वर्ष २०१० अपने अंत के निकट है. लोग पीछे मुड़ कर देख रहे हैं की वर्षभर क्या क्या किया. क्या खोया क्या पाया. मैंने भी ब्लोग्गिं इस वर्ष के शुरू में ही शुरू की थी तो मैं भी पीछे मुड़ कर देख सकता हूँ और खोज सकता हूँ की मैंने ब्लॉग्गिंग में क्या पाया (मेरे लिए यहाँ खोने को तो कुछ था ही नहीं).
मेरी ब्लोग्गिं करने की पृष्ठ भूमि सन २००९ में दिल्ली सरकार ने खुद ही बना दी थी. पिछले वर्ष दिसम्बर माह में मुझे सरकार की तरफ से हमारे छटवें वेतन आयोग का बकाया पैसा मिल गया था . उसी माह मैं दिल्ली सरकार की सेक्शन ऑफिसर समकक्ष परीक्षा में भी मैं सफल हो गया था. तो जनाब मेरे जैसा व्यक्ति जिसकी जेब में थोडा पैसा हो, बहुत सा वक्त हो और प्रतुल जैसा बाल सखा हो तो वो ब्लोग्गिं शुरू कर देता है.
जी हाँ ब्लोग्गिं नाम की चिड़िया से मुझे प्रतुल जी ने परिचित कराया. उन्होंने ही मेरा ब्लॉग बनाया और विचार शून्य का तगमा लगा कर चल दिए. शुरू में मुझे ब्लॉग्गिंग के विषय में कुछ भी पता नहीं था. जो पहला ब्लॉग मैंने अनुसरित किया वो था AshokWorld. मैंने इस ब्लॉग को कभी भी नहीं पढ़ा और इस पर कोई कमेन्ट नहीं लिख पाया क्योंकि ये ब्लॉग जाने किस दक्षिण भारतीय भाषा में लिखा जाता है. मुझे आज भी अपनी उस गधागिरी पर हँसी आती है पर मेरी ये आदत अभी तक बरक़रार है. मेरे द्वारा अनुसरित अधिकांश ब्लॉग या ब्लॉगर जिनके लेखों पर मैं अक्सर टिप्पणियां कर बैठता हूँ "A" से शुरू होकर "S" तक ही फैले हैं.
Amit Sharma, Sanjay Aneja, Satish Pancham.
Anshumala, Shaifali Pandey, Swapn Manjusha Ada.
Anurag Sharma, Salil- Chaitanya, Satish Saxena.
जब प्रतुल जी के कहे अनुसार ब्लॉग्गिंग शुरू की तो पता नहीं था की ये एक गंभीर कार्य है. मुझे तो ब्लॉग्गिंग ने अपने बीते हुए दिनों की याद दिला दी थी. मेरे बाल्यकाल के अंतिम दिनों में और युवावस्था के शुरुवात में मैं अपने यार दोस्तों के साथ लगभग रोज ही रात्रि भोजन के उपरांत खड़ी-बैठकों में भाग लिया करता था. खड़ी इसलिए क्योंकि बैठने को तो मिलता ही नहीं था बस खड़े खड़े ही बातें होती थी. हम लोग हर विषय पर बात करते थे चाहे वो इरान इराक युद्ध हो या कालोनी के शर्मा जी और वर्मा जी की लड़ाई ,गावस्कर, कपिल और श्रीकांत का खेल हो या अपना अंडा-फट्टी टूर्नामेंट , राजीव गाँधी की राजनीती हो या महोल्ला सुधार समिति के झगड़े, सलमान खान और संगीता बिजलानी की लव लाइफ हो या कालोनी के पप्पू और डोली का रोमांस , सब पर विस्तार से चर्चा होती, बहस होती, तू तू मैं मैं और कभी हाथापाई तक भी बात पहुच जाती थी और ये मामला तब तक चलता जब तक कालोनी का कोई बुड्ढा हमें डाट कर भगा नहीं देता था. हमारी ये महफ़िल अक्सर कालोनी के चौक पर होती पर कभी कभी कुछ ऐसे चुनिन्दा घरों के आगे भी अपनी महफ़िल सजाते थे जिनमे हमारी उम्र की सुन्दर कन्यायें निवास करती थी. ऐसी बैठकों में बहस या टीका टिप्पणी कुछ ज्यादा ही उत्साह से होती थी और ये टिप्पणिया उन लड़कियों के धीरे धीरे विकसित होते........बुद्धि चातुर्य पर भी होती थी.
हमारी ये गतिविधियाँ तब तक चलती रहीं जब तक हम लोगों के पास रात्रि भोजन के उपरांत करने के लिए कुछ ज्यादा मजेदार काम नहीं था और जब वो मिला तो हम लोग उस में रम गए. अब सब लोग विवाहित हैं, बाल बच्चेदार हैं. घर आते हैं फिर कहाँ निकलना होता है.
इस तरह जब प्रतुल की कृपा से जब मेरा परिचय ब्लॉग्गिंग से हुआ तो मुझे लगा की पुराने दिन लौट आए हैं. रात्रि भोजन उपरांत नेट पर जाओ. लोगों के विचार पढों. उन पर त्वरित टिप्पणी दो, थोड़ी बहस करो, किसी से चुहल करो और थोडा मनोरंजन कर फिर चल दो रात्रि विश्राम हेतु. सच में मेरे लिए तो ब्लॉग्गिंग यही है. मुझे तो तब डर लगता है जब कहा जाता है की लोग सीरियसली ब्लॉग्गिंग नहीं करते. ब्लॉग्गिंग में गंभीर लोग होने चाहिए. अरे ऐसा होगा तो मेरे जैसे लोग कहाँ जायेंगे जो यहाँ सिर्फ मनोरंजन के लिए ही हैं. अरे भई आप लोग हर चीज को इतना गंभीरता से क्यों लेते हैं? वैसे कुछ लोगों को हर चीज में गंभीरता ढूंढने की आदत होती है. भई सीरियसली हँसों..... अरे जनाब आप सीरियसली फ्लर्ट करो .......आप सीरियसली मजाक किया करो और जब वास्तव में कोई गंभीर कार्य करने की बारी आती है तो ये लोग कहीं किसी कौने में जा छिपते हैं.
दोस्तों मेरे लिए तो ब्लॉग्गिंग मनोरंजनार्थ ही है और हमेशा ही रहेगी. मैं कभी सीरियस ब्लॉग्गिंग नहीं करूँगा.