अभी कुछ दिनों पहले रचना जी के नारी ब्लॉग पर उनका लेख " एक कहानी ख़त्म हो जाती है" पढ़ा जिसमे उन्होंने लड़कियों के यौन शोषण पर अपनी पीड़ा व्यक्त की थी और फिर रविवार के टाइम्स ऑफ़ इंडिया में इस विषय पर " No Kidding" शीर्षक से एक लेख भी आ गया जिसमे इस विषय पर हुए एक सर्वेक्षण के हवाले से बताया गया की भारत में ५३ प्रतिशत से ज्यादा बच्चों का किसी न किसी रूप में यौन शोषण होता है जिसमे ५० प्रतिशत मामलों में यौन अपराधी पीड़ित के करीबी जान पहचान वाले या परिवार के निकट सम्बन्धी ही होते हैं. इस सर्वेक्षण के अनुसार लड़कों को भी लड़कियों के ही सामान ही यौन शोषण का खतरा होता है यानि की यौन शोषण सिर्फ लड़कियों का ही होता है ऐसी भ्रान्ति कोई भी अपने मन में ना पाले. एक और महत्वपूर्ण बात जो इस लेख से मुझे पता चली वो ये हैं की इस विषय में हमारी सरकार शीघ्र ही कोई सख्त कानून बनाने जा रही है जो "बाल यौन शोषण" को परिभाषित करेगा और साथ ही साथ penetrative suxual assault, sexual harassment, pornography जैसे अपराधों से बच्चों के बचाव और संरक्षण पर ध्यान देगा. ये खबर मुझे बहुत अच्छी लगी और मैं सोचता हूँ की इस विषय में वास्तव में कुछ ठोस और प्रभावी कानून बनेगा.
कुछ व्यक्तिगत कारण रहे हैं जिनकी वजह से बाल यौन शोषण के विषय पर बचपन से ही मेरी सभी इंद्रियां जागरूक रही और मैंने इस विषय में अच्छा खासा सामाजिक अध्ययन किया. मेरा इस सर्वेक्षण के आकड़ों पर पूरा विश्वास है बल्कि मैं तो इन सभी आकड़ों को करीब दस पंद्रह प्रतिशत तक और बढ़ाना चाहूँगा.
बाल यौन शोषण को रोकने में सरकार का बनाया कानून कितना प्रभावी होगा इस बारे में मुझे थोडा संशय है क्योंकि ज्यादातर मामलों में अपराधी कोई निकटवर्ती ही होता है. जब अपराधी आस पड़ोस का या फिर कोई अपने ही घर का व्यक्ति हो तो अक्सर लोग मामला यूँ ही रफा दफा कर चुप्पी साध लेते है और अपराधी को सजा नहीं मिल पाती.
बच्चों को यौन शोषण का खतरा सबसे ज्यादा पंद्रह से पचीस वर्ष की आयु के व्यक्तियों द्वारा होता है अतः इस वर्ग के लडके लड़कियों के भरोसे पर अपने छोटे बच्चों को बार बार या ज्यादा समय के लिए कभी न छोड़ें. मैंने पाया की बाल यौन शोषण अक्सर पंद्रह से बीस की उम्र के वो युवा करते हैं जो अपनी यौन उर्जा को सार्थक दिशा में मोड़ नहीं पाते. ऐसे युवा अपराधी नहीं होते बल्कि अपनी खुद की अति यौन सक्रियता के शिकार होते हैं. ये लोग penetrative sex नहीं कर पाते बल्कि बच्चे के साथ शारीरिक निकटता और घर्षण आदि छोटी मोटी क्रियाओं से ही स्खलित हो कर अपना मनोरथ सिद्ध कर लेते हैं.
मैंने लड़कियों को भी शक के घेरे में लेने की बात की है जो शायद कुछ लोगों को अजीब लगे पर युवा लड़कियों के साथ भी छोटे बच्चों को अकेले नहीं छोड़ा जाना चाहिए. मेरे एक मित्र को बचपन में उनके पड़ोस की एक लड़की खेल खेल में स्तनपान कराने की कोशिश करती थी पर चूँकि उसके स्तनों से दूध नहीं आता था इसलिए उस उम्र में मेरे मित्र को ये व्यर्थ की कसरत नापसंद थी था अतः उन्होंने अपनी माताजी से पड़ोस की दीदी की शिकायत कर दी. बाद में क्या हुआ ये तो उन्हें भी याद नहीं पर फिर उन्हें पड़ोस की दीदी ने कभी परेशान नहीं किया.
वैसे भी अगर अपराधी को सजा मिल भी जाय तो क्या होगा , शोषित बच्चों का जो नुकसान हो चूका होता है उसकी भरपाई कोई भी नहीं कर सकता इसलिए मेरा मानना है की कम से कम पाच वर्ष की उम्र तक बच्चों की देखभाल बहुत सावधानी और सतर्कता से की जाय ताकि कोई आपके बच्चे का किसी भी तरह से शोषण न कर पाए. बच्चों के यौन शोषण को ख़त्म करने का सबसे प्रभावी और कारगर उपाय है, माता पिता की अति सतर्कता और जागरूकता. अगर माता पिता इस विषय में खुद बेहद जागरूक रहने के साथ साथ अपने बच्चों को भी इस बारे में शिक्षित करें तो वो स्थिति ही नहीं आयेगी की किसी को सजा दी जाय.
बच्चों को यौन शोषण का खतरा सबसे ज्यादा पंद्रह से पचीस वर्ष की आयु के व्यक्तियों द्वारा होता है अतः इस वर्ग के लडके लड़कियों के भरोसे पर अपने छोटे बच्चों को बार बार या ज्यादा समय के लिए कभी न छोड़ें. मैंने पाया की बाल यौन शोषण अक्सर पंद्रह से बीस की उम्र के वो युवा करते हैं जो अपनी यौन उर्जा को सार्थक दिशा में मोड़ नहीं पाते. ऐसे युवा अपराधी नहीं होते बल्कि अपनी खुद की अति यौन सक्रियता के शिकार होते हैं. ये लोग penetrative sex नहीं कर पाते बल्कि बच्चे के साथ शारीरिक निकटता और घर्षण आदि छोटी मोटी क्रियाओं से ही स्खलित हो कर अपना मनोरथ सिद्ध कर लेते हैं.
मैंने लड़कियों को भी शक के घेरे में लेने की बात की है जो शायद कुछ लोगों को अजीब लगे पर युवा लड़कियों के साथ भी छोटे बच्चों को अकेले नहीं छोड़ा जाना चाहिए. मेरे एक मित्र को बचपन में उनके पड़ोस की एक लड़की खेल खेल में स्तनपान कराने की कोशिश करती थी पर चूँकि उसके स्तनों से दूध नहीं आता था इसलिए उस उम्र में मेरे मित्र को ये व्यर्थ की कसरत नापसंद थी था अतः उन्होंने अपनी माताजी से पड़ोस की दीदी की शिकायत कर दी. बाद में क्या हुआ ये तो उन्हें भी याद नहीं पर फिर उन्हें पड़ोस की दीदी ने कभी परेशान नहीं किया.
तो साहब अपनी बात को फिर से दोहराना चाहूँगा. जब भी किसी बच्चे के साथ यौन शोषण का मामला प्रकाश में आए तो देश की कानून व्यवस्था को जम कर लताड़ लगाइए. समाज के गिरते नैतिक स्तर पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त कीजिये. अपराधी को फांसी पर लटकाने की जोरदार मांग कीजिये परन्तु जब बात अपने बच्चों की सुरक्षा की हो तो पुर्णतः रक्षात्मक या निषेधात्मक रवैया अपना लीजिये और उनकी रक्षा के उपाय बहुत ज्यादा गंभीरता से खुद ही कीजिये क्योंकि ये काम आपसे बेहतर कोई नहीं कर सकता.