उफ्फ.... ये लेह में क्या हो गया.... हे भगवान ये तू क्या क्या करता रहता है....... तेरी दुनिया में अव्यवस्था फैली पड़ी है..... जो निर्दोष हैं वो दुःख उठा रहे हैं और जो पापी हैं दुराचारी हैं वो फल फूल रहे हैं..... क्या हैं ये सब... हूँ...
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देखा मैं इस ब्रह्माण्ड के रचयिता उस सर्वशक्तिमान को यूँ पुकार रहा हूँ जैसे वो मेरा कोई अधीनस्थ कर्मचारी हो और अपना कार्य सही ढंग से ना कर रहा हो पर मैं भगवान राम या कृष्ण को कभी इस तरह से तू कहकर नहीं पुकारता जबकि वो उसके ही अवतार कहलाते हैं.
मुस्लिम भी अल्लाह को यूँ पुकारते हैं जैसे वो कोई भेड़ बकरी चराने वाला ग्वाला हो पर मजाल है की पैगम्बर हजरत मोहम्मद की शान में कोई गुस्ताखी हो जाय. कोई सलमान रुश्दी जैसा हो तो उसके नाम पर फ़तवा जारी हो जाता है........
ऐसा क्यों है?
मुझे शंका है की कहीं हम लोग पागल तो नहीं हैं जो बिग बॉस को तो तू कहकर पुकारते हैं पर उसके सन्देश वाहकों को इतना सम्मान देते हैं......
excellent
जवाब देंहटाएं@ विचार शून्य जी ,
जवाब देंहटाएंआपने चुनी सही जगह ! बहुत पहले अपनी सासू मां से यह चर्चा हुई थी !
मेरे हिसाब से एक ही तर्क है कि जो अत्यंत निकट हो , रिश्ते प्रगाढ़ हों , अनौपचारिक हों , संबोधित द्वय में 'भेद' ना हो तो फिर संबोधन में तू तू मै मै ही चलेगा ! पर जिससे सम्बन्ध औपचारिक हों उसे तू तक आने में समय लगेगा ! मेरे ख्याल से आप संबंधों में दूरी और तू निकटता का प्रतीक है ! शायद ईश्वर मेरा प्रथम अपना है और उसे बताने वाला उसके बाद दूसरा अपना :)
अब आप जो अर्थ निकालें :)
अली जी की बात से सहमत हु जिस तरह बहुत सारे लोग सभी बड़ो को आप कह कर बात करते है पर माँ को या अपने बड़े भाई बहन को तो तुम कहते है अपनत्व के कारण तुम कहने सेनज्दिकिया बढ़ती है |
जवाब देंहटाएंयह करीबियत का मामला नहीं है. जिससे डर नहीं होता वहाँ बदतमीजी चल जाया करती है. जो सार्वजनिक है, जिसपर सभी का अधिकार है उसे हम हलके में लेते हैं. इसलिये उसे कोसना, दुत्कारना, फटकारना सभी कुछ चलता है.
जवाब देंहटाएंपर संदेशवाहकों को अपमानित करना, क़त्ल करना कभी भी अपनी और न ही दूसरों की संस्कृति में रहा है. अपवाद कहीं भी मिल सकते हैं. जब हनुमान जी रावण के दरबार में संदेशवाहक बनकर गये तो विभीषण द्वारा बचाए गये उसी कल्चर की दुहाई देकर.
धर्म दूतों को भी संदेशवाहक मान सकते हैं.
बिग बोंस का दिल तो बड़ा होता है, वह छोटी-मोटी बात से खफा नहीं होता. और वह छोटे-मोटे दंड bhi नहीं देता, वह प्राकृतिक आपदाओं में अपने क्रोध का इज़हार करता है.
आपकी इस लघु-शंका के बाद मुझे विचारों का अव-शिष्ट त्यागना पड़ रहा है.
प्यार जब हद से बढा, सारे तकल्लुफ मिट गए
जवाब देंहटाएंआप से, फिर तुम हुए, फिर तू का उन्वाँ हो गए!
सूफी लोग भी भगवान को माशूक या आशिक़ की तरह ही समझते हैं. ए री मैं तो प्रेम दीवानी …!!
अरे बन्धु,
जवाब देंहटाएंये लघु शन्का है तुम्हारी या दीर्घ शंका?
ऊपर जितनी भी टिप्पणी हैं, एक से भी असहमत नहीं हो पा रहा हूं।
फ़िर लौटेंगे। ज्ञान वृद्धि होगी ही।
विचार उठाते रहो जरूर।
nice post .......
जवाब देंहटाएंअच्छा विषय चुना है विचारी जी आपने
जवाब देंहटाएं@कहीं हम लोग पागल तो नहीं हैं जो बिग बॉस को तो तू कहकर पुकारते हैं पर उसके सन्देश वाहकों को इतना सम्मान देते हैं.
ये सवाल है तो छोटा पर उत्तर बता पाना बड़ा ही मुश्किल है
जो भी उत्तर दिमाग में आता है थोड़ी देर बाद लगता है पूरी तरह सही नहीं है फिर भी अगर अली जी और Pratul जी की बात को मिला कर देखा जाये
@जो अत्यंत निकट हो , रिश्ते प्रगाढ़ हों , अनौपचारिक हों , संबोधित द्वय में 'भेद' ना हो तो फिर संबोधन में तू तू मै मै ही चलेगा !
@यह करीबियत का मामला नहीं है. जिससे डर नहीं होता वहाँ बदतमीजी चल जाया करती है. जो सार्वजनिक है, जिसपर सभी का अधिकार है उसे हम हलके में लेते हैं.
तो मेरे अनुसार निष्कर्ष ये है की
"तू तड़ाक करने वाला किस भाव से तू तड़ाक कर रहा है " इस पर "पागलपन का स्केल" निर्धारित होना चाहिए
इसमें पागलपन भी दो टाइप के हो गए ......१. पोजिटिव पागलपन और २.नेगेटिव पागलपन
हो सकता है की कृष्ण को सखा भाव से देखने वाला व्यक्ति और दूसरी और पंगे वाले भाव से देखने वाला व्यक्ति दोनों ही "तू " शब्द का इस्तेमाल करते हों
अब पता नहीं मैं कितना सही बोल रहा हूँ पर मेरी अल्प बुद्धि से निष्कर्ष यही निकलता है की "शब्द नहीं भाव की बात है"
जहाँ तक मैं समझता हूँ तू कहना या आप कहना और किसी से अपनापन दर्शाना दो अलग बाते हैं ये शब्द और भाव दोनो के संगम से ही संभव है जैसा भाव वैसा रिश्ता !
जवाब देंहटाएंशायद ईश्वर को हम अवतारों की अपेक्षा ज्यादा घनिष्ठ समझते हैं माँ की तरह. माँ भी तू हो जाया करती है |
जवाब देंहटाएंपागल ही तो हैं ....वैसे राम से राम का भक्त बड़ा है !
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