सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

एक स्पष्टीकरण.

मित्रों नमस्कार,



हिंदी ब्लॉग्गिंग की एक क्रन्तिकारी ब्लॉगर दिव्या जी ने अपनी एक पोस्ट महिला स्वाभिमान पर मेरी एक टिपण्णी के उत्तर में मेरे ऊपर एक नन्हा सा मगर चुभता हुआ आरोप जड़ दिया जो कुछ इस प्रकार है.

@- विचार शून्य -

आपने सही कहा , लेख बिना पढ़े भी टिप्पणियाँ की जा सकती हैं। लेकिन ताड़ने वाले भी क़यामत की नज़र रखते हैं । उनको मालूम होता है , किसने पढ़ा और किसने मात्र खानापूर्ति की है । उस व्यक्ति की वैसी ही image भी बनती है मेरे दिमाग में। व्यक्ति के शब्द उसकी पहचान होते हैं । जैसे लेखक की पहचान उसके लेख हैं , वैसे ही टिप्पणीकार की पहचान उसकी टिप्पणियां हैं।

आपके द्वारा करी गयी टिपण्णी से मुझे ये तुरंत समझ आ गया की आपने महीनों बाद कोई नई पोस्ट लगाई है , इसीलिए लिए आज आप मेरी पोस्ट पर नज़र आये हैं। आपको लेख से कोई सरोकार नहीं है ।

ब्लॉगजगत में ज्यादातर लोग उसी दिन निकलते हैं टिपण्णी करने के सफ़र पर जिस दिन वो अपने ब्लॉग पर नयी पोस्ट लगाते । क्यूंकि उन्हें सबकी टिपण्णी चाहिए होती है । ऐसे ही लोग बिना पढ़े टिपण्णी करते हैं।

बहुत कम ब्लोगर हैं जो सीरियस ब्लोगिंग करते हैं , और विरले ही हैं जो सीरियस टिपण्णी करते हैं।

और मैं सीरियस लोगों कों बेहद पसंद करती हूँ।

आभार ।

दिव्या जी, टिपण्णी में कही गयी मेरी बात से तो सहमत है पर जाने क्यों उन्होंने मुझे ऐसा आइना दिखाया जिस में मुझे अपनी तस्वीर नज़र नहीं आयी. ये बात मुझे अच्छी नहीं लगी.

इसके बाद न जाने किस डर से इस लोह महिला ने मेरे उत्तर को अपनी पोस्ट पर भी प्रकाशित नहीं किया. मजबूरन मुझे ये बात अपने ब्लॉग पर विस्तार से लिखनी पड़ रही है ताकि इस आरोप पर मेरे मौन को कोई मेरी स्वीकृति न मान ले.

वैसे भी ब्लॉग पर लिखना तो फ्री फंड का है. बन्दे के पास वक्त होना चाहिए घर बैठे कितनी भी क्रांतियाँ की जा सकती हैं. कोई ये थोड़े ही है की ब्लॉग लिखने के बाद तहरीर स्क्वायर पर सर कटाने जाना है.

हाँ तो सबसे पहले तो मैं दिव्या जी को बता दूँ की टिप्पणिया प्राप्त करने के मामले में घटिया लेखक होते हुए भी मैं आपही की तरह बहुत भाग्यशाली रहा हूँ. इस प्रसाद को प्राप्त करने के लिए मुझे कभी भी किसी को कोई मेल नहीं भेजनी पड़ी है और ना ही इसके लिए न ही मुझे नए ब्लोग्गेर्स को प्रोत्साहित करने की कसरत करनी पड़ी. अपनी ब्लॉग्गिंग के पिछले एक वर्ष के दौरान मैंने कभी भी किसी भी ब्लॉग पर इस आशा के साथ कोई टिपण्णी नहीं दी की बदले में मुझे भी किसी से टिपण्णी की भीख मिलेगी. मेरा इस प्रकार की नेटवर्किंग में कभी विश्वास ही नहीं रहा.यदि मुझे भी टिप्पणियों की इसी ही चाह होती तो मैं भी नए नए ब्लोग्स पर जाकर टिप्पणियां चेप रहा होता. मैंने तो गौरव अग्रवाल जैसे प्रतिभा संपन्न ब्लॉगर को अपने ब्लॉग पर टिपण्णी करने से हतोत्साहित ही किया था.

नए उदित हो रहे ब्लॉगर किसी टिपण्णी का प्रतिउत्तर पहले से ही व्यस्त पुराने स्थापित ब्लॉगर की अपेक्षा ज्यादा जल्दी देते हैं.(ये अपने ब्लॉग पर टिप्पणियों की संख्या बढाने के लिए श्रम कर रहे ब्लॉगर के लिए सुनेहरा सिद्धांत है. पालन करें और टिप्पणियों में इजाफा करें. )

सच कहूँ तो मैं quality में विश्वास रखता हूँ quantity में नहीं. मुझे खुद से कहीं जयादा बेहतर ब्लोग्गेर्स की एक भी टिपण्णी प्रसाद स्वरुप मिल जाती है तो मैं तृप्त हो जाता हूँ.

(दिव्या जी से मेरा संवाद यही ख़त्म अगर आप अपनी पोस्ट पर मेरा उत्तर प्रकाशित कर देतीं तो मुझे इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती )

अब मैं मुझ पर स्नेह वर्षा करने वाले सभी मित्रों के समक्ष विनम्र निवेदन करना चाहता हूँ की किसी भी पोस्ट पर मैं तभी अपनी बात रखता हूँ जब मुझे एसा करना आवश्यक लगता है अन्यथा मैं शांति से पोस्ट पढ़ कर लौट आता हूँ और जहा भी, जब भी मुझे लगा की अपनी बात रखनी चाहिए वहां मैंने पूरी ईमानदारी के साथ अपनी सहमती या सहमति व्यक्त की है.

अतः लोह महिला दिव्या जी की तरह ही यदि आप लोगों के मन के किसी कौने में ये विचार दुबका पड़ा हो की भइय्या विचार शून्य ने हमारे ब्लॉग पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दी है अब उसके ब्लॉग पर भी जाकर हाजिरी बजानी पड़ेगी तो आप अपने मन से ऐसे विचार निकाल कर किसी दुसरे के ब्लॉग पर पेस्ट कर दें मुझे कोई दुःख नहीं होगा.

मैं अपनी ख़ुशी के लिए टिप्पणिया करता हूँ. आप अपनी ख़ुशी के लिए टिप्पणियां करें.

(ये पोस्ट मात्र सूचनार्थ है अतः इस बार टिप्पणियों की कोई आवश्यकता नहीं.)