मेरी ये पोस्ट मध्य वर्ग के उन अधेड़ दम्पतियों को समर्पित है जो अपनी अधेड़ अवस्था को मन से स्वीकार चुके हैं.
अभी कुछ दिन पहले राजकुमार जी घर से खाना लेकर नहीं आये तो मैंने फिर से मजाक में कहा की राजकुमार जी का रात का प्रदर्शन इतना ख़राब रहा की घर से मिठाई क्या खाना भी नहीं आया. मेरी इस बात का शायद उन्हें बुरा लगा और उन्होंने थोडा चिढ़कर बताया की उन्होंने पिछले डेढ़ दो वर्षों से पत्नी के साथ सेक्स नहीं किया है. पता चला की उनकी पत्नी ने किन्हीं महाराज जी से गुरु मंत्र लिया हुआ है और वो ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर रही हैं. मुझे कहीं न कहीं खुद में भविष्य का राजकुमार छिपा दिखा इसलिए मेरे मन में राजकुमार जी के लिए सहानभूति पैदा हो गयी और मैंने इस विषय पर "अपने स्तर का" गहन चिंतन मनन आरंभ किया .
मुझे लगता है की ये हमारे मध्य वर्ग की आम समस्या है. ज्यों ही बच्चे थोडा बड़े हुए नहीं, पति और पत्नी एक दुसरे से दुरी बनाना शुरू कर देते हैं. पति पत्नी की शारीरिक निकटता कम होती जाती है. ऐसे में अगर दोनों की मानसिकता एक सी हो तब तो कोई बात नहीं पर अगर पति या पत्नी दोनों में से कोई एक सेक्स में रूचि रखता है और दूसरा न रखे तो गड़बड़ होनी शुरू हो जाती है. ज्यादातर मामलों में पति ही बढती उम्र में भी सेक्स क्रिया जारी रखने में रूचि रखते हैं और पत्नियाँ असहयोग आन्दोलन शुरू कर देती हैं.
मध्य वर्ग के दम्पतियों में इस "आचरण" के लिए बहुत से कारण गिनवाये जा सकते हैं पर मुझे इस सब के पीछे जो सबसे बड़ा या मुख्य कारण नज़र आता है वो है सेक्स के प्रति हम लोगों का नजरिया. हमारे यहाँ सेक्स को पाप समझा जाता है और ब्रह्मचर्य को पुण्य. हमें समझाया जाता है की गृहस्थों को भी ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. कहा जाता है की सेक्स सिर्फ संतान उत्पत्ति के लिए ही किया जाना चाहिए अन्यथा नहीं. गृहस्थों से भी ब्रहमचर्य के पालन की अपेक्षा की जाती है.
मुझे ये सब बातें बकवास लगती हैं खासकर की किसी शादी शुदा व्यक्ति द्वारा ब्रह्मचर्य का पालन तो एक अप्राकृतिक सी बात लगती है. कोई व्यक्ति तभी ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है जब वो किसी भी स्त्री को न देखे, न स्पर्श करे, न ही उसके साथ एकांत में कोई बातचीत करें, और न ही कभी मन में उसका स्मरण करे और न ही कभी उसे प्राप्त करने का मन में कोई संकल्प करे. क्या एक पति और पत्नी के बीच ऐसा हो सकता है और अगर हो तो क्या वो पति पत्नी कहलायेंगे.
मुझे ये सब बातें बकवास लगती हैं खासकर की किसी शादी शुदा व्यक्ति द्वारा ब्रह्मचर्य का पालन तो एक अप्राकृतिक सी बात लगती है. कोई व्यक्ति तभी ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है जब वो किसी भी स्त्री को न देखे, न स्पर्श करे, न ही उसके साथ एकांत में कोई बातचीत करें, और न ही कभी मन में उसका स्मरण करे और न ही कभी उसे प्राप्त करने का मन में कोई संकल्प करे. क्या एक पति और पत्नी के बीच ऐसा हो सकता है और अगर हो तो क्या वो पति पत्नी कहलायेंगे.
मेरा तो शुरू से ये मानता रहा हूँ की समाज में रहते हुए कोई व्यक्ति ब्रहमचर्य का पालन नहीं कर सकता. जरा सोचिये आप कोई घ्रणित वास्तु देखते हैं तो आपके मुह में स्वतः ही थूक भर आता है या आपको कोई बढ़िया खाने की वास्तु मिलती है और आपके मुह में पानी भर आता है. ये सब स्वतः ही होता है. आप चाहें या न चाहें आपका मस्तिष्क आपकी ग्रंथियों को सक्रिय कर देता हैं. ऐसा ही कुछ विपरीत लिंगी के संपर्क में आने पर होता है. मनोअनुकुल साथी मिलने पर हमारा मस्तिष्क हमारी यौन ग्रंथियों को सक्रिय कर देता है. ये स्वाभाविक क्रिया है और इस पर प्रतिबन्ध लगाना अस्वाभाविक है.
हम लोगों की मान्यता है की स्वस्थ संतान के लिए वीर्य का संचय होना चाहिए पर कुछ लोगों द्वारा की गयी रिसर्च कुछ और ही प्रतिपादित करती है. मध्य वय के स्त्री पुरुष के लिए प्रेम की शारीरिक अभिव्यक्ति कितनी जरुरी है इस बात को कितने सुन्दर तरीके से यहाँ समझाया गया है.
कुछ लोगों का मानना है की उन्मुक्त प्रेम स्त्री व पुरुष दोनों को तनाव मुक्त और खुशहाल जीवन देता है.
हम लोगों की मान्यता है की स्वस्थ संतान के लिए वीर्य का संचय होना चाहिए पर कुछ लोगों द्वारा की गयी रिसर्च कुछ और ही प्रतिपादित करती है. मध्य वय के स्त्री पुरुष के लिए प्रेम की शारीरिक अभिव्यक्ति कितनी जरुरी है इस बात को कितने सुन्दर तरीके से यहाँ समझाया गया है.
कुछ लोगों का मानना है की उन्मुक्त प्रेम स्त्री व पुरुष दोनों को तनाव मुक्त और खुशहाल जीवन देता है.
तो क्यों न अधेड़ होते जा रहे भारतीय दम्पति हफ्ते में कम से कम दो बार अपने घर के सारी बत्तियां बुझा कर earth hour मनाएं और उस अँधेरे में खुल कर प्रेम की शारीरिक अभिव्यक्ति करें. जैसे अपनी युवा अवस्था में अपने माँ बाप की आँखों में धुल झोंककर प्यार के दो पल चुराते थे वैसे ही अब अपने युवा हो रहे बच्चों से बच कर प्यार करें.
भैय्या मैं तो अपने संपर्क में आ रहे सभी बुढ़ाते लोगों को यही सन्देश देता हूँ.
(मैं जनता हूँ की मेरे विचारों का समर्थन कर पाना बेहद मुश्किल है पर अगर आपको मेरी बातों में कहीं भी गलती लगे तो खुल कर विरोध तो कर ही सकते हैं. क्या पता आप मेरा सत्य से साक्षात्कार करवा सकें .)