कल शाम मुझे अचानक अपनी ईस्ट दिल्ली से साऊथ दिल्ली जाना पड़ा. अब जो लोग और लुगाई दिल्ली के इन हिस्सों से अपरिचित हैं तो उन्हें बता दू की पूर्वी दिल्ली अधिकांशतः निम्न मध्यम वर्गीय लोगों की दिल्ली है. ये सादी पेंट कमीज, कुरता पायजामा, सलवार कमीज और दुप्पट्टा पहनने वालों की दिल्ली है जबकि साऊथ दिल्ली इसकी एकदम उलट है.
साऊथ दिल्ली में खुलापन है. ऐसा लगता है की आप किसी यंगिस्तान में घूम रहे हैं. कोई बूढ़ा नजर ही नहीं आता. अब भला नजर आए भी तो कैसे जवानों की रंगीनियों से नजरें भटकती ही नहीं. यहाँ तरह तरह के हेयर स्टाइल ओढ़े और अलग अलग किस्मों के कपड़ों में ढके लोग चरों तरफ घूम रहे होते हैं. राम कसम मैंने खुद के पैरों पर इधर उधर घूमते हुए इन नजारों को नगीं बेशर्म आखों से कैच करते कई शामें रंगीन की हैं. कोई कह सकता है की ऐसे भी क्या शामें रंगीन होती हैं तो जनाब हाँ कुछ लोग किनारे रहकर भी पानी को छू कर आ रही हवाओं से भीग जाते हैं. मैं उनमे से ही हूँ.
ये सब बकवास छोड़ मैं मुद्दे की बात पर वापस आता हूँ.....तो क्या हुआ की मैं साऊथ एक्स से दिल्ली की प्रसिद्द ब्लू लाइन बस में अपनी पूर्वी दिल्ली वापस लौट रहा था.... जैसा दिल्ली में आजकल का मौसम है हलकी बारिश हो रही थी.....एक बस स्टेंड पर रुकने के बाद जैसे ही बस चली ही थी की अचानक पिछले दवाजे पर एक २०-२१ वर्ष का लड़का प्रकट हुआ जिसकी जींस की मियानी उसके घुटनों तक थी और कमीज उसके कूल्हों की हड्डी के उभार से डर कर ऊपर चढ़ी जा रही थी और शायद कमीज और जींस का मेल कराने के लिए उसने मिस इंडिया की तरह से एक लम्बी तनी वाला बैग अपने जीरो साइज शरीर पर तिरछा टांग रखा था. कलम को ज्यादा तकलीफ ना देते हुई यही कहूँगा की वो डांस इंडिया डांस के प्रिंस की ही कॉपी था. तो जब वो बस की एक सीढ़ी चढ़ गया तो ऊपर आने की बजाये वो वापस घुमा और अपना हाथ बाहर निकल कर चिल्लाने लगा... आजा आजा... जल्दी कर ना ....हाथ दे ...हाथ दे...
मैं समझ गया..... बेटे इसके साथ कोई ना कोई लड़की जरुर है......और जो भी कोई लड़की है वो इसकी बहन नहीं है क्योंकि बहन होती तो पहले बहन को बस में चढ़ाता फिर खुद चढ़ता. अब जाहिर सी बात है की अपनी नजरे "वो कौन है" का इंतजार करने लगी पर ये क्या इससे पहले की लड़की आती एक बाबाजी ने बस का डंडा पकड़ लिया और ऊपर चढ़ने की कोशिश करने लगे. इधर लड़का अपनी संगिनी को बस में चढ़ाने की फ़िराक में था उधर बाबाजी ऊपर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे. दो पीढ़ियों के बीच के बीच की लड़ाई एक बार फिर सामने आ गयी. बूढ़े बाबाजी किसी तरह से खुद को बस में खीच लेना चाहते थे पर जवान लड़का बीच में खड़ा था जो उनके पीछे की अपनी मित्र को पहले चढ़ाना चाहता था. खैर कन्डक्टर ने तेज होती बस रुकवाई तीनों बस में चढ़े और फिर दुबारा बस चली.
आह तेज चलती सांसें और उनके प्रभाव से हरकत कर रहे उस मादा के अंगों को फिर से अपनी नंगी और बेशर्म आँखों से अच्छी तरह से नाप कर मैंने उस युवा जोड़े को सहज होने देने के लिए अपनी तरफ की खिड़की से बाहर के अँधेरे में अपनी नजरों में कैद डाटा को प्रोसेस करना शुरू किया. लड़की छोटे कद की पर भरे-पूरे बदन की मालकिन थी. चेहरा भी गोल मटोल और मासूम था. उसके चेहरे पर से बालपन की मासूमियत को निर्मम मर्दों से भरे समाज ने अभी तक लुटा ना था(ओए होए......). आवाज का टोन वही अपने धोनी जैसे क्रिकेटरों वाला यंग यंग सा. मुझे आजकल के लडके लड़कियों का ये क्रिकेटरों की तरह से बोलने का अंदाज बहुत पसंद है. वे दोनों मेरे पड़ोस की बस के दरवाजे से लगाती सीट पर ही बैठ गए. कंडक्टर आकर उन्हें टिकट दे गया.लडके ने लक्ष्मी नगर का टिकट लिया और लड़की ने शाहदरा का टिकट. मेरा पहला अनुमान सही था की दोनों भाई बहन नहीं है. टिकट लेते वक्त भी दोनों ने दस रुपये का ही टिकट लिया. कंडक्टर उनकी इस हरकत से खफा था....लक्ष्मीनगर के १५ लगते हैं पर बेचारे को लड़की ने उसे चुप करवा दिया... भैया पीछे आ रही डी टी सी बस में बैठ जाते तो तुम्हे ये भी नहीं मिलते. जो दे रहे हैं ले लो हम तो ब्लू लाइन में फ्री में चलते हैं...
वो दोनों साऊथ एक्स किसी व्यावसायिक पाठ्यक्रम के छात्र थे और अपनी कक्षा के उपरांत वापस लौट रहे थे. दोनों एकदम ताजा ताजा स्कूल से निकले बच्चे से लगाते थे. लड़का कोई ज्यादा तेज तर्रार सा नहीं था. मुझे इस उम्र के लड़कों की अक्सर लड़कियों के सामने नजर आने वाली मर्दानगी उसमे अभी विकसित हुई सी नहीं दिख रही थी. वो थोडा निढाल सा होकर अपनी सीट पर बैठ गया था. लड़की ने पूछा तुझे क्या हुआ... यार लगता है बारिश में भीगने से बुखार तो नहीं आ गया...
मुझे थोडा अजीब लगा... अबे इतनी जल्दी बुखार...
लड़की ने लडके के माथे को छुआ... नहीं तो .. गर्म तो नहीं लगता. फिर उसने लडके के गले पर इस कान से उस कान तक हथेली के पिछले हिस्से से ताप को महसूस किया... नहीं तो यहाँ भी गर्म नहीं है. अब लड़की का हाथ लडके की बाँहों पर फिसलता चला गया .... ना तू तो जरा भी गर्म नहीं है. अंत में लड़की ने अपनी हथेलिया लडके की हथेलियों पर रख दी ...ना कोई बुखार नहीं...तू जरा भी गर्म नहीं है.
मैं हक्का बक्का रह गया...लड़की ने लडके को छुआ और छूती चली गयी. मैं दूर बैठा पूरा गर्म हो गया पर वो ठंडा ही रहा..कैसे? ये उसकी मजबूती थी या मेरी कमजोरी?
क्या कहूँ ये छूने छुआने वाला मामला मुझे कभी रास नहीं आया.
वो मीठी सी छुअन वो हलकी सी चुभन...ऐसे शायराना शब्द मेरे लिए हमेशा से शब्द ही बने रहे मैं कभी इनका लुत्फ़ ना ले पाया.
अब इनमे लुत्फ़ वाली क्या बात है ?
है जनाब है...कहीं ना कहीं तो है ही तभी तो शायरी भी हुई है.
अपन इसका लुत्फ़ क्यों नहीं ले पाते? असल में मेरा पिकअप लेमरेटा स्कूटर के ज़माने से ही आजकल की मोटर साइकिलों वाला रहा है..मैं कुछ ही सेकेण्ड में फुल स्पीड पकड़ लेता हूँ.
मोटर गाड़ियों में इसे गुण और पुरुषों में अवगुण समझा जाता है. इसे कमजोरी की निशानी समझा जाता है. एक तरीके से सही भी है. मैं अपने इसी अवगुण की वजह से हमेशा लड़कियों से दूर दूर ही रहा. क्या करता कंट्रोल ही नहीं होता था. बिलकुल सच बोल रहा हूँ की मेरी पत्नी वो पहली लड़की थी जिसे मैंने छुआ था. और विवाह के १० वर्षों के उपरांत आज भी पत्नी को हिदायत देता रहता हूँ की बेवजह और बिना तैयारी के मुझे ना छूना. धीरे धीरे रे सजन हम प्रेम नगर के वासी..... वाली अपनी अदा नहीं है. अपनी मोटर तो रेस लगाने को तुरंत तैयार हो जाती है.
दोस्त लोग कहते हैं की ये कमी है. मैं कहता हूँ की कमी या कमजोरी तो तब हो यार जब गाड़ी की माइलेज कम हो और वो सवारी को बीच रास्ते में कहीं का ना छोड़ टें बोल जाय पर अपनी गाड़ी तो जोरदार पिकअप के साथ शानदार माइलेज भी देती है. अपनी माइलेज का स्तर बेशक अंतर्राष्ट्रीय ना हो पर भारतीय परिस्थितियों में यहाँ के मानक स्तर को तो अवश्य ही छूता है.
अब अगर मन करे तो इस विषय में अपने विचार दें ..........ना भी दे पाये तो कोई बात नहीं मुझे बुरा नहीं लगेगा.
शुभ रात्रि.......
आज कुछ ज्यादा ही बेबाक हो गए है आपके विचार .......पाण्डेय जी .......शायद मौसम का असर है !!
जवाब देंहटाएंमैं हक्का बक्का रह गया...लड़की ने लडके को छुआ और छूती चली गयी. मैं दूर बैठा पूरा गर्म हो गया पर वो ठंडा ही रहा..कैसे? ये उसकी मजबूती थी या मेरी कमजोरी?
जवाब देंहटाएं:) :) अब क्या कहें इस पर ,आपने तो हमें पूरे दृश्य के ऐसे दर्शन करा दिए जैसे हमने स्क्रीन पर अभी-२ कोई फिल्म देख ली हो
वैसे मैं शिवम जी से सहमत हूँ ,आज आपके विचार कुछ ज्यादा ही बेबाक और उन्मुक्त हो गए ,थोड़ा बचके जी :) :)
महक
" मैं कभी इनका लुफ्त ना ले पाया... "
जवाब देंहटाएंअरे जो लफ्ज़ होता ही नहीं उसे लेते कैसे
लुफ्त को "लुत्फ" ठीक लिखते हैं ऐसे
बाकी - बेबाकी पर - कोई टिप्पणी नहीं।
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कचौडी खाओ मस्त हो जाओ
आपका ब्लॉग हैक हो गया है. कृप्या जाँच करें.
जवाब देंहटाएंआपको लुफ्तांषा एयर लायीं में सफ़र की सिफारिश की जाती है
जवाब देंहटाएंहम त बस आपके लुफ्त का लुत्फ उठाते रहे!
जवाब देंहटाएंठण्डा गोश्त याद आ गया!!
अनुराग जी गलती ठीक करवाने के लिए शुक्रिया. लेख को पढ़कर आपको लगा ही होगा ऐसी बचकानी भूलें हो ही जाती है.
जवाब देंहटाएंबन्धु, जैसा तुम्हें लगा वो लिखा तुमने। इस छुआछात का अनुभव तुम्हें शुरू से मिलता रहता तो तुम भी इलैक्ट्रिक वाटर हीटर की तरह इंस्टैंट नतीजे न देते। हा हा हा। इतनी खासियतें बता दीं हैं, मित्र संख्या भारी होने वाली है, शायद इसीलिये फ़ॉलोवर्स वाला विजेट हटा दिया है।
जवाब देंहटाएंबस्ता बदल लिया है न?
मारुती भले ही अच्छा milage दे और भारतीय स्थिति के अनुकूल हो, पर फरारी के सामने तो सभी देखते है.. तो शोक न कीजिये,और सपनो का पूरा मजा लीजिये, पर हकीकत से वाकिफ रहिये बस ..
जवाब देंहटाएंसामने = सपने , आपकी लुफ्त वाली भूल बराबर हो गयी, वैसे तो मैं लुफ्त की लिखता हूँ, अपने को तो पता ही नहीं था की ये गल्त है !
जवाब देंहटाएंतनेजा साहब आपने ये नोटिस नहीं किया की मैंने अपना चेहरा भी छिपा लिया है ताकि निसंकोच उल्टा-सीधा ठेल सकूँ. वैसे मौसम चेहरा दिखाने का है सभी लोग एक एक करके प्रकट होते दिख रहे हैं. आप भी अब प्रकट हो ही जाइये... हाँ नहीं तो.......
जवाब देंहटाएंभाव प्रधान, विचार शून्य!
जवाब देंहटाएंमुझे समीर कि बात सही लग रही हैं
जवाब देंहटाएंबढ़िया मिक्सचर ! ट्रायल रन बुरा नहीं रहा :-))
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
गुरुवर समीर जी की टिप्पणी काफी भारी-भरकम है.
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग वाकई हैक हो गया है.
अब विचारों वाले स्थान में शून्यता नहीं रह गयी है.
वज़न आ गया है. आपने कहा :
"अपनी गाड़ी तो जोरदार पिकअप के साथ शानदार माइलेज भी देती है."
इस सन्दर्भ की बातों के अनुमान लगाने में आमजन एक्सपर्ट है. कितनी ही जटिल व्यंजना क्यों न हो वह सीधा अर्थ लगा ही लेता है.
फिर क्यों वह कविता से कतराता है?
"जहाँ चाह वहाँ राह"
जिन बातों में जनरुचि होती है वह समझ ही आ ही जाती हैं.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं"विषय" जो मुद्दा बन ही गया था पोस्ट का अंत होते-होते मुद्दे का पोस्ट-मार्टम हो गया. रुख आपने अपनी ओर कर लिया. शायद टिप्पणियाँ मुद्दे से हटकर, बाहर फैली उन्मुक्तता से हटकर आपकी उन्मुक्तता पर केन्द्रित हो गयी हैं.
जवाब देंहटाएंशब्दों की चाशनी में लपेट कर परोसी गयी आपकी ये पोस्ट गज़ब की है..वाह...छोटी सी घटना को खूबसूरत विस्तार देते हुए अपने बारे में भी चुपके चुपके बहुत कुछ कह गए हैं आप..बेहतरीन पोस्ट...वाह...
जवाब देंहटाएंनीरज
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जवाब देंहटाएंआज-कल ओवर-हीटिंग से इंजन से धुआं निकलने लगता है , और इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ती है, खतरा बहुत है।
ज़रा संभल के..
.
इस "विषय" पर लेख तो गजब लिखा है जी, पर माइलेज के बखान में आप ही "विषयी" बन गए.
जवाब देंहटाएंआपकी बेबाकी महेश भट्ट की मर्डर वाली ना होकर संजय लीला भंसाली की ब्लैक सरीखी है. प्रवाह बनाये रखिये पर सचेत रहिएगा जैसे यमुना का प्रवाह और स्तर बड़ते ही खलबली मची है दिल्ली में, वैसे ही आपकी विचारधारा का वेग खलबली ना मचा दे :)
लगता है उस रात भाभीजी को मस्त निपटाया होगा आपने...
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
क्या पता वे ऊष्णता का परित्याग करके ही लौटे हों ? और आप हैं कि गर्मियां तलाश किये जा रहे हैं ! निढाल बच्चे पे ज़रा भी दया ना आई आपको ? :)
जवाब देंहटाएंवैसे बयानात से जोड़ा बेमेल ही लगा ! इसलिए अपना ध्यान फिलहाल बूढ़े की तरफ है ! उन्हें बैठने की सही जगह मिल गयी थी ना ? तौबा तौबा समीर लाल जी नें भी ये ना पूछा :) खैर आगे बताइयेगा !
उम्मीद है पोस्ट लिखने तक बरसात भी हो चुकी होगी :)
जवाब देंहटाएंलोग जो भी कहें, मुझे लगता है कि बहुत कुछ सिखाती है, आपकी पोस्ट !
करो या मरो ( डू ऑर डाई ) वाली पीढ़ी, अपने कार्य को तेजी से अँज़ाम देकर लक्ष्य को छूने का भरोसा रखती है । क्षेपक में भले ही भाभी जी को रखा हो, पर आप उनके प्रति वफ़ादार होते हुये भी सहज ही छेड़े जाना सहन नहीं कर पाते हैं !
आज की युवा पीढ़ी कि बुनियाद इतनी लचर है, कि पानी की कुछेक बूदें ( असुविधाजनक स्थिति की झलक ) उन्हें अस्वस्थ कर देती है, वह दिखावे को ही ओढ़ते-बिछाते हैं ।
इतने सारे उद्दीपनों के बावज़ूद भी उनमें उबाल नहीं आ पाता, आज की पीढ़ी को सीधे सीधे नपुसँक कहने की अपेक्षा यह विचार-शून्यता मोहित करती है ।
nice post sirji
जवाब देंहटाएंaap sabhi ko Ganesh chaturthi aur Ied ki mubarak baad
hum to yahi kehengen..aapka presentation prabhavi hai!
जवाब देंहटाएंजी हां आपका भाग्यांक ६ है. २+२+०+१+१+९+७+२=२४ (२+४)= ६ हुआ. भाग्यांक ६ है किन्तु जीवन में चन्द्रमा और राहू का प्रभाव अधिक रहेगा. राहू जीवन में विभिन्न प्रकार की बाधाय उत्पन्न कर रहा है.
जवाब देंहटाएंबिना लाग-लपेट अपनी बात कह जाते हैं आप...बहुत कम लोगों में ऐसी ख़ासियत होती है..
जवाब देंहटाएंशुकिया...
हाँ नहीं तो..!
@विचार शून्य जी
जवाब देंहटाएंब्लॉग संसद पर कश्मीर समस्या के समाधान सम्बन्धी एक प्रस्ताव पेश किया गया है ,अगर आपके पास समय हो तो आप भी उस पर अपनी राय दें
http://blog-parliament.blogspot.com/2010/09/blog-post_10.html
धन्यवाद
महक