tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post213028693550387884..comments2023-10-31T18:36:02.752+05:30Comments on विचार शून्य: स्त्री पुरुष मैत्री - वास्तविकता या छलावा.VICHAAR SHOONYAhttp://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.comBlogger49125tag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-25913013840041960582011-05-11T22:52:03.602+05:302011-05-11T22:52:03.602+05:30आग ओर घी साथ रहे ओर पिगले भी नही....? आफ़िस, कालेज ...आग ओर घी साथ रहे ओर पिगले भी नही....? आफ़िस, कालेज वगेरा कि बात अलग हे, वहां अलग नही होते.... बाकी तो... राम जानेराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-15289938069827970752011-05-11T10:11:24.865+05:302011-05-11T10:11:24.865+05:30@पाण्डेय जी
जब ऐसी बड़ी बड़ी बातें होती हैं , तो मु...@पाण्डेय जी<br /><br />जब ऐसी बड़ी बड़ी बातें होती हैं , तो मुझे कुछ पोस्ट्स , कुछ चर्चाएँ और कुछ कमेन्ट्स और उनमें मौजूद एक ख़ास पेटर्न याद आने लगते हैं जिसमें पॉलिसी को घुमा फिरा कर इस्तेमाल किया गया हो . लेकिन .. हम जैसे लोगों ने हमारे मन की पॉलिसी में कुछ ज्यादा ही बंधन लगाएं हैं जिन्हें हम घूमा फिर कर इस्तेमाल नहीं करते ......इसलिए हम टेक्नीकल फाल्ट मौजूद होने पर भी नहीं बताते :)एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-57355130013816413982011-05-11T09:05:38.016+05:302011-05-11T09:05:38.016+05:30deep
I said soon i will also write on this top...deep <br /><br />I said soon i will also write on this topic. <br />I have not said any where in any of my comments that i will contradict your post or support it <br />we all have our individual views and experience and i always feel if a post provokes a thought that we need to elaborate we can / should do it on our blog with a back link <br /><br />As regards policy at least "naari blog " has a policy and it adheres to its policyरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-21475099067799346672011-05-10T20:57:01.395+05:302011-05-10T20:57:01.395+05:30@पाण्डेय जी
आपका ये नया प्रोफाइल अवतार अदभुद है :...@पाण्डेय जी<br /><br />आपका ये नया प्रोफाइल अवतार अदभुद है :)एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-14937337282971674162011-05-10T20:47:40.711+05:302011-05-10T20:47:40.711+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-52962797057584787922011-05-10T19:39:23.870+05:302011-05-10T19:39:23.870+05:30रचना जी आपकी पोस्ट का इंतजार रहेगा और पूरा विश्वास...रचना जी आपकी पोस्ट का इंतजार रहेगा और पूरा विश्वास है की गौरव जी की टिपण्णी मोडरेशन संबन्धिन सभी आशंकाएं निर्मूल साबित होंगी :))VICHAAR SHOONYAhttps://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-72700010735643150872011-05-10T15:04:30.710+05:302011-05-10T15:04:30.710+05:30...... तो यहाँ पर अपनी बात रखने में क्या बुराई है ......... तो यहाँ पर अपनी बात रखने में क्या बुराई है ?एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-52069470517596457032011-05-10T15:02:35.028+05:302011-05-10T15:02:35.028+05:30मैं समझ नहीं पाया , अगर चर्चा का कोई पहलू बच गया ह...मैं समझ नहीं पाया , अगर चर्चा का कोई पहलू बच गया है और तार्किक भी है तो यहीं पर क्यों नहीं रखा जा रहा है ?? <br />ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आपके ब्लॉग की पालिसी की समझ मुझे और मेरे जैसे अन्य मासूम विचारकों को कुछ कम ही है इसीलिए आपके ब्लॉग पर आने या/और वहां विचार रखने से कतराते भी हैं शायद , दूसरी बात ये की सच का सम्मान तो हमेशा होता है ......होता रहेगा ..एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-3169626601150665882011-05-10T13:17:50.414+05:302011-05-10T13:17:50.414+05:30अब कहीं कोई स्त्री पुरुष अपने शरीरों को भूल कर अपन...अब कहीं कोई स्त्री पुरुष अपने शरीरों को भूल कर अपनी मित्रता को कायम रखते हैं तो उनको मेरा दंडवत प्रणाम<br /><br />yae panktiyan jodane kae liyae thanks warna lag raha thaa jaese shareer kae allawa kuchh haen hee nahin . <br /><br />gender sae upar uth kar bhi bahut kuchh haen <br /><br />aur agar koi nahin kar paataa toh yae nahin kehna chahiyae ki koi nahin kar saktaa <br /><br /><br />kuchh kar saktey haen <br /><br />ek post likhungi is vishay par jaldi hiiरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-61714623820264776632011-05-09T10:43:20.529+05:302011-05-09T10:43:20.529+05:30लिंग विभिन्नता एक प्राकृतिक सच्चाई है। जेन्डर को इ...लिंग विभिन्नता एक प्राकृतिक सच्चाई है। जेन्डर को इग्नोर कर देना सम्भव ही नहीं। जेंड़र से उपर उठकर मित्रता निभाना बड़े बडे संतो के लिए भी कठिन है। वे भी यह तब कर पाते जब वे राग और लगाव (कथित प्रेम-मित्रता) को ही त्याग देते है। और उसमें भी प्राकृतिक आवेगों का उत्पन्न होना इतना ही प्राकृतिक है। किन्तु यह जरूरी नहीं है कि प्राकृतिक आवेगों को ज्यों का त्यों प्राकृतिक मान उनके वश हो जाना चाहिए। उन आवेगों को सुसंस्कृत बनाना सम्भव है।<br /><br />महापुरूषों द्वारा रिश्तो का महिमामंडन उसी प्राकृतिक लगावों का सुसंस्कृतिकरण है। माता का लगाव ममता, बहन का लगाव अपनत्व और सुरक्षा, पिता का लगाव पालन, भाई का बंधुत्व,पत्नी/पति का सहयोग। और भी कईं। यह लगावों को सही, सुसंस्कृत दिशा और स्थायित्व प्रदान करना है।<br /><br />ऐसे आवेगों में एक विपरित लिंग आकृषण भी है। जिस पर नियंत्रण पाना कठिन ही नहीं दुष्कर भी है। इसीलिये विद्वान ज्ञानी ‘काम’ को ‘दुर्जेय’ कहते है। और संयत रहने की सलाह देते है। वहीं भौतिकता वादी भी इस को दुर्जेय मानते हुए उस पर विजय पाने के प्रयत्न को व्यर्थ श्रम कहकर प्राकृतिकता वश रहने को उपयुक्त मानते है।<br /><br />दीप जी,<br />आपकी यह बात सही है कि कितने ही अदेह भाव से मित्रता की जाय, आग-भूसे के उदाहरण के समान ही अनुकूलता आने पर वह अक्सर दैहिक प्रेम में बदल जाती है।<br /><br />सारी गड़बड़ ‘प्रेम’ और ‘मैत्री’ जैसे आत्मिक विशेषणों को भौतिक आवेगपूर्ण लगावों के लिये प्रयुक्त करने से हुई है। वह सम्यग् प्रेम और सम्यग् मैत्री यहां है भी नहीं। वह तो राग का भी त्याग करने पर उत्पन्न होती है।<br /> <br />और इस कथित‘मैत्री’ शब्द में हमनें सभी रिश्तों के गुण गुण ही भर दिए, और मान लिया यह रिश्तों के हर सम्भावित दूषणों से मुक्त है। किन्तु, इन सारे गुणो का भार यह ‘भौतिक मैत्री’ उठाने में समर्थ नहीं है। कदापि नहीं। इसिलिये दूषणों का आ जाना अवश्यंभावी है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-9050836713228828662011-05-08T15:41:39.606+05:302011-05-08T15:41:39.606+05:30@ गौरव जी मुझे लगता है की आपने स्त्री पुरुष मित्रत...@ गौरव जी मुझे लगता है की आपने स्त्री पुरुष मित्रता के सम्बन्ध में कही मेरी बात की मूल भावना को समझ लिया है. आपके सारे कमेन्ट मुझे लेख के मेरे भावों का समर्थन ही करते लगे. ( जिन टिप्पणियों को अपने हटाया है वो भी सही थीं).<br /><br /><br /><br />मेरा मूल विचार यही था की विपरीत लिंगी लोग अपने सेम सेक्स के मित्रों सी निर्बाध मित्रता नहीं कर सकते और इसे सामान लिंगी मित्रता के समकक्ष नहीं रखा जा सकता. इस विचार को स्पष्ट करने के लिए बहुत कुछ तैय्यारी के साथ अपनी बात कही जानी चाहिए थी ताकि लोग इसे स्त्री पुरुष के बीच के सामान्य सामाजिक संबंधों से जोड़ कर ना देखें परन्तु मैं ऐसा कर न पाया . <br /><br /><br /><br /> ऑफिस में या समाज के अन्य क्षेत्रों में हम बहुत से स्त्री पुरुषों से मिलते हैं और व्यावसायिक या सामाजिक सम्बन्ध रखते हैं परन्तु मित्र का दर्जा हर किसी को नहीं देते. मित्रता का सम्बन्ध सामान्य संबंधों से हटकर होता है. अपने मित्र के साथ हम अपनी जिंदगी का हर अनुभव बाटते हैं.दो मित्रों के बीच एक विशवास का संबध होता है, एक निर्बाध सहजता और स्वतंत्रता होती है जो दैहिक प्रतिबंधों की मोहताज नहीं होती. दो दोस्तों के बीच मानसिक निकटता ही नहीं बल्कि शारीरिक निकटता भी होती है. शारीरिक निकटता से मेरा मतलब शारीरिक सम्बन्ध नहीं बल्कि मैं कहूँगा की सेक्स लेस शारीरिक निकटता जो की स्त्री पुरुष की दोस्ती में कभी भी नहीं हो सकती. बस इसी वजह से मैंने कहा था की स्त्री पुरुष नैसर्गिक मित्र नहीं होते. अब कहीं कोई स्त्री पुरुष अपने शरीरों को भूल कर अपनी मित्रता को कायम रखते हैं तो उनको मेरा दंडवत प्रणाम.VICHAAR SHOONYAhttps://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-92003179713958133942011-05-08T11:10:40.576+05:302011-05-08T11:10:40.576+05:30हाँ तो अब आगे ..
~~~~~फ़िल्में, भोजन और मन~~~~~~~
...हाँ तो अब आगे ..<br /><br />~~~~~फ़िल्में, भोजन और मन~~~~~~~<br /><br />भोजन कईं तरह से होता है एक तो सिम्पल वाला भोजन जो हम मुख द्वार से ग्रहण करते हैं इसी तरह आँखों , कानों से भी हम भोजन ग्रहण करते हैं , सोचने वाली बात है अगर किसी के सामने सात्विक और चटपटा भोजन रख दिया जाए तो कोई चटपटा भोजन ही खायेगा .......मानव स्वभाव है, यहाँ चटपटे भोजन से आशय कथित चटपटी और हानिकारक फिल्मों आदि से है (जिनमें सच्चाई नहीं दिखाई जाती .... सिर्फ मसाला होता है, चटपटे भोजन की तरह ) धीरे धीरे हमारा मन ये मानने लगता है की हाँ ऐसा भी होता है या हो सकता है ... वहीं से नयी परेशानियों की शुरूआत होती है और दोस्ती अक्सर इस तरह के एक्सपेरिमेंट्स के लिए एक साधन भी बनती देखी जाती है, एक बात हमेशा याद रखिये आप का subconscious mind अपने आप में एक शक्ति है तो एक बड़ी परेशानी भी , ये एक दम सच बात है की आज के युग में मनोरोग दबे पाँव आगे बढ़ रहे हैं (जीवन शैली के अलावा कारण बहुत से हैं ) , हमें उन क़दमों की आहट को सुनना होगा , इसलिए बेहतर है की हम हर विषय के सूक्ष्म और दूरगामी प्रभावों पर भी ध्यान दें और आने वाली पीढीयों को उससे बचाएं क्योंकि ये हमारी जिम्मेदारी है<br /><br />{मेरे सभी कमेंट्स को सबसे पहले टीन एजर्स को ध्यान में रखते हुए सोचिये }एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-27457200900776518412011-05-08T08:54:57.508+05:302011-05-08T08:54:57.508+05:30विचार शून्य में आना मतलब विचारों की नदी में गोते ल...विचार शून्य में आना मतलब विचारों की नदी में गोते लगाना।<br />..मेरे विचार से मित्रता को रिश्तों की नहीं, रिश्तों को मित्रता की दरकार होती है।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-82026766958015195952011-05-08T07:42:28.861+05:302011-05-08T07:42:28.861+05:30वसीम बरेलवी साहब ने सही कहा है .......
गुलामी जि...वसीम बरेलवी साहब ने सही कहा है ....... <br /><br /><i>गुलामी जिस्म की रहती है जंजीर कटने तक गुलामी जेहन की बड़ी मुश्किल से जाती है | </i>एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-80331851521692395902011-05-08T07:18:56.651+05:302011-05-08T07:18:56.651+05:30@पाण्डेय साहब
ऐसी छिछोरी फ़िल्में मनोरंजन की दृष्टि...@पाण्डेय साहब<br />ऐसी छिछोरी फ़िल्में मनोरंजन की दृष्टि से देखनी है , क्या मनोरंजन है , वाह... वाह..... वाह .....:))))) ऐसे "मन" से किस तरह के विचारों की उम्मीद की जाये जिसे इस तरह की फ़िल्में "रंजन" लगे <br /><br />सीखने प्रयास अगर आप ना भी करें तो थोड़ी जानकारी बढ़ा दूँ ..सीख दो प्रकार की होती है .प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष ..मतलब subconscious mind भी कोई चीज होती है , लगता है इस देश के आधुनिक लोगों ने सिर्फ को-एज्युकेशन देखी है साइकोलोजी नहीं पढी , इस मनोरंजन के साइड इफेक्ट जो युवा को होंगे तो उन्हें मेडिकल साइंस[?] "ये तो नोर्मल बात है" कह ही देगा ..और बाकी रीसर्चेस तो कमाल की हैं ही ..अच्छा जुल्म हुआ है हर सदी में मासूम युवाओं पर (रूढ़िवादियों द्वारा)<br /><br />अब सीखने और सिखाने वाली बात ये है की नारी को शरीर नहीं मानना है , और जेंडर से ऊपर उठ कर सोचना है . ठीक है .. ये बात आपको एक टीन एजर को समझानी है .. उम्मीद है वो संतों के लेवल की बातें समझेगा ..<br /><br />"""को - एज्युकेशन और गैर जरूरी तनाव""""<br /><br />अक्सर देखा है पढ़ाई से ज्यादा तनाव गर्ल फ्रेंड के लिए होता है और आजकल तो प्रेस्टीज का मामला है , ये दिव्य प्रभाव, इससे जन्में अपराध , कुंठाएं इग्नोर कर दें और इधर उधर से बेकार उदाहरण उठा कर लायें तो बाल विवाह जैसी कुरीति को भी सही ठहरा सकते हैं<br /><br />मुझे किसी ने बताया की कट्टर आधुनिकता वादी और कट्टर धार्मिक बातें करने वालों में कोई फर्क नहीं होता , बस इनके एक्सप्लेनेशन पढो और हँसो .....और अगर चापलूस हो तो हँसी आने के बाद भी धारदार लेखनी और पता नहीं क्या क्या अच्छा कह दो <br />कुछ केसेज में चापलूसी मित्र बने रहने की मिनिमम क्वालिफिकेशन भी है, कईं लोगों को मित्रतावश बेवजह बचाव करते और बाद में आपस में लड़ते देखा है :)) और उसके बाद मित्रता पर ज्ञान बांटते हुए भी देखा है :)) <br /><br /><br />अरे पाण्डेय जी बनाओ बनाओ ग्रुप ब्लॉग बनाओ, भारत भारती वैभवं और निरामिष के बाद एक और ढंग के ग्रुप ब्लॉग की जरूरत है जो बात के सभी पक्षों पर विचार करे , आप कोई तगड़ी पालिसी तो नहीं बनायेंगे ना "कमेन्ट कर्ताओं" के लिए :)) <br /><br /><br />सुज्ञ जी और प्रतुल जी कहाँ हैं , मुझे बीच बीच में बोलना पड़ रहा है :))एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-66225655730047169222011-05-08T00:12:55.042+05:302011-05-08T00:12:55.042+05:30.
.
.
मेरी समझ तो यही कहती है की स्त्री पुरुष नैस....<br />.<br />.<br /><b>मेरी समझ तो यही कहती है की स्त्री पुरुष नैसर्गिक मित्र नहीं होते. ये मित्र भाव रख सकते हैं परन्तु इसके लिए इन्हें किसी न किसी रिश्ते का सहारा जरुर ढूँढना पड़ता है</b><br /><br />यह आप के लिये सही हो सकता है परंतु सभी के लिये नहीं... इस तरह के मसलों पर हमारे निकाले निष्कर्ष हमारे परिवेश से प्रभावित होते हैं... अपनी कहूँ तो जिस स्त्री की चाह मैं एक पुरूष के नाते रखता हूँ उसे मित्र तो कभी नहीं कहता...<br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-1179798491690651172011-05-07T23:58:01.235+05:302011-05-07T23:58:01.235+05:30सबसे कहले तो कहूँगी की अमेरिकल पाई जैसी फिल्मे केव...सबसे कहले तो कहूँगी की अमेरिकल पाई जैसी फिल्मे केवल मनोरंजन की दृष्टि से देखिये उससे कुछ सीखने का प्रयास मत कीजिये वैसे कई फिल्मो के नाम बता सकती हूँ जिसमे पुरुष महिला की मित्रता को अच्छे से दिखाया गया है फिल्मो में कभी भी समाज की सच्चाई नहीं दिखाई जाती है |<br /><br />मै फिर वही बात दोहराती हूँ जिन परिस्थितियों की बात आप कर रहे है उस में तो मित्र क्या भाभी, चचेरी ममेरी फुफेरी बहन या सगी बहन तक , साली सहज किसी से भी रिश्ता ख़त्म हो सकता है यदि आप की सोच वैसी है | बड़ी बात सोच की है की वो पुरुष दुनिया में बाकि महिलाओ को किस रूप में देखता है या वो महिला अन्य पुरुषो को किस रूप में देखती है | यदि आप के लिए नारी सिर्फ एक शारीर का नाम है तो एकांत क्या भीड़ में भी उसके निकट जा फायदा उठाने से नहीं चुकेंगे फिर इन प्रिश्तितियो की बात ही क्या |<br /><br />आप आधुनिक गर्लफ्रेंड ब्वाय फ्रेंड को गलत अर्थ में ले रहे है इनका शाब्दिक अर्थ महिला या पुरुष मित्र होता है किन्तु ये शब्द हर जगह प्रेमी या प्रेमिका के लिए प्रयोग किये जाते है अमेरिका में भी | मित्र के लिए आज भी फ्रेंड शब्द ही कहा जाता है चाहे वो महिला हो या पुरुष | शब्दों को रिस्तो से घालमेल न करे |<br /><br /> इस बारे में आप की राय पढ़ कर आभास होता है की आप कभी भी को एजुकेशन में नहीं पढ़े है | कई बार आप ने देखा होगा की लड़की लड़को का एक मित्रो का ग्रुप होता है संभव है की उसमे से एक दो प्रेमी जोड़े भी हो किन्तु बाकि तो आपस में सामान्य मित्र ही होते है | रही बात कुछ पर्दे की तो ये बात तो सामान लिंगी पर भी लागु होती है हर मित्र से हम हर तरह की बाते नहीं करते है बिलकुल वैसा ही रिश्ता नहीं रखते है | किसी का घर में बहुत आना जाना है तो उससे घर के सरे सुखा दुःख कह लेते है किन्तु दूसरो से नहीं कहते कभी आफिस एक ही केबन में बैठने वालो के बिच जैसी मित्रता होती है वैसी अन्य आफिस वालो से नहीं कसी मिटे से सिर्फ दिमाग वाली ही बात होती है तो कसी से दिल दिमाग सभी खोल कर रखा देते है | बस इसी तरह का पर्दा कुछ लोग महिला मित्रो से रखते है तो कुछ नहीं | रही बात धोखे की तो वो तो आप किसी भी रिश्ते में खा सकते है |<br /><br /> किसी ने कहा था की जिसको बेटी नहीं होती वो उसके सुख को उसके रिश्तो को नहीं जान सकता उसी तरह जिसके मित्रो में विपरीत लिंग वाले नहीं होते है वो उन चीजो को शायद वैसे नहीं समझ सकता है | अपना मान बस सुनी सुनाई बातो से ही बनता है | <br /><br /> आप ने बताया नहीं की आप ने अपना ब्लॉग सामूहिक बना लिया है और कितने सदस्य है :)))anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-63185261179336984692011-05-07T23:37:11.012+05:302011-05-07T23:37:11.012+05:30जस्ट टू ऐड: पाश्चात्य पोर्नो का एक और जुमला है -FM...जस्ट टू ऐड: पाश्चात्य पोर्नो का एक और जुमला है -FMB!Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-7383577476969390982011-05-07T23:18:59.688+05:302011-05-07T23:18:59.688+05:30ब्लॉग जगत में पहली बार एक ऐसा सामुदायिक ब्लॉग जो भ...ब्लॉग जगत में पहली बार एक ऐसा सामुदायिक ब्लॉग जो भारत के स्वाभिमान और हिन्दू स्वाभिमान को संकल्पित है, जो देशभक्त मुसलमानों का सम्मान करता है, पर बाबर और लादेन द्वारा रचित इस्लाम की हिंसा का खुलकर विरोध करता है. साथ ही धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कायरता दिखाने वाले हिन्दुओ का भी विरोध करता है.<br />आप भी बन सकते इस ब्लॉग के लेखक बस आपके अन्दर सच लिखने का हौसला होना चाहिए.<br />समय मिले तो इस ब्लॉग को देखकर अपने विचार अवश्य दे<br /><a href="http://vishvguru.blogspot.com/2011/05/blog-post_04.html" rel="nofollow">जानिए क्या है धर्मनिरपेक्षता</a><br /><a href="http://vishvguru.blogspot.com/2011/04/blog-post_19.html" rel="nofollow">हल्ला बोल के नियम व् शर्तें</a>हल्ला बोलhttps://www.blogger.com/profile/12194388500228751046noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-49642605107334995692011-05-07T21:20:17.641+05:302011-05-07T21:20:17.641+05:30मैंने मेरे पिछले चार कमेन्ट हटाये हैं , क्योंकि वो...मैंने मेरे पिछले चार कमेन्ट हटाये हैं , क्योंकि वो मुझे चर्चा की मौजूदा दिशा से कुछ अलग दिशा में जाते लगेएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-75782668226147222412011-05-07T20:56:05.654+05:302011-05-07T20:56:05.654+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-9589389129461090442011-05-07T20:44:02.418+05:302011-05-07T20:44:02.418+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-560244206374367492011-05-07T20:40:59.175+05:302011-05-07T20:40:59.175+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-32998540119796247902011-05-07T20:39:52.069+05:302011-05-07T20:39:52.069+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419007131331261482.post-18200982456789675992011-05-07T17:03:25.751+05:302011-05-07T17:03:25.751+05:30भाई मेरे, मित्रता तो प्रेम से भी अधिक चित्त की निर...भाई मेरे, मित्रता तो प्रेम से भी अधिक चित्त की निर्मलता मांगती है और इसीलिए भगवान् बुद्ध ने मैत्रीभाव को ही महत्व दिया है, प्रेमभाव को नहीं.<br />बाकी आपका दिया गया उदाहरण वाकई लचर है. इसमें कोई दो राय नहीं.<br />जैसा कि मोहनीश बहल की भांति आप मान ही चुके है कि स्त्री और पुरुष कभी मित्र नहीं रख सकते भले ही वे कितना ही "मित्र भाव" रख लें तो क्या किया जा सकता है.<br />बाई द वे, 'मैंने प्यार किया' का वो डायलोग क्या था? किसी भाई को याद हो तो पोस्ट कर दे.निशांत मिश्र - Nishant Mishrahttps://www.blogger.com/profile/08126146331802512127noreply@blogger.com