tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post2860702121258368080..comments2023-10-31T18:36:02.752+05:30Comments on विचार शून्य: गृहस्थी और ब्रह्मचर्यVICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.comBlogger105125tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-75507154498751182902013-08-23T13:14:37.024+05:302013-08-23T13:14:37.024+05:30मेरे प्यारे भाइयों मैंने सारी तो नहीं लेकिन कुछ टि...मेरे प्यारे भाइयों मैंने सारी तो नहीं लेकिन कुछ टिप्पणियां और आप का ब्लॉग पढ़ा आप ने अपने विचारो को बयां तो कर रखा है लेकिन क्या क्या आप ने कभी शास्त्रों को भी देखा है? हमारे हिन्दू धर्म के शास्त्रों को पढने का एक और कार्य मैं आप को देता हु एक बार ब्रह्मचर्य के बारे में हमारे शास्त्रों में पढ़ कर उसके बाद इस बारे में गहन विचार करना बाकी मेरे पास इतना ज्यादा टाइम नेट पर देने के लिए नहीं होता नहीं तो मैं खुद आप को इस बारे में बताता इस लिए यदि आप मेरे से दोबारा बातचीत करें तो शायद मैं आप से विस्तृत चर्चा कर पाउँगा!Raman Kumarhttps://www.blogger.com/profile/11796698189008135834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-38748475267345485912011-04-09T15:33:33.406+05:302011-04-09T15:33:33.406+05:30अच्छा वैचारिक द्वन्द्व देखने को मिला। आपकी मेहनत...अच्छा वैचारिक द्वन्द्व देखने को मिला। आपकी मेहनत को सलाम।<br /><br />---------<br /><b><a href="http://za.samwaad.com/" rel="nofollow">प्रेम रस की तलाश में...।</a></b><br /><a href="http://ts.samwaad.com/" rel="nofollow">….कौन ज्यादा खतरनाक है ?</a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-9304351627129767512011-04-05T19:46:42.558+05:302011-04-05T19:46:42.558+05:30Nice discussions.Nice discussions.Learn Speaking Englishhttps://www.blogger.com/profile/14295341359871340648noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-89021234040144256552011-04-03T16:24:20.867+05:302011-04-03T16:24:20.867+05:30नवसंवत्सर 2068 की हार्दिक शुभकामनाएँ|नवसंवत्सर 2068 की हार्दिक शुभकामनाएँ|Patali-The-Villagehttps://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-64281635329983077482011-04-02T13:45:56.082+05:302011-04-02T13:45:56.082+05:30यह एक सौ एकवीं मेरी !
ये चर्चा ब्रह्मचारी गुरु की ...यह एक सौ एकवीं मेरी !<br />ये चर्चा ब्रह्मचारी गुरु की पूंछ हो गयी -ब्रह्मचारी बोले तो अपने हनुमाना जी हो !<br />बढ़ती जा रही है ..उधर आलसी के चिट्ठे पर तीली भी सुलग गयी है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-3568008317346905952011-04-02T13:22:10.059+05:302011-04-02T13:22:10.059+05:30@"कोई खुद को श्रेष्ठ समझने का घमंड कर रहा है ...@"कोई खुद को श्रेष्ठ समझने का घमंड कर रहा है और हम उसे बिना परखे ही श्रेष्ठ मान लें ये कहाँ की समझदारी है."<br /><br />बिलकुल, यह अविवेक ही है। परख जरूरी है। नीर-क्षीर विवेक तो होना ही चाहिए।<br /><br />बिना ठोके हम नया खाली मिट्टी का घडा नहीं खरीदते।<br />बिना परखे कुत्ता तक नहीं पालते।<br />फिर बिना परखे गुरू कैसे बनाएं ( श्रेष्ठ मानना अर्थार्त गुरू स्थान देना)सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-74381613529419121002011-04-02T12:31:07.649+05:302011-04-02T12:31:07.649+05:30@"तो साहब मैं जब भी ऐसी विचारधारा या व्यक्ति ...@"तो साहब मैं जब भी ऐसी विचारधारा या व्यक्ति के संपर्क में आता हूँ जो खुद को दूसरों से ज्यादा नेक या धर्मात्मा समझे तो मैं स्वतः ही उसके विरोध में आ जाता हूँ क्योंकि मेरे हिसाब से सच्चे धर्मात्मा और सदाचारी लोगों के मन में अपने लिए श्रेष्ठता और दूसरों के लिए तुच्छता का भाव नहीं होता."<br /><br />दीप जी,<br /><br />सदाचार के व्यक्ति आधारित अहंकार, और प्रेरक गुण गौरव में बारीक सा अन्तर होता है। व्यक्तिगत श्रेष्ठता प्रदर्शित करना घोर अहंकार है और यह पाप सेवन की कक्षा में आता है। और मात्र गुणों के अनुकरण हेतु गुणानुवाद, सदाचार के अनुमोदनार्थ, गुणो की प्रभावना के उद्देश्य से किया जाने वाला सद्कर्म है।<br /><br />विवेकवान को किसान बन जाना चाहिए……<br /><br />"खरपतवार को समूल नष्ट करते हुए भी फसल को नुकसान न पहूँचाना चाहिए।"सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-46266618638342285232011-04-02T11:19:40.481+05:302011-04-02T11:19:40.481+05:30Badi vyavharik baten kaheen aapne, achchha laga.
-...Badi vyavharik baten kaheen aapne, achchha laga.<br />-----------<br /><a href="http://za.samwaad.com/" rel="nofollow">क्या ब्लॉगों की समीक्षा की जानी चाहिए?</a><br /><a href="http://sb.samwaad.com/" rel="nofollow">क्यों हुआ था टाइटैनिक दुर्घटनाग्रस्त?</a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-42285744801145958522011-04-02T09:41:31.633+05:302011-04-02T09:41:31.633+05:30दीप जी,
"holier than thou" के शाब्दिक अ...दीप जी,<br /><br />"holier than thou" के शाब्दिक अर्थ और परिभाषिक मंतव्य पर तो आप और हम दोनो एक मत है। भिन्न्ता इस ब्रह्म वाक्य के लागू करने के आशय में है। हमें इसे सतही निरिक्षण से लेना है अथवा पूर्ण गवेष्णा करके।<br /><br />मुझे लगता है कोई पवित्राभासी आपके सम्पर्क में रहा है जिसके असम्यक आभासी विचार आपको व्यथित करते रहे है। वह बार बार पवित्रता का आभास दिलाने वाला किसी भी दृष्टिकोण से श्रेष्ठ नहीं है। उसे गुणों को प्रकट करना ही नहीं आता।<br />ऐसे दुर्बोध लोगों के कारण ही यह"holier than thou" की सतही मानसिकता दृढ बन जाती है।<br /><br />मैने आपके विचारों के विरोधाभास को भी निर्मल कहा था, आशय यही था कि सम्यक दृष्टि वहां सम्भव है, सभी पहलूओं से देखने पर यह विरोधाभास समाप्त हो जाते है।<br /><br />इस पर हम अगली पोस्ट में चर्चा करेंगे।<br /><br />आभार आपका, आपने मुझे मित्र रूप में स्वीकार किया, मेरा सौभाग्य है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-48631989793381452822011-04-01T23:52:10.114+05:302011-04-01T23:52:10.114+05:30सुज्ञ जी आपका एक बार फिर से धन्यवाद की अपने मेरी ब...सुज्ञ जी आपका एक बार फिर से धन्यवाद की अपने मेरी बरसों पुरानी "Hornby's Advanced Learner's Dictionary" पर चढ़ी धूल को एक बार फिर हटवा दिया. मुझे खुद अपने ऊपर शक हो आया की कहीं "holier than thou" का जो मैं अर्थ समझता हूँ उससे हटकर कुछ और तो नहीं. <br /><br /><br /><br />साहब मेरी डिक्शनरी तो कहती है की "holier than thou" का अर्थ है:<br /><br /><br /><br />thinking that one is more virtuous than others मतलब की ऐसी विचारधारा जिसमे कोई व्यक्ति खुद को दूसरों से ज्यादा नेक सदाचारी और धर्मात्मा समझे. <br /><br /><br /><br />तो साहब मैं जब भी ऐसी विचारधारा या व्यक्ति के संपर्क में आता हूँ जो खुद को दूसरों से ज्यादा नेक या धर्मात्मा समझे तो मैं स्वतः ही उसके विरोध में आ जाता हूँ क्योंकि मेरे हिसाब से सच्चे धर्मात्मा और सदाचारी लोगों के मन में अपने लिए श्रेष्ठता और दूसरों के लिए तुच्छता का भाव नहीं होता. <br /><br /><br /><br />मैं बहुतों से मिला हूँ जो खुद को सिर्फ इसलिए श्रेष्ठ मानते हैं क्योंकि वो मांसाहार नहीं करते या प्याज लहुसन नहीं खाते जबकि ऐसे लोगों में दूसरी अनेकों बुराइयाँ स्पष्ट दिख रही होती हैं. कोई खुद को श्रेष्ठ समझने का घमंड कर रहा है और हम उसे बिना परखे ही श्रेष्ठ मान लें ये कहाँ की समझदारी है. हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती इसलिए अच्छी तरह से परख लेना क्या गलत बात है. <br /><br /><br /><br />हाँ एक बार किसी बात को परख कर जब उसकी श्रेष्ठता वास्तव में सिद्ध हो जाये तो उसे सहज अपना लेना चाहिए. ऐसा मेरा मानना है और मैं करता भी हूँ. अब इन दो बैटन में मुझे तो कोई विषमता नहीं दिखाई पड़ी. जाने आपको किस नजरिये से मेरे विचारों में विरोधाभास मिला. आप कृपया करके मुझे एक बार फिर से परखें :)) <br /><br /><br /><br />सुज्ञ जी वैसे आपने बहुत अच्छा किया की खुल कर अपने मन की बात कह दी. इससे मुझे भी अपनी मानसिकता, जो की सच में मुझे भी अभी तक मालूम ही नहीं थी, को विस्तार से समझने और समझाने का मौका मिला. <br /><br />अब मैं आपको सच्चे अर्थों में अपना मित्र मानता हूँ. <br /><br /><br /><br />इसके साथ ही इस पोस्ट पर मैं सभी टिपण्णी कर्ताओं का दिल से आभार प्रकट करता हूँ और कोशिश करूँगा की इस पोस्ट में मिले सभी विचारों से मैं जिस निष्कर्ष पर पंहुचा हूँ उसे अगली किसी पोस्ट में ठेल दूँ.VICHAAR SHOONYAhttps://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-85304916954025016052011-04-01T10:40:08.640+05:302011-04-01T10:40:08.640+05:30इस पूरी चर्चा के हमारे तो यही निष्कर्ष है………।
1-द...इस पूरी चर्चा के हमारे तो यही निष्कर्ष है………।<br /><br />1-दबावों से या अनिच्छा से नियंत्रण में आना अनुपयोगी है।<br />2-स्थायित्व के लिये संघर्षरत की तृष्णा को उकसाना भी गलत प्रयोजन है।<br />3-स्वेच्छा आत्मनियंत्रण स्वीकार करना व्यक्ति का स्वाधिकार है। उसके अधिकारों की भी रक्षा होनी चाहिए।<br /><br />अन्त में,दीप पाण्डेय जी का आभार आपने मेरे विचारों को प्रस्तुत करने के लिये आपके ब्लॉग पर इस लेख द्वारा प्लेटफार्म उपलब्ध करवाया।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-14572572787258046102011-04-01T10:27:51.832+05:302011-04-01T10:27:51.832+05:30कोई भी बाबा, महाराज या उपदेशक अन्तत तो मनुष्य है। ...कोई भी बाबा, महाराज या उपदेशक अन्तत तो मनुष्य है। वे सभी धर्म से ही ज्ञान पाते है किन्तु उनका ग्रहण ज्ञान जरूरी नहीं कि सम्यक ही हो। उनके पास भी मिथ्या मान्यता भरा ज्ञान हो सकता है। किन्तु अनुसरण करने वालों को चाहिए वे स्वविवेक से हेय ज्ञेय और उपादेय का अन्तर करे और उपादेय को ही स्वीकार करे।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-60485872919344898942011-04-01T00:15:40.594+05:302011-04-01T00:15:40.594+05:30सन्देश आपने बुढ़ाते लोगों को दिया है अतः बोलना नही...सन्देश आपने बुढ़ाते लोगों को दिया है अतः बोलना नहीं चाहिए फिर भी ... :-))<br /><br />बहुत आवश्यक विषय लिया है आपने जिसपर बहुत कम स्वस्थ चर्चा देखने को मिलती है ! अंशुमाला की टिप्पणी स्पष्ट और बज़नदार है ! आज मध्यम वर्ग अशिक्षा और गलत उपदेशों के कारण, विवाह के बाद अपना सेक्स स्वास्थ्य बर्बाद कर चूका है ! और सामाजिक वर्जनाओं के बीच सेक्स चर्चा के बारे में कोई सोंच भी नहीं सकता ! मेरे विचार में इस विषय पर शायद ही कोई ईमानदार हो ! <br /><br />@ महिलाओं में मेनोपोज के बाद मन में स्वाभाविक विरक्ति आ जाती है...<br /><br />मुझे नहीं लगता की इसमें कोई सच्चाई है अधिकतर मामलों में विरक्ति का कारण साथी का उत्साह ठंडा पड़ना अक्सर होता है...महिलाओं में पहल करने की अक्षमता और असहयोग अन्य कारण हैं <br /><br />डॉ अजित गुप्ता का कहना है है ५० वर्ष के बाद वानप्रस्थ अपना लेना चाहिए ...क्यों ?? <br /><br />मुझे लगता है खुश होकर जीना अधिक आवश्यक है तभी आप कुछ समाज सेवा अथवा जिम्मेवारियां हँसते हँसते उठा पायेंगे, मस्त जीवन और खुशियों के साथ जीना ही मानव जीवन है !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-58526539302164733122011-03-31T21:14:09.331+05:302011-03-31T21:14:09.331+05:30@पाण्डेय जी, पोस्ट बहुत ही खुले दिल से लिखी गयी है...@पाण्डेय जी, पोस्ट बहुत ही खुले दिल से लिखी गयी है........... और मैं इस पोस्ट का खुले दिल से (दिमाग तो है नहीं) समर्थन करता हूँ, और मैं ये मानता हूँ की अगर मेरे पास ये आइडिया आया होता तो मैं भी ऐसा ही लिखता (यानी की मेरे लिखे का निष्कर्ष ऐसा ही होता)<br /><br />मैंने कई ऐसे माता पिता देखें है, जो बच्चों को स्थापित करने के बाद अलग से रहते हैं.......... और वाकई उनका प्यार (सेक्स) बना रहता है, और वो लोग स्वस्थ भी रहते हैं, बजाए उन प्रोर्दों के जो रहते तो बच्चों के साथ हैं - पर मन ही मन कसमसाते रहते हैं.....<br /><br />बाकी इतनी टीप आयी हुए है.......... क्या बताएं....... बहस बदिया चल रही है. और चलनी ही चाहिए....... एक लोकतान्त्रिक देश के लोकतान्त्रिक ब्लॉग जगत में ये जरूरी है ........ कल अगर इस ब्लॉग जगत में जूतम-पैजार हो जाए तो इसके लिए बेफिक्र ब्लोग्गरों को जिम्मेवार मत ठहराना........... संसद से ये सब सीख रहे हैं :)<br /><br />जय राम जी की.दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-71074480155002263242011-03-31T16:38:07.637+05:302011-03-31T16:38:07.637+05:30गौरव जी,
मुझे शक है आप इन्सान नहीं है………………………
य...गौरव जी,<br /><br />मुझे शक है आप इन्सान नहीं है………………………<br /><br />यहाँ टिप्पणी करनेवाला कोई कम्प्युटर सोफ्टवेयर है जो ऑटो-रिप्लाय मोड में रहता है। कथन समझकर, तथ्यों का प्रोसेस कर के सन्दर्भो की स्वतः खोज कर उन्हे उपयुक्त जगह सेट करते हुए तीव्र गति से रिप्लाय फॉरवर्ड कर देता है।<br /><br />अतः प्रोग्राम पर प्रश्न खडा नहीं किया जा सकता।:)<br /><br />बाकी चर्चा आपकी सटीक है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-81291055446039851282011-03-31T15:28:12.813+05:302011-03-31T15:28:12.813+05:30@ सभी से
जहां तक मैं समझ पाया हूँ अपने आपको आधुन...@ सभी से<br /><br />जहां तक मैं समझ पाया हूँ अपने आपको आधुनिक और विकसित मानने वाले लोग और "स्वतंत्रता" का सपना देखने / दिखाने वाले लोग "गुलामी" की ओर खुद भी बढ़ रहे हैं और दूसरों को भी बढ़ा रहे हैं , मूल समस्या है समाज का वो "प्रदूषण" जिसे हम "परिवर्तन" कहते हैं इसी परिवर्तन की वजह से बच्चों से उनका "बचपन" छीनता जा रहा है और अब लगता है उम्रदराज लोगों से उनकी "सादगी" भी छिन जाएगी , कमीं सिर्फ इतनी सी है की अब हम स्वार्थी होने लगे हैं , अपने सुखों के बारे में बहुत ज्यादा सोचने लगे हैं ,लेकिन इस पोस्ट में जो पाण्डेय जी ने ईमानदारी के साथ मन की बात कही है वो प्रयास सच में सराहनीय है | लोग अक्सर अपने आप को आदर्श साबित करने के पुरजोर प्रयास में ही व्यस्त होते हैंएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-57278244559107421802011-03-31T15:16:21.150+05:302011-03-31T15:16:21.150+05:30सुज्ञ जी की याददाश्त भी गजब की है :))
सुज्ञ जी , ...सुज्ञ जी की याददाश्त भी गजब की है :))<br />सुज्ञ जी , पाण्डेय जी<br />कृपया संभव हो तो मेरी टिप्पणियों पर अपने विचार भी बताएंएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-91605138310997163412011-03-31T14:10:29.642+05:302011-03-31T14:10:29.642+05:30@ “ब्रह्मचर्य उस पर कुछ लोग कब्ज़ा जमा कर खुद को दू...@ “ब्रह्मचर्य उस पर कुछ लोग कब्ज़ा जमा कर खुद को दूसरों से बेहतर और पूजनीय बनाने का प्रयास करते हैं जिसका मैं विचारों से विरोध करता हूँ.”<br /><br />दीप जी,<br /><br />(आपका पूर्ण सौजन्य देखकर आपके व्यक्तित्व पर चर्चा करने का साहस कर रहा हूँ, कुछ अतिश्योक्ति हो जाय तो पूर्व में ही क्षमा मांग लेता हूँ, क्षमा करें)<br />विभिन्न ब्लॉग्स पर टिप्पणी के माध्यम से धर्म-संस्कृति पर आपके द्वारा प्रस्तुत विचारों से मैं अवगत था। आप संस्कृति समर्थक होते हुए भी धर्म और पाखण्ड में दुविधा महसुस करते है। मैं आपके लेख रूचि से पढता हूँ। किन्तु मेरे एक लेख पर श्री प्रवीण शाह जी की एक टिप्पणी http://shrut-sugya.blogspot.com/2011/01/blog-post_02.html?showComment=1293993430158#c3610990156116547054 से आपकी विचारधारा निश्चित करने का योग बना। "holier than thou" तब मैं निराश हुआ था। क्योंकि यह थिंकिंग, अभिमान वश हीरे और कंकर में फ़र्क नहीं करती और न तुलनात्मक अध्यन ही करना चाहती है। आज भी आपने अन्तः इस मूल विचार को व्यक्त किया- “खुद को दूसरों से बेहतर और पूजनीय बनाने का प्रयास”।<br />लेकिन मुझे घोर आश्चर्य आपके व्यक्तित्व में सरलता निर्मलता और अच्छी बात को सहजता से स्वीकार करने और कृतज्ञता ज्ञापित कर पाने के गुण से हुआ। हर विचार को "holier than thou" की मानसिकता से तोलने वाला व्यक्ति किसी को भी गुणो का श्रेय नहीं देता, समानता के एक चश्मे से देखकर, चरित्रवान की स्तुति नहीं कर सकता। आश्चर्य यह है कि आपमें दोनो विरोधाभाषी सोच, और वह भी निर्मलता से विध्यमान है।<br /><br />हम क्यों नहीं हमसे अधिक गुणवान, हमसे अधिक संयमी, हमसे अधिक चरित्रवान की प्रशंसा स्तुति करें कि हाँ "holier than us"<br />@”ब्रहमचर्य का अपना महत्व है लेकिन इस पर हमारे धर्म में खुद को बाल ब्रह्मचारी कहलवाने में गर्व का अनुभव करने वाले बाबाओं ने अनावश्यक रूप से जीवन हर पक्ष में ब्रह्मचर्य को पूजनीय दर्जा दिलवा दिया है जो की गलत है.”<br /><br />ब्रहमचर्य का महत्व है तो महत्वपूर्ण गुण गौरवान्वित हो उसमें हमें क्यों आपत्ति होनी चाहिए। किसी महात्मा के चरित्र का दूसरे लोग महिमामण्डन करते है तो स्तुति तो गुण की है, व्यक्ति की नहीं। और स्तुति उस गुण को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से की जाती है।<br />किन्तु कहीं जब गुण के महिमामण्डन की जगह व्यक्ति महिमामण्डन करने लगते है, अथवा बाबा स्वगुणगान करने लगते है, तो वह पाखण्ड है। अनुकरणीय गुण होते है, व्यक्ति नहीं। किसी बाबा की प्रोत्साहन के उद्देश्य से प्रंशसा की जा सकती है, पर व्यक्ति पूजा नहीं। गुणों के कारण वह स्तुत्य बन सकता है पर उसके कारण ही गुण अस्तित्व में नहीं है। इस तरह स्वयं की ही जय जयकार करवाने वाले महात्मा नहीं, पाखण्डी बाबा ही है। यहाँ आपका विरोध व्यवहारिक है। विवेकवान उनके उपदेशों के चक्कर में नहीं पडते। पर ऐसे बाबाओं का चक्कर देखकर, सच्चे संत से भी किनारा कर लेना, कर्तव्य से पलायन है। <br /><br />@इन्द्रिय निग्रह में ब्रह्मचर्य का दर्जा उँचा क्यों?<br /><br />सभी प्रकार के इन्द्रिय संयम उत्तम ही है। जैसा कि आपने कहा भी ब्रह्मचर्य पालन सबसे कठिन है, सच ही तो है, कामविजय पाना सबसे दुष्कर है। जिसे जीतना जितना कठिन हो उसे दर्ज़ा भी इतना ही उँचा मिलना चाहिए,यही तो न्याय है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-30313524693605101862011-03-31T13:50:53.846+05:302011-03-31T13:50:53.846+05:30nicenicehamarivanihttps://www.blogger.com/profile/13556207298223545364noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-62643270107986114102011-03-31T13:44:01.333+05:302011-03-31T13:44:01.333+05:30aap ki post badhiya hai ham iska palan karte hai.....aap ki post badhiya hai ham iska palan karte hai....<br /><br /><br />kuch logo ki aadat hoti hai har aacchi se aacche main kami nikalana ------<br /><br />aap ke sujahav sunder hai...pyar pyar hota hai jo karte nahi wo jane kiya .....<br /><br />jai baba banaras.....Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/07499570337873604719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-57889865389061394312011-03-31T13:36:49.099+05:302011-03-31T13:36:49.099+05:30विवाह का फायदे लिखने बैठे तो शाम हो जायेगी ..इससे ...विवाह का फायदे लिखने बैठे तो शाम हो जायेगी ..इससे अच्छा आप ये पढो <br />विदेशो के हाल की एक झलक<br /><br />A recent study published in the Journal of Sexual Medicine, October 7, 2010 explored the frequency and types of sexual behavior, sexual pleasure and experience, and condom use in men and women age 50+. Traditionally, little has been known about the actual sexual behaviors of older adults. Why is this important? Because, nearly half of the people 65 and older in the United States are single.<br /><br />....<br /><br />Sexual health promotion amongst older adults is a difficult undertaking. Older adults in many cases face no risk of pregnancy and a lack of continued sex education in the United States, leading to a spike in sexually transmitted diseases. Also, due to a lack of HIV and STD testing, it is difficult to tell who the carriers are amongst older adults. Men and women over 50 make up about 19 percent of the AIDS cases in the U.S. Targeted information must address the needs of men and women over age 50 as well as the beliefs and attitudes of their healthcare providers. More public education on safe sex and STD risks is critical for men and women over the age of 50एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-81096773343928768112011-03-31T13:35:54.496+05:302011-03-31T13:35:54.496+05:30@...........एक बूंद का निर्माण होता है वाली अवधारण...@...........एक बूंद का निर्माण होता है वाली अवधारणा भी इसी सोच का विकृत रूप है<br /><br />----- हम कौन होते हैं किसी सोच को विकृत कहने वाले ????<br /><br />@एकाउंट्स का बन्दा हूँ अच्छी तरह पता है की क्रोस चेकिंग का क्या महत्व है इस लिए अपने विचारों की क्रोस चेकिंग करवाने के लिए आप लोगों के समक्ष इन्हें प्रकट करता हूँ.<br /><br />------ आप अकाउंट्स से हैं तो "intangible assets" का मतलब भी समझते ही होंगे<br /><br />"Intangible assets are defined as identifiable non-monetary assets that cannot be seen, touched or physically measured, which are created through time and/or effort and that are identifiable as a separate asset."<br /><br />कुछ ऐसा शायद यहाँ माना गया है ...<br />शरीर में ऐसा कोई स्थान विशेष नियत नहीं है जहाँ शुक्र विशेष रूप से विद्यमान रहता हो । शुक्र सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त रहता है तथा शरीर को बल प्रदान करता है । इसके लिए कहा गया है, जिस प्रकार दूध में घी और गन्ने में गुड़ व्याप्त रहता है, उसी प्रकार शरीर में शुक्र व्याप्त रहता है । महर्षि चरक के अनुसार शुक्र का आधार मनुष्य का ज्ञानवान शरीर है ।<br /><br />शुक्र के कार्य---<br />शरीरेषु तथा शुक्र नृणां विद्यद्भिषग्वरः(सु.शा. ४/२१)<br />रस इक्षौ यथा दहिन सपस्तैलं तिले यथा ।<br />सवर्त्रानुगतं देहे शुक्रं संस्पशर्ने तथा॥(च. चि. ४/४६)<br /><br />शुक्र के कार्य- धैर्य- अथार्त् सुख, दुःखादि से विचलित न होना, शूरता, निभर्यता, शरीर में बल उत्साह, पुष्टि, गभोर्त्पत्ति के लिए बीज प्रदान तथा शरीर को धारण करना, इन्द्रिय हर्ष, उत्तेजना, प्रसन्नता आदि कार्य शुक्र के द्वारा होते हैं । इस प्रकार शुक्र धातु शरीर के साथ-साथ मन के लिए भी महत्त्वपूर्ण है । इन सबके अतिरिक्त सबसे मुख्य कार्य सन्तानोत्पत्ति है ।<br /><br /><br />@हमारे धर्म में खुद को बाल ब्रह्मचारी कहलवाने में गर्व का अनुभव करने वाले बाबाओं ने अनावश्यक रूप से जीवन हर पक्ष में ब्रह्मचर्य को पूजनीय दर्जा दिलवा दिया है जो की गलत है.<br />-----------चिंता ना करें आधुनिकता[?] की स्पीड देख कर लगता है .. जल्दी ही ब्रह्मचारी लोगो को मूर्ख भी माना जाने लग जायेगा , अनावश्यक रूप से<br /><br />@अगर आप सिर्फ इन्द्रिय निग्रह की बात करते हैं तो संयमी भोजन करने वाले व्यक्ति को भी ब्रह्मचारी का सा दर्जा मिलना चाहिए क्योंकि वो भी अपनी जीभ पर नियंत्रण करता है.<br /><br />------पता नहीं, लेकिन एक बात है जिव्हा पर नियंत्रण की ब्रह्मचर्य में अहम् भूमिका बतायी जाती है<br /><br />@साँस लेना हमारे जीवन के लिए इतना अवशयक है तो हमें साँस लेने में मजा क्यों नहीं आता.......<br /><br />-------- इन्द्रिय का बेसिक कार्य अलग बात है और उससे सुख लेना अलग बात है , क्या हमें चन्दन की सुगंध लेने में सुख नहीं आता ?? आप दूसरी बात कर रहे हैं उत्सर्जन इन्द्रिय की, उसका दैनिक कार्य उत्सर्जन है ...सामान्य परिस्थिति में अपशिष्ट पदार्थों काएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-52787056348623662392011-03-31T13:32:54.869+05:302011-03-31T13:32:54.869+05:30@हमारे समाज में उम्र के एक पड़ाव के बाद पति पत्नी अ...@हमारे समाज में उम्र के एक पड़ाव के बाद पति पत्नी अपने प्रेम की शारीरिक अभिव्यक्ति करने में शर्माने लगते हैं. मुझे इसके पीछे धार्मिक प्रभाव दिखा. <br />-----कारण सामाजिक भी होता है ये बात अलग है की हमें जहां भी स्वतंत्रता में कमीं नजर आने लगती है हम धर्म को दोषी ठहराते हैं , हम आधुनिक[?] लोग हैं ना और तार्किक [?] तो हैं ही :))<br /><br />@मेरा मुद्दा है की पति पत्नी को किसी भी उम्र में अपने प्रेम की शारीरिक अभिव्यक्ति पर किसी भी प्रकार का अनावश्यक नियंत्रण नहीं लगाना चाहिए. (पढ़ते वक्त अनावश्यक पर जोर दें)<br /><br />----- अनावश्यक की अपनी अपनी डेफिनेशन होती है <br /><br /><br />@अति का समर्थन बिलकुल भी नहीं करता क्योंकि अति तो हर चीज की बुरी होती है.<br /><br />-----"अति तो हर चीज की बुरी होती है" ये बात बेमतलब है क्योंकि आप उम्र के पांचवे पड़ाव में जिन बातों समर्थन कर रहे हैं अति ही लग रहा है <br /><br /><br />@....दूसरी तरफ पता चलता है की पागलखाने के अधिकांश रोगी यौन कुंठाओं के शिकार होते हैं.<br /><br />-----गीता के श्लोक दिए हैं मैंने उपर टिप्पणी में <br /><br /><br />@कहीं लोग पूजा के वक्त कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं तो कहीं तंत्र में काम ही सिद्धि का आधार बनता है.<br /><br />-----पहले हम मनोविज्ञान जैसे साधारण विषयों को समझ लें वही काफी होगा <br /><br /><br />@हमारे शरीर का एक स्राव मात्र है और कही इसे शरीर के शुद्ध खून से निर्मित बताया जाता है<br /><br />----- "खून से नहीं मज्जा से" और लोग तो इसे स्त्राव ही मानेंगे , लेकिन काश वो ये भी समझें की जहां मन और साइंस मिल जाये वही हमेशा सही नहीं होता , जहां धर्म और साइंस मिले वो सही सकता है , आयुर्वेद के अनुसार शुक्र सातवे स्तर (स्टेज ) पर आता है <br /><br />और शायद ये रीसर्च इस और इशारा भी कर रही हैं <br /><br />http://news.bbc.co.uk/2/hi/health/6547675.stm<br /><br />http://humrep.oxfordjournals.org/cgi/content/abstract/15/1/83<br /><br />@देखिये मैं वैज्ञानिक नहीं सिर्फ एक प्रकृति प्रेमी हूँ. उसकी व्यवस्था पर पूर्ण विश्वाश रखता हूँ. <br />------- जान कर ख़ुशी हुयी लेकिन इसके लिए हमें प्रकृति को समझना होगा <br /><br />@अगर इस रोकना ही होता तो प्रकृति खुद ही कुछ व्यवस्था करती.अगर इस रोकना ही होता तो प्रकृति खुद ही कुछ व्यवस्था करती.<br /><br />-----चिंतन पर निर्भर है , कुछ लोग ये भी कहते हैं "कामुक चिंतन न करें, क्योंकि ऐसा करने से से पुरुष का शुक्राशय स्राव से भरता रहता है" , प्रकृति ने व्यवस्था की लेकिन किसी ने समझा ही नहीं तो कोई क्या करे <br /><br />http://hi.shvoong.com/medicine-and-health/nutrition/<br /><br /><br />@.......अगर इस रोकना ही होता तो प्रकृति खुद ही कुछ व्यवस्था करती. उसके लिए बाबाओं की नियुक्ति नहीं की जाती. <br /><br />----- टीचर को सिर्फ पढ़ाने के लिए नियुक्त किया जाता है, कुछ बच्चे फेल भी तो होते हैं क्लास में :) , कुछ तो पढने ही नहीं जाते :))एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-79647420292338183002011-03-31T13:28:47.863+05:302011-03-31T13:28:47.863+05:30मैं इसलिए कुछ नहीं बोल रहा क्योंकि इंसान को हर बात...मैं इसलिए कुछ नहीं बोल रहा क्योंकि इंसान को हर बात में नेगेटिविटी ढूँढने की आदत होती है , मैं उत्तर दूंगा तो पाण्डेय जी को लगेगा "ये तो बच्चा है" , दरअसल हमारा मन एक बेईमान दोस्त है , .....लेकिन ये पढ़ कर की <br />@ (ब्लॉग जगत में कोई बड़े बूढ़े नहीं, यहाँ सब एक ही उम्र के हैं )<br />सोचा एक बड़ी से टिप्पणी में भी कर ही दूँ <br />अब किसी ने नहीं बताया तो मैं बता दूँ जो वैज्ञानिक तथ्य मैंने दिए हैं उनका खंडन किया जा चुका है लेकिन वो मैंने सिर्फ दूसरा पक्ष दिखाने के लिए और ये बताने के लिए की साइंस हर बार पक्ष बदलती रही है..... दिए हैं | खंडन जो नए ज्ञानी विज्ञानी लोग करते हैं काश वो ये भी मान लें की "शुक्र धातु शरीर के साथ-साथ मन के लिए भी महत्त्वपूर्ण है" । शायद इसलिए वे लोग मनोरोगों के इलाज और रोकथाम में असफल हो रहे हो :)एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-79071140502697905332011-03-31T09:52:01.034+05:302011-03-31T09:52:01.034+05:30सुज्ञ जी प्रणाम और सुप्रभात, सबसे पहले मैं आपको धन...सुज्ञ जी प्रणाम और सुप्रभात, सबसे पहले मैं आपको धन्यवाद दूंगा की आपने अपने विचारों से हर बार मेरा मार्गदर्शन किया है. मेरे बचपन से ही मेरे बड़े बूढों (ब्लॉग जगत में कोई बड़े बूढ़े नहीं, यहाँ सब एक ही उम्र के हैं ) को लगता रहा की मेरे विचार या मेरी सोच विद्रोही और धर्म विरुद्ध होती है. अपने विचारों के लिए मैं बहुत बार पिटा. किसी ने मेरी शंकाओं का समाधान नहीं किया. यहाँ ब्लॉग पर आपके गौरव और दुसरे धर्म और संस्कृति पर पकड़ रखने वाले लोगों के सामने मैं अपने मन में उठाने वाले हर उस विचार को रखना चाहता हूँ जिसके उत्तर में मुझे हमेशा तनी हुयी भृकुटी, मौन या प्रताड़ना ही मिली है. <br /><br />मुझे लगता है की मेरी ही तरह और भी लोग होते होंगे जो अपने धर्म, अपनी संस्कृति पर विश्वास तो रखते होंगे पर कुछ बातों को समझ नहीं पाते होंगे. इसलिए अगर आप लोग यूँ ही मार्गदर्शन करेंगे तो मैं आजीवन आपका ऋणी रहूँगा. <br /><br />मैं जो भी बात कहता हूँ वो मेरे मन में आ रहे विचार होते हैं और मैं कभी भी ये नहीं मानता की मेरा हर विचार सही है. एकाउंट्स का बन्दा हूँ अच्छी तरह पता है की क्रोस चेकिंग का क्या महत्व है इस लिए अपने विचारों की क्रोस चेकिंग करवाने के लिए आप लोगों के समक्ष इन्हें प्रकट करता हूँ. <br /><br /> देवेन्द्र पाण्डेय जी, की ही तरह वक्त की कमी की वजह से मैं भी किसी चर्चा में सक्रिय सहयोग नहीं कर पता क्योंकि मेरे घर की हर भौतिक वास्तु पर मेरा सिर्फ एक चौथाई अधिकार ही है. बंकि का तीन चौथाई हिस्सा मेरे दो बच्चों और पत्नी का है. मैं कंप्यूटर पर हूँगा तो बाकी के तीनों भी यहीं होंगे और अपना हिस्सा मांग रहे होते हैं (इस वक्त भी मेरी पुत्री कार्टून नेटवर्क पर गेम खेलना चाहती है उसके बाद पुत्र भी लाइन में है) और अगर मैं टी वी देखूंगा तो तब भी वो वहीँ होंगे और अपना चैनल देखना चाहेंगे. बड़ी समस्या रहती है. <br /><br />सुज्ञ जी बाकि चर्चा बाद में. ३१ मार्च है. शाम को कब लौटना होगा मालूम नहीं इसलिए संक्षेप में कह देता हूँ की अपने अपनी टिपण्णी में ये जो कहा है की <br /><br />"हम ग्रहस्थ जीवन में पूर्ण ब्रहमचर्य के समर्थक न होते हुए भी आत्मनियंत्रण व इन्द्रिय निग्रह के परिपेक्ष में ब्रहमचर्य को बकवास, अप्राकृतिक और अस्वभाविक मानने का विरोध करते है।"<br /><br /><br /><br />मैं इस उपरोक्त विचार के पूर्ण समर्थन में हूँ. ब्रहमचर्य का अपना महत्व है लेकिन इस पर हमारे धर्म में खुद को बाल ब्रह्मचारी कहलवाने में गर्व का अनुभव करने वाले बाबाओं ने अनावश्यक रूप से जीवन हर पक्ष में ब्रह्मचर्य को पूजनीय दर्जा दिलवा दिया है जो की गलत है. अगर आप सिर्फ इन्द्रिय निग्रह की बात करते हैं तो संयमी भोजन करने वाले व्यक्ति को भी ब्रह्मचारी का सा दर्जा मिलना चाहिए क्योंकि वो भी अपनी जीभ पर नियंत्रण करता है. कहने का मतलब है की जो बहुत कठिन चीज है जैसे ब्रह्मचर्य उस पर कुछ लोग कब्ज़ा जमा कर खुद को दूसरों से बेहतर और पूजनीय बनाने का प्रयास करते हैं जिसका मैं विचारों से विरोध करता हूँ. <br /><br /><br /><br />अभी तो बस बाकि कल जब समय होगा. <br /><br /><br /><br />सुज्ञ जी आपका एक बार फिर से धन्यवाद. <br /><br /><br /><br />देवेन्द्र पाण्डेय जी आपका भी बेहद धन्य वाद. अपने अपनी बात स्पष्ट कर दी वर्ना मैं भी यही समझ रहा था की आप चर्चा से निराश या नाराज हैं. आपने खुल कर अपने बात कही इसके लिए बेहद धन्यवाद. <br /><br /><br /><br />चलते चलते मैं उन पाण्डेय महोदय को भी दिल से धन्यवाद कहूँगा जिन्होंने भारतीय टीम की जीत पर निर्वस्त्र होकर ख़ुशी मानाने की बात कही है. मैं विचारों में निर्वस्त्र होना चाहता हूँ और वो कपड़ों से होना चाहती हैं पर हैं दोनों ही पाण्डेय :).VICHAAR SHOONYAhttps://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com