रविवार, 21 मार्च 2010

माया ने मुझे धर्म विमुख किया.

धर्म मेरा प्रिय विषय है क्योंकि अभी तक मैं यह नहीं जान पाया हूँ की वास्तव में मेरा सच्चा धर्म क्या है? यह चर्चा तो बाद में भी कर लूँगा , अभी तो माया मुझे मोह रही है । मेरा ध्यान भटका रही है अतः धर्म को त्याग कर माया पर विचार करना जरुरी है।

पिताजी कहते थे की बेटा माया के चक्कर में मत फसना, माया महा ठगिनी। उनकी बातें हर आधुनिक बेटे की तरह यंत्रवत सुनता था कभी गहन विचार नहीं किया।

माया है क्या? किस चिड़िया का नाम है माया ? जब छोटा था तो सुनता था की ये धन, संपत्ति, पैसा, पद ,अहंकार, क्रोध, लोभ और ऐसी ही चीजों को माया कहते हैं। मैंने तो तभी से माया की एक मूरत मन में बना ली थी।

आज भी मेरे लिए माया का मतलब हरे हरे नोट हैं। नोट चाहे एक रुपये का हो या हजार रूपये का उसका अर्थ सामान है। तो माया का मतलब ..... हरे हरे नोट ! नोट चाहे गड्डी में हों या हार में ।

माया मेरे लिए वे देवी हैं जिनके दोनों तरफ दो हाथी सूंड में कलश उठाये खड़े रहते।

माया वो देवी हैं जिनके स्वामी स्वर्ग में रहने वाले एक देव हैं जिनका नाम "क" शब्द से शुरू होता है। कुछ याद आया.............. अरे ........ अरे भाई माया के स्वामी कुबेर।

माया एक जगह नहीं टिकती। माया आज आपके हाथ है कल राह में साईकिल पर जाने वाले के साथ हो सकती है परसों कमल पर विराजमान भी दिख सकती हैं। और कभी कभी सभी को हाथ मलने पर मजबूर भी कर सकती है। इतिहास उठा कर देखें ऐसा ही हुआ है।

माया समाज के वर्षों से सताए हुए दबे कुचले पिछड़े व्यक्ति को सत्ता के रंगीन स्वप्न दिखा सकती है। और साथ में यह सिखा सकती है की जिसने तुम्हे काटा उसे तुम काट खाओ। कभी मानसिक स्तर पर ऊँचे न उठो।

यही तो माया है। माया से मुक्त होने का प्रयास करो प्रजा जनों।

और अंत में ... माया हमें क्या सीख देती है?

माया हमें समझती है की हम अपनी सभी शक्तियों का प्रयोग सही ढंग से करे, सोच समझ कर करें , माया के फेर में न पड़े वर्ना हमारा, देश का, और सब का बेडा गर्क होने में देर नहीं लगेगी.

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