काफी समय पहले की बात है एक ब्लॉग था बेदखल की डायरी जिस पर मनीषा जी की एक पोस्ट के जवाब में मैंने कुछ लिखा था। उस वक्त कुछ महिला ब्लोग्गेर्स ने मेरी बातों पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। कल रचना जी द्वारा नारी ब्लॉग पर उठाये एक काल्पनिक प्रश्न ने मुझे अपनी इस पुरानी पोस्ट की याद दिल दी। पुरानी पोस्ट पर आई टिप्पणियों में आप देख सकते हैं की पुरुषों के प्रति व्यक्त मेरे विचारों को अधिकांश महिलाओं ने कैसे एकदम नकार दिया है और सीधे सीधे मेरी मानसिकता को दोषी ठहराया है. मुझे समझ नहीं आता की आप एक तरफ तो पुरुष का विरोध करते हैं दूसरी तरफ उसकी कमियों को स्वीकारते नहीं। समझ नहीं आता लोग क्या चाहते हैं। खैर फ़िलहाल २०१० में व्यक्त मेरे विचारों पर गौर फरमाइए :
मनीषा जी सबसे पहले मैं यह कहूँगा की आप एकदम बिंदास लिखती है अपने विचारों में कोई काट छाट नहीं करती इसलिए आपका लेखन मुझे बहुत अच्छा लगता है।
आपने अपने मन की बात कही, आपकी भावनाएं प्राय सभी भारतीय स्त्रियों की होती है जो आज के समाज में पुरुष के साथ हर field में कंधे से कन्धा मिलकर चल रही हैं।
एक मानव के रूप में हम सभी अपने प्यार की अभिव्यक्ति ठीक उसी रूप में करते है जैसे की अपने किया पर सिर्फ स्त्रियों को संदेह की नजर से देखा जाता है और उनकी छोटी से छोटी बात को भी सालों याद रखा जाता है । यह बात विचारनीय है की ऐसा क्यों होता है । आपका दर्द एकदम जायज है क्योंकि अपने सारी घटना को एक स्त्री के नजरिये से देखा। पुरुष का नजरिया क्या होता है यह मैं आपको दिखता हूँ।
जब आप उन लेखक महोदय, जो की ७० वर्ष की उम्र के थे, से मिलीं तो अपने आदर, सम्मान व प्यार से उन्हें गले लगा लिया पर इस बात की याद उन्हें अपनी वृधावस्था में भी वर्षों तक रही यह बात पुरुष की मानसिकता को दिखाती है।
एक पुरुष के लिए रिश्तों के बंधन से मुक्त नारी हमेशा भोग्या होती है। मेरी इस बात का बहुत से लोग पुरजोर विरोध कर सकते है पर मैं अपनी बात से कभी पीछे नहीं हटूंगा। कभी कभी तो रिश्तों की दिवार भी गिरा दी जाती है चाहे वो कितनी भी मजबूत क्यों ना हो।
इस वजह से ही हमारे समाज में स्त्री का किसी भी पर पुरुष के साथ शारीरिक या मानसिक जुडाव कभी भी ठीक नहीं समझा गया।
सभी स्त्रियाँ इसे खुद पर लांछन के रूप में लेती हैं। उन्हें लगता है की उनकी पवित्रता पर शक किया जा रहा है। पर सच्चाई यह है, की यह पुरुष की मानसिकता पर लांछन है। जब दो व्यक्ति व्यव्हार करते हैं तो दोनों की भावनाओं को देखा जाता है। एक तो निर्दोष भावना से व्यव्हार कर रहा है पर दुसरे के मन में खोट हो तो नुकसान किसे होगा? आपको यह बात समझनी होगी।
अपने एक पुरुष में एक पिता को देखा होगा, एक भाई को देखा होगा, एक प्रेमी को देखा होगा पर शायद एक पुरुष में सिर्फ पुरुष को कभी नहीं देखा होगा। जब एक पुरुष एक पिता, भाई , पति या प्रेमी नहीं होता है और विशुद्ध रूप में पुरुष होता है तो उसे कोई लिहाज नहीं होता , ना भावनाओं का ना उम्र का , ना समाज का, ना सामाजिक रिश्तों का । पुरुष की इस मानसिकता से वशीभूत होकर ही तो एक ८१ वर्ष का आदमी १८ साल की युवती से विवाह कर लेता है।
तो मनीषा जी आप जिन सीमाओं को दुष्ट समझकर तोड़ देना चाहती हैं और जो सीमाएं आपकी समझ से आपको कमतर इन्सान बनती है वो आपके भले के लिए ही हैं। समाज या कानून द्वारा तय सीमा के अंतर्गत किया गया व्यव्हार किसी भी इन्सान को कमतर नहीं बनता। शायद यही वो मानसिकता है जिसके तहत आज का युवा रोड पर स्पीड की सीमा को या रेड लाइट पर रुकने को एक बंधन मानता है। उसे भी समाज के बनाये नियम कानून को मानाने से अह्सासे कमतरी होता है। ( अह्सासे कमतरी की वर्तनी मुझे ठीक नहीं लग रही, पर काफी पहले यह शब्द सुना था आज चेपने का मौका मिला है )
अच्छा अब कुछ लोग यह कह सकते हैं की पश्चिम के समाज में तो ऐसा नहीं है। तो इसका जवाब मैं जब मन करेगा तो जरुर दूंगा अभी ३१ मार्च है वक्त की कमी है।
पहले मेरे ब्लॉग पर स्पैम की समस्या नहीं थी पर अब है। मालूम नहीं क्यों? क्या स्पैम को ख़त्म किया जा सकता है? कृपया मेरी सहायता करें।
हमारे हिसाब से तो भड़ास नई हो तो बेहतर और ना हो तो और भी बेहतर ... कुछ भी किया जाए , सम्पूर्णता से किया जाए ताकि पीछे मुड कर बार बार तकाज़े लगाने की आवश्यकता न रहें . अगर सलाह चाहें तो यह की आपको अपनी पत्नी से खुल कर बात करने की आवश्यकता है…
जवाब देंहटाएंबाकी मर्द तो मर्द ही रहेगा और औरत, औरत… इस बारें में ज्यादा कुछ नहीं किया जा सकता , बाहर से तो बिलकुल भी नहि। :)
लिखते रहिये ...
मजाल साहब थोडा लिखते पर सीधा लिखते तो कितना बढ़िया होता? अब आपकी टिपण्णी का क्या अर्थ निकालू ?आपको खुल कर लिखने में शर्म नहीं आनी चाहिए आपका चेहरा मेरी तरह ही छिपा हुआ है।
हटाएंएक तो निर्दोष भावना से व्यव्हार कर रहा है पर दुसरे के मन में खोट हो तो नुकसान किसे होगा?
जवाब देंहटाएंइस एक प्रश्न में यथार्थ बसा हुआ है।
सुज्ञ जी नुकसान की बात की जाय तो यही कहूँगा की खरबूजा छुरी पर गिरे या छुरी खरबूजे पर नुकसान किसका होगा। (अब लोग कहेंगे की ये तरबूजा नारी देह को खरबूजा बता रहा है )
हटाएंउस पाच वर्षीया बिटिया के साथ जो कुछ हुआ उसमे नुकसान किसका है। कोसते रहो कानून व्यवस्था को, समाज में बढ़ रही यौन कुंठाओं को, समाज की बढ़ रही चरित्रहीनता को , पुरुष की मानसिकता को ...बस
हटाएं१.स्त्री पुरुष दोनों के अपने क्षेत्र, अपनी सलाहियतें और अपनी खुसूसियातें हैं. असमानता और भेदभाव का पक्षधर मैं भी नहीं. लेकिन स्त्री और पुरुष दोनों की अपनी सीमायें और अपनी मर्यादायें होती हैं और होना चाहिये.
जवाब देंहटाएं२.अपराधों में बढ़ोतरी इसलिये है क्योंकि भ्रष्टाचार के चलते या तो अपराधी छूट जाता है या फिर लम्बे समय तक बचता रहता है इसमें जेन्डर विशेष का कोई लेना देना नहीं.
३.सामाजिक मानसिकता को बदलने में बहुत समय लगता है और इसीलिये प्रभावी कानूनों की जरूरत होती है.
४.बाकी जिस ब्लाग के बारे में आपने लिखा है वह मैंने पढ़ा नहीं.
उस ब्लॉग का लिंक मैंने सिर्फ इसलिए दिया ताकि यह पोस्ट मैंने क्यों लिखी थी यह पता चले बाकि मैं जो कुछ कहना चाहता था वो सिर्फ इतना है की पुरुष का यौन चरित्र समझे और इसके साथ उस तरह से व्यव्हार करे जैसे अग्नि के साथ किया जाता है। सही ढंग से इस्तेमाल की गयी अग्नि हमारे घर का चूल्हा जलती है पर सावधानी नहीं बरतने पर ये किसी को भी जला कर रख कर देती है।
हटाएंआप जिन सीमाओं को दुष्ट समझकर तोड़ देना चाहती हैं और जो सीमाएं आपकी समझ से आपको कमतर इन्सान बनती है वो आपके भले के लिए ही हैं। समाज या कानून द्वारा तय सीमा के अंतर्गत किया गया व्यव्हार किसी भी इन्सान को कमतर नहीं बनता।
जवाब देंहटाएंpinjraae mae usae kaed kiyaa gayaa haen jiskae virudh apraadh hotaa aayaa haen
wo aazad rehtaa haen jo apraadh kartaa haen
purush kae biological disorder kae liyae band kardiyaa unko jinki koi galti nahin thee
samaj ne niyam banaye ek tarfaa
kafi pehlae padhaa thaa ek desh me vagina lock kaa istmaal kiyaa jaata haen patni ko surakshit rakhnae kae liyae
ab us lock ko bhaarat me kisi bhi bachchi kae paedaa hote hi lagaa dena chahiyae
रचना जी समाज ने जो नियम कानून बनाये वो इस बात को ध्यान में रख कर बनाये गए की स्त्री और पुरुष की शारीरिक क्षमता सामान नहीं है। पुरुष स्त्री को आसानी काबू कर सकता है।
हटाएंचाहे हम समाज में बलात्कार को एक थप्पड़ के सामान ही दर्ज दे दें पर क्या फिर भी स्त्री इस यौन शोषण के दर्द से उस तरह से उबार पायेगी जैसे कोई थप्पड़ के दर्द से उबर जाता है। जरा सोचिये कोई आपको थप्पड़ जड़े तो आप भी पलट कर उसके गाल पर एक तमाच जड़ना चाहेंगे पर अगर सामने वाले के पास गाल ही ना हो या आपके पास हाथ ही न हो तो आप क्या करेंगे। क्या आप रक्षात्मक रवैया नहीं अपनाएँगे। आप चाहे जितना भी कानून का डर पैदा कर लें यौन अपराधों को काबू नहीं कर पाएंगे। इसी सोच के साथ समाज ने कुछ रक्षात्मक कवच स्त्री को दिए जो कहीं कहीं पिंजरे बन गए या समझे गए।
बलात्कार या दुसरे यौन अपराधों के विरुद्ध कड़े कानून इनको काफी हद तक कम तो कर सकते हैं पर पूरी तरह से रोक नहीं सकते और फिर स्त्री पुरुष का रिश्ता भी कुछ ऐसा है की इनका आसानी से दुरूपयोग हो सकता है इसलिए समाज ने रक्षात्मक रुख अपनाया।
एक और बात जो पहले भी कही है की आप अपने फल सब्जी को मखियों से बचने के लिए उसे ढकते हो न और मच्छरों से बचने के लिए मच्छर दानी लगते हो ना क्यों? क्योंकि आपको पता है की लाख उपाय कर लें ये ख़त्म नहीं होंगे इसलिए बेहतर है खुद को सुरक्षित करो।(अब कोई ये ना कहे की स्त्री शारीर को फल सब्जी समझा जा रहा है )
mera kament lagtaa haen spam me gyaa haen agr moderated kar diyaa haen aur nahin prakshit karna ho to is kament ko ignore kar dae
जवाब देंहटाएंरचना जी अब आपकी इस टिपण्णी का क्या जवाब दूँ !!!!
हटाएंdeep
हटाएंmujhae jab maenae upar kaa kament diyaa to dikhaa thaa par dubaraa aaii to gayab so lagaaa aap ko pehla kament blog par daalnae laayak nahin lagaa ho is liyae maenae yae dusra kament diyaa
गोरखनाथ मछंदरनाथ की एक कथा थी जिसमें गुरु मछंदरनाथ एक स्त्री राज्य में पहुँच जाते है which was (wo)manned by women only. एक बार तो ऐसा राज्य वास्तव में अस्तित्व में आ जाये तो अच्छा है। शोषण, मेंटल कंडीशनिंग, बलात्कार, धोखा जैसी सब कुरीतियाँ ऐसे गायब हो जायेंगे जैसे गधे के सिर से सींग। फ़िर तो औरतों को पुरुषों से कोई शिकायत नहीं रहेगी। पता नहीं इस विषय में अब तक पहल क्यों नहीं हो रही। क्या ख्याल है?
जवाब देंहटाएंसर मेरे घर में तो पिछले बारह वर्षों से स्त्री राज्य ही है और मैं शोषित होने के इंतजार में हूँ :-))
हटाएंगई भैंस पानी में...
जवाब देंहटाएं
हटाएंचलो अब तरो ताजा होकर लौट आई है।
:)
हटाएंआपका बेहद धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंमुझे लगा था 'बकवास अब ज़ारी नहीं है', लेकिन शायद अभी भी 'बकवास ज़ारी है '
जवाब देंहटाएंमुझे लगा था 'बकवास अब ज़ारी नहीं है' लेकिन शायद अभी भी 'बकवास ज़ारी है '
जवाब देंहटाएंस्पैम सिर्फ़ समस्या ही नहीं है कई बार यह 'blessing in disguise' का भी काम करता है। मेरे ब्लॉग पर किसी anonymous का कमेंट लगभग हर पोस्ट पर आता है, वही अंग्रेजी में वाह-वाह टाईप और साथ में किसी न किसी पोर्ब साईट का लिंक, स्पैम की कृपा से छपता कभी नहीं वरना सोचिये कि ब्लॉग हमने अपनी बकवास झिलवाने के लिये बनाया है या इनकी बकवास झेलने के लिये? इसलिये ’स्पैम अच्छा है’
जवाब देंहटाएंरेगुलर इंटरवल पर डेशबोर्ड में जाकर कमेंट्स मीनू में स्पैम चैक करते रहें, काम का लगे तो सेलेक्ट करके ’नॉट स्पैम’ करें वरना भैंस को पानी में ही रहने दें, कोई जरूरत नहीं तरो ताजा होने देने की :)
ई 'एनिमाउस' जी का कोमेंट हमारे पास पास भी रोज़ थोक के भाव में आता है, लेकिन स्पैम देव की बहुरि कृपा है हमपर, एही ख़ातिर बचे हुए हैं। बाकी संजय बाबू आपको मंतर बता ही दिए, अपनी 'बकवास' पर दूजे की बकवास हावी नहीं देवे का मन है मत दीजिये, आऊर का :)
हटाएंजय श्री राम!!
हटाएंअपनी सुरक्षा के प्रबंध तो महिला को करने ही होंगे। समाज जब दूषित हो रहा हो और मनुष्य के रूप में हैवान पैदा हो रहे हों तब महिलाओं को सावधान तो होना ही होगा। जब हम जंगल में जाते हैं तो अपनी रक्षा के लिए आवश्यक प्रबंध करते ही हैं तो अपने चारों तरफ भी इस बात का ध्यान तो रखना ही पड़ेगा।
जवाब देंहटाएं