मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

बच्चों का यौन शोषण - मेरा नजरिया.

अभी कुछ दिनों पहले  रचना जी के नारी ब्लॉग पर उनका लेख " एक कहानी ख़त्म हो जाती है" पढ़ा जिसमे उन्होंने लड़कियों के यौन शोषण पर अपनी पीड़ा व्यक्त की थी और फिर रविवार के टाइम्स  ऑफ़  इंडिया में इस विषय पर " No Kidding"  शीर्षक से एक  लेख  भी  आ गया  जिसमे इस विषय पर हुए एक सर्वेक्षण के हवाले से  बताया  गया  की भारत में ५३  प्रतिशत  से  ज्यादा  बच्चों  का  किसी  न  किसी  रूप में यौन शोषण होता है  जिसमे ५०  प्रतिशत  मामलों में यौन  अपराधी  पीड़ित  के  करीबी जान पहचान वाले या परिवार के निकट  सम्बन्धी ही होते हैं. इस सर्वेक्षण के अनुसार  लड़कों को भी लड़कियों के ही सामान ही यौन शोषण का  खतरा होता है यानि की यौन शोषण  सिर्फ  लड़कियों का ही होता है  ऐसी  भ्रान्ति कोई भी अपने मन में ना पाले.  एक और महत्वपूर्ण बात जो इस लेख से मुझे पता चली वो ये हैं की इस विषय में हमारी सरकार शीघ्र ही कोई सख्त कानून बनाने जा रही है जो "बाल यौन शोषण" को परिभाषित करेगा और साथ ही साथ penetrative suxual assault, sexual harassment, pornography जैसे अपराधों  से  बच्चों के बचाव और संरक्षण पर ध्यान देगा. ये खबर मुझे बहुत अच्छी लगी और मैं सोचता हूँ की इस विषय में वास्तव में कुछ ठोस और प्रभावी कानून बनेगा.

कुछ व्यक्तिगत कारण रहे हैं जिनकी वजह से बाल यौन शोषण के विषय पर बचपन  से ही   मेरी  सभी  इंद्रियां जागरूक रही और मैंने इस विषय में अच्छा खासा सामाजिक अध्ययन किया. मेरा  इस सर्वेक्षण के आकड़ों पर पूरा विश्वास है बल्कि मैं तो इन सभी आकड़ों को करीब दस पंद्रह प्रतिशत तक और बढ़ाना  चाहूँगा.  

बाल यौन शोषण को रोकने में सरकार का बनाया कानून कितना प्रभावी होगा इस बारे में मुझे थोडा संशय  है क्योंकि ज्यादातर मामलों में अपराधी कोई निकटवर्ती ही होता है. जब अपराधी आस पड़ोस का या फिर कोई अपने ही घर का व्यक्ति हो तो अक्सर लोग  मामला यूँ ही रफा दफा कर चुप्पी साध लेते है और अपराधी को सजा नहीं मिल पाती.

 वैसे भी अगर अपराधी को सजा मिल भी जाय तो क्या होगा , शोषित बच्चों का जो नुकसान हो चूका होता है उसकी भरपाई कोई भी  नहीं कर सकता इसलिए मेरा मानना है की कम से कम पाच वर्ष की उम्र तक बच्चों की देखभाल बहुत सावधानी और सतर्कता से की जाय ताकि कोई आपके बच्चे का किसी भी तरह से शोषण न कर पाए.  बच्चों के यौन शोषण को ख़त्म करने का सबसे प्रभावी और कारगर उपाय है, माता पिता की अति  सतर्कता और जागरूकता. अगर माता पिता इस विषय में खुद बेहद जागरूक रहने के साथ साथ  अपने बच्चों को भी इस बारे  में शिक्षित  करें तो वो स्थिति ही नहीं आयेगी की किसी को सजा दी जाय.


बच्चों को यौन शोषण का खतरा  सबसे ज्यादा   पंद्रह से पचीस वर्ष की आयु के व्यक्तियों द्वारा होता है अतः इस वर्ग के लडके लड़कियों  के भरोसे पर अपने छोटे बच्चों को बार बार या  ज्यादा समय के लिए  कभी न छोड़ें. मैंने पाया की  बाल यौन शोषण अक्सर पंद्रह से बीस की उम्र के वो युवा करते हैं जो अपनी यौन उर्जा को सार्थक दिशा में मोड़ नहीं पाते. ऐसे युवा अपराधी नहीं होते बल्कि अपनी खुद की अति यौन सक्रियता  के शिकार होते हैं. ये लोग penetrative sex  नहीं कर पाते  बल्कि  बच्चे के साथ शारीरिक निकटता और घर्षण आदि छोटी मोटी क्रियाओं से ही स्खलित हो कर अपना मनोरथ सिद्ध कर लेते हैं.

 मैंने लड़कियों को भी शक के घेरे में लेने की बात की है जो शायद कुछ लोगों को अजीब लगे पर युवा लड़कियों के साथ भी छोटे बच्चों को अकेले नहीं छोड़ा जाना चाहिए. मेरे एक मित्र को बचपन में उनके पड़ोस की एक लड़की खेल खेल में स्तनपान कराने की कोशिश करती थी पर चूँकि उसके स्तनों से दूध नहीं आता था इसलिए उस उम्र में मेरे मित्र  को  ये  व्यर्थ की  कसरत  नापसंद थी  था अतः उन्होंने  अपनी माताजी से पड़ोस की दीदी की शिकायत कर दी.  बाद में क्या  हुआ ये  तो  उन्हें  भी  याद नहीं  पर  फिर उन्हें पड़ोस की दीदी ने कभी परेशान नहीं किया. 
  
तो साहब अपनी बात को फिर से दोहराना चाहूँगा. जब भी किसी बच्चे के साथ यौन शोषण का मामला प्रकाश में आए तो देश की कानून व्यवस्था को जम कर लताड़ लगाइए. समाज के गिरते  नैतिक  स्तर पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त कीजिये. अपराधी को फांसी पर  लटकाने की जोरदार मांग कीजिये  परन्तु  जब बात अपने बच्चों की सुरक्षा की हो  तो   पुर्णतः रक्षात्मक या निषेधात्मक रवैया अपना लीजिये और उनकी रक्षा  के उपाय बहुत ज्यादा गंभीरता से खुद ही कीजिये क्योंकि ये काम आपसे बेहतर कोई नहीं कर सकता.




20 टिप्‍पणियां:

  1. "मेरे एक मित्र को बचपन में उनके पड़ोस की एक लड़की खेल खेल में स्तनपान कराने की कोशिश करती थी पर चूँकि उसके स्तनों से दूध नहीं आता था इसलिए उस उम्र में मेरे मित्र को ये व्यर्थ की कसरत नापसंद थी था अतः उन्होंने अपनी माताजी से पड़ोस की दीदी की शिकायत कर दी."
    यह घटना अन कामन या रेयर नहीं है -बहुतों के ऐसे अनुभव हैं ! बच्चों या किशोर अवस्था के लड़कों से यौन संसर्ग तक बनाने के प्रयास के मामले हैं!

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  2. पाण्डेय जी, आजकल आप पूरे फॉर्म में है ... लगे रहिये ...
    रोज़ इस तरह की घटनाएँ हमारे आस पास होती ही रहती है पर पता नहीं क्यों हम सब जानते हुए भी इस अपराध के प्रति काफी उदासीन है ... पर यह सोच जितनी जल्द बदल जाए उतना अच्छा ... अब सिर्फ़ चुप रहने से काम नहीं चलने वाला !

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  3. बहुत गम्भीर मसला है, सावधानी ही जिसका बचाव है..

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  4. सही है। मां-बाप को अपने बच्चों के पालन-पोषण में सजग रहना चाहिये।

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  5. बंधु, बेबाक बयानी से एकदम सहमत हैं। सिर्फ़ कानून बन जाने से सब ठीक नही हो जाता, खुद जागरूक और सतर्क रहकर ही सुरक्षित रहा जा सकता है।

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  6. सहमति है, बच्चों की सुरक्षा तो बडों की प्राथमिकता होनी ही चाहिये।

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  7. गाहे बगाहे समाज में ये बातें देखने को मिल जाती है - कई बार लड़कपन की आदत या फिर छोडो ये तो इस उम्र का कसूर है - कह कर नज़रंदाज़ कर दी जाती है.....

    पर भविष्य में उस बच्चे के व्यक्तित्व पर भारी पढ़ जाती हैं .

    बहुत ही सवेदनशील मुद्दा उठाया है आपने.

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  8. विकृत योन मानसिकता वालो के लिये बच्चे सर्वाधिक सॉफ्ट टार्गेट होते है।

    बचपन में हम जब भी कौतुहल वश योनांगो से खेलते तो माता पिता कहते 'छी!गंदी आदत!' किन्तु इस प्रतिभाव ने ह्में योन शोषण से बचाए रखा। और समय के साथ समझ भी गये। कि गंदगी कहां है।

    माता-पिता हर समय बच्चों की सुरक्षा में ही तैनात रह नहीं सकते,और खुलकर बता नहीं सकते कि कौन कौन सा योन शोषण है, क्योकि वे बातें फ़िर कौतुहल पैदा करती है। लगता है कुछ पुराने टोटके सही थे। जिन्हें योन शिक्षा के नाम नकारा जा रहा है।

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  9. नारी ब्लॉग पर पहले भी इस प्रकार के प्रयास किये जाते हैं और भविष्य में भी होगे . यौन शोषण और वो भी बाल यौन शोषण समाज को विद्रूप चेहरा हैं जिस की जितने भर्त्सना की जाए कम हैं . आप का आलेख सजग होने का प्रमाण हैं और ब्लॉग जगत में इन प्रमाणों की जरुरत हैं . आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास हैं की आप के ब्लॉग पर इस प्रकार के आलेखों को पढ़ती रहूंगी

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  10. कानून बनने से क्या होगा, जैसा की आप ने कहा की बच्चो का यौन शोषण करने वाले तो उनके करीबी ही ज्यादा होते है जिनका घरवाले ही कुछ नहीं कर पाते है तो फिर वो मामला पुलिस तक जाये इसका सवाल ही नहीं उठता है और न ही उन्हें सजा मिलाने का | पहली जरुरत माँ बाप को सजग होने की है किन्तु जब देशा की साक्षरता दर की हालत ये हो और माँ बाप केवल रोटी के जुगाड़ में दिन रात लगे हो वो बच्चो को क्या बता सकते है समझा सकते है इसलिए स्कुलू की भूमिका भी होनी चाहिए | महाराष्ट्र में खासकर गांवो में सेकर द्वारा इसकी शुरुआत हो भी चुकी है जहा बच्चो को दुसरे के " अच्छे स्पर्श और गंदे स्पर्श का अंतर पहचानना " जैसे कैपेन शुरू किये गए है | कुछ ऐसा ही प्रयास पुरे देश में होने चाहिए |

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  11. बहुत गम्‍भीर बात कही है आपने। मेरे विचार में बच्‍चों से घुलमिल कर रहने से भी इस तरह की स्थितियों से बच्‍चों को बचाया जा सकता है।

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    देखिए ब्‍लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
    अंधविश्‍वासी आज भी रत्‍नों की अंगूठी पहनते हैं।

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  12. इन सबके पीछे बहुत बड़ा कारण है परिवार संस्‍था का टूटना। हमारे यहाँ इतने रिश्‍ते होते थे और इतने लोग परिवार में रहते थे कि यौन कुण्‍ठाएं जागृत नहीं होती थी। विवाह भी छोटी आयु में हो जाते थे। लेकिन आज के बदलते परिवेश में हमे सावधानी तो रखनी ही होगी।

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  13. bahut hi acha vishya chuna hai aapne post ke liye, bacchon ka yon shoshan to aaj kal jahan dekho wahin sunne ko mil jata hai, news dekh lijiye ya newspaper har jagah ek news to aisi sunne ko mil hi jayegi, ise rokne ke liye jaroori hai ki hum bacchon ko yon shikshi samay par de or mata pita ko bhi jagruk hona padega..

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  14. ब्लॉगजगत में पहली बार एक ऐसा "साझा मंच" जो हिन्दुओ को निष्ठापूर्वक अपने धर्म को पालन करने की प्रेरणा देता है. बाबर और लादेन के समर्थक मुसलमानों का बहिष्कार करता है, धर्मनिरपेक्ष {कायर } हिन्दुओ के अन्दर मर चुके हिंदुत्व को आवाज़ देकर जगाना चाहता है. जो भगवान राम का आदर्श मानता है तो श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र भी उठा सकता है.
    इस ब्लॉग के लेखक बनने के लिए. हमें इ-मेल करें.
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    समय मिले तो इस ब्लॉग को देखकर अपने विचार अवश्य दे

    देशभक्त हिन्दू ब्लोगरो का पहला साझा मंच - हल्ला बोल

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  15. बहुत सजगता से मुद्दों को उठाया है आपने ..लेकिन वर्षों से इन समस्याओं का कोई हल निकल पाया है क्या ??? आज इन मुद्दों पर बात तो हर कोई करता है लेकिन जब अपनाने की बात आती है तो सब पल्ला झाड़ लेते हैं ..क्या कहें ?????!

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  16. कानून से बात सुलझने वाली नहीं है, हमें अपने बच्चों को अजनबियों से दूरी बनाए रखने के लिए सिखाना होगा और अपने भी जो अजीब बर्ताव करते हैं, उनसे भी परहेज़ करने की सीख देनी होगी। बच्चे बड़े होने तक उनपर कड़ी नज़र रखनी तो पड़ती ही है :)

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  17. कानून केवल वृहद पैमाने पर बाहरी बाल शोषण को रोक सकता है। जैसे कल-कारखानो में, दुकानो में या फिर स्कूलो में। घर परिवार मोहल्ले की समस्या तो आपस में संवाद से ही सुधर सकती है। सभी अपने बच्चों को अच्छी नैतिक शिक्षा देना चाहते हैं लेकिन यह नहीं समझ लेना चाहिए कि मेरा बच्चा है तो अच्छा ही होगा। हम कितने अच्छे हैं इस पर भी आत्मचिंतन कम से कम बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखकर करना ही चाहिए।
    मेरे विचार से वर्तमान खुले परिदृष्य में नियंत्रण लगाना कठिन है सिर्फ सावधानी बरती जा सकती है। समाधान यह अधिक अच्छा लगता है कि माता-पिता में से कम से कम एक को बच्चों के साथ घुलमिल कर रहना चाहिए। संवाद हीनता की स्थिति तो कभी नहीं आने ही नहीं देनी चाहिए। घर में ऐसा माहौल हो कि बच्चे अपनी हर बात माता से या पिता से जो भी संभव हो, बता सकें। उनके मन में विश्वास दिलाने की जरूरत है कि माता-पिता ही उनके सच्चे हितैषी हैं और वे उन्हें सही मार्ग दिखा सकते हैं।

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