मेरी एक आदत है कि मैं अक्सर अपनी परिचित महिलाओं को इस तरह से संबोधित करता हूँ मानो वो मेरे पुरुष मित्र ही हों. दोस्त कैसे हो?.... हाल चल ठीक हैं जनाब के....... दोस्त सुनो, एक बात बताओ ... भई सुनो एक बात पूछनी है.......अरे भैय्या काम हो तो रहा है इतनी जल्दी क्या है..... जैसे अनेक जुमले मैं अपने पुरुष साथियों और महिला साथियों के लिए समान रूप से प्रयोग में लाता हूँ. कुछ एक ने मेरी इस आदत पर ध्यान दिया और मुझे बताया पर कभी भी किसी ने कोई शिकायत या विरोध नहीं किया और मेरी इस आदत को सहजता से ही लिया .
कल पहली बार सार्वजनिक रूप से किसी ने मुझे मेरी इस आदत के लिए टोका और टोका क्या धो के रख दिया. मैं कुछ आवश्यक कार्यवश बैंक गया था जहाँ पर एक सुन्दर सी महिला बैंक क्लर्क को मैं एक क्षण रुकने के लिए कहना चाहता था . गलती से मैं कह बैठा "भैय्या एक मिनट रुको.....". मेरे ये शब्द सुनकर उन भद्र महिला ने जो मेरा सार्वजनिक अभिनन्दन किया वो मैं कभी भूल नहीं सकता. उनकी नाराजगी भी जायज थी. मेरे भैय्या के संबोधन ने उनके सजने सवारने को व्यर्थ कर दिया होगा. कभी सोचा ना था कि मेरी एक मासूम सी आदत मुझे ये दिन भी दिखाएगी. मैंने तुरंत उनसे क्षमा मांगी और अपना कार्य पूरा कर घर वापस आ गया. जब कभी किसी बात पर मिटटी पलीद हो जाती है तो आदमी सोचता ही है कि कहाँ क्या गलत हुआ सो मेरा भी कल का सारा दिन इसी बात पर मनन में बीता कि मुझसे ये गलती क्यों होती है.
पता नहीं क्यों भौतिक रूप से स्त्री व पुरुष मेरे लिए एक से ही हैं. कोई स्त्री मुझे मादा सी तब दिखती है जब उसे देख मेरे मन में कोई रासायनिक क्रिया शुरू हो वर्ना जैसा व्यवहार मैं किसी दुसरे पुरुष के साथ करता हूँ वैसा ही व्यवहार मैं महिला के साथ करता हूँ.
कभी बस में जा रहा हूँ और भाग्यवश सीट मिल जाय और वो सीट महिलाओं के लिए अरक्षित ना हो तो किसी महिला को अपनी सीट मैं तभी दूंगा जब वो या तो बूढी होगी या फिर बच्चों के साथ होगी पर ऐसा तो मैं किसी बूढ़े के साथ या किसी ऐसे पुरुष के साथ भी करता हूँ जब उसके साथ उसके बच्चे हों. किसी महिला को बैठने के लिए अपनी सीट सिर्फ इसलिए दे देना कि वो महिला है मुझे ठीक नहीं लगता. आप कह सकते हैं कि मेरे अन्दर अंग्रेजी Gentelman वाले गुण नहीं हैं. ऑफिस में भी जब कोई महिला सहकर्मी काफी समय से लंबित पड़ा अपना कार्य निपटवाने के लिए सहायता कि गुहार लगती हैं तो मैं उनकी सहायता के लिए कभी नहीं जाता. हलाकि बस में भी और ऑफिस में भी इन महिलाओं को सहायता का हाथ बढ़ाने वाले बहुतायत से मिल जाते हैं पर मैं बेशर्म ही बना रहता हूँ.
जहाँ तक रासायनिक क्रिया द्वारा मादा को पहचानने कि बात है तो विवाह उपरांत तो मैं उस पदार्थ में परिवर्तित हो चुका हूँ जो सिर्फ एक से ही रासायनिक क्रिया कर पाता है और बाकी सभी के लिए निष्क्रिय होता है .
अध्यात्मिक दृष्टि से विचार करता हूँ तो जैसे कुछ लोग कहते हैं कि इस जगत में पुरुष सिर्फ कृष्ण ही हैं बाकी तो सभी गोपियाँ हैं उसी तरह से मेरे लिए तो अब इस संसार में स्त्री सिर्फ एक ही है बाकी तो सभी पुरुष हैं क्या नर क्या मादा .
काश ये बात बैंक कि वो महिला कर्मी समझ पातीं तो वो इस तरह से मेरी सार्वजनिक धुलाई ना करती....