सीजर ''करने''ही''कहते''है'''
जवाब देंहटाएंलडकियों''के''लेफ्ट''नोस्टिल''का''प्र..श्वा..स...''=C_0_2_..'''यह'''एक'''त्रेक्ष्नीय'' उप्ज्न्ताये''बनाता''है'''
जवाब देंहटाएंइसी'''लेफ्ट''नाड़ी''का''उपयोग'''हम__''हठयोगी_लोग_{ इडा....नाड़ी....}...'पञ्च'महा'भुत''{ भूतो'''को'''}..._space __ > space __...'महाकूल_कूल_कुण्डलिनि....
जवाब देंहटाएंलडकियों''के''लेफ्ट''नोस्टिल''का''प्र..श्वा..स...''=C_0_2_..'''यह'''एक'''त्रेक्ष्नीय'' उप्ज्न्ताये''बनाता''है'''
जवाब देंहटाएंजनेऊ'इसीलिए'पहना'जाता'है'की' कान_के_पीछे_जो_लोहोतिका''नामकी''नाड़ी''है''उसमे_एक_प्रकार'का'मग्नेटीक'फिल्ड'जो_दाये-कन्धे_से_बायीं_कमर_तक_का_क्षेत्र'_त्रेक्ष्नियता'युक्त''रखता'है''अगर''कोई''' सावित्री'{गायत्रि}का''पुर्श्चर्ण''करे_तो_नर'का'नारायण''बन'जाए'''वैसे''ही''लडकियों''के''लेफ्ट'नोस्टिल''की''वहिनी''नाड़ी''{ देखे'सम्सुत्र''९९८१|७२...'अर्ग्न्वोज्ज्वित.........} जहा'''से'''लेफ्ट'ओवरी''तक'''विगिन'''क्षेत्र'रहता''है''जिससे'''अब्रुक्ष्र्ण=infection...'आक्रमित''नहीं''होता''आज''देखे''९८% डोक्टर'सीजर ''करने''ही''कहते''है'''
जवाब देंहटाएंआपने अपनी बेटी के लिए बहुत ही अच्छा सोचा
जवाब देंहटाएंHai sahi kha pahle ke revaj vapis aane lage hai
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