मैंने छटी से लेकर दसवीं कक्षा तक ही सामाजिक ज्ञान विषय का अध्ययन किया और मैं हमेशा इस विषय में कम अंक ही प्राप्त करता रहा क्योंकि हमारे इस विषय के अध्यापक हमारे उत्तर को पढ़कर नहीं बल्कि गिट से नापकर हमें अंक दिया करते थे. जिस बच्चे का उत्तर जितना लम्बा होता था उसको उतने ज्यादा नंबर मिला करते थे अतः हमारी कक्षा के समझदार बच्चे अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए सामाजिक ज्ञान की परीक्षा में अपने घर का इतिहास और भूगोल लिख आया करते थे.
शायद नवीं या दसवीं कक्षा में हमें समाजवाद और पूंजीवाद के विषय में पढाया गया. किसी भी प्रकार के वाद से ये मेरा पहला परिचय था. धीरे धीरे जब समझ विकसित हुयी तो पता चला की इस दुनिया में तमाम तरह के वाद बिखरे पड़े हैं.
भौतिकवाद, आध्यात्मवाद, जातिवाद, सम्प्रदायवाद, राष्ट्रवाद, अलगाववाद, प्रयोगवाद, शुद्धतावाद, नारीवाद, परिवारवाद, और भी ना जाने कितने ही वाद और वादी हैं हमारी इस दुनिया में. जब मेरी समझ थोड़ी और विकसित हुयी तो मुझे लगा की दुनिया के सारे झगड़ों की जड़ ये तरह तरह के वाद ही हैं. ये वाद ही विवाद कराते हैं.
कैसे? क्यों?
मुझे लगता है की जब कोई वादी अतिवादी हो जाता है तो वो विवादों को जन्म देता है.
अरे क्या कहीं कोई ऐसा निर्विवाद्वाद है जिसका किसी से कोई झगड़ा न हो?
आप जिससे भी पूछोगे तो वो अपनी विचारधारा को सर्वोत्तम बताएगा. वो कहेगा की हमारी बात ही अंतिम सत्य हैं, २४ केरेट का एकदम खरा सोना है और बाकि सब पीतल है. अब इन्हें कौन समझाए कि २४ केरेट का खरा सोना बैंक के लोकरों में बंद रखने के लिए होता हैं. आम उपयोग के लिए तो हमें उसमे कुछ मिलावट करनी ही पड़ती है.
तो आईये हम सभी वादों से उत्पन्न विवादों का अंत करें.
मेरी इस पोस्ट की प्रेरणा वो नहीं जो आप समझ रहे होंगे.
अपनी बात को समझाने के लिए एक शेर अर्ज है ..... ........ ........ .. (लो जी पट्ठा शेरो शायरी पर उतर आया)
मुझे तो प्रेरित किया अपनों ने गैरों में कहाँ दम था,
यारो पोस्ट लिखने को ये वाद- विवाद क्या कम था.
शायद नवीं या दसवीं कक्षा में हमें समाजवाद और पूंजीवाद के विषय में पढाया गया. किसी भी प्रकार के वाद से ये मेरा पहला परिचय था. धीरे धीरे जब समझ विकसित हुयी तो पता चला की इस दुनिया में तमाम तरह के वाद बिखरे पड़े हैं.
भौतिकवाद, आध्यात्मवाद, जातिवाद, सम्प्रदायवाद, राष्ट्रवाद, अलगाववाद, प्रयोगवाद, शुद्धतावाद, नारीवाद, परिवारवाद, और भी ना जाने कितने ही वाद और वादी हैं हमारी इस दुनिया में. जब मेरी समझ थोड़ी और विकसित हुयी तो मुझे लगा की दुनिया के सारे झगड़ों की जड़ ये तरह तरह के वाद ही हैं. ये वाद ही विवाद कराते हैं.
कैसे? क्यों?
मुझे लगता है की जब कोई वादी अतिवादी हो जाता है तो वो विवादों को जन्म देता है.
अब देखिये एक समाजवादी इस संसार से पूंजीवाद का खात्मा चाहता है तो राष्ट्रवादी अलगावादियों का. भौतिकतावादी संसारिकता में उलझे हैं तो अध्यात्मवादी इस दुनिया को त्यागे खड़े हैं. मानवतावादी राष्ट्रवादियों को पसंद नहीं करते और प्रयोगवादी शुद्धतावादियों के खिलाफ रहते हैं. कहीं माओवादी कमाओवादियों को मार रहे हैं और कहीं नारीवादी परम्परावादियों के खिलाफ झंडा लिए खड़े हैं.
अरे क्या कहीं कोई ऐसा निर्विवाद्वाद है जिसका किसी से कोई झगड़ा न हो?
आप जिससे भी पूछोगे तो वो अपनी विचारधारा को सर्वोत्तम बताएगा. वो कहेगा की हमारी बात ही अंतिम सत्य हैं, २४ केरेट का एकदम खरा सोना है और बाकि सब पीतल है. अब इन्हें कौन समझाए कि २४ केरेट का खरा सोना बैंक के लोकरों में बंद रखने के लिए होता हैं. आम उपयोग के लिए तो हमें उसमे कुछ मिलावट करनी ही पड़ती है.
समाजवाद में थोड़ी सी पूंजीवाद की मिलावट करिए तो वो रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीज बन जायेगा. माओवादियों के हाथो से हथियार लेकर गाँधीवादी लाठी थमा दी जाय तो शायद वो कानून की हद में रहकर भी दबे कुचले पीड़ितों को न्याय दिलवा पाएंगे. इस दुनिया के ईश्वरवादी आस्तिकों को ये समझना होगा की वास्तव में ईश्वर कौन है और कहाँ है और इसी तरह ईश्वर का अस्तित्व न स्वीकारने वाले नास्तिकों को मानव मन की कमजोरियों को समझ उसके सहारे को छीनने का प्रयास छोड़ना होगा.
हाँ एक बात और प्रयोगवादी यदि "कांटा लगा" को नए रूप में प्रस्तुत करेगा तो ठीक पर ऐसा ही प्रयोग "कहीं दीप जले कहीं दिल" पर करेगा तो वो किसी को हज़म नहीं होगा.
तो आईये हम सभी वादों से उत्पन्न विवादों का अंत करें.
मेरी इस पोस्ट की प्रेरणा वो नहीं जो आप समझ रहे होंगे.
अपनी बात को समझाने के लिए एक शेर अर्ज है ..... ........ ........ .. (लो जी पट्ठा शेरो शायरी पर उतर आया)
मुझे तो प्रेरित किया अपनों ने गैरों में कहाँ दम था,
यारो पोस्ट लिखने को ये वाद- विवाद क्या कम था.